Rainbow Childrens

it's all about education for school children A Pre School for young kids from Nursery to K.G. II. Campus is fully secure and is located in a prime location.

The school campus is located at Old Labour Court Compound, Chhindwara. School is installed with all the necessary equipments for the young toddlers. We teach in both Hindi as well as English. The school is under the graceful guidance of highly qualified teacher Mrs. Kalpana Mishra Mam.

22/03/2021
15/03/2021

[Indian Army Recruitment 2021

: भारतीय सेना में ऑफिसर बनने का सुनहरा मौका, जल्द करें आवेदन, लाखों में होगी सैलरी
सरकारी नौकरी का मौका

Indian Army Recruitment 2021:
भारतीय सेना (Indian Army) ने तकनीकी ग्रेजुएट पाठ्यक्रम (TGC-133) भर्ती (Indian Army TGC Recruitment 2021) के लिए आवेदन मांगे हैं. इसके लिए (Indian Army Recruitment 2021) आधिकारिक वेबसाइट पर एक नोटिफिकेशन भी जारी किया है. उम्मीदवार जो इन पदों (Indian Army Recruitment 2021) के लिए आवेदन करना चाहते हैं, वे Indian Railway की आधिकारिक वेबसाइट joinindianarmy.nic.in पर जाकर 26 मार्च तक या उससे पहले अप्लाई कर सकते हैं.

इसके अलावा उम्मीदवार सीधे इस लिंक https://joinindianarmy.nic.in/index.htm पर क्लिक करके भी इन पदों (Indian Army Recruitment 2021) के लिए आवेदन कर सकते हैं.

साथ ही इस लिंक https://joinindianarmy.nic.in/writereaddata/Porta के जरिए भी आधिकारिक नोटिफिकेशन भी देख सकते हैं. भारतीय सेना (Indian Army) में स्थाई कमीशन के लिए भारतीय सैन्य अकादमी (IMA), देहरादून में योग्य अविवाहित पुरुष इंजीनियरिंग ग्रेजुएट के लिए भारतीय सेना तकनीकी ग्रेजुएट पाठ्यक्रम जुलाई 2021 में शुरू होगा. ट्रेनिंग के सफल समापन के बाद सेना में शॉर्ट सर्विस कमीशन / स्थाई कमीशन के लिए लेफ्टिनेंट /अन्य सीनियर पद दिया जाएगा. इस भर्ती के तहत कुल 133 पदों को भरा जाएगा।





Indian Army Recruitment 2021 के लिए वेतन

लेफ्टिनेंट – रु. 56,100 – 1,77,500
कैप्टन लेवल – रु.61,300-1,93,900
मेजर – रु. 69,400-2,07,200
लेफ्टिनेंट कर्नल स्तर – रु. 1,21,200-2,12,400
कर्नल स्तर – रु. 1,30,600-2,15,900
ब्रिगेडियर स्तर – रु. 1,39,600-2,17,600
मेजर जनरल लेवल – रु. 1,44,200-2,18,200
लेफ्टिनेंट जनरल एचएजी स्केल – रु.1,82,200-2,24,100
लेफ्टिनेंट जनरल एचएजी – रु. 16 2,05,400-2,24,400
VCOAS / सेना Cdr / लेफ्टिनेंट जनरल (NFSG) – रु. 2,25,000 / – (निश्चित)
COAS – रु. 2,50,000 / – (निश्चित)

Indian Army Recruitment 2021 के लिए योग्यता मानदंड

उम्मीदवार को संबंधित क्षेत्र में किसी मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय से BE/B.Tech होना चाहिए. साथ ही इंजीनियरिंग डिग्री कोर्स के फाइल ईयर वाले भी उम्मीदवार आवेदन करने के लिए योग्य हैं.

Indian Army Recruitment 2021 के लिए आयु सीमा

उम्मीदवारों की आयुसीमा 20 से 27 वर्ष (01 जुलाई 2021 तक) के बीच होनी चाहिए.

14/03/2021

Easy way to learn spoken English

Photos from Rainbow Childrens's post 14/03/2021
28/06/2020

Education for all

26/06/2020

Education for all age groups

23/06/2020

शिक्षा का जीवन में बहुत महत्व है।यह हममें सोचने समझने की शक्ति ,सही गलत का निर्णय करने में और सबसे बड़ी बात आर्थिक उपार्जन मे सहायता करती है।जीवन के हर पग में हमारी सहायता करती है।इस पर सभी का मौलिक अधिकार है। शिक्षा को तीन वर्गो में बाॅंटा गया हेैः-
प्राथमिक शिक्षा,माध्यमिक शिक्षा,उच्चतर शिक्षा
जिनको यह तीनो वर्ग पूरा करने का अवसर मिलता है वे भाग्यशाली होते है।
बिना इसके हर इंसान अधूरा होता हैं जीवन में जब अवसर मिले शिक्षा लेना ही चाहिये

इसी विचार को ध्यान में रखते हुऐ ज्ञानकलश सेवा संस्थान ने ऐसे सभी शालात्यागी बच्चों और उन सभी व्यक्तियों के लिए कम शुल्क में शिक्षण
व्यवस्था की हैं जो किसी कारणवश अपनी शिक्षा पूरी नहीं कर पाये है। यहाॅं उम्र का कोई बंधन नहीे है। अंग्रेजी सिखाने की भी पूर्ण व्यवस्था है।
संपर्क 07162.24875, 8770212366

b

23/06/2020

शाही जीरा

पाचन तंत्र ,पाइल्स अॅंाखों की समस्या और सामान्य सर्दीखाॅंसी
की समस्या का उपचार करने में बहुत लाभदायक होता है।

यहाॅं तक कि बिच्छू के काटने पर इसे प्याज के रस के साथ मिलाकर
घाव पर लगाने से काफी हद तक फायदा मिलता है।

रोजाना 12 ग्राम शहद के साथ मिलाकर पीने से याददाश्त भी मजबूत होती है। (available for sale)

21/06/2020

Happy father's day our dearest father

19/06/2020

Immunity kadah pure available

17/06/2020

CLASSES WILL START FROM
01 JULY 2020...NURSERY....K.G.I...K.G.II

17/06/2020

classes will start from 1 july 2020
admission open....Nursery.....K.G.I....K.G.II

05/06/2020



‌ study hard during lockdown?

‌finding a tutor or counsellor ?

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‌1st to 12th

‌homework help and teaching for primary and middle school students


‌zoology for B.Sc.&M.Sc.

‌contect 8770212366 9826751976

‌Online and off line with complete safety and security

05/06/2020

अनोखा खजाना : 115 साल बाद खोला महाराणा स्कूल का कमरा, सोने के पानी से लिखी किताबें मिलीं
New Delhi : इतिहास के पन्नों में दर्ज धौलपुर के महाराणा स्कूल के कुछ कमरों को पिछले दिनों 115 साल बाद खोला गया। इतने सालों तक इन कमरों को इसलिए नहीं खोला गया था क्योंकि स्थानीय प्रशासन यह समझता था कि इनमें कबाड़ पड़ा होगा। लेकिन दो महीने पहले मार्च में जब 2-3 कमरे खोले गये तो, वहां मौजूद ‘खजाना’ देख लोगों को होश उड़ गये। असल में इन कमरों से इतिहास की ऐसी धरोहरें रखी गई थीं, जो आज बेशकीमती हैं।
इन कमरों से प्रशासन को ऐसी किताबें मिली हैं जो कई सदी पुरानी हैं। अंतरराष्ट्रीय बाजार में ये किताबें बेशकीमती हैं। इन किताबों में कई ऐसी किताबें हैं, जिनमें स्याही की जगह सोने के पानी का इस्तेमाल किया गया है। इतिहासकार इस अनोखे खजाने को लेकर बहुत उत्साहित हैं। उनका कहना है कि इन किताबों को सहेज कर रखना जरूरी है, ताकि भविष्य में इन किताबों से छात्रों को बहुत अहम जानकारी मिले।
स्कूल के दो से तीन कमरों में एक लाख किताबें तालों में बंद पड़ी मिली। अधिकांश किताबें 1905 से पहले की हैं। महाराज उदयभान दुलर्भ पुस्तकों के शौकीन थे। ब्रिटिशकाल में महाराजा उदयभान सिंह लंदन और यूरोप यात्रा में जाते थे। तब ने इन किताबों को लेकर आते थे। इन किताबों में कई किताबें ऐसी हैं जिनमें स्याही की जगह सोने के पानी का इस्तेमाल किया गया है। 1905 में इन किताबों के दाम 25 से 65 रुपये थी। जबकि उस दौरान सोना 27 रुपये तोला था। ऐसे में मौजूदा समय में इन 1-1 किताब की कीमत लाखों में आंकी जा रही है। सभी पुस्तकें भारत, लंदन और यूरोप में छपी हुई हैं।
इनमें से एक किताब 3 फीट लंबी है। इसमें पूरी दुनिया और देशों की रियासतों के नक्शे छपे हैं। खास बात यह है कि किताबों पर गोल्डन प्रिंटिग है। इसके अलावा भारत का राष्ट्रीय एटलस 1957 भारत सरकार द्वारा मुद्रित, वेस्टर्न-तिब्बत एंड ब्रिटिश बॉडर्र लेंड, सेकड कंट्री ऑफ हिंदू एंड बुद्धिश 1906, अरबी, फारसी, उर्दू और हिंदी में लिखित पांडुलिपियां, ऑक्सफोर्ड एटलस, एनसाइक्लोपीडिया, ब्रिटेनिका, 1925 में लंदन में छपी महात्मा गांधी की सचित्र जीवनी द महात्मा भी इन किताबों में निकली है।
इतिहासकार गोविंद शर्मा बताते हैं – महाराजा उदयभान सिंह को किताबें पढ़ने का शौक था। ब्रिटिशकाल में वे जब भी लंदन और यूरोप की यात्रा पर जाते थे, तब वहां से किताबें जरूर लाते थे। उन्होंने खुद भी अंग्रेजी में सनातन धर्म पर एक पुस्तक लिखी थी। जिसका विमोचन मदन मोहन मालवीय ने किया था। धौलपुर राज परिवार की शिक्षा में इतनी रुचि थी कि उन्होंने बीएचयू के निर्माण में भी मदन मोहन मालवीय को बड़ी धनराशि प्रदान की थी।

02/06/2020

Cell cycle and division Class 10th

Very helpful for higher secondary level
https://youtu.be/nKiH8ykYyVc

About cell cycle and division

02/06/2020

Descriptive biology for 11and12

10/05/2020

उठ जा शाम होने आई🧑🧑🧑🧑🧑👦👦👦👦👦👦

आज पेरेन्टस परेशान है बच्चो में जल्दी उठने की आदत ही खत्म होती जा रही है । आज सुबह जल्दी उठने वाले बच्चे बहुत कम मिलते है और जो उठते है उन्हे होश्यिार और अच्छे बच्चे माना जाता है । माॅ बाप गर्व का अनुभव करते है। क्या समय आ गया है । सभी बच्चांे कांे प्रथम तो आना है ,सफल तो होना है पर मेहनत नहीं करना हैे।
सुबह नही उठना र्है।
बच्चो,
एक दिन सुबह जल्दी उठकर देखे सुबह का अर्थ 5.30 होता है ।अगर आप एक दिन उठकर देखेगे तो आप अनुभव करेगे कि
सुबह ब्रेन सबसे ज्यादा एक्टिव रहता है। सुबह का पहला एक घंटा बेहद खास होता है। सुबह जल्दी उठकर व्यायाम जरूरी होता है ध्यान प्रेयर और दिन की योजना बना लेना चाहिये।

यदि कोई योजना नही है तो भी यकीन मानिये स्वयं ही विचार आ जाता है।यह आपमे चेतना को भर देता हैं। इससे बुद्वि का विकास होगा और विचार विकसित होगें मन मे शांति का अहसास होगा जो बाद मे आपकी रचनात्मकता और परफार्मेस को विकसित करेगा ।
हम देर से सुबह उठते हैे और पहला काम करते है मोबाइल मे मूर्खो की तरह झांकना और झांकते ही रहना जो हमारे दिमाग को कुंद कर रहा है ,यह हमारी रचनात्मकता को बुरी तरह बर्बाद कर रहा हैं। पेरेन्टस असहाय होकर देख रहे है । माॅं बाप को असहाय महसूस कराने में आपकी कोई बहादुरी नहीं है।बल्कि उनकी खुशी का कारण बनिये आपने पैदा होकर उन पर कोई अहसान नहीं किया बल्कि आप सुबह उठकर उन पर अहसान जरूर करेगें ।
तो अच्छे बच्चे सुबह जल्दी उठते है।
उठिये बढिये और सफलता प्राप्त करिये
ताकि यह कहना न पडे उठ जा शाम होने आईं

09/05/2020

#महाभारत_चक्रव्यूह_संरचना

विश्व का सबसे बड़ा युद्ध था महाभारत का कुरुक्षेत्र युद्ध। इतिहास में इतना भयंकर युद्ध केवल एक बार ही घटित हुआ था। अनुमान है कि महाभारत के कुरुक्षेत्र युद्ध में परमाणू हथियारों का उपयॊग भी किया गया था। ‘चक्र’ यानी ‘पहिया’ और ‘व्यूह’ यानी ‘गठन’। पहिए के जैसे घूमता हुआ व्यूह है चक्रव्यूह। कुरुक्षेत्र युद्ध का सबसे खतरनाक रण तंत्र था चक्रव्यूह। यधपि आज का आधुनिक जगत भी चक्रव्यूह जैसे रण तंत्र से अनभिज्ञ हैं। चक्रव्यू या पद्मव्यूह को बेधना असंभव था। द्वापरयुग में केवल सात लोग ही इसे बेधना जानते थे। भगवान कृष्ण के अलावा अर्जुन, भीष्म, द्रॊणाचार्य, कर्ण, अश्वत्थाम और प्रद्युम्न ही व्यूह को बेध सकते थे जानते हैं। अभिमन्यु केवल चक्रव्यूह के अंदर प्रवेश करना जानता था।

चक्रव्यूह में कुल सात परत होती थी। सबसे अंदरूनी परत में सबसे शौर्यवान सैनिक तैनात होते थे। यह परत इस प्रकार बनाये जाते थे कि बाहरी परत के सैनिकों से अंदर की परत के सैनिक शारीरिक और मानसिक रूप से ज्यादा बलशाली होते थे। सबसे बाहरी परत में पैदल सैन्य के सैनिक तैनात हुआ करते थे। अंदरूनी परत में अस्र शत्र से सुसज्जित हाथियों की सेना हुआ करती थी। चक्रव्यूह की रचना एक भूल भुलैया के जैसे हॊती थी जिसमें एक बार शत्रू फंस गया तो घन चक्कर बनकर रह जाता था।
चक्रव्यूह में हर परत की सेना घड़ी के कांटे के जैसे ही हर पल घूमता रहता था। इससे व्यूह के अंदर प्रवेश करने वाला व्यक्ति अंदर ही खॊ जाता और बाहर जाने का रास्ता भूल जाता था। माहाभारत में व्यूह की रचना गुरु द्रॊणाचार्य ही करते थे। चक्रव्यूह को युग का सबसे सर्वेष्ठ सैन्य दलदल माना जाता था। इस व्यूह का गठन युधिष्टिर को बंधी बनाने के लिए ही किया गया था। माना जाता है कि 48*128 किलॊमीटर के क्षेत्र फल में कुरुक्षेत्र नामक जगह पर युद्ध हुआ था जिसमें भाग लेने वाले सैनिकों की संख्या लाखों में थी!

चक्रव्यूह को घूमता हुआ मौत का पहिया भी कहा जाता था। क्यों कि एक बार जो इस व्यूह के अंदर गया वह कभी बाहर नहीं आ सकता था। यह पृथ्वी की ही तरह अपनी ही धुरी में घूमता था साथ ही साथ हर परत भी परिक्रमा करती हुई घूमती थी। इसी कारण से बाहर जाने का द्वार हर वक्त अलग दिशा में बदल जाता था जो शत्रु को भ्रमित करता था। अद्भुत और अकल्पनीय युद्ध तंत्र था चक्रव्यूह। आज का आधुनिक जगत भी इतने उलझे हुए और असामान्य रण तंत्र को युद्ध में नहीं अपना सकता है। ज़रा सॊचिये कि सहस्र सहस्र वर्ष पूर्व चक्रव्यूह जैसे घातक युद्ध तकनीक को अपनाने वाले कितने बुद्धिवान रहें होंगे।

चक्रव्यूह ठीक उस आंधी की तरह था जो अपने मार्ग में आनेवाले हरस चीच को तिनके की तरह उड़ाकर नष्ट कर देता था। इस व्यूह को बेधने की जानकारी केवल सात लोगों के ही पास थी। अभिमन्यू व्यूह के भीतर प्रवेश करना जानता था लेकिन बाहर निकलना नहीं जानता था। इसी कारण वश कौरवों ने छल से अभिमन्यु की हत्या कर दी थी। माना जाता है कि चक्रव्यूह का गठन शत्रु सैन्य को मनोवैज्ञानिक और मानसिक रूप से इतना जर्जर बनाता था कि एक ही पल में हज़ारों शत्रु सैनिक प्राण त्याग देते थे। कृष्ण, अर्जुन, भीष्म, द्रॊणाचार्य, कर्ण, अश्वत्थामा और प्रद्युम्न के अलावा चक्रव्यूह से बाहर निकलने की रणनीति किसी के भी पास नहीं थी।

अपको जानकर आश्चर्य होगा कि संगीत या शंख के नाद के अनुसार ही चक्रव्यूह के सैनिक अपने स्थिति को बदल सकते थे। कॊई भी सेनापति या सैनिक अपनी मन मर्ज़ी से अपनी स्थिती को बदल नहीं सकता था। अद्भूत अकल्पनीय। सदियों पूर्व ही इतने वैज्ञानिक रीति से अनुशासित रणनीति का गठन करना सामान्य विषय नहीं है। महाभारत के युद्ध में कुल तीन बार चक्रव्यूह का गठन किया था, जिनमें से एक में अभिमन्यु की म्रुत्यू हुई थी। केवल अर्जुन ने कृष्ण की कृपा से चक्रव्यूह को बेध कर जयद्रत का वध किया था। हमें गर्व होना चाहिए कि हम उस देश के वासी है जिस देश में सदियों पूर्व के विज्ञान और तकनीक का अद्भुत निदर्शन देखने को मिलता है। निस्संदेह चक्रव्यूह न भूतो न भविष्यती युद्ध तकनीक था। न भूत काल में किसी ने देखा और ना भविष्य में कॊई इसे देख पायेगा।
मध्य प्रदेश के 1 स्थान और कर्नाटक के शिवमंदिर में आज भी चक्रव्यूह बना हुआ है

07/05/2020

भगवान के धर में अंधंेर नहीे है
👩👩👩👩👩👩👩👩👩👩👩👩👩👩👩
जब हमें बहुत प्रयत्नों के बाद भी कोई आर्थिक उपार्जन के लिये स्ािायित्व नही मिलता है या बहुत कार्य करने के बाद भी कार्य निश्फल हो जाता है तो हमे बहुत निराशा होती है हमारे विचार गुडगडमुडाने ेलगते है कि भगवान है भी या नहीं । वह हमें ही इतना कश्ट क्यो देता है । और अगर कश्ट देता भी है उसका निराकरण क्यो नही करता है । हर वक्त हमें उन्हे बस कोसने का मन करता है । पर ऐसा नही है भगवान हमारी परीक्षा लेता है वह यह देखता है कि आप मेहनत पूरी कर रहे है या नहीं मेहनत मे कितनी ईमानदारी है पूरी ईमानदारी से किया गया कार्य कभी निश्फल नही होता है हाॅ उसमे समय जरूर लगता है ऐेक बात और है जिस कार्य का आरंभ पूर्ण विश्वास और लगन से किया गया है यह जानते हुये कि इसका परिणाम कुछ सालांे के बाद ही आयेगा चाहे कितना ही समय लगे उस कार्य को बीच मे नही छोडना जाये तो हमे लक्ष्य की प्राप्ति जरूर होती है । यदि उसी काम को बिना विचारे थोडा सा कश्ट हुआ और छोड दिया जाये तो वह कैसे पूरा होगा। स्वयं विचार किजिये । हम एक किनारे से दूसरे किनारे पर एक नाव मे बैठ कर जा रहे है और बीच मे ख्याल आया कि नही वापस जाना है तो हमे एक पूरी योजना के साथ वापस आना होगा पर हम दूसरे किनारे पर तब ही पहुॅच पायेगें जब हम एक दिशा मे शांति से चल रहे होगें । इसलिये प्रयत्न पूरा करिये ,मेहनत ईमानदारी से करिये और फल की चिंता मत करिये यह श्रीगीता जी मे भी लिखा है। अपना काम करते रहिये अगर आप किसी कार्यालय मे कार्यरत है तो आप वहाॅ की राजनीती से दूर रहिये बहुत ही सरल कार्य है यह बस हमे अपने काम पर पूरा ध्यान देना होगा । आप अपने लोकप्रिय होते जायेगें हाॅ आरंभ में आपको ज्यादा तवज्जो नही मिलेगी पर धीरेधीरे आपको चाहने वालो की संख्या मे ईजाफा होता जायेगा क्योंकि भगवान के घर अंधेर नहीे वह सब देख रहा है और समझ रहा हे इसलिये चरैवेती चरेवैती।

07/05/2020

भगवान के धर में अंधंेर नहीे है
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जब हमें बहुत प्रयत्नों के बाद भी कोई आर्थिक उपार्जन के लिये स्ािायित्व नही मिलता है या बहुत कार्य करने के बाद भी कार्य निश्फल हो जाता है तो हमे बहुत निराशा होती है हमारे विचार गुडगडमुडाने ेलगते है कि भगवान है भी या नहीं । वह हमें ही इतना कश्ट क्यो देता है । और अगर कश्ट देता भी है उसका निराकरण क्यो नही करता है । हर वक्त हमें उन्हे बस कोसने का मन करता है । पर ऐसा नही है भगवान हमारी परीक्षा लेता है वह यह देखता है कि आप मेहनत पूरी कर रहे है या नहीं मेहनत मे कितनी ईमानदारी है पूरी ईमानदारी से किया गया कार्य कभी निश्फल नही होता है हाॅ उसमे समय जरूर लगता है ऐेक बात और है जिस कार्य का आरंभ पूर्ण विश्वास और लगन से किया गया है यह जानते हुये कि इसका परिणाम कुछ सालांे के बाद ही आयेगा चाहे कितना ही समय लगे उस कार्य को बीच मे नही छोडना जाये तो हमे लक्ष्य की प्राप्ति जरूर होती है । यदि उसी काम को बिना विचारे थोडा सा कश्ट हुआ और छोड दिया जाये तो वह कैसे पूरा होगा। स्वयं विचार किजिये । हम एक किनारे से दूसरे किनारे पर एक नाव मे बैठ कर जा रहे है और बीच मे ख्याल आया कि नही वापस जाना है तो हमे एक पूरी योजना के साथ वापस आना होगा पर हम दूसरे किनारे पर तब ही पहुॅच पायेगें जब हम एक दिशा मे शांति से चल रहे होगें । इसलिये प्रयत्न पूरा करिये ,मेहनत ईमानदारी से करिये और फल की चिंता मत करिये यह श्रीगीता जी मे भी लिखा है। अपना काम करते रहिये अगर आप किसी कार्यालय मे कार्यरत है तो आप वहाॅ की राजनीती से दूर रहिये बहुत ही सरल कार्य है यह बस हमे अपने काम पर पूरा ध्यान देना होगा । आप अपने लोकप्रिय होते जायेगें हाॅ आरंभ में आपको ज्यादा तवज्जो नही मिलेगी पर धीरेधीरे आपको चाहने वालो की संख्या मे ईजाफा होता जायेगा क्योंकि भगवान के घर अंधेर नहीे वह सब देख रहा है और समझ रहा हे इसलिये चरैवेती चरेवैती।

01/05/2020

ONLINE CLASSES AVAILABLE ALSO

30/04/2020

श्याम ‘‘‘ कहते है भैंस के आगे बीन नहीं बजाना चाहिये‘‘‘‘‘😄😄😄😄😄😄😄
राम‘‘‘‘ इसलिये मै तुम्हारे सामने नहीं बजाता‘‘😄😄😄😄😄😄😄

27/04/2020

उर्जा का सार्वभौमिक सिंद्वात 🤴🤴🤴🤴 🤴🤴🤴🤴

उर्जा का सार्वभौमिक सिंद्वात है कि भावनाऐं शरीर की मालिक है बुद्वि मन की मालिक है, बुद्विमत्ता बुद्वि की मालिक है और उर्जा इन सबकी मालिक है। अगर मै कहूॅ यह सिद्वांत किसी वैज्ञानिक ने दिया है तांे आप तुरंत विश्वास करेगें औीर दिये गये नियमों का पालन भी करने लगेगे पंरतु अगर मै कहूॅ इसे किसी गुरू ने कहा है तो आप इसे गंभीरता से नही लेर्गें और उपेक्षा करेगें। मानो गुरू की महत्ता वैज्ञानिक से कम हो यह आपकी गलती नहीं है । यह हमारी शिक्षा व्यवस्था का दोष है। जिसने हमारे मन को एक खास स्थििति मे बांध रखा है कि पूर्वी शिक्षा से पश्चिमी शिक्षा बेहतर है। हमने भी बिना किसी तर्क के इसे मान लिया है पचा भी लिया है पर उससे हमारा
पोेषण नहीे हुआ है यानि हम किसी बात पर अपना दृष्टिकोण नहीं रख सकते है । पश्चिमी शिक्षा हमे उनकी बातो पर उनकी नियमावली पर विश्वास करना सीखाता है यह व्यवस्था वही हमें सीखाता है जो उन्हे सरल लगता है।अपना दृष्टिकोण रखना अपने विचार रखना इसकी कोेई जगह नही है। अगर कोई इसकी जगह बना लेता हे तो विद्रोह होता है।
वैज्ञानिक बहुत से आविश्कार तो देते हे पर जीवन को तो सरल बनाने के लिए तो केवल खुशी और आनंद की ही आवश्यकता हेे । जो यह आविश्कार कभी नहीं दंे पायेगेंै। खुशी और आनंद ही जीवन का आधार हेै। मनुश्य स्वभावतः ही स्वतंत्रता चाहता है । यह एक संतुलन है और मनुश्य की आत्मा यानि स्वतंत्र उर्जा या होश के बिना मनुश्य मृत ही है। आत्मा के असतित्व को जानना ही आधयात्म है ं।यही शांति है आधुनिक शिक्षा व्यवस्था भौतिकता पर जोर देती है। शिक्षा भी दंेती है पर बिना बुद्वि के उपयोग के ं एक बार हम उर्जा के नियम को जान लेगें तो दैनिक जीवन के तनाव और समस्याओं को बहुत सरलता से दूर कर पायेगें ।?
सुख और दुख ,खुशी और गम तनाव और आराम ,सकारात्मक और नाकारात्मक व्यक्तित्व एक ही उर्जा के दो पहलू यहाॅ यह जानना आवश्यक है कि प्रत्येक व्यक्ति की केवल तीन ही इच्छाये होती है जीवन मे
खुशी
अमरता
ज्ञान
सभी को खुशी चाहिये और खुशी जुडी होती है संपति,स्वास्थय, मित्र ,परिवार घर और नौकरी से ।
मरना कोई नही चाहता चाहे कितनी भी परेशानी हो
कोई भी मूर्ख नही कहलाना चाहता हैं।
अगर इन तीनो मे से सबसे बडी इच्छा पूछी जाये तो सभी को पहले खुशी चाहिये पर मन मे खुशी होगी तो गम भी होगा। इसलिये उर्जा के नियमो को अपनाईये गम से दूर रहिये।
दुख और सुख , खुशी और गम , तनाव और आराम और सकारात्मक व नाकारात्मक व्यक्तित्व एक ही उर्जा के दो पहलू है यहाॅ यह जानना आवश्यक है कि प्रत्येक व्यकति दूसरे को खूशी देना चाहता है पर देता है दु,ख क्योंकि कोई भी वही देगा जो उसके पास होगा।

22/04/2020

आधुनिक शिक्षा व्यवस्था हमें स्पश्ट तौर पर केवल भौतिक ज्ञान देती है।यानि जो दिखाई दे रहा है केवल वही जीवन है पर क्या जो नहीे दिखाई देता है उसका कोई मूल्य है या नहीें।विज्ञान के अनुसार जो दिखाई देता है वह पदार्थ है और जो न दिखाई देता है वह अपदार्थ है। इसी तरह शब्द विज्ञान अपदार्थ की श्रेणी में आता है। हम शब्दो को देख नही पाते है पर उसकी शक्ति को नकार भी नही सकते है।जी हाॅ शब्द विज्ञान ध्वनि विज्ञान की एक शाखा है जिसमें हम शब्दो की शक्ति प्रभाव व मंत्रो को पढने की तकनीक सीखते हैं।मंत्रांे का आविश्कार प्राचीन काल मे रिशी मुनियों द्वारा संपूर्ण विश्व मे वार्तालाप करने के लिए की गई थी। ृमंत्रो मे इतनी शक्ति होती है कि लगातार जाप करने से हमारे तंत्रिका तंत्र पर एक लयबद्व दाब पडता है जो हमारे शरीर मे स्थित चक्र,संवेदना एवं मन को खोलता है। ओम की ध्वनि सर्वत्र व्याप्त है सर्वाधिक पवित्र है। आयुर्वेद ने भी अपनी चिकित्सा पद्वति में भी मंत्र चिकित्सा को शामिेल किया है।आयुर्वेद चिकित्सा ने कुछ रोगो मे मंत्रो का प्रयोग बताया है
1ण् सूजन टयूमर और घाव में। ,
2ण् विश में
3ण् मानसिक बिमारी में
4ण् ज्वर में
मंत्रो को जपने की विधी होती है, तभी ये कारगर हेाते है।
1ण् पूर्ण श्रद्वा
2ण् सांसो पर ध्यान
3ण् बेहतर मानसिक शांति
के साथ ही उपचार संभव हो पाता है।

ध्वनि की शक्ति अपार हैं।इतनी कि यह पुल इमारते तक तोड सकते है इसका गलत उपयोग बर्बादी के लिऐ ही किया जाता है। मानव शरीर और दिमाग एक प्रयोगशाला है और शरीर शब्द ब्रहम की अभिव्यक्ति है। मंत्र बुरे समय के प्रभाव को कम कर सकते है।किसी मनुश्य की प्रतिरोधक क्षमता को बढा सकते है। मंत्र साहस और शक्ति के साथ चुनौतीयो का सामना करने का साहस देते है। यहाॅ आवश्यकता होती है लगन समर्पण और विश्वास की । कमजोर मन बहुत चंचल ,अस्थिर डरपोक और भ्रमित होता है।एक खास और चयनित मत्र के जाप से कमजोर मन मे स्थिरता और शक्ति आ जाती है।
आंेम नमः शिवाय
कल्पना मिश्रा

20/04/2020

😜😜
पर्दे की बूबू

बू शब्द का प्रयोग बुरी गंध के लिऐ किया जाता है। पर सामान्यतः की भाशा में बूबू का प्रयोग उस नाजुक इंसान के लिये कियाजाता है जो नाजुक न होते हुऐ नाजुक होने का अभिनय करता है। और इस नाजुक होने के अभिनय के पीछे वह कामचोरी करता हैं। उसे लगता है कि वह अपने अभिनय में हो रहा है। पर जब वह अन्य व्यक्ति उसके इस अभिनय के पीछे की असलियत को समझ जाते है तो उसे संज्ञा दे दी जाती हे पर्दे की बूबू । फिर वह चाहे नर हो या नारी । श्रीमती मिनाक्षी देवी वाजपेयी शहर के व्यस्तम इलाके में रहती है। बीच बाजार मे रहने वाले क्या पर्दे में रह सकते है, कहने का अर्थ है यह है कि बाजार की व्यस्तता चहल पहल शोर शराबा और आवागमन हर समय इतना ज्यादा होता है कि हर रहवासी बाहर निकले बिना रह ही नही सकता वह आदतन ही बाहर का एक चक्कर अवश्य काट ही लेता है। श्रीमती मिनाक्षी देवी करीब पंद्रह सालो से छोटी बाजार मे रह रही है वे इतनी पर्दानशीन औरत है कि अगर उनके घर पर किसी भी वक्त पहुॅचा जाए तो बाहर का कमरा जो बैठक के लिऐ इस्तेमाल होता है उससे लगा दूसरा कमरा दोनो के बीच बडा सा पर्दा लगा है जो दानो कमरो को दो अलग भाग मे बांटता है । पानी या आवभगत के लिऐ परोसी जाने वाली वस्तुऐं केवल उस पर्दे से एक हाथ निकलकर बाहर आता है जिसने एक टरे पकडी होती है उस टरे को मेहमान स्वयं हाथ में लेकर अपनी इच्छानुसार स्वयं ही अपनी आवश्यकता नुसार अपनी आवभगत कर लेता है। छोटे शहरो मे सुबह का एक बहुत ही सामान्य व्यवहार होता है या नजारा होता हे कि
घर की औरते या आदमी एक छोटी सी बुहारी लेकर घर के बाहर सडक तक बुहारी कर देती है। कमान की तरह झुकी हुई बुहारते बुहारते सडक के उस ओर तक भी बुहार लगाती हुई गजगामिनी और विजेता की तरह लौट आती हैं। श्रीमती मीनाक्षी देवी भी इसी तरह झाडू बुहारी के लिये निकलती है पर सिर पर एक हाथ लंबे घूंघट में छुपा होता है। भले ही कमर का हिस्सा खुला रहे पर सिर पर लंबा घूंघट अवश्य रहता है। अक्सर उनके गिर जाने का भय बना ही रहता है कमान की तरह झुका शरीर और लंबा घूंघट कहीं पैर न फिसल जाये यह ख्याल जो भी देखता उसके मन में बना ही रहता। वे बुहारते बुहारते सडक के उस पार पहॅंुच जाती है फिर सीधे खडी होती लज्जा और शरम से सराबोर झाडू को अपने पल्लू में छुपाती है और घूंघट को और लंबा कर वापस घर की ओर उन्मुख होती है दिन के 24 घंटो में केवल इन पंद्रह मिनट में उन्हें देखा जा सकता है। बाकि वक्त में यदि उनके घर पर जाये तो वो केवल उनके पर्देे में से निकलते हाथ को देख सकता है। यहाॅ प्रश्न यह है कि वो इन मिनटो में भी बाहर क्यों निकले यह काम तो नौकरो से भी कराया जा सकता है । उनके पति का घर से घर भोजन देने और घर पर खाने खिलाने का व्यवसाय है। जिसमे श्रीमती मीनाक्षी देवी की हिस्सेदारी बराबरी की है। यानि खाना वे ही बनाती है। लगातार आने वाले और खाने वाले ग्राहकों ने भी उन्हे नहीं दंेखा है। बस खाने के स्वाद से बता सकते है कि वे अति सामान्य महिला है।कभी ऐसे वक्त मे जब श्रीमान वाजपेयी नही होते है तो खाने के बाद जो पैसा चुकाया जाता है उसमें केवल श्रीमती मीनाक्षी की आवाज सुनाई देती है जी 120 रू वहीे पर रख दे। ग्राहक पैसा रखकर चला जाता हैं। जब कभी कोई ग्राहक बिना मूल्य चुकाये जाने का प्रयास करता तो उनके दोनो हाथ तलवार की भांति लहराते हुएं आते और कालर पकड कर जेब से पैसा निकाल कर वापस चले जाते तब भी वे बाहर नहीे आती वे ऐसे ही पर्देकी बूबुू नहीं कहलाती है।आम धारणा थी कि वे बहुत उचें खानदान से थी इसलिये शरमो हया का पर्दा ओढे रखती थी पर सच तो यह था कि वे अपने से उचे खानदान मे आ गई थी बिना शादी के रह रही थी इसलिये पर्दा करती थी।

पर्दे की बूबू

बू शब्द का प्रयोग बुरी गंध के लिऐ किया जाता है। पर सामान्यतः बोलचाल की भाशा में बूबू का प्रयोग उस नाजुक इंसान के लिये कियाजाता है जो नाजुक न होते हुऐ नाजुक होने का अभिनय करता है। और इस नाजुक होने के अभिनय के पीछे वह कामचोरी करता हैं। उसे लगता है कि वह अपने अभिनय में हो रहा है। पर जब वह अन्य व्यक्ति उसके इस अभिनय के पीछे की असलियत को समझ जाते है तो उसे संज्ञा दे दी जाती हे पर्दे की बूबू । फिर वह चाहे नर हो या नारी । श्रीमती मिनाक्षी देवी वाजपेयी शहर के व्यस्तम इलाके में रहती है। बीच बाजार मे रहने वाले क्या पर्दे में रह सकते है, कहने का अर्थ है यह है कि बाजार की व्यस्तता चहल पहल शोर शराबा और आवागमन हर समय इतना ज्यादा होता है कि हर रहवासी बाहर निकले बिना रह ही नही सकता वह आदतन ही बाहर का एक चक्कर अवश्य काट ही लेता है। श्रीमती मिनाक्षी देवी करीब पंद्रह सालो से छोटी बाजार मे रह रही है वे इतनी पर्दानशीन औरत है कि अगर उनके घर पर किसी भी वक्त पहुॅचा जाए तो बाहर का कमरा जो बैठक के लिऐ इस्तेमाल होता है उससे लगा दूसरा कमरा दोनो के बीच बडा सा पर्दा लगा है जो दानो कमरो को दो अलग भाग मे बांटता है । पानी या आवभगत के लिऐ परोसी जाने वाली वस्तुऐं केवल उस पर्दे से एक हाथ निकलकर बाहर आता है जिसने एक टरे पकडी होती है उस टरे को मेहमान स्वयं हाथ में लेकर अपनी इच्छानुसार स्वयं ही अपनी आवश्यकता नुसार अपनी आवभगत कर लेता है। छोटे शहरो मे सुबह का एक बहुत ही सामान्य व्यवहार होता है या नजारा होता हे कि
घर की औरते या आदमी एक छोटी सी बुहारी लेकर घर के बाहर सडक तक बुहारी कर देती है। कमान की तरह झुकी हुई बुहारते बुहारते सडक के उस ओर तक भी बुहार लगाती हुई गजगामिनी और विजेता की तरह लौट आती हैं। श्रीमती मीनाक्षी देवी भी इसी तरह झाडू बुहारी के लिये निकलती है पर सिर पर एक हाथ लंबे घूंघट में छुपा होता है। भले ही कमर का हिस्सा खुला रहे पर सिर पर लंबा घूंघट अवश्य रहता है। अक्सर उनके गिर जाने का भय बना ही रहता है कमान की तरह झुका शरीर और लंबा घूंघट कहीं पैर न फिसल जाये यह ख्याल जो भी देखता उसके मन में बना ही रहता। वे बुहारते बुहारते सडक के उस पार पहॅंुच जाती है फिर सीधे खडी होती लज्जा और शरम से सराबोर झाडू को अपने पल्लू में छुपाती है और घूंघट को और लंबा कर वापस घर की ओर उन्मुख होती है दिन के 24 घंटो में केवल इन पंद्रह मिनट में उन्हें देखा जा सकता है। बाकि वक्त में यदि उनके घर पर जाये तो वो केवल उनके पर्देे में से निकलते हाथ को देख सकता है। यहाॅ प्रश्न यह है कि वो इन मिनटो में भी बाहर क्यों निकले यह काम तो नौकरो से भी कराया जा सकता है । उनके पति का घर से घर भोजन देने और घर पर खाने खिलाने का व्यवसाय है। जिसमे श्रीमती मीनाक्षी देवी की हिस्सेदारी बराबरी की है। यानि खाना वे ही बनाती है। लगातार आने वाले और खाने वाले ग्राहकों ने भी उन्हे नहीं दंेखा है। बस खाने के स्वाद से बता सकते है कि वे अति सामान्य महिला है।कभी ऐसे वक्त मे जब श्रीमान वाजपेयी नही होते है तो खाने के बाद जो पैसा चुकाया जाता है उसमें केवल श्रीमती मीनाक्षी की आवाज सुनाई देती है जी 120 रू वहीे पर रख दे। ग्राहक पैसा रखकर चला जाता हैं। जब कभी कोई ग्राहक बिना मूल्य चुकाये जाने का प्रयास करता तो उनके दोनो हाथ तलवार की भांति लहराते हुएं आते और कालर पकड कर जेब से पैसा निकाल कर वापस चले जाते तब भी वे बाहर नहीे आती वे ऐसे ही पर्देकी बूबुू नहीं कहलाती है।आम धारणा थी कि वे बहुत उचें खानदान से थी इसलिये शरमो हया का पर्दा ओढे रखती थी पर सच तो यह था कि वे अपने से उचे खानदान मे आ गई थी बिना शादी के रह रही थी इसलिये पर्दा करती थी।
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16/04/2020

पार्कों का सौंदर्य मन लुभावने बाग बगीचे
दैनिक जीवन की भाग दौड़ आपाधापी एवं तनाव से मुक्ति एवं राहत का सबसे साधन है

ये बगीचे खूबसूरत बणी-ठणी कला कृतियां एवं विभिन्न प्रकार के पुष्पो एवं फलों से लदे हुए वृक्ष हमें प्रकृति की ओर ले जाते हैं ।सप्ताह में एक बार जरूर यहां जाना चाहिए

यह एक ऐसी जगह है जहां पर असीमित शांति है सूकून है शुद्ध वायु है। रंग बिरंगी तितलियां मन को मोह लेती है और विभिन्न प्रकार के पक्षियों की चहचहाहट एक असीम संगीत पैदा करती है।

यहां बैठ कर मन को नियंत्रित करने वाली क्रियाए की जा सकती है ,मेल मिलाप किया जा सकता है और गोष्ठी की जा सकती है।

इसे स्वच्छ रखने की कोशिश करते रहना चाहिए क्योंकि यह हमारी जिम्मेदारी है। प्रकृति हमारी-आपकी जीवन धारा है । इसे बचाये रखना हमारा कर्तव्य है। यहां खेलते हुए बच्चे हमारे और आपके ही है। यहां घूमते परिवार हममें से ही हैं।

ये मन मोहक बाग बगीचे हमारे मन में छुपी हुई सौंदर्य के वास्तविक स्वरूप है।

04/04/2020

राम शलाका
आज हर व्यक्ति हैरान परेशान है अकेला है सभी को बहुत परेशानी
हैं सभी को समाधान चाहिऐ। पर किसीको बता नहीं सकते है । उसकी आवश्यकता भी नहीे है। हर एक हिंदू परिवार में श्रीरामचरितमानस तो रहती ही है बस पूरी श्रद्वा के साथ राम का नाम लेते हुऐ पूजनीय ग्रंथ के सबसे आखिरी वाले पन्नों पर जाईये ंवहाॅ राम शलाका लिखी गई है।
आज श्री राम शलाका प्रश्नावली का परिचय देेने की आवश्यकता नही है। उसके महत्व से सभी परिचित होगें ही, इसमे प्रश्नोत्तर निकालने की विधी तथा उसके उत्तर फलो ं का उल्लेख कर दिया जाता है ,जिस किसीको जब कभी अपने अभीष्ट प्रश्न का उत्तर प्राप्त करने की इच्छा हो तो सर्वप्रथम उस व्यक्ति को भगवान श्रीरामचंद्र जी का ध्यान करना चाहिये। तदन्तर श्रद्वा विश्वास पूर्वक मन से अभिष्ट प्रश्न का चिन्तन करते हूऐ प्रश्नावली के मनचाहे कोष्ठ मे अगुॅंली या कोई शलाका रख देना चाहिए और उस काष्ेठ में जो अक्षर हो उसे अलग किसी कोरे कागज या स्लेट पर लिख लेना चाहिए प्रश्नावली के कोष्ठ पर भी ऐसा कोई निशान लगा देना चाहिए जिससे न तो प्रश्नावली गंदी हो और न प्रश्नोत्तर प्राप्त होने तक वह कोष्ठक भूल जाऐ अब जिस कोष्ठक का अक्षर लिख लिया गया है उससे आगंे बढना चाहिऐ तथा उसके नवे कोष्ठक में जो अक्षर लिख लेना चाहिऐ इस प्रकार प्रति नवें अ्रक्षर को क्रम से लिखते जाना चाहिऐ और तबतक लिखते जाना चाहिऐ जबतक उसी पहले कोष्ठक के अक्षर तक अगुली या शलाका न पहुॅच जाऐ पहले कोश्ठक का अक्षर जिस
कोष्ठक के अक्षर से नवा पडेगा वहॅंा तक पहुचते पहुचते एक चैपाई पूूरी हो जाऐगी जो प्रश्न कर्ता के अभीष्ट प्रश्न का उत्तर होगी यहॅंा इस बात का ध्यान रखना चाहिऐ कि किसी किसी कोष्ठक मे केवल आ की मात्रा और किसी मे दो दो अ्रक्षर है । अतः गिनते समय न तो मात्रावाले काष्ेठक को छोड देना चाहिऐ और न तो दो अक्षरो वाले कोष्ठक को दो बार गिनना चाहिऐ और जहॅंा दो अक्षरो वाला कोष्ठक आवे वहॅंा दोनो अक्षर एक साथ लिख लेना चाहिऐ ।श्रीराम के आर्शीवाद से हमारी हर समस्या का सामाधान मिलेगा ।
जय श्रीराम

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