Adv Alok singh nishad

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20/05/2023
05/05/2023

गर्मी की प्यास!
परिंदो का एहसास

26/01/2023

Happy republic day

दोस्तों आज हम भारतवासी अपना 74वाँ गणतंत्र दिवस माना रहे हैं… शुभकामनाओं के साथ इस पोस्ट की लिंक भी शेयर कीजिए ताकि आम जानता गणतंत्र दिवस के महत्व और उससे जुड़ी कुछ रोचक बातों को जान सके…. शुभकामनाएँ 🙏

✅ लोकतंत्र (डैमोक्रैसी) क्या होती है?

लोकतंत्र शब्द ग्रीक शब्द "डेमोस" से निकला है, जिसका अर्थ है "लोग" और "क्रेटोस", जिसका अर्थ है "शक्ति।" नतीजतन, लोकतंत्र को "लोगों की शक्ति" के रूप में माना जा सकता है, सरकार का एक रूप जो लोगों की इच्छाओं पर आधारित है।
सिद्धांत रूप में, लोकतंत्र एक ऐसी सरकार है जो लोगों की ओर से उनकी "इच्छा" के अनुसार शासन करती है।

✅ गणतंत्र ( रिपब्लिक) क्या है?

एक राज्य जिसमें जनता और उनके चुने हुए प्रतिनिधि पूर्ण अधिकार रखते हैं और जहां राष्ट्रपति एक सम्राट के बजाय निर्वाचित या मनोनीत होता है।

अगर आप इन दोनों शब्दों को समझ गए हैं तो आइए कुछ अन्य रोचक तथ्यों पर नज़र डालें -

नंबर-1
देश में पहली बार गणतंत्र दिवस वर्ष 1950 में मनाया गया था। इसी दिन डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने भारत के राष्ट्रपति के रूप में अपना कार्यकाल शुरू किया।

नंबर-2
साल 1947 में देश को ब्रिटिश राज से आजादी मिली, लेकिन उसका अपना संविधान नहीं था। 26 जनवरी 1950 को भारत को अपना संविधान मिला।

नंबर -4
भारत का संविधान दुनिया का सबसे लंबा संविधान है जिसमें 444 लेख 22 भागों में विभाजित हैं, और 12 अनुसूचियां आज तक 118 संशोधनों के साथ हैं।

नंबर-5
संविधान को 26 नवंबर 1949 को संविधान सभा द्वारा अपनाया गया था और यह वर्ष 1950 में लागू हुआ था।

नंबर-6
पहली गणतंत्र दिवस परेड 1950 में इरविन एम्फीथिएटर (अब मेजर ध्यानचंद स्टेडियम) में आयोजित की गई थी। जिसमें तीन हजार भारतीय सैन्य कर्मियों और 100 से अधिक विमानों ने भाग लिया था।

नंबर-7
राजपथ पर पहली परेड 1955 में आयोजित की गई थी जब पाकिस्तान के गवर्नर जनरल मलिक गुलाम मुहम्मद मुख्य अतिथि के रूप में आए थे।

नंबर-8
26 जनवरी 1930 में, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने ब्रिटिश शासन के डोमिनियन स्थिति का विरोध करते हुए पूर्ण स्वराज की मांग की थी। इस प्रकार औपनिवेशिक शासन से भारत की स्वतंत्रता की घोषणा की थी।

नंबर-9
गणतंत्र दिवस परेड के लिए हर साल एक विशेष राष्ट्र के नेता को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया जाता है। इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुकर्णो 1950 में भारत के गणतंत्र दिवस समारोह में शामिल होने वाले पहले मुख्य अतिथि थे। मार्च में भाग लेने वाले सेना के प्रत्येक सदस्य को जांच की चार परतों से गुजरना पड़ता है, यहां तक कि उनके हथियारों का भी बड़े पैमाने पर निरीक्षण किया जाता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे जीवित गोलियां नहीं ले जा रहे हैं।

नंबर-10
हर साल 21 तोपों की सलामी दी जाती है, जब भारत के राष्ट्रपति गणतंत्र दिवस पर राष्ट्रीय ध्वज फहराते हैं और भारत का गणतंत्र दिवस समारोह बीटिंग रिट्रीट के दौरान 'अबाइड बाई मी' गाना गाकर तीन दिनों तक चलता है। देश के राष्ट्रपति गणतंत्र दिवस पर संबोधित करते हैं, जबकि देश के प्रधानमंत्री स्वतंत्रता दिवस पर संबोधित करते हैं।

भारत में नाव पत्रकारिता की शुरूआत हो | कस्बा 17/01/2023

भारत में नाव पत्रकारिता की शुरूआत हो | कस्बा नावों के निर्माता कौन होते होंगे ? उन्होंने नावों का विज्ञान कहाँ से सीखा होगा ? लकड़ी की नावें महिंद्रा या सुज़ुकी ...

10/01/2023

31 वर्ष पुराने फर्जी एनकाउंटर मामले में हाई कोर्ट ने 43 पुलिसकर्मियों को उम्र कैद की सजा सुनाई

"""”""""""""""""""""""""फर्जी एनकाउंटर""""""""""""""""'""'"''"''"'''''

इलाहाबाद उच्च न्यायालय लखनऊ बेंच ने उन्हें आईपीसी की धारा 304 (भाग 1) के तहत दोषी ठहराया, उन्हें सात साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई और प्रत्येक पर 10 हजार रुपये का जुर्माना लगाया.

इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने 1991 के पीलीभीत मुठभेड़ मामले में 43 प्रोविंशियल आर्म्ड कांस्टेबुलरी (पीएसी) कर्मियों को निचली अदालत द्वारा सुनाई गई उम्रकैद की सजा को रद्द कर दिया है।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर 15 मई 1992 में इस मामले की सीबीआई जांच शुरू हुई थी। सीबीआई चार्जशीट पर सुनवाई के बाद सभी 57 पुलिसकर्मियों को उम्र कैद की सजा सुनाई गई। ये सजा आरोपी पुलिसकर्मियों को अप्रैल 2016 में सुनाई गई थी। लोअर कोर्ट से सजा मिलने के बाद आरोपियों ने हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में अपील की थी।

लखनऊ स्थित सीबीआई की विशेष अदालत ने 4 अप्रैल, 2016 को पीएसी के 47 कर्मियों को दोषी ठहराते हुए उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। कर्मियों ने इस अदालत के आदेश को उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी. न्यायालय में अपील के लंबित रहने के दौरान चार आरोपियों की मौत हो गई।

पीलीभीत में 31 साल पुराने फर्जी एनकाउंटर मामले में हाई कोर्ट ने 43 पुलिसकर्मियों को दोषी करार दिया है। फर्जी एनकाउंटर में शामिल 43 पुलिसकर्मियों को कोर्ट ने उम्र कैद की सजा सुनाई है। हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति सरोज यादव की खंडपीठ ने पीलीभीत एनकाउंटर मामले में पुलिस कर्मियों को ये सजा सुनाई है।

अदालत ने कहा, हालांकि यह अदालत अपीलकर्ताओं को आईपीसी की धारा 304 (भाग 1) के तहत दोषी ठहराती है और प्रत्येक को 10 हजार रुपये जुर्माने के साथ सात साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाती है। कोर्ट ने इस साल 29 अगस्त को मामले की सुनवाई पूरी कर आदेश सुरक्षित रख लिया था. अदालत ने कहा, पुलिस का यह कर्तव्य नहीं है कि वे आरोपी को केवल इसलिए मार दें क्योंकि वह एक खूंखार अपराधी है। पुलिस को आरोपी को गिरफ्तार करना होगा और अदालत में पेश करना होगा।

अदालत ने कहा कि पुलिस ने उन्हें कानून द्वारा प्रदान की गई शक्ति से अधिक सक्रियता दिखाई, जो 10 सिखों की मौत का कारण बना।

गौरतलब है कि पीएसी के जवानों ने 12 जुलाई 1991 को उत्तर प्रदेश के पीलीभीत जिले में तीर्थ यात्रा पर सिखों को ले जा रही एक बस को रोक लिया था और मुठभेड़ मे उसमें सवार 10 यात्रियों की मौत हो गई थी. इस दौरान गायए हुए बच्चे का आज तक पता नहीं चल सका है। सीबीआई की जांच में कहा गया था कि 57 जवानों ने फर्जी एनकाउंटर किया था. सीबीआई की पूछताछ के दौरान 10 आरोपियों की मौत हो गई थी। सीबीआई की विशेष अदालत ने 4 अप्रैल, 2016 को 47 आरोपियों को दोषी करार देते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. सभी दोषियों ने विशेष सीबीआई अदालत के फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी।

दरअसल 12 जुलाई 1991 को पीलीभीत के कछला घाट के पास तीर्थ यात्रियों को लेकर जा रही बस से 11 सिख नौजवानों को उतारकर पुलिस ने 10 लोगों का एनकाउंटर किया था, जबकि शाहजहांपुर का तलविंदर सिंह आज तक लापता है। बस से उतारकर 10 सिख तीर्थयात्रियों को पीलीभीत के पूरनपुर न्यूरिया और बिलसंडा थाना क्षेत्र में खालिस्तान लिबरेशन फ्रंट का आतंकी बताकर मार डाला गया था।

सुनवाई के बाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने भी जिंदा बचे 43 पुलिसकर्मियों को एनकाउंटर का दोषी मानते हुए 7-7 साल जेल की सजा सुनाई है। उन पर 10-10 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, जजों की नियुक्ति पर विचार के लिए केंद्र ने कॉलेजियम को कुछ नाम भेजे हैं 07/01/2023

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, जजों की नियुक्ति पर विचार के लिए केंद्र ने कॉलेजियम को कुछ नाम भेजे हैं

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, जजों की नियुक्ति पर विचार के लिए केंद्र ने कॉलेजियम को कुछ नाम भेजे हैं सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को खुलासा किया कि केंद्र सरकार ने जजों की नियुक्ति पर विचार के लिए कॉलेजियम को कुछ नाम भ.....

17/11/2022

शीर्ष कोर्ट अपने ही फैसले में संगत दृष्टिकोण नही रखती

Photos from Adv Alok singh nishad's post 16/11/2022

In office

20/10/2022

आप के पास बस 'एक ही जीवन' है
बाकी सब कल्पना है!

15/08/2022

सुप्रीम कोर्ट का एक महत्वपूर्ण फैसला: चार्जशीट दायर करने के बाद भी रद्द हो सकती है FIR

पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट एफआईआर रद्द करने की याचिका को सुन सकता था। यहां तक कि इस याचिका के लंबित रहते यदि चार्जशीट दायर भी हो गई है तो भी इसे सुना जा सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में व्यवस्था दी है कि चार्जशीट दायर होने के बाद भी आरोपी एफआईआर रद्द करवाने के लिए सीआरपीसी की धारा 482 के तहत उच्च अदालत में याचिका दे सकता है।

अब तक कानून यही है कि किसी आपराधिक मामले में चार्जशीट दायर हो जाने पर उसमें धारा 482 के तहत एफआईआर रद्द करने की याचिका स्वीकार्य नहीं होती, लेकिन कोर्ट के इस फैसले से आपराधिक न्यायशास्त्र की स्थिति में अभियुक्तों के पक्ष में बड़ा बदलाव आ गया है।

न्यायमूर्ति एसए बोब्डे और न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव की पीठ ने यह फैसला देते हुए कहा कि यह मानना अन्याय होगा कि किसी व्यक्ति के खिलाफ कार्यवाही में एफआईआर की स्टेज पर ही हस्तक्षेप किया जा सकता है।

सर्वोच्च अदालत ने यह माना कि उच्च न्यायालय, धारा 482 CrPC के तहत दायर याचिका, जिसमे FIR को रद्द करने की मांग की गयी है, पर विचार कर सकता है भले ही उस याचिका के लंबित रहते चार्ज शीट दायर करदी गई हो।

“इस धारा के शब्दों में ऐसा कुछ भी नहीं है जो न्यायालय की शक्ति के प्रयोग को, न्यायालय की प्रक्रिया के दुरुपयोग या मिसकैरेज ऑफ़ जस्टिस को केवल FIR के चरण तक प्रतिबंधित करता हो। यह कानून का सिद्धांत है कि उच्च न्यायालय, जब डिस्चार्ज एप्लिकेशन 2 (2011) 7 SCC 59 7 ट्रायल कोर्ट के पास लंबित है, तब भी Cr.PC की धारा 482 के तहत अपने अधिकार क्षेत्र का उपयोग कर सकता है।

वास्तव में, यह धारणा ग़लत होगी कि एक व्यक्ति के खिलाफ शुरू की कार्यवाही के साथ हस्तक्षेप केवल FIR के चरण तक किया जा सकता है, परन्तु उसके बाद नहीं, खासतौर से तब नहीं जब आरोपों को चार्जशीट में बदल दिया गया हो। इसके विपरीत, यह कहा जा सकता है कि यदि FIR के बाद मामला चार्जशीट के चरण में पहुँच गया है, तो FIR के कारण होने वाली प्रक्रिया का दुरुपयोग बढ़ जाता है। किसी भी अदालत की शक्ति के दुरुपयोग को रोकने के लिए दंड प्रक्रिया में इस शक्ति का प्रावधान दिया गया है। “

पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट एफआईआर रद्द करने की याचिका को सुन सकता था। यहां तक कि इस याचिका के लंबित रहते यदि चार्जशीट दायर भी हो गई है तो भी इसे सुना जा सकता है।

चार्जशीट के बाद दुरुपयोग और बढ़ जाएगा–

कोर्ट ने फैसले में कहा कि धारा 482 में यह कहीं नहीं है, जिसमें कोर्ट को कानून का दुरुपयोग या अन्याय होने से रोकने के लिए सिर्फ एफआईआर की स्टेज पर ही प्रतिबंधित किया हो। यह कानून का स्थापित सिद्धांत है कि हाईकोर्ट धारा 482 के तहत क्षेत्राधिकार का प्रयोग कर सकता है। यहां तक कि हाईकोर्ट इस कार्यवाही को ट्रायल कोर्ट में डिस्चार्ज अर्जी लंबित होने पर भी जारी रख सकता है।

कोर्ट ने कहा कि यह मानना अन्याय होगा कि अभियुक्त के खिलाफ चार्जशीट दायर हो चुकी है और अब उसकी रिपोर्ट रद्द करने की याचिका नहीं सुनी जा सकती। इसके उलट एफआईआर के कारण प्रक्रिया का दुरुपयोग उस समय और ज्यादा बढ़ जाएगा, जब यह जांच के बाद चार्जशीट में तब्दील हो जाएगी। इसमें कोई शक नहीं है कि अन्याय तथा प्रक्रिया का दुरुपयोग रोकने की शक्ति हर कोर्ट को दी गई है।

कोई अपराध साबित नहीं होता–

यह फैसला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने आनंद मोहता के खिलाफ प्रकरण में कहा कि यह मामला दीवानी प्रकृति का है इसमें कहीं कोई अपराध साबित नहीं होता। हम मानते हैं कि एक करोड़ रुपये की सुरक्षा राशि को अभियुक्त द्वारा हड़प लेना विशुद्ध रूप से दीवानी मामला है। हम यह भी देख रहे हैं कि इस मामले में शिकायतकर्ता ने इस राशि को वापस लेने के लिए एफआईआर दर्ज करने के अलावा कोई और प्रयास नहीं किए। इससे साफ है कि यह अभियोजन दुर्भावनापूर्ण, न टिकने योग्य और अभियुक्त को परेशान करने की नीयत से किया गया है।

क्या है मामला–

आनंद कुमार मोहता ने एक संपत्ति विकसित करने के लिए बिल्डर से अनुबंध किया था, लेकिन बाईलाज में पता लगा कि संपत्ति को गगनचुंबी इमारत नहीं बनाया जा सकता, क्योंकि यह लुटियन जोन में है। इसके बाद उसने बिल्डर को लिखा कि वह संपत्ति विकसित नहीं करवाना चाहता, लेकिन उसने बिल्डर से लिए एक करोड़ रुपये की सुरक्षा राशि नहीं लौटाई। बिल्डर ने एफआईआर दर्ज करवा दी। इसे रद्द करवाने के लिए मोहता दिल्ली हाईकोर्ट गए, लेकिन कोर्ट ने कहा कि मामले में प्रारंभिक जांच चल रही है और याचिका रद्द कर दी। इसके बाद वह सुप्रीम कोर्ट आए, लेकिन तब तक पुलिस ने चार्जशीट दायर कर दी। कोर्ट में कहा गया कि चार्जशीट दायर होने के बाद एफआईआर रद्द करने की याचिका नहीं सुनी जा सकती।

केस टाइटल – आनंद कुमार मोहता बनाम राज्य (दिल्ली सरकार)

01/08/2022

ITR भरने के नियम मे बदलाव
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पूर्व मे अंतिम तिथि ३१ जुलाई होती थी ITR भरने की लेकिन सरकार ने इसमे बदलाव किया है अब जुर्माने के साथ ३१ दिसम्बर तक भरा जा सकता कि।

ITR भरने की सीमा उन व्यक्तियों पर लागू होती है जो सालाना ५ लाख या उससे उपर की कमाई करते है।

अधिक जानकारी के लिए विधिक सेवा ले...

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