K.n.i.p.s.s(law faculty)
Nearby universities
228142
You may also like
Faculty of Law KNIPSS (Establishment-1973)- Affiliated to Dr.R.M.l. Awadh University Faizabad. Appro
के एन आई छात्रा बिहार लोक सेवा आयोग द्वारा ए पी ओ में चयनित।
कमला नेहरू विधि संस्थान सुल्तानपुर की पंचवर्षीय विधि स्नातक छात्रा शिवानी सिंह ने बिहार लोक सेवा आयोग में हाल में घोषित सहायक अभियोजन अधिकारी की परीक्षा में सफलता प्राप्त किया। शिवानी सिंह ने कमला नेहरू विधि संस्थान से 2016 बैच में विधि स्नातक की पढ़ाई कर, उक्त सफलता प्राप्त की। शिवानी सिंह की सफलता पर , डॉ ए एच खान , डा मोइन अतहर, डा सुभाष चंद्र यादव आदि शिक्षको सहित शिक्षणेत्तर कर्मचारियों व छात्रों ने बधाई दी।
के एन आई के विधि विभाग की सहायक प्रोफेसर पम्मी सिंह का, बिहार लोक सेवा आयोग की सहायक अभियोजन अधिकारी की परीक्षा में चयन, 633वीं रैंक प्राप्त कर सफलता प्राप्त किया।
पम्मी सिंह , एल एल एम की डिग्री हासिल कर वर्तमान में सुल्तानपुर जिले के प्रतिष्ठित महाविद्यालय कमला नेहरू भौतिक एवम् सामाजिक विज्ञान संस्थान सुल्तानपुर के विधि विभाग में सहायक आचार्य के पद पर गत तीन वर्ष से कार्यरत रहीं, जो काफी कुशाग्र बुद्धि , सहयोगी कार्य आचरण सहित अच्छी शिक्षिका है। पम्मी सिंह का अभी एक सप्ताह पूर्व विवाह भी संपन्न हुआ ऐसे में उन्हें एक साथ जीवन में दो सफलता प्राप्त किया। उनकी सफलता व चयन से विधि विभाग के शिक्षकों में विधि छात्रों तथा छात्राओं में रिजल्ट घोषित होते ही खुशी का माहौल है।
के एन आई का छात्र बिहार लोक सेवा आयोग द्वारा ए पी ओ में चयनित।
कमला नेहरू विधि संस्थान सुल्तानपुर का पंचवर्षीय विधि स्नातक छात्र आकर्षित श्रीवास्तव ने बिहार लोक सेवा आयोग में हाल में घोषित सहायक अभियोजन अधिकारी की परीक्षा में 56 वीं रैंक हासिल कर सफलता प्राप्त किया। श्री श्रीवास्तव ने कमला नेहरू विधि संस्थान से 2018 बैच में विधि स्नातक एवम इलाहाबाद वि वि इलाहाबाद से एल एल एम विधि स्नातक की पढ़ाई कर, उक्त सफलता प्राप्त किया। इनका मूल निवास जौनपुर हैं। आकर्षित श्रीवास्तव की सफलता पर , डॉ ए एच खान , डा मोइन अतहर, डा सुभाष चंद्र यादव आदि शिक्षको सहित शिक्षणेत्तर कर्मचारियों व छात्रों ने बधाई दी।
शुभ दीपावली
त्याग, बलिदान, समर्पण, भाइचारे व इंसानियत का पैग़ाम देने वाले पर्व "ईद-उल-अज़हा" की आप सभी को बहुत-बहुत मुबारकबाद!
आवश्यक सूचना
एल एल.बी. पंचम तथा बी.ए.एल एल. बी. सप्तम सेमेस्टर की प्रायोगिक परीक्षा दिनांक 10.06.2023 को विधि संकाय में प्रातः 10 बजे से संपन्न होगी
प्रखर श्रीवास्तव (B.A.LL.B.)
(2009–2014)
Assistant Public Prosecuter Latehar, Jharkhand
सहायक अभियोजन अधिकारी
अखिलेश सिंह (B.A.LL.B.)
(2006–2011)
Assistant Public Prosecuter राँची, Jharkhand
सहायक अभियोजन अधिकारी
पुरातन छात्र , विधि विभाग के एन आई पी एस एस सुलतानपुर ।
गर्व है
ईद मुबारक।
Advocate Varun Mishra
Alum of KNIPSS Law Faculty is now ADVOCATE ON RECORD (AOR) Supreme Court of India.
Proud moments for us.
https://youtu.be/CrBgcHu4KiU
अधिवक्ता विक्रम प्रताप सिंह, सुप्रीम कोर्ट
पूर्व छात्र , विधि विभाग, KNIPSS सुल्तानपुर
Asad के एनकाउंटर पर Yogi सरकार ने अपनी ही STF के खिलाफ जांच के आदेश क्यों दिए? कुछ गड़बड़ तो नहीं! Akhilesh called the encounter fake, Mayawati demanded an inquiry, so now the Yogi government has also ordered a magisterial inquiry against its own STF. The ...
गर्व है।
https://youtu.be/p-6MFzhwxZQ
जीवंत चित्रण विधि छात्रों द्वारा।
पुरानी यादें।
Mime on child labour 'Prahaar' Group of Kamla Nehru Vidhi Sansthan(KNIPSS) SULTANPIR (UP)
यौम ए जम्हूरियत की तहे दिल से बहुत बहुत मुबारक़बाद
वंदे मातरम्
जय हिंद जय भारत
#सृष्टि #और #प्रकृति #के #आभार #का #लोकमहापर्व
#छठ #पूजा
~संजय तिवारी
छठ पूजा सूर्य, उषा, प्रकृति,जल, वायु और उनकी बहन छठी मइया को समर्पित है ताकि उन्हें पृथ्वी पर जीवन की स्थापना करने के लिए धन्यवाद और कुछ शुभकामनाएं देने का अनुरोध किया जाए। छठ में कोई मूर्तिपूजा शामिल नहीं है।यदि छठ के आध्यात्मिक पहलू पर विवेचन करें तो पता चलता है कि वेदों के प्रतिपाद्य देवता नारायण हैं। वेदमाता के रूप में स्थापित गायत्रीमंत्र के प्रतिपाद्य देवता भी वही नारायण हैं। गायत्री मन्त्र के - तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गोदेवस्य - में जो सविता देवता है वह भगवान् सूर्य के आभामंडल के केंद्र में विराजमान भगवान् नारायण ही है। उन्ही को समग्र रूप में सूर्यनारायण कहा जाता है। इसीक्रम में छठ पर्व के भी प्रतिपाद्य देवता भगवान् नारायण ही हैं। इस प्रकार यह व्यापक फलक पर वेद पर्व ही है जो लोकजीवन में अति पावन स्वरुप में सदियों से मनाया जा रहा है। इस त्यौहार के अनुष्ठान कठोर हैं और चार दिनों की अवधि में मनाए जाते हैं। इनमें पवित्र स्नान, उपवास और पीने के पानी (वृत्ता) से दूर रहना, लंबे समय तक पानी में खड़ा होना, और प्रसाद (प्रार्थना प्रसाद) और अर्घ्य देना शामिल है। परवातिन नामक मुख्य उपासक (संस्कृत पर्व से, जिसका मतलब 'अवसर' या 'त्यौहार') आमतौर पर महिलाएं होती हैं। हालांकि, बड़ी संख्या में पुरुष इस उत्सव का भी पालन करते हैं क्योंकि छठ लिंग-विशिष्ट त्यौहार नहीं है। छठ महापर्व के व्रत को स्त्री - पुरुष - वृद्ध - युवा सभी लोग करते हैं। प्रकृति की सुरक्षा, पर्यावरण की देखभाल और जलस्रोतों की महत्ता इस पर्व के आधार तत्व है। यह पूर्णतः प्रकृति पर्व है। प्रकृति से इतर इसमें कुछ भी मान्य नहीं। पूजा की सामग्री भी विशुद्ध प्राकृतिक। गन्ना , मूली , केला,बोरो , सिंघाड़ा , शरीफा , नारियल , हल्दी , अदरक , गुड़ , रसियाव , गुलगुला , ठेकुआ ,धूप , दीप , नैवेद्य। पूजास्थल भी कोई मंदिर नहीं। केवल किसी जलाशय या नदी का तट। इसमें कुछ भी कृतिम नहीं है। सभी कुछ मूल प्रकृति के भाव में ही है। आरती , पूजा , आराधना, साधना और संसाधन तक सब के मूल प्राकृतिक रूप ही यहाँ प्रयुक्त हो रहे हैं। सबसे खास पक्ष यह कि इसमें किसी जाति , पंथ या मजहब को कही मनाही नहीं है। लोक का प्रत्येक अवयव , प्रत्येक समुदाय इसे एक हो स्वरुप में मना सकता है।
शुरुआत
मान्यता है की देव माता अदिति ने की थी छठ पूजा। एक कथा के अनुसार प्रथम देवासुर संग्राम में जब असुरों के हाथों देवता हार गये थे, तब देव माता अदिति ने तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति के लिए देवारण्य के देव सूर्य मंदिर में छठी मैया की आराधना की थी। तब प्रसन्न होकर छठी मैया ने उन्हें सर्वगुण संपन्न तेजस्वी पुत्र होने का वरदान दिया था। इसके बाद अदिति के पुत्र हुए त्रिदेव रूप आदित्य भगवान, जिन्होंने असुरों पर देवताओं को विजय दिलायी। कहते हैं कि उसी समय से देव सेना षष्ठी देवी के नाम पर इस धाम का नाम देव हो गया और छठ का चलन भी शुरू हो गया।
छठ, षष्ठी का अपभ्रंश है। कार्तिक मास की अमावस्या को दीवाली मनाने के बाद मनाये जाने वाले इस चार दिवसीय व्रत की सबसे कठिन और महत्त्वपूर्ण रात्रि कार्तिक शुक्ल षष्ठी की होती है। कार्तिक शुक्ल पक्ष के षष्ठी को यह व्रत मनाये जाने के कारण इसका नामकरण छठ व्रत पड़ा।
छठ पूजा साल में दो बार होती है एक चैत मास में और दुसरा कार्तिक मास शुक्ल पक्ष चतुर्थी तिथि, पंचमी तिथि, षष्ठी तिथि और सप्तमी तिथि तक मनाया जाता है. षष्ठी देवी माता को कात्यायनी माता के नाम से भी जाना जाता है नवरात्रि के दिन में हम षष्ठी माता की पूजा करते हैं षष्ठी माता कि पूजा घर परिवार के सदस्यों के सभी सदस्यों के सुरक्षा एवं स्वास्थ्य लाभ के लिए करते हैं षष्ठी माता की पूजा , सूर्य भगवान और मां गंगा की पुजा देश समाज कि जाने वाली बहुत बड़ी पूजा है । प्राकृतिक सौंदर्य और परिवार के कल्याण के लिए कि जाने वाली महत्वपूर्ण पूजा है ।
लोक आस्था में विज्ञान
छठ सूर्योपासना के लिए प्रसिद्ध पर्व है लेकिन ऋतु परिवर्तन के गूढ़ विज्ञान के रहस्य भी इसमे निहित हैं। मूलत: सूर्य षष्ठी व्रत होने के कारण इसे छठ कहा गया है। यह पर्व वर्ष में दो बार मनाया जाता है। पहली बार चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक में। चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाये जाने वाले छठ पर्व को चैती छठ व कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाये जाने वाले पर्व को कार्तिकी छठ कहा जाता है। पारिवारिक सुख-समृद्धि तथा मनोवांछित फल प्राप्ति के लिए यह पर्व मनाया जाता है। स्त्री और पुरुष समान रूप से इस पर्व को मनाते हैं। छठ व्रत के सम्बन्ध में अनेक कथाएँ प्रचलित हैं; उनमें से एक कथा के अनुसार जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गये, तब श्री कृष्ण द्वारा बताये जाने पर द्रौपदी ने छठ व्रत रखा। तब उनकी मनोकामनाएँ पूरी हुईं तथा पांडवों को राजपाट वापस मिला। लोक परम्परा के अनुसार सूर्यदेव और छठी मइया का सम्बन्ध भाई-बहन का है। लोक मातृका षष्ठी की पहली पूजा सूर्य ने ही की थी। छठ पर्व को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो षष्ठी तिथि (छठ) को एक विशेष खगोलीय परिवर्तन होता है, इस समय सूर्य की पराबैगनी किरणें (Ultra Violet Rays) पृथ्वी की सतह पर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्र हो जाती हैं इस कारण इसके सम्भावित कुप्रभावों से मानव की यथासम्भव रक्षा करने का सामर्थ्य प्राप्त होता है। पर्व पालन से सूर्य (तारा) प्रकाश (पराबैगनी किरण) के हानिकारक प्रभाव से जीवों की रक्षा सम्भव है। पृथ्वी के जीवों को इससे बहुत लाभ मिलता है। सूर्य के प्रकाश के साथ उसकी पराबैगनी किरण भी चंद्रमा और पृथ्वी पर आती हैं। सूर्य का प्रकाश जब पृथ्वी पर पहुँचता है, तो पहले वायुमंडल मिलता है। वायुमंडल में प्रवेश करने पर उसे आयन मंडल मिलता है। पराबैगनी किरणों का उपयोग कर वायुमंडल अपने ऑक्सीजन तत्त्व को संश्लेषित कर उसे उसके एलोट्रोप ओजोन में बदल देता है। इस क्रिया द्वारा सूर्य की पराबैगनी किरणों का अधिकांश भाग पृथ्वी के वायुमंडल में ही अवशोषित हो जाता है। पृथ्वी की सतह पर केवल उसका नगण्य भाग ही पहुँच पाता है। सामान्य अवस्था में पृथ्वी की सतह पर पहुँचने वाली पराबैगनी किरण की मात्रा मनुष्यों या जीवों के सहन करने की सीमा में होती है। अत: सामान्य अवस्था में मनुष्यों पर उसका कोई विशेष हानिकारक प्रभाव नहीं पड़ता, बल्कि उस धूप द्वारा हानिकारक कीटाणु मर जाते हैं, जिससे मनुष्य या जीवन को लाभ होता है। छठ जैसी खगोलीय स्थिति (चंद्रमा और पृथ्वी के भ्रमण तलों की सम रेखा के दोनों छोरों पर) सूर्य की पराबैगनी किरणें कुछ चंद्र सतह से परावर्तित तथा कुछ गोलीय अपवर्तित होती हुई, पृथ्वी पर पुन: सामान्य से अधिक मात्रा में पहुँच जाती हैं। वायुमंडल के स्तरों से आवर्तित होती हुई, सूर्यास्त तथा सूर्योदय को यह और भी सघन हो जाती है। ज्योतिषीय गणना के अनुसार यह घटना कार्तिक तथा चैत्र मास की अमावस्या के छ: दिन उपरान्त आती है। ज्योतिषीय गणना पर आधारित होने के कारण इसका नाम और कुछ नहीं, बल्कि छठ पर्व ही रखा गया है।
तप और साधना के चार दिन
यह पर्व चार दिनों का है। भैयादूज के तीसरे दिन से यह आरम्भ होता है। पहले दिन सेन्धा नमक, घी से बना हुआ अरवा चावल और कद्दू की सब्जी प्रसाद के रूप में ली जाती है। अगले दिन से उपवास आरम्भ होता है। व्रति दिनभर अन्न-जल त्याग कर शाम करीब ७ बजे से खीर बनाकर, पूजा करने के उपरान्त प्रसाद ग्रहण करते हैं, जिसे खरना कहते हैं। तीसरे दिन डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य यानी दूध अर्पण करते हैं। अंतिम दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य चढ़ाते हैं। पूजा में पवित्रता का विशेष ध्यान रखा जाता है; लहसून, प्याज वर्जित होता है। जिन घरों में यह पूजा होती है, वहाँ भक्तिगीत गाये जाते हैं।अंत में लोगो को पूजा का प्रसाद दिया जाता हैं।
उत्सव का स्वरूप
छठ पूजा चार दिवसीय उत्सव है। इसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को तथा समाप्ति कार्तिक शुक्ल सप्तमी को होती है। इस दौरान व्रतधारी लगातार 36 घंटे का व्रत रखते हैं। इस दौरान वे पानी भी ग्रहण नहीं करते।
नहाय खाय
छठ पर्व का पहला दिन जिसे ‘नहाय-खाय’ के नाम से जाना जाता है,उसकी शुरुआत चैत्र या कार्तिक महीने के चतुर्थी कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से होता है ।सबसे पहले घर की सफाई कर उसे पवित्र किया जाता है। उसके बाद व्रती अपने नजदीक में स्थित गंगा नदी,गंगा की सहायक नदी या तालाब में जाकर स्नान करते है। व्रती इस दिन नाखनू वगैरह को अच्छी तरह काटकर, स्वच्छ जल से अच्छी तरह बालों को धोते हुए स्नान करते हैं। लौटते समय वो अपने साथ गंगाजल लेकर आते है जिसका उपयोग वे खाना बनाने में करते है । वे अपने घर के आस पास को साफ सुथरा रखते है । व्रती इस दिन सिर्फ एक बार ही खाना खाते है । खाना में व्रती कद्दू की सब्जी ,मुंग चना दाल, चावल का उपयोग करते है । तली हुई पूरियाँ पराठे सब्जियाँ आदि वर्जित हैं. यह खाना कांसे या मिटटी के बर्तन में पकाया जाता है। खाना पकाने के लिए आम की लकड़ी और मिटटी के चूल्हे का इस्तेमाल किया जाता है। जब खाना बन जाता है तो सर्वप्रथम व्रती खाना खाते है उसके बाद ही परिवार के अन्य सदस्य खाना खाते है ।
खरना और लोहंडा
छठ पर्व का दूसरा दिन जिसे खरना या लोहंडा के नाम से जाना जाता है,चैत्र या कार्तिक महीने के पंचमी को मनाया जाता है। इस दिन व्रती पुरे दिन उपवास रखते है . इस दिन व्रती अन्न तो दूर की बात है सूर्यास्त से पहले पानी की एक बूंद तक ग्रहण नहीं करते है। शाम को चावल गुड़ और गन्ने के रस का प्रयोग कर खीर बनाया जाता है। खाना बनाने में नमक और चीनी का प्रयोग नहीं किया जाता है। इन्हीं दो चीजों को पुन: सूर्यदेव को नैवैद्य देकर उसी घर में ‘एकान्त' करते हैं अर्थात् एकान्त रहकर उसे ग्रहण करते हैं। परिवार के सभी सदस्य उस समय घर से बाहर चले जाते हैं ताकी कोई शोर न हो सके। एकान्त से खाते समय व्रती हेतु किसी तरह की आवाज सुनना पर्व के नियमों के विरुद्ध है। पुन: व्रती खाकर अपने सभी परिवार जनों एवं मित्रों-रिश्तेदारों को वही ‘खीर-रोटी' का प्रसाद खिलाते हैं। इस सम्पूर्ण प्रक्रिया को 'खरना' कहते हैं। चावल का पिठ्ठा व घी लगी रोटी भी प्रसाद के रूप में वितरीत की जाती है। इसके बाद अगले 36 घंटों के लिए व्रती निर्जला व्रत रखते है। मध्य रात्रि को व्रती छठ पूजा के लिए विशेष प्रसाद ठेकुआ बनाती है ।
संध्या अर्घ्य
छठ पर्व का तीसरा दिन जिसे संध्या अर्घ्य के नाम से जाना जाता है,चैत्र या कार्तिक शुक्ल षष्ठी को मनाया जाता है। पूरे दिन सभी लोग मिलकर पूजा की तैयारिया करते है। छठ पूजा के लिए विशेष प्रसाद जैसे ठेकुआ, चावल के लड्डू जिसे कचवनिया भी कहा जाता है, बनाया जाता है । छठ पूजा के लिए एक बांस की बनी हुयी टोकरी जिसे दउरा कहते है में पूजा के प्रसाद,फल डालकर देवकारी में रख दिया जाता है। वहां पूजा अर्चना करने के बाद शाम को एक सूप में नारियल,पांच प्रकार के फल,और पूजा का अन्य सामान लेकर दउरा में रख कर घर का पुरुष अपने हाथो से उठाकर छठ घाट पर ले जाता है। यह अपवित्र न हो इसलिए इसे सर के ऊपर की तरफ रखते है। छठ घाट की तरफ जाते हुए रास्ते में प्रायः महिलाये छठ का गीत गाते हुए जाती है। नदी या तालाब के किनारे जाकर महिलाये घर के किसी सदस्य द्वारा बनाये गए चबूतरे पर बैठती है। नदी से मिटटी निकाल कर छठ माता का जो चौरा बना रहता है उस पर पूजा का सारा सामान रखकर नारियल चढाते है और दीप जलाते है। सूर्यास्त से कुछ समय पहले सूर्य देव की पूजा का सारा सामान लेकर घुटने भर पानी में जाकर खड़े हो जाते है और डूबते हुए सूर्य देव को अर्घ्य देकर पांच बार परिक्रमा करते है।सामग्रियों में, व्रतियों द्वारा स्वनिर्मित गेहूं के आटे से निर्मित 'ठेकुआ' सम्मिलित होते हैं। यह ठेकुआ इसलिए कहलाता है क्योंकि इसे काठ के एक विशेष प्रकार के डिजाइनदार फर्म पर आटे की लुगधी को ठोकर बनाया जाता है। उपरोक्त पकवान के अतिरिक्त कार्तिक मास में खेतों में उपजे सभी नए कन्द-मूल, फलसब्जी, मसाले व अन्नादि यथा गन्ना, ओल, हल्दी, नारियल, नींबू(बड़ा), पके केले आदि चढ़ाए जाते हैं। ये सभी वस्तुएं साबूत (बिना कटे टूटे) ही अर्पित होते हैं। इसके अतिरिक्त दीप जलाने हेतु,नए दीपक,नई बत्तियाँ व घी ले जाकर घाट पर दीपक जलाते हैं। इसमें सबसे महत्वपूर्ण अन्न जो है वह है कुसही केराव के दानें (हल्का हरा काला, मटर से थोड़ा छोटा दाना) हैं जो टोकरे में लाए तो जाते हैं पर सांध्य अर्घ्य में सूरजदेव को अर्पित नहीं किए जाते। इन्हें टोकरे में कल सुबह उगते सूर्य को अर्पण करने हेतु सुरक्षित रख दिया जाता है। बहुत सारे लोग घाट पर रात भर ठहरते है वही कुछ लोग छठ का गीत गाते हुए सारा सामान लेकर घर आ जाते है और उसे देवकरी में रख देते है ।
उषा अर्घ्य
चौथे दिन कार्तिक शुक्ल सप्तमी की सुबह उदियमान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। सूर्योदय से पहले ही व्रती लोग घाट पर उगते सूर्यदेव की पूजा हेतु पहुंच जाते हैं और शाम की ही तरह उनके पुरजन-परिजन उपस्थित रहते हैं। संध्या अर्घ्य में अर्पित पकवानों को नए पकवानों से प्रतिस्थापित कर दिया जाता है परन्तु कन्द, मूल, फलादि वही रहते हैं। सभी नियम-विधान सांध्य अर्घ्य की तरह ही होते हैं। सिर्फ व्रती लोग इस समय पूरब की ओर मुंहकर पानी में खड़े होते हैं व सूर्योपासना करते हैं। पूजा-अर्चना समाप्तोपरान्त घाट का पूजन होता है। वहाँ उपस्थित लोगों में प्रसाद वितरण करके व्रती घर आ जाते हैं और घर पर भी अपने परिवार आदि को प्रसाद वितरण करते हैं। व्रति घर वापस आकर गाँव के पीपल के पेड़ जिसको ब्रह्म बाबा कहते हैं वहाँ जाकर पूजा करते हैं। पूजा के पश्चात् व्रति कच्चे दूध का शरबत पीकर तथा थोड़ा प्रसाद खाकर व्रत पूर्ण करते हैं जिसे पारण या परना कहते हैं। व्रती लोग खरना दिन से आज तक निर्जला उपवासोपरान्त आज सुबह ही नमकयुक्त भोजन करते हैं।
व्रत
छठ उत्सव के केंद्र में छठ व्रत है जो एक कठिन तपस्या की तरह है। यह छठ व्रत अधिकतर महिलाओं द्वारा किया जाता है; कुछ पुरुष भी इस व्रत रखते हैं। व्रत रखने वाली महिलाओं को परवैतिन कहा जाता है। चार दिनों के इस व्रत में व्रति को लगातार उपवास करना होता है। भोजन के साथ ही सुखद शैय्या का भी त्याग किया जाता है। पर्व के लिए बनाये गये कमरे में व्रति फर्श पर एक कम्बल या चादर के सहारे ही रात बिताती हैं। इस उत्सव में शामिल होने वाले लोग नये कपड़े पहनते हैं। जिनमें किसी प्रकार की सिलाई नहीं की गयी होती है व्रति को ऐसे कपड़े पहनना अनिवार्य होता है। महिलाएँ साड़ी और पुरुष धोती पहनकर छठ करते हैं। ‘छठ पर्व को शुरू करने के बाद सालों साल तब तक करना होता है, जब तक कि अगली पीढ़ी की किसी विवाहित महिला इसके लिए तैयार न हो जाए। घर में किसी की मृत्यु हो जाने पर यह पर्व नहीं मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि छठ पर्व पर व्रत करने वाली महिलाओं को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। पुत्र की चाहत रखने वाली और पुत्र की कुशलता के लिए सामान्य तौर पर महिलाएँ यह व्रत रखती हैं। पुरुष भी पूरी निष्ठा से अपने मनोवांछित कार्य को सफल होने के लिए व्रत रखते हैं।
सूर्य पूजा का संदर्भ
छठ पर्व मूलतः सूर्य की आराधना का पर्व है, जिसे सनातन संस्कृति में विशेष स्थान प्राप्त है। हिन्दू धर्म के देवताओं में सूर्य ऐसे देवता हैं जिन्हें मूर्त रूप में देखा जा सकता है। सूर्य की शक्तियों का मुख्य श्रोत उनकी पत्नी ऊषा और प्रत्यूषा हैं। छठ में सूर्य के साथ-साथ दोनों शक्तियों की संयुक्त आराधना होती है। प्रात:काल में सूर्य की पहली किरण (ऊषा) और सायंकाल में सूर्य की अंतिम किरण (प्रत्यूषा) को अर्घ्य देकर दोनों का नमन किया जाता है।
सूर्योपासना की परम्परा
भारत में सूर्योपासना ऋगवेद काल से होती आ रही है। सूर्य और इसकी उपासना की चर्चा विष्णु पुराण, भगवत पुराण, ब्रह्मा वैवर्त पुराण आदि में विस्तार से की गयी है। मध्य काल तक छठ सूर्योपासना के व्यवस्थित पर्व के रूप में प्रतिष्ठित हो गया, जो अभी तक चला आ रहा है।
देवता के रूप में
सृष्टि और पालन शक्ति के कारण सूर्य की उपासना सभ्यता के विकास के साथ विभिन्न स्थानों पर अलग-अलग रूप में प्रारम्भ हो गयी, लेकिन देवता के रूप में सूर्य की वन्दना का उल्लेख पहली बार ऋगवेद में मिलता है। इसके बाद अन्य सभी वेदों के साथ ही उपनिषद् आदि वैदिक ग्रन्थों में इसकी चर्चा प्रमुखता से हुई है। निरुक्त के रचियता यास्क ने द्युस्थानीय देवताओं में सूर्य को पहले स्थान पर रखा है।
मानवीय रूप की कल्पना
उत्तर वैदिक काल के अन्तिम कालखण्ड में सूर्य के मानवीय रूप की कल्पना होने लगी। इसने कालान्तर में सूर्य की मूर्ति पूजा का रूप ले लिया। पौराणिक काल आते-आते सूर्य पूजा का प्रचलन और अधिक हो गया। अनेक स्थानों पर सूर्यदेव के मंदिर भी बनाये गये।
आरोग्य देवता के रूप में
पौराणिक काल में सूर्य को आरोग्य देवता भी माना जाने लगा था। सूर्य की किरणों में कई रोगों को नष्ट करने की क्षमता पायी गयी। ऋषि-मुनियों ने अपने अनुसन्धान के क्रम में किसी खास दिन इसका प्रभाव विशेष पाया। सम्भवत: यही छठ पर्व के उद्भव की बेला रही हो। भगवान कृष्ण के पौत्र शाम्ब को कुष्ठ रोग हो गया था। इस रोग से मुक्ति के लिए विशेष सूर्योपासना की गयी, जिसके लिए शाक्य द्वीप से ब्राह्मणों को बुलाया गया था।
पौराणिक और लोक कथाएँ
छठ पूजा की परम्परा और उसके महत्त्व का प्रतिपादन करने वाली अनेक पौराणिक और लोक कथाएँ प्रचलित हैं।
रामायण
एक मान्यता के अनुसार लंका विजय के बाद रामराज्य की स्थापना के दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को भगवान राम और माता सीता ने उपवास किया और सूर्यदेव की आराधना की। सप्तमी को सूर्योदय के समय पुनः अनुष्ठान कर सूर्यदेव से आशीर्वाद प्राप्त किया था।
महाभारत
एक अन्य मान्यता के अनुसार छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी। सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्यदेव की पूजा शुरू की। कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे। वह प्रतिदिन घण्टों कमर तक पानी में ख़ड़े होकर सूर्यदेव को अर्घ्य देते थे। सूर्यदेव की कृपा से ही वे महान योद्धा बने थे। आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही पद्धति प्रचलित है। कुछ कथाओं में पांडवों की पत्नी द्रौपदी द्वारा भी सूर्य की पूजा करने का उल्लेख है। वे अपने परिजनों के उत्तम स्वास्थ्य की कामना और लम्बी उम्र के लिए नियमित सूर्य पूजा करती थीं।
पुराणों में छठ
एक कथा के अनुसार राजा प्रियवद को कोई संतान नहीं थी, तब महर्षि कश्यप ने पुत्रेष्टि यज्ञ कराकर उनकी पत्नी मालिनी को यज्ञाहुति के लिए बनायी गयी खीर दी। इसके प्रभाव से उन्हें पुत्र हुआ परन्तु वह मृत पैदा हुआ। प्रियवद पुत्र को लेकर श्मशान गये और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे। उसी वक्त ब्रह्माजी की मानस कन्या देवसेना प्रकट हुई और कहा कि सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण मैं षष्ठी कहलाती हूँ। हे! राजन् आप मेरी पूजा करें तथा लोगों को भी पूजा के प्रति प्रेरित करें। राजा ने पुत्र इच्छा से देवी षष्ठी का व्रत किया और उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। यह पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी।
सामाजिक/सांस्कृतिक महत्त्व
छठ पूजा का सबसे महत्त्वपूर्ण पक्ष इसकी सादगी पवित्रता और लोकपक्ष है। भक्ति और आध्यात्म से परिपूर्ण इस पर्व में बाँस निर्मित सूप, टोकरी, मिट्टी के बर्त्तनों, गन्ने का रस, गुड़, चावल और गेहूँ से निर्मित प्रसाद और सुमधुर लोकगीतों से युक्त होकर लोक जीवन की भरपूर मिठास का प्रसार करता है। शास्त्रों से अलग यह जन सामान्य द्वारा अपने रीति-रिवाजों के रंगों में गढ़ी गयी उपासना पद्धति है। इसके केंद्र में वेद, पुराण जैसे धर्मग्रन्थ न होकर किसान और ग्रामीण जीवन है। इस व्रत के लिए न विशेष धन की आवश्यकता है न पुरोहित या गुरु के अभ्यर्थना की। जरूरत पड़ती है तो पास-पड़ोस के सहयोग की जो अपनी सेवा के लिए सहर्ष और कृतज्ञतापूर्वक प्रस्तुत रहता है। इस उत्सव के लिए जनता स्वयं अपने सामूहिक अभियान संगठित करती है। नगरों की सफाई, व्रतियों के गुजरने वाले रास्तों का प्रबन्धन, तालाब या नदी किनारे अर्घ्य दान की उपयुक्त व्यवस्था के लिए समाज सरकार के सहायता की राह नहीं देखता। इस उत्सव में खरना के उत्सव से लेकर अर्ध्यदान तक समाज की अनिवार्य उपस्थिति बनी रहती है। यह सामान्य और गरीब जनता के अपने दैनिक जीवन की मुश्किलों को भुलाकर सेवा-भाव और भक्ति-भाव से किये गये सामूहिक कर्म का विराट और भव्य प्रदर्शन है।
छठ गीत
लोकपर्व छठ के विभिन्न अवसरों पर जैसे प्रसाद बनाते समय, खरना के समय, अर्घ्य देने के लिए जाते हुए, अर्घ्य दान के समय और घाट से घर लौटते समय अनेकों सुमधुर और भक्ति-भाव से पूर्ण लोकगीत गाये जाते हैं।
केरवा जे फरेला घवद से
ओह पर सुगा मेड़राय
उ जे खबरी जनइबो अदिक (सूरज) से
सुगा देले जुठियाए
उ जे मरबो रे सुगवा धनुक से
सुगा गिरे मुरछाये
उ जे सुगनी जे रोये ले वियोग से
आदित होइ ना सहाय
देव होइ ना सहाय।।
इस गीत में एक ऐसे तोते का जिक्र है जो केले के ऐसे ही एक गुच्छे के पास मंडरा रहा है। तोते को डराया जाता है कि अगर तुम इस पर चोंच मारोगे तो तुम्हारी शिकायत भगवान सूर्य से कर दी जाएगी जो तुम्हें नहीं माफ करेंगे, पर फिर भी तोता केले को जूठा कर देता है और सूर्य के कोप का भागी बनता है। पर उसकी भार्या सुगनी अब क्या करे बेचारी? कैसे सहे इस वियोग को? अब तो सूर्यदेव उसकी कोई सहायता नहीं कर सकते, उसने आखिर पूजा की पवित्रता जो नष्ट की है।
एक अन्य प्रमुख गीत है-
काँच ही बाँस के बहँगिया,
बहँगी लचकति जाए...
बहँगी लचकति जाए...
बात जे पुछेले बटोहिया
बहँगी केकरा के जाए?
बहँगी केकरा के जाए?
तू त आन्हर हउवे रे बटोहिया,
बहँगी छठी माई के जाए...
बहँगी छठी माई के जाए...
काँच ही बाँस के बहँगिया,
बहँगी लचकति जाए...
बहँगी लचकति जाए।।
।। ॐ सूर्याय नमः।।
शुभ दीपावली ।
स्वतन्त्रता की 75वीं वर्षगाँठ की आप सभी को बधाई एवं शुभकामनाएं ।
जय हिन्द
आवश्यक सूचना
(17.04 2022)
एल-एल. बी.पंचम सेमेस्टर के सभी छात्र - छात्राओं कों सूचित किया जाता है कि उनकी Practical Training:Alternate Disputes Resolution,
Paper :7th
कि मौखिकी परीक्षा (VIV VOCE) दिनांक 20.04.2022 को प्रातः 10.00 am बजे विधि संकाय भवन (फरीदीपुर परिसर )में होगी. सभी छात्र छात्राओं कों निर्देशित किया जाता है कि परीक्षा के समय Practical Diary अवश्य लेकर आयें. आप सभी से अपेक्षा की जाती है कि संस्थान द्वारा निर्धारित यूनिफार्म में हीं आएंगे.
सुधाकर शुक्ला
अध्यक्ष
विधि विभाग, के एन. आई., सुल्तानपुर.
बी. पी. सिंह.
विधि संकाय, के.एन. आई.सुल्तानपुर. .
तीन युवा परिंदे उड़े तो आसमान रो पड़ा..
वो हंस रहे थे मगर, हिन्दुस्तान रो पड़ा..
जिए तो खूब जिए और मरे तो खूब मरे,
महाविदाई पर सतलुज का शमशान रो पड़ा..
भगतसिंह, सुखदेव, राजगुरु दिलों में हैं,
23 मार्च को भारत महान भी रो पड़ा..
#शहीद_दिवस 🇮🇳
प्रिय अंकेश , पूर्व छात्र विधि विभाग , KNIPSS सुल्तानपुर ।
वर्तमान समय में फैज़ाबाद में बतौर अधिवक्ता कार्य कर रहे थे ।कल शाम फैज़ाबाद से वापस अपने निज स्थान चौरेबाज़ार
लौटते संमय सड़क दुर्घटना में आपकी असमय मृत्यु हो गयी ।
विधि विभाग knipss ईश्वर से आपकी आत्मा की शांति की प्रार्थना करता है और साथ ही आपके परिवार को इस दुःख को सहन करने की शक्ति प्रदान करे ।
सूचनार्थ ।
विधि संकाय के समस्त छात्र-छात्राओं को सूचित किया जाता हैं की मौसम की विषमता के कारण आज़ का विधि व्याख्यान कल दिनांक 17 सितम्बर के लिए निर्धारित किया गया हैं
जिसमे आप सभी की उपस्थिति अनिवार्य हैंl
संस्थान की बस प्यागीपुर से 9:00 am से संस्थान के लिए बाढ़मंडी, डाक खाना चौराहा,टीकोनिया पार्क, गोमती हॉस्पिटल होते हुए आएगी l तत अनुसार अपनी उपस्थिति सुनिश्चित करें l
किसी भी अन्य सूचना एवं सहयोग के लिए डॉ सुभाष चंद्र यादव, डॉ प्रभात कुमार सिंह, एवं डॉ वंदना सिंह से सम्पर्क करें l
बी. पी. सिंह
विधि संयोजक
शिक्षक दिवस की शुभकामनाएं ।
सूचनार्थ-
विद्यार्थीगण कृपया ध्यान दें ।।
Faculty of Law feels immense pleasure and greatful for all the students who achived gold madal at university level, and also all three students who achived Ist,IInd and IIIrd position in Azadi ka Amrit Mahotsav Competition organized by KNIPSS, Sultanpur.
75वें स्वतंत्रता दिवस की समस्त देशवासियों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।
जय हिंद
वंदेमातरम
*A Constitutional Amendment Bill* has been introduced to *amend Article 130 of the Constitution* and establish “Four Permanent Regional Benches of the Apex Court at New Delhi, Mumbai, Chennai and Kolkata along with a “Constitutional Bench” sitting at New Delhi. Due to the reasons that relief provided under Article 32 (Right to Constitutional Remedies) only extends to the people who are geographically close to the Supreme Court or to those who have no financial problems the right to access to justice is hampered, thus the amendment is considered as the necessity of the time.
Also, this proposed amendment bill addresses the concern that the Supreme Court is burdened with an insurmountable number of cases.
Students As the Constitution's Vanguards [Full Text Of Dr. Justice Dhananjaya Y Chandrachud's Speech at the event organized to celebrate 101st Birth Anniversary Of his father Justice YV Chandrachud]I am delighted to speak at today‟s...
https://unnlive.com/450/
विधि संकाय KNIPSS को अपने छात्रों पर गर्व है ।
विक्रम प्रताप सिंह वर्तमान में देश के सर्वोच्च न्यायालय में बतौर अधिवक्ता प्रैक्टिस कर रहे हैं।
सुल्तानपुर के वकील का सुप्रीम कोर्ट में डंका, K.N.I. से की है पढ़ाई - UNN Live Tweetदिल्लीः देश के सबसे चर्चित प्रकरण में से एक वर्तिका सिंह बनाम स्मृति ईरानी का मामला किसी से छुपा नहीं है। दरअसल अ...
BHU, AU या BBAU के LL.M. Entrance exam के लिए जो भी स्टूडेंट्स preparation कर रहे हो,
उनको core subjects को लेकर कोई भी confusion हो तो contact कर सकते हैं ...
विवेक जी बहुत काबिल छात्र हैं और अपने छात्र जीवन में बहुत मेधावी रहें हैं।
बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी से इन्होंने विधि विषय में परास्नातक किया है ।
इक्षुक छात्र एवं छात्रायें आपसे जुड़कर शिक्षण का लाभ ले सकते हैं ।
7503896323- Gaurav Singh
Click here to claim your Sponsored Listing.
Videos (show all)
Contact the university
Address
Faculty Of Law (K. N. I. P. S. S. )
Sultanpur
228001
Allahabad Road, Payagipur
Sultanpur, 228001
Dr. Anuj Kumar Patel (Co-ordinator & Associate Professor, Hindi Department, Ganpat Sahai P.G. College Sultanpur)
जियापुर, सैद्खानपुर, कूरेभार
Sultanpur, 228151
Graduate & Post Graduate Courses
Barehta Fazilpur, Gasaigan, Jaisinghpur Sultanpur
Sultanpur
Jyamotri Vidya Mandir is the Best Inter College in the Local Rural Area. With the facility of Transp
Sultanpur, 228001
Contact SK group college for 10 + 2 and all degree diploma courses from UGC approved and reputed universities
Pyagipur
Sultanpur, 228001
Government ITI Sultanpur, Lambhua Kadipur Information is published here. ITI Chalo SvRojgar bno.