Abhijit Sultanpuri
प्रश्न, अयोध्या जाने का मन है
उत्तर, राम से मिलने का मन है!
शबरी के फल खाने का मन है
पिछड़ों से फिर मिलने का मन है
सब रिश्तों में मिश्रण अवयव
त्याग तपस्या करूण नयन है
उत्सुकता में सब आनन-फानन है
उत्तर राम से मिलने का मन है
चहुंओर जटायु आतुरता का
बानर,केवट की चातुरता का
थोड़ा सा बदलाव करो तुम
अग्निपथ पर कलम कविता का
वही मुहावरा वही बिभीषन,आलिंगन है
उत्तर राम से मिलने का मन है
राम शक्ति ही सबकी विनय है
बदल गया भूगोल सही समय है
त्रेता, द्वापर ,सत, कलयुग पर
मानवता का फिर अभिनय है
कहो! रावणों अब क्या? प्रण है!
उत्तर राम से मिलने का मन है
Abhijit Sultanpuri
तीन टिकट और महाविकट एक कहावत इतना गम
मात-पिता और गुरु में उलझी है ये सारी सृष्टि नियम
उठती है उंगली दूजे पर अक्सर तीन हमारी ओर सदा
चलो मिला तीनों का उत्तर साफी, गिट्टक और चिलम
कितने रोधी अवरोधी हो पर देख विरोधी का संगम
तन संन्यासी होने को आतुर लेकिन मन है चकित भ्रम
महफ़िल महफ़िल धुआं धुआं आखिर इसने कर डाला
स्वर्ग धरा सब एक करेगी साफी, गिट्टक और चिलम
तिलक धारियों टोपी वालों सच कहता हूं खुदा कसम
नफ़रत के इस दौर में देखो अपनी अपनी नग्न फिल्म
मेरे साथ चलो तुम भी और कविता का सानिध्य करो
सब परिभाषित कर देगी ये साफी, गिट्टक और चिलम
सुरापान से अतिशोभित वसुधा के सब दृश्य अनूपम
देवलोक भी आतुर है जपता सत्यम शिवम सुंदरम
किंचित न संदेह करो तुम जरा पास आकर बैठो
तुम्हें चुनौती दे देगी ये मेरी साफी, गिट्टक और चिलम
अंतिम सत्य मान सुन ले लिख कागज ले हाथ कलम
रिश्ते नाते प्यार वफा सब टूट चुका दुनिया का दम
कितना भी अन्वेषण कर लो जले सभी इक तीली में
राख हुए अनुबंध तुम्हारे साफी, गिट्टक और चिलम
इतने मृदुभाषी इस जग में बात बात पर राम कसम
नया नहीं फिर भी ये जग मिथ्याओ का अद्भुत संगम
राम तुम्हारे होने का भय है राज त्याग वनवास चलो
वहीं मिलेगा फिर सिंहासन साफी गिट्टक और चिलम
Abhijit Agrahari
#मणिपुर
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चौड़ी सड़कों पर
छातियों को चौड़ी
करने वालों
जरा एक नजर डालो तो सही
उन तमाम "छप्पन इंची" छातियों पर.....
जिसकी एक एक बूंद का हमारे पौरुष कर्जदार है
चकनाचूर कर दिया उसे
तुम्हारी मात्र हवस की भूख ने
दबे कुचले तपको की तरह
क्या हुआ..??
खुद की छातियां आत्मघाती हो गई
या
अपने पौरुष के दमखम को देखकर
छातियां,,चौड़ी ,,नहीं कर पाए तुम
वाकई गजब
कभी नारों से पैमाइश
तो कभी दुशासन वाली निगाहें
विश्व की छातियां मसलने
का सलीका...
सहसा इन छातियों की दुर्दशा
इस वीभत्स रस का सेवन करने वाले
नरपिशाचों
क्या छातियों का कोई स्टेडियम नहीं..?
कोई मैदान नहीं,, कोई मानक नही
सरे राह यूं ही मशल दिए जाते हैं
आखिर इसका जिम्मेदार कौन,, है??
मुझे लगता है
छातियां नेताओं और नरभक्षियो
के भाषणों और शोषणों की
आभारी रहेगी....
____________ Abhijit Agrahari
हे माधव कितने और कबूतर है..?
हे चक्र सुदर्शन खोल तर्जनी न्यायतले आडम्बर है
हर बार वही शिशुपाल खड़ा गाली सौ के ऊपर है
दुशासन भी चीरहरण कर अब अट्टहास करता है
श्याम तेरी गलियों में वह भरसक प्रयास करता है
योगी है तू योगेश्वर है धरा गगन का ईश्वर है??
हे माधव कितने और कबूतर है..?
युधिष्ठिर तो धर्मराज है राजधर्म में मस्त मिले
शकुनि के पासे तो अमरीका से अश्वस्त मिले
अर्जुन का गांडीव धनुष अहंकार में डूब गया
लक्ष्मन से उम्मीद रही उनसे भी मन ऊब गया
अब कैसे मैं मानूं तुझको वीरभूमि का सावरकर है??
हे माधव कितने और कबूतर है...???
बलशाली तो भीम रहे पर न्यायप्रकिया तोड़ दिया
बलदाऊ तो अपने थे दुर्योधन ने क्यूं जोड़ लिया
पुत्रमोह के कई सिपाही दशरथ शांतनु दोण मिले
मित्रमोह के धनी सुदामा कैसे दुर्योधन-कर्ण मिलें
मूकधरा का वाचाली है या आज यहां निरूत्तर है.....??
हे माधव कितने और कबूतर है..??
अंगुलिमाल बाल्मीकि सत्संगी कहीं महात्मा बुद्ध मिले
कहीं आचरण के बड़बोले उच्चारण में गिद्ध मिले
सारा खेल तुम्हारा है प्रश्न खड़े क्यूं कण-कण में है
राम नहीं है जगत में क्या जितना प्रेम कि रावण में हैं
साधुवेश के सभी अराधक क्यूं इन्हें बनाते विस्तर हैं..??
हे माधव कितने और कबूतर है...??
वह कुरूक्षेत्र का महाप्राण जहां गीता तुमने वाची है
वह अग्नि ज्वाल की महापरीक्षा सीता जिसकी साक्षी है
इतिहासों के कालखंड से मन मेरा अवरूद्ध हुआ है
रावण से अल्प मेरा विभीषण से भीषण युद्ध हुआ है
युद्धकला का मृग है या दिव्यपांच्य का वृहद स्वर हैं..??
हे माधव कितने और कबूतर है......???
Abhijit sultanpuri
तुम्हारे हाथ क्या पीले हुए
हमारा जिस्म नीला पड़ गया है
अज्ञात
मेरे पास उल्टी बातों का सीधा जवाब है
हां मैं बदतमीज हूं मेरी आदत खराब है
मनोज मुतंशिर
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सोना जितना तपता है उतना निखरता है इसी तरह संघर्ष करने से इंसान चमकता है।
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