Dr. Gopal Krishna Thakur
Prof. Dr. Gopal Krishna Thakur
Professor & Dean, School of Education
केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा (शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार) द्वारा दिनांक 18-19 मार्च, 2024 को "विकसित भारत के परिप्रेक्ष्य में भारतीय ज्ञान परंपरा" विषय आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी। बीज वक्तव्य (Keynote Speech) एवं अपराह्न सत्र की अध्यक्षता का अवसर मुझे प्राप्त हुआ। NCERT के पूर्व निदेशक एवं प्रख्यात शिक्षाविद पद्मश्री प्रोफेसर जे. एस. राजपूत (मुख्य अतिथि), बुंदेलखंड विश्वविद्यालय एवं सिद्धार्थ विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति तथा केंद्रीय हिंदी संस्थान के वर्तमान उपाध्यक्ष प्रोफेसर सुरेंद्र दूबे (उद्घाटन सत्र के अध्यक्ष), संस्थान के निदेशक प्रोफेसर सुनील कुलकर्णी, अध्यापक शिक्षा विभाग, केंद्रीय हिंदी संस्थान के अध्यक्ष प्रोफेसर हरि शंकर एवं कार्यक्रम संयोजक डॉ. चंद्रकांत कोठे तथा संस्थान की पूर्व कार्यकारी निदेशक एवं पूर्व कुलसचिव प्रोफेसर बीना शर्मा सहित हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय से आए हुए प्रोफेसर विशाल सूद, उड़ीसा केंद्रीय विश्वविद्यालय के प्रोफेसर भरत कुमार पंडा, इलाहाबाद विश्वविद्यालय के डॉ. पतंजलि मिश्र, प्रयागराज से आए प्रोफेसर पार्थ सारथी पांडेय, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय की डॉ. शिल्पी कुमारी सहित देश-विदेश के अध्येता गण का सान्निध्य। भारतीय ज्ञान परंपरा पर अत्यंत सारगर्भित विमर्श। सराहनीय कार्यक्रम के आयोजन हेतु केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा को बधाई एवं अभिनंदन। बीज वक्तव्य एवं सत्र की अध्यक्षता के लिए आमंत्रण हेतु हार्दिक आभार।
Two-day National Seminar on “Indian Knowledge System in the perspective of Developed India”. Organized by Kendriya Hindi Sansthan, Agra (Ministry of Education, Government of India) on 18-19 March, 2024. I got the opportunity to deliver the Keynote Speech and preside over the afternoon session. Meaningful discussions and deliberations with Padmashri Prof. J. S. Rajput, Eminent Educationist and Former Director, NCERT, Prof. Surendra Dubey, Vice President of Kendriya Hindi Sansthan and Former VC, Bundelkhand University & Siddharth University, Prof. Sunil Kulkarni, Director, Kendriya Hindi Sansthan, Professor Bina Sharma, former In-charge Director and Registrar, KHS, Prof. Vishal Sood, Central University of Himachal Pradesh, Prof. Bharat Kumar Panda, Central University of Orissa , Dr. Patanjali Mishra, Allahabad University, Prof. Partha Sarathi Pandey from Prayagraj, Dr. Shilpi Kumari, MGAHV, Wardha and scholars from India and abroad. Very succinct deliberations on Indian Knowledge System. Congratulations to Kendriya Hindi Sansthan, Agra for organizing this commendable programme. Heartfelt gratitude for the invitation to deliver the Keynote Speech and Chair the Session.
29.02.2024 : National Seminar on NEP 2020 and Changing Paradigm of Assessment and Evaluation. Organised by District Institute of Education and Training (DIET), Sitamarhi, Bihar. Meaningful deliberation... Vibrant dialogue sessions... avid participants... and of course wonderful coordination by the organising team under the dynamic leadership of the Principal.
January 19-20, 2024
International Conference on "Navigating Inclusive Education: Bridging the Divide and Empowering Every Learner" organised by PG Department of Education, FAKIR MOHAN UNIVERSITY, Balasore, Odisha. Meaningful deliberations on the central theme and associated issues by the national and international scholars. Commendable endeavours by Dr. Jyoti Shankar Pradhan, HoD, Dr. Amulya Kumar Acharya, Dr. Pratima Pradhan and the whole organising team.
December 22-23, 2023
National Seminar on “Role of Higher Education Institutions in Promotion of Indian Knowledge Tradition”. Organizer – Gautam Buddha Teacher Training College, Hazaribagh, Vinoba Bhave University, Hazaribagh. Meaningful intellectual deliberations on very important issues by scholars from MGAHV (Central University), Wardha, Maharashtra, BHU, Varanasi, JNU, New Delhi and other prestigious institutions. Cordial presence of former Registrar, Proctor and Controller of Examinations of Vinoba Bhave University, Secretary of Ujjwal Bharat Trust, Vice President, Principal of the college and faculty members.
"भारतीय ज्ञान परंपरा के संवर्धन में उच्च शिक्षा संस्थानों की भूमिका" विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन। आयोजक - गौतम बुद्ध शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय, हज़ारीबाग़, विनोबा भावे विश्वविद्यालय, हज़ारीबाग़। महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा, महाराष्ट्र, काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली एवं अन्य प्रतिष्ठित संस्थानों के विद्वतजनों द्वारा अत्यंत महत्वपूर्ण विषय पर सार्थक बौद्धिक विमर्श। विनोबा भावे विश्वविद्यालय के पूर्व कुलसचिव, कुलानुशासक, परीक्षा नियंत्रक, उज्ज्वल भारत ट्रस्ट के सचिव, उपाध्यक्ष, महाविद्यालय के प्राचार्य एवं संकाय सदस्यों का सौहार्दपूर्ण सान्निध्य।
November 04-05, 2023
N P Teachers' Training College, Bokaro, Jharkhand. Two-day National Seminar on "Role of Teacher Education in Promoting Indian Knowledge Tradition and Culture".
March 18-19, 2023
St. Joseph's MSVM Teachers' Training College, Dalsingsarai, Samastipur, Bihar. Two-day National Seminar on "Role of Information and Communication Technology in Teaching-Learning Skills".
15-16 मार्च, 2023: ज़िला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान (DIET), डुमरा, सीतामढ़ी, बिहार द्वारा "राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के प्रभावी क्रियान्वयन में शिक्षक शिक्षा संस्थानों की भूमिका तथा जिम्मेदारियाँ" विषय पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का सफल आयोजन. प्रो. ज्ञानदेव मणि त्रिपाठी, प्रो. आशीष श्रीवास्तव, डायट, डुमरा के पूर्व प्राचार्य श्री जी शंकर सहित शिक्षा के कई अन्य सुधी जनों की उत्साहवर्धक सहभागिता. DIET डुमरा, सीतामढ़ी की वर्तमान प्राचार्य कुमारी अर्चना का अद्भुत संयोजन एवं प्रशंसनीय नेतृत्व एवं सभी संकाय सदस्यों एवं विद्यार्थियों की सक्रिय सहभागिता अत्यंत सराहनीय. मिथिला की समृद्ध संस्कृति के अनुरूप पारंपरिक रूप से आतिथ्य सत्कार सहित अत्यंत समीचीन विषय पर गंभीर शैक्षिक विमर्श का प्रयत्न सुखद.
विगत कुछ दशकों में बिहार में सरकारी क्षेत्र के अध्यापक शिक्षा संस्थान विभिन्न कारणों से बंद होने की स्थिति में पहुँच गये थे. परंतु यह देखना सचमुच एक सुखद अनुभूति है कि अब नये सिरे से इन संस्थानों में संकाय सदस्यों की नियुक्तियाँ हुई हैं, संस्थान अनुप्राणित हो रहे हैं एवं सक्रिय रूप से ये संस्थान (विशेषतः DIET) सेवा पूर्व एवं सेवाकालीन शिक्षकों के वृत्तिक संवर्धन (Professional Development) हेतु अथक प्रयत्न कर रहे हैं. साथ ही शैक्षिक विमर्श की प्रक्रिया को भी आगे बढ़ा रहे हैं. DIET डुमरा, सीतामढ़ी की प्राचार्य कुमारी अर्चना को बहुत बहुत बधाई एवं अभिनंदन...
25-26 February 2023... Shamshul Haque Memorial Teacher Training College, Jhunai Pahari, Ambona, Dhanbad... (Affiliated to Binod Bihari Mahto Koylanchal University, Dhanbad)... Two Day National Seminar on "The Changing Scenario of Teacher Education in the Light of NEP - 2020". Wonderful ambience... meticulously organised seminar... humble and sincere hosts... genuinely enthusiastic participants... enriching company of Prof. S C Roy, Prof. Asheesh Srivastava, Prof.. Dhiraj Kumar and many others... meaningful deliberations... successfully concluded event... Thanks to Er. Md. Gulam Mustafa... Khurshida Khatoon Mallick... Dr. Rizwan Mallick, Dr. Numan Mallick... and Dear Dr. Upendra Kumar Ji...
24 फ़रवरी 2023...
भारतीय भाषा समिति, भारत सरकार के सौजन्य से शैक्षिक अध्ययन विभाग, शिक्षा संकाय, जामिया मिल्लिया इस्लामिया (केंद्रीय विश्वविद्यालय), नई दिल्ली द्वारा "भारतीय भाषाओं में शोध एवं अकादमिक लेखन" विषय पर आयोजित त्रि-दिवसीय कार्यशाला के सम्पूर्ति सत्र की अध्यक्षता... कार्यशाला के संयोजक एवं शैक्षिक अध्ययन विभाग (JMI) के संकाय सदस्य डॉ. सज्जाद अहमद, HoD डॉ. अरशद इकराम अहमद, Dean प्रो. सारा बेगम, प्रो. हरजीत कौर भाटिया, शिक्षा संकाय (IASE, Jamia) के डॉ. डोरी लाल, मेरी छात्रा एवं वर्तमान में जामिया मिल्लिया इस्लामिया के शिक्षा संकाय में सहायक प्रोफ़ेसर डॉ. रईसा ख़ान, अनुजवत डॉ. समीर बाबू, NCERT के प्रो. एस. के. यादव, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के प्रो. निरंजन सहाय का सान्निध्य एवं महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय के मेरे पूर्व विद्यार्थी अभिषेक, साधना एवं एकता, जो अब दिल्ली विश्वविद्यालय एवं अंबेडकर विश्वविद्यालय दिल्ली में पीएचडी शोधार्थी हैं, सहित कार्यशाला के अन्य सभी प्रतिभागियों की उत्साहवर्धक उपस्थिति... ज्ञानवर्धक, सुखद एवं सार्थक कार्यक्रम...
उज़्बेकिस्तान के ताशकंद विश्वविद्यालय से आए हुए भाषाविद् आचार्यों एवं शोधार्थियों का विदाई समारोह…
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में स्वतंत्रता दिवस एवं “आज़ादी का अमृत महोत्सव” का आयोजन @ 15 अगस्त 2022
https://www.newsspeak.in/news-detail/Mjg3OQ==
राष्ट्रीय शिक्षा नीति से शिक्षा में होगा समता, साम्यता और समावेशी विकास : प्रो. गोपाल कृष्ण ठाकु राष्ट्रीय शिक्षा नीति से शिक्षा में होगा समता, साम्यता और समावेशी विकास : प्रो. गोपाल कृष्ण ठाकुर
https://www.banshidharnews.com/news/national-education-policy-will-bring-equality-equi
राष्ट्रीय शिक्षा नीति से शिक्षा में होगा समता, साम्यता और समावेशी विकास : प्रो गोपाल कृष्ण ठाकु आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर रांची विमेंस कालेज के बीएड विभाग एवं आंतरिक गुणवत्ता आश्वासन प्रकोष्ठ के संयुक्.....
प्रश्नोपनिषद: रचना एवं निहितार्थ
भारतीय आध्यात्मिक चिंतन के मूल आधार के रूप में उपनिषदों का अत्यंत ही महत्वपूर्ण स्थान है. उपनिषद ही समग्र भारतीय दार्शनिक चिंतनधाराओं के मूल स्रोत हैं. ‘ब्रह्म’, ‘जीव’ और ‘जगत’ का ज्ञान पाना उपनिषदों की मूल शिक्षा है तथा अनेकानेक प्रेरक एवं रोचक कथाओं के माध्यम से ज्ञान, विद्या, अविद्या, श्रेयस, प्रेयस आदि विषयों पर भी पर्याप्त चिन्तन, वर्णन, व्याख्या, विश्लेषण व विवेचन उपनिषदों में उपलब्ध है. हिन्दू धर्म के महत्त्वपूर्ण श्रुति धर्मग्रन्थ के रूप में उपनिषद वैदिक वाङ्मय के अभिन्न अंग माने जाते हैं. सामान्यतः उपनिषदों की रचना की अवधि 6000 वर्ष ईसा पूर्व से 200 वर्ष ईसा पूर्व तक मानी जाती है. प्राचीनतम उपनिषदों में अथर्ववेदीय शाखा के अंतर्गत प्रश्नोपनिषद का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है और यह हिंदू धर्म के 108 उपनिषदों के मुक्तिका-सिद्धांत में क्रमांक 4 पर सूचीबद्ध है. प्रश्नोपनिषद की रचना का वृत्तांत भी अत्यंत रोचक तथा वर्तमान संदर्भों में अत्यंत प्रासंगिक व अनुकरणीय है.
प्रश्न उपनिषद की कथा के अनुसार, एक बार प्रतिष्ठित आचार्य ऋषि पिप्पलाद (जिन्हें महर्षि दधीचि के पुत्र के रूप में भी जाना जाता है) के पास सुकेशा, सत्यकाम, सौर्यायणि गार्ग्य, कौसल्य, भार्गव और कबंधी नामक छह युवा सन्यासी परम सत्य व ब्रह्म का ज्ञान प्राप्त करने की जिज्ञासा के साथ पहुँचे एवं उन्हें शिक्षित करने की प्रार्थना की. परंतु ऋषि पिप्पलाद ने तुरंत शिक्षण की प्रक्रिया प्रारंभ नहीं की. बल्कि उन्होंने उन युवा विद्यार्थियों को आश्रम में एक वर्ष तक नैतिक रूप से धैर्य, संयम (ब्रह्मचर्य) एवं श्रद्धा (निष्ठा) के साथ रहने को कहा. और यह कहा कि एक वर्ष का समय इस प्रकार व्यतीत करने के उपरांत उनके पास आकर प्रश्न पूछें. यदि ऋषि को उन प्रश्नों का उत्तर ज्ञात होगा तो वे उन्हें (विद्यार्थियों को) बताएँगे.
य र तपसा ब्रह्मचर्यण श्रद्ध्या
संवत्सरं संवत्स्यथ जन्मसिद्ध कामं प्रश्न पृथ्वीत्पर
विज्ञायामः सर्वं ह वो वक्षम इति ||
अर्थात्
मेरे साथ एक वर्ष रहो,
तपस के साथ , ब्रह्मचर्य के साथ, श्रद्धा (विश्वास) के साथ,
फिर पूछो कि तुम क्या प्रश्न करोगे,
यदि मैं जानता होऊँगा, तो आप सभी को बताऊँगा।
यह बात अत्यंत महत्वपूर्ण है. यह भारतीय ज्ञान परंपरा में वैदिक युग के उस विश्वास को दर्शाता है कि ज्ञान की निर्मिति से पूर्व, शिक्षण-अधिगम की प्रक्रिया प्रारंभ करने से पूर्व, यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि विद्यार्थी वास्तव में ज्ञानार्जन का आकांक्षी है, ज्ञानार्जन के लिए प्रतिबद्ध है एवं नैतिक रूप से शुद्ध आचरण का पालन कर रहा है. इस प्रसंग का एक और निहितार्थ यह भी है कि ज्ञान के सृजन की प्रक्रिया संवादात्मक शैली (प्रश्न-उत्तर की शैली) में संचालित हो तथा प्रश्न पूछने का उद्देश्य अवश्य स्पष्ट होना चाहिए. यदि सीखने के उद्देश्य से, सीखने की मंशा से प्रश्न पूछे जाएँ और शिक्षार्थी के आचरण में ज्ञानार्जन के प्रति निष्ठा, प्रतिबद्धता, दृढ़ता, उत्साह, संयम, शुद्धता, आत्म-अनुशासन आदि हो तभी यह प्रक्रिया सार्थक होती है. अन्यथा सब व्यर्थ है. इस कथा का यह भी निहितार्थ है कि कोई भी व्यक्ति सर्वज्ञ नहीं होता. इसलिए शिक्षकों में भी ज्ञान का अहंकार भाव नहीं होना चाहिए. ऋषि पिप्पलाद जब यह कहते हैं कि “यदि मुझे आपके प्रश्नों का उत्तर ज्ञात होगा तो अवश्य बताऊँगा” यह उनकी विनम्रता को दर्शाता है. साथ ही इससे वैदिक काल की इस मान्यता का संकेत भी मिलता है कि ज्ञान की सर्वज्ञता व एकाधिकार किसी जीव का लक्षण नहीं है.
प्रश्न उपनिषद की कथा में आगे उल्लिखित है कि उन सभी युवा विद्यार्थियों ने यथानिर्देशित आचरण का पालन करते हुए धैर्य पूर्वक एक वर्ष का समय ऋषि पिप्पलाद के आश्रम में व्यतीत किया एवं एक वर्ष के बाद विधिवत उनकी शिक्षा प्रारंभ हुई. उन छह विद्यार्थियों द्वारा ब्रह्म, जीव, जगत आदि से संबंधित पूछे गए प्रश्नों एवं उनके उत्तरों का संकलन छह अध्यायों में किया गया जिसे प्रश्न उपनिषद का नाम दिया गया.
इस प्रसंग का उल्लेख वर्तमान समय में इसलिए अधिक प्रासंगिक व महत्वपूर्ण प्रतीत होता है कि प्रायः सामान्य जीवन में कर्तव्यबोध की कमी व अधिकार भाव की प्रबलता तथा शुद्ध अंतःकरण से किसी अभीष्ट लक्ष्य की प्राप्ति की प्रक्रिया में धैर्य, संयम, श्रद्धा, निष्ठा व प्रतिबद्धता का अभाव दिखाई देता है. यह लक्ष्य प्राप्ति के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा है. अतः लक्ष्य के निर्धारण, निरूपण एवं उसकी प्राप्ति के लिए आवश्यक है कि भारतीय ज्ञान परंपरा के इस महत्वपूर्ण स्रोत से प्रवाहित शिक्षा के इन मूल तत्वों को ग्रहण किया जाए एवं अपने व्यवहार में आत्मसात किया जाए.
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