Kabir
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कबीर दास जी की वाणी…
जीना मुश्किल है कि आसान ज़रा देख तो लो।
लोग लगते हैं परेशान ज़रा देख तो लो।।
ये नया शहर तो है ख़ूब बसाया तुम ने।
क्यूँ पुराना हुआ वीरान ज़रा देख तो लो।।
इन चराग़ों के तले ऐसे अँधेरे क्यूँ है।
तुम भी रह जाओगे हैरान ज़रा देख तो लो।।
तुम ये कहते हो कि मैं ग़ैर हूँ फिर भी शायद।
निकल आए कोई पहचान ज़रा देख तो लो।।
Javed Akhtar
रहिमन ओछे नरन सो, बैर भली ना प्रीत।
काटे चाटे स्वान के, दोउ भाँति विपरीत॥
अर्थ
कम दिमाग के व्यक्तियों से ना तो प्रीती और ना ही दुश्मनी अच्छी होती है। जैसे कुत्ता चाहे काटे या चाटे दोनों को विपरीत नहीं माना जाता है।
एक छोटी कहानी ::
एक दिन एक छोटे बच्चे ने अपनी माँ को उपवास करते देखा। उसने माँ से पुछा कि वो खा क्यो नही रही है और उसे पेट दर्द हो रहा होगा, तो माँ ने कहा कि मै ये इसलिए कर रही हूँ ताकि भगवान हमारी मनोकामना पूरी करेंगे। बच्चे ने सोचा हो सकता है खुद को तकलीफ देने से उसे भी जो चाहिए वो मिल जाएगा। अगले दिन माँ ने देखा कि उसका बेटा कड़ी धूप मे खड़ा है। माँ ने कारण पूछा तो बच्चे ने कहा, उसे एक खिलौना चाहिए इसलिए वह अपने आप को तकलीफ दे रहा था। तो माँ ने कहा, बेटे अगर तुम मुझसे प्यार से मांगते तो मै तुम्हे खिलौना ला देती, तुम्हे अपने आप को दर्द देने की जरुरत नही। मै तुमसे प्यार करती हूँ और इस तरह तुम्हे नही देख सकती। तो बच्चे ने कहा, क्या भगवान तुमसे प्यार नही करते ? वह तुम्हे उपवास करते और तकलीफ लेते देख खुश होते है? तुम भी तो उनसे प्यार से, बिना दर्द लिए, जो चाहिए मांग सकती हो।
तो बात यह है कि हम सब उसकी संतान हैं। वह हमे दुख लेते देख खुश नही हो सकता, जो हम जानबूझ कर लेते है और सोचते हैं कि भगवान खुश होंगे। उपवास रखना, उँचे पहाड़ो पर खाली पांव चढना, ये उन्हे प्रसन्न नही कर सकती। यह सिर्फ दिखावा है।
पाँच पहर धन्धे गया, तीन पहर गया सोय ।
एक पहर हरि नाम बिनु, मुक्ति कैसे होय ॥
अर्थ. -
प्रतिदिन के आठ पहर में से पाँच पहर तो काम धन्धे में खो दिये और तीन पहर सो गया । इस प्रकार तूने एक भी पहर हरि भजन के लिए नहीं रखा, फिर मोक्ष कैसे पा सकेगा
स्वर्ग और नरक
एक छोटी सी कहानी :: एक बार एक राजा बहुत ही खतरनाक जंग की तैयारी कर रहा था। उसने सोचा अगर मैं इस जंग में मर गया तो मैं स्वर्ग में जाउंगा या नरक में। जैसे जैसे जंग की तिथि नजदीक आने लगी, वैसे वैसे स्वर्ग और नरक की चिंता गहरी होती गई। आखिरकार युध्द का दिन आया और राजा अपनी विशाल सेना के साथ जंग के मैदान के लिए निकल पड़ा। रास्ते में उसे एक साधु मिला, जो वहां से गुजर रहा था। राजा ने साधु से पूछा कि अगर मैं इस लड़ाई में मारा गया तो मुझे जन्नत नसीब होगी या जहन्नुम। साधु ने उसे देखा और कहा, मेरे पास तुम्हारे सवाल का जवाब देने का समय नहीं है, मैं जल्दी में हूँ। इस बात पर राजा को बहुत गुस्सा आया और वह साधु पर चिल्लाया। साधु ने विनम्रता से कहा, " राजन अभी आप नरक में हो"। राजा को अहसास हुआ कि वह सही बोल रहा है। वह अपने घोड़े से उतरा और घुटनों पर बैठकर साधु से पूछा, स्वर्ग क्या है। इसपर साधु ने कहा, " राजन अभी आप स्वर्ग में हो "।
तो जब गुस्सा, लोभ, अहंकार, घ्रणा आपके अंदर आता है तो आप नरक में होते हो, लेकिन जब विनम्रता, दया, प्यार आपके अंदर आता है तो आप जन्नत में होते हो। इसका अनुभव करने के लिए आपको मरने की जरूरत नहीं, आप जीते जी इसका अनुभव कर सकते हैं।
साई इतना दीजिये, जा में कुटुम समाय ।
मै भी भूखा न रहूँ, साधू न भूखा जाय ॥
अर्थ -
कबीर दास जी ने ईश्वर से यह प्रार्थना करते हैं की हे परमेश्वर तुम मुझे इतना दो की जिसमे परिवार का गुजारा हो जाय । मुझे भी भूखा न रहना पड़े और कोई अतिथि अथवा साधू भी मेरे द्वार से भूखा न लौटे ।
क्या भरोसा देह का, बिनस जात छिन मांह ।
साँस साँस सुमिरन करो और यतन कुछ नाह ।
अर्थ :: इस जीवन का कोई भरोसा नही। यह चला जा रहा है। हम नही जानते कि कब ये समाप्त हो जाए। इसलिए उस रचेता को पूजो, अपने हर एक स्वांस मे, चाहे तुम जहा भी हो। तुम्हे उसके लिए तिर्थ स्थान जाने की जरुरत नही। इसलिए कबीर दास जी कहते हैं कि प्रभु को खोजना, उन तक पहुंचना, कोई मुश्किल कार्य नही है क्योकि वह हर जगह व्याप्त हैं, और सबसे जरुरी वो तुम्हारे अंदर व्याप्त हैं।
जब मै था तब गुरु नहीं, अब गुरु है हम नहीं.
प्रेम गलि अतइ संकरि, तमे दोन समहि.
अर्थ :: कबिर दास जी कह्ते हैं कि जब मुझ्मे अहंकार था तब गुरु नहीं थे, लेकिन जब मुझे गुरु मिले तब मेरा अहंकार समाप्त हो गया. उस गुरु ने मुझे अपने प्रभु से मिलया और मुझे अपने इश्वर से प्रेम हो गया. यह प्रेम कि गलि इतनी संकिर्न है कि इसमे मेरा अहंकार और प्रभु दोनो नही समा सकते.
आए हैं सो जाएँगे, राजा रंक फकीर ।
एक सिंहासन चढ़ी चले, एक बँधे जात जंजीर ।
एक सत्य जिससे कोई नही छुप सकता, जो इस दुनिया मे आये हैं, वो एक दिन जाएगें। यहां सदा के लिए कोई नही है। सबको एक दिन जाना है, तो ये अहंकार जीवन मे क्यो। चाहे तुम एक राजा कि तरह हो, पैसा, सामाजिक स्तर और सब कुछ जो कोई सोच सके, तुमहारे पास हो या तुम एक सामान्य मनुष्य हो, तुम्हारे जिन्दगी का आरंभ एक था और तुम्हारा अंत भी एक ही होगा। अपना जीवन प्यार और स्नेह के साथ बिताओ, तुम्हारे ह्रदय मे तुम्हे शांती मिलेगी।
साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय,
सार सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय।
अर्थ : इस संसार में ऐसे मनुष्यों की आवश्यकता है, जो सूप समान हो। जैसे सूप अनाज को साफ कर अपने पास रख लेता है और अनावश्यक छिलके व धूल को हटा देता है वैसे ही हमें इस जीवन से अच्छाई तथा प्रेम को अपनाना चाहिए तथा बुराई एवं द्वेष को दूर करना चाहिए।
कबीरा गरब ना कीजिए, कबहु ना हसिए कोए।
अजाहु नाव समुद्र में, ना जाने का होए।
अर्थ :: कभी अपने आप पे घमंड नहीं करना चाहिए और न ही किसी और पर हसना चाहिए। कबीर दास जी कहते है कि तुम्हारी जिन्दगी समुन्दर में एक नाव के समान है, और कोई नहीं जानता कि इस जीवन में अगले पल क्या हो जाए।
हिन्दू कहें मोहि राम पियारा, तुर्क कहें रहमाना,
आपस में दोउ लड़ी-लड़ी मुए, मरम न कोउ जाना।
अर्थ:: कबीर दास जी कहते है की हिन्दू को राम प्यारा है और मुस्लिम को रहमान प्यारा है। इस बात पे अक्सर ये लोग लड़ मरते हैं लेकिन फिर भी कोई उस सत्य को समझ नहीं पाते है कि इश्वर, चाहे वो राम हो या रहीम, सब एक ही है और वो हम सब के अंदर बसे हैं। हम उसकी बनाई संतान है और भगवान/अल्लाह अपने बच्चों को लड़ते देख दुखी होता होगा। तो आइये भाई भाई कि तरह हम सब साथ रहे और उस परमपिता को इस जीवन के लिए धन्यवाद दे।
भीखा भुखा कोई नही,
सब की गठरी लाल,
गठरी खोलना भूल गए,
इस विधि भय कंगाल ।
अर्थ :: कबीर दास जी कहते है कि इस संसार मे कोई गरीब नही है, कोई ऐसा नही जिसका भाग्य खराब हो, अरे किसी का भाग्य खराब कैसे हो सकता है जब उसके साथ भगवान हर एक पल मे मौजूद हैं । परन्तु लोग फिर भी अभागे रह जाते है क्योकि लोग अपने अन्दर उस खुदा को पहचान नही पाते है, अपने जिन्दगी मे उस सबसे बड़े सत्य को समझ नही पाते ।
मन मैलो, तन उजरो (उजला),
बगले(बगला) जैसा भेष।
सबसे तो कागा (कौआ) भला,
जो अंदर बाहर एक।।
अर्थ -
कुछ लोग तन (शरीर) को तो उजला करते है लेकीन उनका मन अंदर से मैलाही होता है। ऐसे लोग बाहर दिखाने के लिये एक और अंदर अलग होते है। संत कबीर कहते की ऐसे लोगो से कौआ भला जो बाहर और भीतर से एक होता है।
तन को उजला करने के लिये गंगा मे डुबकी लगाना, तिरूपती जाकर टकला बनाना, जटा बढाना, बालो को कलर करना, बाल straightening करना, तन पर टॅटू (Tattoo) निकालना, मेकअप करना, nail polish और मेहंदी लगाना, जेवर पहनना, बालो मे तेल लगाना, टकाटक कपडे पहनना, shampoo and lotion लगाना etc etc
तन को उजला करने के कई तारीके आज इंसांन ने ढुंड निकाले है। लेकीन मन को उजला बनाना तन को उजला बनाने से जादा महत्वपूर्ण है।
मन मे कपट रहेगा तो तिरथ जाकर कुछ फायदा नही - संत कबीर
कबीर साहब इस सिलसिले में का एक दोहा
काशी गया और द्वारका,
तिरथ सकल फिरे सारा,
गाठी न खोली कपट की,
तिरथ गया तो क्या हुआ।।
पाखंडी और ढोंगी बाबाओ के बारे में संत कबीर साहब की कुछ बाते
करनी करे तो क्यों डरे,
और कर ही क्यों पछताये।
तुने बोया पेड़ बबुल का,
फिर आम कहाँ से आये।।
साधू भूखा भाव का,
धन का भूखा नाही।
धन का भूखा जो फिरे,
सो तो साधू नही।
(साधू अगर धन (पैसे) का भूखा है, तो वो साधू नहीं है - संत कबीर)
कैसा जोग कमाया बे। ये क्या ढोंग मचाया बे।
जटा बढाई बहूत चढाई॥
जग से कहता सिद्धा। सिद्धन की तो बात न जाने॥
बालपनो का गद्धा(Donkey)।
कैसे भगवे कपडे। शिर मुंडावे।
कैसा तू संन्यासी। संन्यासी की गत है न्यारी।
ये तो पेटनके उपदेशी॥
जैसी करनी आपनी,
वैसा ही फल लेय होय।
बुरे करम (कर्म) कमाईके,
साईं दोष न देय।।
काम बिगाड़े भक्ति को,
क्रोध बिगाड़े ज्ञान।
लोभ बिगाड़े त्याग को,
मोह बिगाड़े ध्यान।।
आशा तृष्णा नदींया भारी,
बह गया बडा संत ब्रह्मचारी। हरे हरे
बन में लूट गये मुनिजन नंगा।
डस गयी ममता(attachment) उल्टा टांगा। हरे हरे
साधू संत मिल रुके घाटा।
साधू चढ़ गया उल्टी बाता। हरे हरे
शब्द कहे सो कीजिए,
गुरुओ बड़े लबार।
अपने अपने स्वार्थ,
ठोर ठोर बटवार।
झीनी झीनी चदरिया झीनी..
झीनी झीनी रे देखो...
सो चादर सुर नर मुनि ओढे,
ओढ़ के मैली किनी चदरिया।
मन को निर्मल और पवित्र करने के बारे में कबीर साहब के दो दोहे।
1) सब ही भूमि बनारसी,
सब नीर गंगा तोय।
ज्ञानी आतम राम है,
जो निर्मल घट होय ॥
अर्थ: जिसका मन निर्मल है, उसके लिए सभी स्थान बनारस की पावन भूमि की तरह ही पवित्र हैं। जिसका मन निर्मल है, उसके लिए सभी जल गंगा की तरह निर्मल है। जिसका मन निर्मल है, वही राम रहते है। अगर आप का मन निर्मल नहीं है तो वहाँ राम नहीं रह सकते । अपने मन को निर्मल बनाना इस बातको कबीर साहब ने सबसे जादा महत्व दिया है। अगर आपका मन निर्मल है तो फिर आपको तीरथ यात्रा करना, गंगा में डुबकी लगाना, मंदिर में जाकर राम को ढूंढने की जरुरत नहीं है। अगर आप का मन निर्मल नहीं है और आप मन को निर्मल बनाना छोड़कर केवल तीरथ यात्रा करना, गंगा में डुबकी लगाना, मंदिर में जाकर राम को ढूंढ़ते तो तो फिर उसका कुछ लाभ नहीं होगा।
कबीर साहब एक और दोहे में यही बात कहते है।
2) कबीर मन निर्मल भया,
जैसे गंगा नीर।
तो फिर पीछे हरी लागे,
कहत कबीर कबीर।
अर्थ - अगर आपने अपने मन को पवित्र बनाया तो फिर आपको खुद भगवान ढूंढेगा, आपको फिर भगवान को ढूंढ़ने की जरुरत नहीं है। आपका मन अगर पवित्र रहेगा तो भगवान आपके पीछे आयेगा। मन को निर्मल और पवित्र रखने के बारे में ये दो दोहे है।
a) क्या आप मन को निर्मल और पवित्र बनाना छोड़कर भगवान को सिर्फ बाहर ढूंढ़ते हो?
b) क्या आप मन को निर्मल और पवित्र बनाना छोड़कर, सिर्फ तीरथ जाते हो?
c) क्या आप मन को निर्मल और पवित्र बनाना छोड़कर, सिर्फ गंगा में डुबकी लगाकर मन निर्मल और पवित्र हो गया ऐसे मानते हो?
d) क्या आप मन को निर्मल और पवित्र बनाना छोड़कर, सिर्फ कर्मकांड में उलझ गए हो?
e) क्या आप मन को निर्मल और पवित्र बनाना छोड़कर, केवल बाहरी अबडंबर को धर्म समझकर अपने आपको बड़ा धार्मिक समझते हो?
f) क्या आप मन को निर्मल और पवित्र बनाना छोड़कर, केवल अपने तन (शरीर) को उजला करते हो?
अगर ऊपर दिए हुए सवालो के जबाब में अगर आप का कोई भी जबाब हाँ में है तो फिर मन को निर्मल और पवित्र बनाने का काम कब शुरू करोगे?
संत कबीर साहब के परनारी और नारी के प्रति हमारा दृष्टिकोण कैसा होना चाहीये, इसके बारे में दस दोहे
परनारी के बारे में कुछ दोहे
1) पर नारी का राचना,
जैसे लहसून की खान।
कोने बैठे खाइये,
प्रकट होय निदान।।
अर्थ -
कबीर साहब कहते हैं कि पराई नारी के साथ प्रेम प्रसंग करना लहसून खाने के समान है।
उसे चाहे कोने में बैठकर खाओ और छिपाने की कोशिश करो पर लहसुन की सुंगध दूर तक प्रकट होती है।
2) परनारी पैनी छुरी,
मत कोई करो प्रसंग।
रावन के दस शीश गये,
पर नारी के संग।।
पैनी छुरी - तेज धारवाली छुरी (knief)
अर्थ -
परनारी तेज धार वाली चाकू की तरह है। उसके साथ किसी प्रकार का संबंध नहीं रखो।
परनारी के साथ के कारण रावण का दस सिरभी नष्ट हो गये।
3) परनारी पैनी छुरी,
बिरला बचे कोय।
ना वह पेट संचारिये,
जो सोना की होये।।
अर्थ -
दुसरो की नारी तेज धार वाली चाकू की तरह है। इसके वार से शायद ही कोई बच पाता है। परनारी सोने की तरह आकर्षक और सुन्दर ही क्यों न हो उसे कभी अपने हृदय में स्थान मत दो।
4) पर नारी के राचनै,
सीधा नरकही जाय।
ताको जम छोडे नही,
कोटी करे उपाय।।
अर्थ -
परानारी से कभी प्रेम मत करो। वह तुम्हे सीधा नरकही ले जायेगी। परनारी के चक्कर मे चाहे तुम करोड़ो उपाय करलो, तुम्हे यम भी नहीं छोडेगा।
5) नागिनके तो दो फन,
परनारी के फन बीस।
जाको डंसे ना फिर जीये,
मरे है बिसका बीस।।
अर्थ -
सांप के केवल दो फंन होते है, परनारी के बीस फंन होते है।
परनारी के डसने पर कोई जीवित नहीं बच सकता है। परनारी के बीस लोगों को काटने पर बीस के बीस मर जाते है।
6) परनारी से स्नेह,
बुद्धी विवेक सभी हारे।
बृथा गबाये देह,
कारज (कार्य) कोई ना सरै।।
अर्थ -
परनारी से वासना रुपी प्रेम करने में बुद्धि और विवके का हरण होता है। विचार करने की क्षमता के उपर असर होता है। शरीर भी बृथा
बेकार होता है और जीवन के भलाई का कोई भी कार्य सफल नहीं होता है।
नारी के प्रति हमारा दृष्टिकोण कैसा होना चाहियें इस सिलसिले में कबीर साहब के कुछ दोहे
1) कबीर, परनारी को देखिये,
बहन-बेटी के भाव।
कह कबीर काम नाश का,
यही सहज उपाय।।
अर्थ -
परनारी को आप अपनी बहन, बेटी और माँ के भाव से देखोगे तो आपके के मन मे विकार आगे नहीं बढेंगे। परनारी को देखकर आगे चलकर अगर कोई विकार तैयार होता है और आप action करते हो और अपनी वाट लगाते हो तो ऐसे स्थिती से बचना है तो परनारी को अपने बहन, बेटी और माँ के भाव से देखो।
2) नारी निरखी ना देखिये,
निरखी ना कीजीये दौर।
देखतही बिष चढे,
मन आये कछु और।।
अर्थ -
परनारी को घूर घूर कर मत देखो। देख देख कर उसके पीछे मत दौड़ो। परनारी को देखते ही बिष चढ़ने लगता है और मन में अनेक प्रकार के विकार जागते है। अगर मन मे विचारों के मन पर विकार हाबी हो गये तो फिर आदमी indecent बर्ताव करने की संभावना बढ़ जाती है।
3) नारी नरक ना जानिये,
सब संतो की खान
जामे हरीजन उपजै,
सोयी रतन की खान।
अर्थ -
नारी को नरक मत समझो। वह सभी संतों की खान है। नारी के कोख़ से ही सभी महान पुरुषों
कि उत्पत्ति होती है और वो रत्नों की खान है।
4) नारी निंदा ना करो,
नारी रतन की खान
नारी से नर होत है,
ध्रुब प्रहलाद समान।
अर्थ -
नारी की निंदा मत करो। नारी रत्नों की खान है। नारी से ही पुरुष की उत्पत्ति होती है। घ्रुब और प्रहलाद भी किसी नारी की ही देन है।
जिंदगी मे धूप और छांव है।
कोई दिन सिरपर छतर उडावे।
कोई दिन सिरपर घडा चढावे।
कोई दिन पांव चलावे॥
कोई दिन शक्कर दूध मलीदा।
कोई दिन मांगे घर घर गदा।
कोई दिन सेवक हात जोड खडे।
कोई दिन नजीक न आवे धेडे॥
कोई दिन राजा बडा अधिकारी।
एक दिन राजा कंगाल भिकारी।
कहत कबीरा करत करतारी(ताली बजाना)।
गाफील क्यौं करता मगरूरी॥
This too will pass.
Ups and down are part and parcel of life.
Up stage and down stage is impermanent.
कबीर दर्शन साधु के, करत ना कीजै कानि ।
जो उधम से लक्ष्मी, आलस मन से हानि ॥
MEANING
Dont shirk to meet a good person. An intoxicated or lethargic mind
causes loss of wealth
चाह मिटी, चिंता मिटी मनवा बेपरवाह।
जिसको कुछ नहीं चाहिए वह शहनशाह॥
माटी कहे कुम्हार से, तु क्या रौंदे मोय ।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूगी तोय ॥
कबीरा खड़ा बाजार मे, मागें सबकी खैर,
ना केहु से दोस्ती, ना केहु से बैर।
अर्थ :: यह संसार बाजार के समान है जहाँ कबीर खड़ा है। यहा अनेक तरह के लोग है। सभी एक दूसरे से अलग, लेकिन कबीर के लिए सभी उस भगवान के बच्चे है, और ईश्वर को वह सभी के अन्दर पाते हैं । इसलिए कबीर प्रभु से ना किसी की दोस्ती माँगते हैं, ना ही दुश्मनी, सिर्फ सबकी खैर मांगते है।
Kabira khara bazar mei, maangi sabki khair,
Na kehu se dosti, na kehu se bair.
Meaning :: This world is like a market. There are a lot of different kind of people, but for Kabir everyone is His (God's) child and he finds God almighty inside each one of them. So Kabir doesnt wish for anyone's Friendship or anyone's enimity but he wishes for everyone's Well being.
काल करे सो आज कर, आज करे सो अब ।
पल में प्रलय होएगी,बहुरि करेगा कब ।
अर्थ :: जो कल करना है उसे आज करो, और जो आज करना है उसे अब करो क्योंकि समय को कोई नहीं जानता, कब प्रलय आ जाए। अगर काम कल पर टालते रहोगे तो पछताने के अलावा कुछ कर नहीं पाओगे।
kal kare so aaj kar,aaj kare so ab
pal men pralay hoyegi,bahuri karega kab.
Meaning :: What you have to do tomorrow, do it today and what you have to do today, do it now because no one knows about time, when disaster will strike. If you will leave your work on tomorrow, then you can do nothing but regret.
भूले मन समझ के लाद लदनिया,
थोड़ा लादे बहुत मत लादे,
टूट जाये तेरी गरदनिया,
भूले मन समझ के लाद लदनिया ।
अर्थ :: कबीर दास जी कहते है कि मनुष्य को अपने उपर बोझ उतना ही डालना चाहिए जहाँ तक वो सह सके। अगर ज़रूरत से ज़्यादा बोझ डाल लिया तो वो उसके नीचे दब जाएगा, ज़िन्दगी में कष्ट आ जाएगा। यहाँ बोझ का तात्पर्य सामाजिक, मानसिक, शारीरिक तथा पारिवारिक बोझ से है। जीवन में सबको ले के चलो मगर एक हद में, और जब ये हद पार हो जाती है तब तकलीफ़ शुरू हो जाती है।
Bhule mann samajh laad ladaniya,
Thoda laad Bahut mat laade,
Toot jaye teri gardaniya,
Bhule mann samajh ke laad ladaniya.
Meaning :: Kabir Das Ji says that a Human should carry only that much of weight which he can bear. If the weight exceeds then he will get under that weight, there will come difficulties in life. Here weight refers to Social, mental, physical and family weight. In our life we should carry all these responsibilities but within a boundary, and when these boundaries are breached then difficulties start..
जब ही नाम ह्रदय धर्यो, भयो पाप का नाश,
मानो चिंगि अग्नी कि, परी पुरानी घास
अर्थ :: जब आप प्रभु का नाम अपने ह्र्दय से, सिर्फ मुख से नहीं, लेते है, तो आपके पाप का नाश हो जाता है | य़े ऎसा है जैसे आग कि चिंगारि पुरानी घास के साथ | भगवान,चाहे वो राम, अल्लाह, ईशु हो, सभी एक हैं और कही और नही बल्कि तुम्हारे अन्दर है | उन्हें जानो और याद करो एक बार नही, दो बार नही, बल्कि अपनी हर एक श्वास मे और फिर तुम्हारे सारे पाप नाश हो जएंगे |
Jab Hi Naam Hriday Dharyo, Bhayo Paap Ka Naash,
Mano Chingi Agni Ki, Pari Purani Ghaas.
Meaning :: When you take GOD's name from your heart and not from your lips, your sins get destroyed. Its like a spark of fire with an old stash of dry grass. God, either HE is RAM, ALLAH, JESUS, is ONE and resides no where but within you. Know HIM and then remember HIM not once, not twice but with every breathe and then Every Sin of yours will get destroyed.
जिन ढूँढा तिन पाइयॉं, गहरे पानी पैठ।
मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।
अर्थ :: कबीर दास जी कहते हैं कि जिसके भीतर जिज्ञासा होती है, और अपने लक्ष्य के लिए जो परिश्रम करता है, उसे वो प्राप्त होता है, चाहे वो समुंदर के धरातल पर हि क्यों ना हो। परन्तु जो मेहनत करने से डरता है, जो बस कुछ अच्छा होने कि आस करता रहता है, उसे कुछ प्राप्त नहीं होता। इसलिए किसी चीज़ के होने की आस लगाने के बदलें उसके लिए मेहनत करो, फल अवश्य मिलेगा ।
Jin dhoondha tin paiyan, ghahre paani paith,
Mai bapura budhan dara, raha kinaare baith.
Meaning :: Kabir Das Ji says that the one who has curiosity in him, and who works hard for his goal, gets it even if it is lying deep inside the sea. But the one who doesnt work hard and just sits around hoping for something good to happen, gets nothing. So instead of just hoping for something to happen, work for it, you will get your Result.
जो तोको काँटा बुवै ताहि बोव तू फूल ।
तोहि फूल को फूल है वाको है त्रिशूल ॥
अर्थ :: तुम जो भी करते हो, उसका फल तुम्हे इसी जिन्दगी मे मिलता है। उनका भी भला करो जो तुम्हारा बुरा करते है क्योकि तुम्हे तुमहारी अच्छाई का फल मिलेगा और दुसरे को उसके बुरे कर्मो का फल खुद पे खुद मिलेगा।
Jo toko kaanta buwe, tahi bow tu phool,
Tohi phool ko phool hai, wako hai trishool.
Meaning :: You get the result of whatever you do in this life. Do good to even those who do bad to you as you will get the result of your good deed but the other will automatically get the result of his bad deed.
क्या भरोसा देह का, बिनस जात छिन मांह ।
साँस साँस सुमिरन करो और यतन कुछ नाह ।
अर्थ :: इस जीवन का कोई भरोसा नही। यह चला जा रहा है। हम नही जानते कि कब ये समाप्त हो जाए। इसलिए उस रचेता को पूजो, अपने हर एक स्वांस मे, चाहे तुम जहा भी हो। तुम्हे उसके लिए तिर्थ स्थान जाने की जरुरत नही। इसलिए कबीर दास जी कहते हैं कि प्रभु को खोजना, उन तक पहुंचना, कोई मुश्किल कार्य नही है क्योकि वह हर जगह व्याप्त हैं, और सबसे जरुरी वो तुम्हारे अंदर व्याप्त हैं।
Kya bharosa deh ka, binas jaat chin maanh
saans saans sumiran karo aur yatan kuch naah.
Meaning :: There isnt any guarantee of this Life. Its running out. We never know when it will be gone. So worship that Creator in every breath of yours, wherever you are. You dont have to go to Pilgrimage or any other place for HIM. Thats why Kabir Das Ji says there is no hard work to be done to Search for HIM, to reach HIM, as HE is omnipresent, and most importantly present inside You....
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