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*धनतेरस से 5 दिन तक होंगे स्वर्णमयी माँ अन्नपूर्णा के अलौकिक दर्शन, दरबार में भक्तों को मिलेगा खजाना*
धनतेरस से 5 दिन तक होंगे स्वर्णमयी माँ अन्नपूर्णा के अलौकिक दर्शन, दरबार में भक्तों को मिलेगा खज धनतेरस के दिन स्वर्णमयी अन्नपूर्णा के विग्रह के दर्शन और भक्तों को खजाने के रूप में सिक्कों का वितरण किया जाएगा। ब...
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बनारस में काशी विश्वनाथ
मंदिर से कुछ ही कदम दूरी
पर माता अन्नपूर्णा का मंदिर है।
इन्हें तीनों लोकों की
माता माना जाता है।
कहा जाता है कि इन्होंने
स्वयं भगवान शिव को
भोजन कराया था।
इस मंदिर की दीवाल
पर चित्र बने हुए हैं।
एक चित्र में देवी
कलछी पकड़ी हुई हैं।
अन्नकूट महोत्सव पर माँ अन्नपूर्णा
की स्वर्ण प्रतिमा का एक दिन के
लिए भक्त दर्शन कर सकतें हैं।
अन्नपूर्णा मंदिर में आदि शंकराचार्य
ने अन्नपूर्णा स्त्रोत् की रचना कर "ज्ञान
और वैराग्य" प्राप्ति की कामना की थी।
अन्नपूर्णे सदापूर्णे
शंकरप्राण बल्लभे,
ज्ञान वैराग्य सिद्धर्थं
भिक्षां देहि च पार्वती।
अन्नपूर्णा देवी हिन्दू धर्म में
मान्य देवी-देवताओं में विशेष
रूप से पूजनीय हैं।
इन्हें माँ जगदम्बा का ही एक
रूप माना गया है,जिनसे सम्पूर्ण
विश्व का संचालन होता है।
इन्हीं जगदम्बा के अन्नपूर्णा
स्वरूप से संसार का भरण
-पोषण होता है।
अन्नपूर्णा का शाब्दिक अर्थ है-
'धान्य'(अन्न)की अधिष्ठात्री।
सनातन धर्म की मान्यता है कि
प्राणियों को भोजन माँ अन्नपूर्णा
की कृपा से ही प्राप्त होता है।
शिव की अर्धांगनी,कलियुग में
माता अन्नपूर्णा की पुरी काशी है,
किंतु सम्पूर्ण जगत्
उनके नियंत्रण में है।
बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी
के अन्नपूर्णाजी के आधिपत्य में
आने की कथा बड़ी रोचक है।
भगवान शंकर जब पार्वती जी के
संग विवाह करने के पश्चात् उनके
पिता के क्षेत्र हिमालय के अन्तर्गत
कैलास पर रहने लगे,तब देवी ने
अपने मायके में निवास करने के
बजाय अपने पति की नगरी काशी
में रहने की इच्छा व्यक्त की।
महादेव उन्हें साथ लेकर अपने
सनातन गृह अविमुक्त-क्षेत्र(काशी)
आ गए।
काशी उस समय केवल एक महाश्मशान नगरी थी।
माता पार्वती को सामान्य गृहस्थ
स्त्री के समान ही अपने घर का
मात्र श्मशान होना नहीं भाया।
इस पर यह व्यवस्था बनी कि
सत्य,त्रेता,और द्वापर,इन तीन
युगों में काशी श्मशान रहे और
कलियुग में यह अन्नपूर्णा की
पुरी होकर बसे।
इसी कारण वर्तमान समय में
अन्नपूर्णा का मंदिर काशी का
प्रधान देवीपीठ हुआ।
स्कन्दपुराण के 'काशीखण्ड' में
लिखा है कि भगवान विश्वेश्वर
गृहस्थ हैं और भवानी उनकी
गृहस्थी चलाती हैं।
अत: काशीवासियों के
योग-क्षेम का भार इन्हीं पर है।
'ब्रह्मवैवर्त्तपुराण' के काशी-रहस्य
के अनुसार भवानी ही अन्नपूर्णा हैं।
परन्तु जनमानस आज भी
अन्नपूर्णा को ही भवानी मानता है।
श्रद्धालुओं की ऐसी धारणा है कि
माँ अन्नपूर्णा की नगरी काशी में
कभी कोई भूखा नहीं सोता है।
अन्नपूर्णा माता की उपासना
से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं।
ये अपने भक्त की सभी
विपत्तियों से रक्षा करती हैं।
इनके प्रसन्न हो जाने पर अनेक
जन्मों से चली आ रही दरिद्रता
का भी निवारण हो जाता है।
ये अपने भक्त को सांसारिक
सुख प्रदान करने के साथ मोक्ष
भी प्रदान करती हैं।
तभी तो ऋषि-मुनि इनकी
स्तुति करते हुए कहते हैं-
शोषिणीसर्वपापानां
मोचनी सकलापदाम्।
दारिद्र्यदमनीनित्यंसुख
-मोक्ष-प्रदायिनी॥
काशी की पारम्परिक 'नवगौरी
यात्रा' में आठवीं भवानी गौरी
तथा नवदुर्गा यात्रा में अष्टम
महागौरी का दर्शन-पूजन
अन्नपूर्णा मंदिर में ही होता है।
अष्टसिद्धियों की स्वामिनी
अन्नपूर्णाजी की चैत्र तथा
आश्विन के नवरात्र में अष्टमी
के दिन 108 परिक्रमा करने
से अनन्त पुण्य फल प्राप्त होता है।
सामान्य दिनों में अन्नपूर्णा माता
की आठ परिक्रमा करनी चाहिए।
प्रत्येक मास के शुक्ल पक्ष की
अष्टमी के दिन अन्नपूर्णा देवी
के निमित्त व्रत रखते हुए उनकी
उपासना करने से घर में कभी
धन-धान्य की कमी नहीं होती है।
भविष्यपुराण में मार्गशीर्ष मास
के अन्नपूर्णा व्रत की कथा का
विस्तार से वर्णन मिलता है।
काशी के कुछ प्राचीन पंचांग
मार्गशीर्ष की पूर्णिमा में अन्नपूर्णा
जयंती का पर्व प्रकाशित करते हैं।
अन्नपूर्णा देवी का रंग
जवापुष्प के समान है।
इनके तीन नेत्र हैं,मस्तक
पर अर्द्धचन्द्र सुशोभित है।
भगवती अन्नपूर्णा अनुपम
लावण्य से युक्त नवयुवती
के सदृश हैं।
बन्धूक के फूलों के मध्य दिव्य
आभूषणों से विभूषित होकर ये
प्रसन्न मुद्रा में स्वर्ण-सिंहासन पर
विराजमान हैं।
देवी के बायें हाथ में अन्न से पूर्ण
माणिक्य,रत्न से जड़ा पात्र तथा
दाहिने हाथ में रत्नों से निर्मित
कलछुल है।
अन्नपूर्णा माता अन्न दान
में सदा तल्लीन रहती हैं।
देवीभागवत में राजा बृहद्रथ की
कथा से अन्नपूर्णा माता और उनकी
पुरी काशी की महिमा उजागर होती है।
भगवती अन्नपूर्णा पृथ्वी पर साक्षात
कल्पलता हैं,क्योंकि ये अपने भक्तों
को मनोवांछित फल प्रदान करती हैं।
स्वयं भगवान शंकर इनकी प्रशंसा
में कहते हैं-"मैं अपने पांचों मुख से
भी अन्नपूर्णा का पूरा गुण-गान कर
सकने में समर्थ नहीं हूँ।
यद्यपि बाबा विश्वनाथ काशी में
शरीर त्यागने वाले को तारक-मंत्र
देकर मुक्ति प्रदान करते हैं,तथापि
इसकी याचना माँ अन्नपूर्णा से ही
की जाती है।
गृहस्थ धन-धान्य की तो योगी
ज्ञान-वैराग्य की भिक्षा इनसे
मांगते हैं-
अन्नपूर्णेसदा पूर्णे
शङ्कर प्राणवल्लभे।
ज्ञान-वैराग्य-सिद्धयर्थम्
भिक्षाम्देहिचपार्वति॥
मंत्र-महोदधि,तन्त्रसार,पुरश्चर्यार्णव
आदि ग्रन्थों में अन्नपूर्णा देवी के
अनेक मंत्रों का उल्लेख तथा उनकी
साधना-विधि का वर्णन मिलता है।
मंत्रशास्त्र के सुप्रसिद्ध ग्रंथ
'शारदातिलक' में अन्नपूर्णा
के सत्रह अक्षरों वाले निम्न
मंत्र का विधान वर्णित है-
"ह्रीं नम: भगवतिमाहेश्वरिअन्नपूर्णेस्वाहा"
मंत्र को सिद्ध करने के लिए इसका
सोलह हज़ार बार जप करके,उस
संख्या का दशांश(1600 बार)घी
से युक्त अन्न के द्वारा होम करना
चाहिए।
जप से पूर्व यह ध्यान
करना होता है-
रक्ताम्विचित्रवसनाम्नवचन्द्रचूडामन्नप्
दाननिरताम्स्तनभारनम्राम्।नृत्यन्तमिन्दुशकलाभरणंविलोक्यहृष्टं
भजेद्भगवतीम्भवदु:खहन्त्रीम्॥
अर्थात 'जिनका शरीर रक्त वर्ण का
है, जो अनेक रंग के सूतों से बुना वस्त्र
धारण करने वाली हैं,जिनके मस्तक पर
बालचंद्र विराजमान हैं,जो तीनों लोकों
के वासियों को सदैव अन्न प्रदान करने
में व्यस्त रहती हैं,यौवन से सम्पन्न,
भगवान शंकर को अपने सामने
नाचते देख प्रसन्न रहने वाली,
संसार के सब दु:खों को दूर
करने वाली,भगवती अन्नपूर्णा
का मैं स्मरण करता हूँ।'
प्रात:काल नित्य 108 बार
अन्नपूर्णा मंत्र का जप करने
से घर में कभी अन्न-धन का
अभाव नहीं होता।
शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन
अन्नपूर्णा का पूजन-हवन करने
से वे अति प्रसन्न होती हैं।
करुणा मूर्ति ये देवी अपने भक्त को
भोग के साथ मोक्ष प्रदान करती हैं।
सम्पूर्ण विश्व के अधिपति विश्वनाथ की
अर्धांगिनी अन्नपूर्णा सबका बिना किसी
भेद-भाव के भरण-पोषण करती हैं।
जो भी भक्ति-भाव से इन वात्सल्यमयी
माता का अपने घर में आवाहन करता
है,माँ अन्नपूर्णा उसके यहाँ सूक्ष्म रूप
से अवश्य वास करती हैं।
मलंग काशी वाले...
शारदावकाश सम्बन्धी सूचना
कल दिनांक 21सितम्बर 2024 को आदरणीय जिला विद्यालय निरीक्षक के आदेश के अनुपालन में छात्रवृत्ति हेतु विद्यालय के सभी छात्रों का बैंक बचत खाता इंडियन ओवरसीज बैंक वाराणसी के नदेसर शाखा में खोला गया। इसमें शाखा प्रबन्धक आशीष पाण्डेय जी का महती योगदान रहा। हम उनके प्रति आभार प्रकट करते हैं।
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सर्वेश द्विवेदी द्विवेदी जी, Ved Tripathi, Ganesh Pandey, Pandit Kushal Tiwari, Rangeele Tripathi, Pandit Anupam Kar Pathak, Kalpnath Mishra, Manoj Mishra, कर्मकांड तथा ज्योतिष कार्यालय, Shravan Mishra, Shubham Tiwari, Rakhi Dubey, Shashi Bhushar, Satyam Tiwari, Vijay Nath Pathak, Yogeshwar Mishra, Shashikant Pandey, Aachal Dwivedi, Nar Narayan Upadhyay, Arpit Dubey, Dheeraj Upadhyay, Brijesh Dubey, Nisha Dubey, Pushkar Pathak, Krishn Shukla Krishn Shukla, Raghav Jha, Kanhiya Giri, Anand Pandey, आनन्द पांडेय, Ravikant Trivedi, Adarsh Mishra, Anita Upadhyay, Ashutosh Pandey Ji Pandey, Ankit Chaubey Baba, Aarti Upadhyay, Aakash Kumar, Prakash Sharma, कमलेश केशरी, Adarsh Pandit, Sudarshan Dubey, Arun Mishra
संस्कृत सप्ताह के षष्टम दिवस पर वेद उपनिषद इत्यादि विषयान्तगर्त संभाषण कार्यक्रम l
संस्कृत सप्ताह के अंतर्गत विद्यालय के समस्त छात्रों एवं शिक्षकों द्वारा विद्यालय परिसर में स्वच्छता कार्य संपादित किया गया l
संस्कृत सप्ताह के अंतर्गत सेवा निवृत्त संस्कृत शिक्षक डॉ उमा शंकर चतुर्वेदी "कंचन " जी को अंगवस्त्र पुस्तक स्मृति चिन्ह प्रदान कर सम्मानित किया गया l
संस्कृत सप्ताह के अंतर्गत 'संस्कृत भाषा की महत्ता " विषय पर छात्रों द्वारा निबंध लेखन कार्य l
श्री अन्नपूर्णा ऋषिकुल ब्रह्मचार्यश्रम शिवपुर वाराणसी l
विद्यालय में प्रधानाचार्य श्री आशुतोष मिश्र जी के नेतृत्व में "संस्कृत सप्ताह" का आयोजन किया गया जिसमें सभी अध्यापक एवं छात्रगण ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। "जयतुसंस्कृतम जयतु भारतम"
आज दिनांक 26 जुलाई 2024 को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ द्वारा गुरु पूजन का कार्यक्रम किया गया जिसमें विद्यालय के छात्रों सहित संघ के रजनीश जी के साथ साथ विद्यालय के समस्त अध्यापकगणों ने भाग लिया। अन्नपूर्णा मां की जय।
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