रजनी की दुनिया
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दस-बीस सेकंड हमारे दिमाग़ पर कितना असर कर सकते हैं?
इतना ज़्यादा की वो हमारी जीवनशैली बदल कर रख देते हैं।
विज्ञापनों की माने तो बिना महँगे इंटीरियर के घर रहने लायक़ ही नहीं होता। माखन की तरह लगने वाले दीवारों पर महँगे पेंट्स, क़ीमती झूमर और वॉलपेपर, मोडुलर किचन, विदेशी मार्बल, और ना जाने कितने हज़ार तरीक़े हैं घर को घर जैसा बनाने के। सब कुछ एकदम चमचमाता हुआ, सपनों सा सुंदर घर, की एक तिनका भी गलती से कहीं छिटक जाये तो आँखों को दिख जाए।
इंटीरियर डिज़ाइन के तेजी से बढ़ते मार्केट ने पुरानी भारतीय शैली से सजे घरों को पिछड़ा होना, below standard करार दिया है। मधुबनी, वरली, लीपन इस तरह के कई folk art forms की जगह दुर्लभ महँगी पेंटिंग्स ने ले ली है।
ना दीवारों पर हल्दी भरे हाथों का छापा पड़ा,
ना दरवाज़ों पर स्वस्तिक बनाने की जगह दी गई,
ना बच्चों को दीवारों पर कलाकारी करने की आज़ादी मिली,
ना चौके में माँ का छिटका हल्दी-कुमकुम,
ना पूजा घर में लीपे गये खोबर, अल्पना,
इन सबके बिना ना जाने घर कैसे सुंदर बन गया।
यही तो वो रीति-रस्में है जो घरों को बाँधती हैं अपने प्रेम से,
यही तो वो परम्पराएँ हैं जो साल दर साल, पीढ़ी दर पीढ़ी जोड़े रखती हैं।
‘दीवारें बोल उठेंगी’ इस विज्ञापन ने ना जाने कितने मन मोहे, मुझे तो वो दीवारें भावशून्य लगती हैं, निर्जीव लगती हैं, भला कैसे बोल उठेंगी दीवारें जब किसी ने उन पर कंधे टीका कर चाय की चुस्कियाँ नहीं ली, मन के दो बोल नहीं बतियाये।
ये तो वही बात हुई कि, देह सुंदर मिल गई और जान ना रही।
उन दीवारों के पास जाना कभी, जहाँ टँगा होगा बित्ते भर का धुँधला आयना, उतरना कभी उसमें, देखना कभी बग़ल की दीवार पर चिपकी बिंदियों को,
वहीं पास में बच्चों का मोम रंगों से बनाया आधा उधड़ा चित्र, चाकलेट खा कर दीवार पर पोछी नन्ही हथेलियों के धब्बे, देखना कभी, कितना कुछ कह जाएगा।
एक दिन जब उम्र बहुत आगे ले जाएगी इस शरीर को,
एक दिन जब बातें करने वाला कोई ना रह जाएगा,
तब यही खिड़की और दीवारें बतियायेंगी,
बतलायेंगी सब जो ये सुनती आयी हैं बरसों से, शादी के गाने, दोस्तों की हंसी ठिठोली, बच्चों की किलकारी, याद में गिरे आँसूँ, दीवाली में जले दिये, घर में हुए भजन, सब कुछ आँखों के सामने का कर रख देंगी।
जापान के टोक्यो शहर में एक आदमी टैक्सी में सवार हुआ और उसके ड्राइवर से कहा के यहाँ का जो एक हॉस्पिटल है उसके नज़दीक जो इंस्टिट्यूट है मुझे वहां जाना है। वहां का एक कल्चर है, टैक्सी में सवार होने से पहले वहां के ड्राइवर आपको रेस्पेक्ट देने के लिए अपना सर झुकाते हैं तब टैक्सी में बिठाते है, सर झुकाना वहां के कल्चर में शामिल है, वो आदमी टैक्सी में बैठ गया, थोड़ी देर के बाद उसने देखा के ड्राइवर ने टैक्सी का मीटर बंद कर दिया। उसे बड़ी हैरत हुई लेकिन चूँकि वहां की ज़बान नहीं जानता था इसलिए कुछ कह नहीं सका, तक़रीबन 2-3 किलो मीटर चलने के बाद टैक्सी ड्राइवर ने मीटर फिर चालू किया।
जब वो आदमी अपनी मंज़िल पर पहुंचा तो वहां के स्थानिक लोगों ने उसका बड़ी उम्दा तरीक़े से स्वागत किया, तब उस आदमी ने उन लोगों से कहा के आप ज़रा इस ड्राइवर से पूछिए के रस्ते में इसने 2-3 किलो मीटर तक मीटर बंद क्यों रखा? मैं तो पूरा किराया देना चाहता हूँ लेकिन ये समझ नहीं आ रहा के इसने ऐसा क्यों किया? तो उस ड्राइवर का जवाब था असल में मुझे जहाँ से मुड़ना था मैं वहां चूक गया और आगे बढ़ गया, वहां से कोई टर्न नहीं था, तो जो दुरी मैंने अपनी गलती से बढाई उसके पैसे मैं मुसाफिर से नहीं ले सकता।
सच्चाई और ईमानदारी समाज को तरक़्क़ी और इज़्ज़त दिलाने में सबसे बड़े सहायक हुआ करते हैं।
एक बार जरूर पढ़िए, दीपक का हाथ मेरे स्तनों पर था मैं झटके से ऊपर उठ गई
चल ना पूजा रोहन और आदित्य भी आएंगे,
मेरी रूम पार्टनर और कलीग सिम्मी ने मुझे अपने दोस्त के फ्लैट पर इन्वाइट किया फ्लैट पार्टी के लिए
मैने बोला अगर दीपक के घर पार्टी है तो उसे बुलाना चाहिए तेरे बुलाने पर मैं क्यों जाऊं,
सिम्मी ने मुझसे कहा यार पार्टी है क्या फर्क पड़ता है सभी एक दूसरे को जान रहे हैं वो बुलाए या मैं क्या फर्क पड़ता है पार्टी का खर्चा भी contribute होगा
मैं उत्तरप्रदेश के छोटे से शहर से थी, मेरे याह यही रीवाज था, जिसके घर फंक्शन है वो ही आप को बुलाता है,
पर बैंगलोर आने पर पता चला कि ये शायद कोई और जगह है, यहां का कल्चर अलग है
खैर में पार्टी में जाने के लिए झुमका कुर्ती निकलती हूं, तभी सिम्मी आके बोलती है
अरे मैडम किसी के संगीत या मेहंदी फंक्शन में नहीं जाना है
शर्ट्स पहन के चलो कॉन्फर्ट पार्टी है, तो मैने एक टॉप पहन लिया
और चलते बने, वहां जाने पर, सभी लड़के भी आगेये थे, पार्टी में सिर्फ 3 चीज थी दारू बीयर और चिकन
मैं ना nonveg खाती थी, और ना दारू पीटी थी इस लिए मेरे लिए पिज़्ज़ा ऑर्डर किया गया,
मैने कुछ पिज़्ज़ा खाए तभी दीपक जिसके घर पार्टी थी, उसने मुझे ड्रिंक ऑफर की मैने बोला अरे नही मैं नहीं पीती हूं,
तभी मेरी रूम मेट और 2 अन्य लड़किया मेरे ऊपर हंसने लगे मुझे भी शर्मिंदगी महसूस हुई, तो मैने 2 3 घूंट ले लिया
उसके बाद मैने देखा कि दीपक मेरे आगे पीछे ही था, मैने कुछ बोला नहीं
थोड़ी देर बात मैं सोफे पर बैठ जाती हूं लेकिन, दीपक वहां भी आता है और मेरे थाय पर हाथ रखता है
मुझे लगा कि अगर मैने कुछ बोल तो ये लोग फिर से हंसेंगे और मैं मजाक का पात्र बनूंगी l,
इस बार मैने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, दीपक वहां से उठता है,
और जब मेरे पीछे आता है मुझे पता भी नहीं चलता, और में देखती हूं उसका हाथ मेरे टॉप के अंदर रहता है और वो मेरे ब्रेस्ट को पकड़ा चाहता है ,
मुझसे बर्दश नहीं हुआ और मैने उसे एक थप्पड़ मार दिया
और पार्टी से वापस आगयी,
4 5 घंटे बाद सिम्मी आती है और मेरे ऊपर चिल्लाती है उसे थप्पड़ मारने की क्या जरूरत थी, मैने बोला उसने मेरे निजी अंगो को हाथ लगाया है,
सिम्मी ने कहा अगर इतनी ही दिक्कत है तो जब जांघ पर हाथ रखता तो तो क्यों नहीं मना किया
जब तुम्हे house पार्टी का न्युता दिया तो क्यों नहीं मना किया
मैने बोला मुझे क्या पता था कि वो ऐसी हरकत करेगा, सिम्मी ने हस्ते हुए बोला नादान मत बनो
अगले दिन जब हम सब ऑफिस में गए और दीपक हमारे सीनियर थे, उन्होंने मुझे देखा कुछ बोला नहीं
पर खुन्नस उनके मन में भी थी
पर धीरे धीरे हत्फो के अंदर ही इंटरनल पॉलिटिस कर के मुझे मजबूरन काम से निकाल दिया गया,
काफी मशक्कत के बाद मैं एक अलग PG में शिफ्ट हुई , और वहां पर मेरी मुलाकात कनिका से हुई
दोस्ती अच्छी होने पर कनिका को मैने बताया कि इस वजह से मुझसे मेरा काम छीन लिया गया,
कनिका ने मुझे बताया, की HOUSE पार्टी कॉरपोरेट में काम करने वालो की हवस मिटाने का तरीका है
इसका उद्देश्य ही यही है कि साथ में काम करने वाले लोग इक्कठा हो और आपस में सेक्स करें
इसे सुन कर मेरा दिमाग चकारा गया, मैने बोला अगर मैं इस पार्टी को ज्वाइन ना करूं तो
तो जवाब आया फिर तुम्हे लोग अलग थलग कर देंगे
क्यों की यहां पर लड़के हो या लड़किया सभी हाउस पार्टी एंजॉय करते हैं
लड़के तो फिर भी कम है लड़किया ज्यादा हैं क्यों की बैंगलोर जैसे शहर में इन्हीं HOUSE पार्टी में उन्हें ऐसे लड़के मिल जाते हैं तो इमोशनल होके उन्पर पैसे खर्च करते हैं
मेरी नई कंपनी में भी मैने काम पकड़ा वहीं भी HOUSE पार्टी हुई जब मैं नहीं गई तो मेरे साथ उक्त व्यवहार होने लगा
अब मुझे समझ आगया था कि कॉरपोरेट कल्चर में लोगो को इतनी सफलता कैसे मिलती है ?
एक छोटे शहर की।लड़की जो ये सपना देख के बाहर आई थी, बड़ी कॉरपोरेट कंपनी में नौकरी करेगी
ये कल्चर मेरे सिद्धांतों के खिलाफ था
मैने नौकरी छोड़ दी और घर वापस आकर वर्क फ्रॉम होम वाली कंपनी पकड़ ली
ये आज कल की नई जनरेशन है जिन्हें सिर्फ वर्तमान दिखता है, उनके हिसाब से सेक्स उनके शरीर की नीड हैं उन्हें मिलना चाहिए
और इसी के लिए ये पार्टी अरेंज होती है
इस पार्टी में दारू होती है, खाना होता है डांस होता है, और खुल्लम खुला सेक्स होता है, क्योंकि इन्हें एंजॉय करना है
पार्टी घर में या फ्लैट में होती है तो किसी को कोई शक भी नहीं होता
#कहानी #लाइफ #स्टोरी #हिंदी #कहानी #स्टोरी #कहानियों #का #संग्रह #हिंदी
शाम होने को थी। अंधेरा घिर आया था। घर की बहू विद्या फटाफट रसोई में हाथ चला रही थी। आज ननद ननदोई जी आने वाले थे। अब ननद ननदोई जी आ रहे हैं तो मौसी सास मौसा जी भी भला आएंगे ही।
वैसे भी अम्मा जी अपने मायके वालों को हर छोटे से छोटे काम में जरूर बुलाती हैं।
हां, ये अलग बात है कि ससुराल वालों से वो दो गज नहीं, पूरे दो किलोमीटर की दूरी रखना पसंद करती हैं और यही हाल बहू के मायके वालों के साथ था। उन्हें तो बस खुद की बेटी और अपना मायका ही ज्यादा अच्छा लगता था।आज वैसे तो कोई खास त्यौहार नहीं है, ना ही घर में किसी की सालगिरह। पर अम्मा जी ने खास न्यौता देकर अपनी बेटी और दामाद को बुलाया था। क्योंकि उन्हें लग रहा था कि उनकी बेटी दामाद को आए हुए बहुत दिन हो गए। हां, ये अलग बात है कि अभी दस दिन पहले ही तो आकर गए थी। और वैसे भी कौन सा अम्मा जी ने काम करना था। घर में बहू आने के बाद तो सास वैसे ही रिटायरमेंट ले लेती है। हां, पर आर्डर देना नहीं भूलती। तो इस कड़ाके की ठंड के अंदर अपनी बहू को लगा दिया काम पर।
अब इतनी तेज ठंड हो और मूंग का हलवा और पकौड़ी ना बने ऐसा थोड़ी ना हो सकता था। बस आज के मेन्यू में यही डिसाइड था। साथ में तीन तरह की सब्जी और पूरी अलग। घर के सात सदस्यों के अलावा मेहमानों को मिलाकर तेरह लोगों का खाना बनाना था।
इसलिए विद्या लगी हुई थी काम पर। मेहमानों के आने के पहले ज्यादा से ज्यादा काम कर लेना चाहती थी क्योंकि मेहमानों के आने के बाद चाय पानी पकड़ाने का काम भी विद्या को ही करना था। मदद कराने भी कोई रसोई में नहीं आता था।
जैसे तैसे सब्जियां और हलवा तैयार करके रखा ही था कि इतने में मेहमान आ गए। फटाफट गैस पर चाय का पानी चढ़ाया और गिलास में पानी डालकर ट्री में सजाकर मेहमानों के पास ले गई। पानी देखते ही ननद बोली,
" भाभी आपको इतना भी नहीं पता। बाहर कड़ाके की ठंड है पानी कौन पिएगा? आप तो फटाफट चाय ले आओ"
अपनी बेटी की बात सुनकर अम्माजी भी बोलीं," अरे इतना सुहुर तो खुद ही को होना चाहिए। पर इसे क्या पता कि आज बाहर कड़ाके की ठंड है। ये तो रसोई में आराम से काम कर रही है। इसे तो गर्माहट मिल रही है। हालत तो ठंड में हमारी खराब हो रही है"
सुनकर एक बार तो विद्या को लगा कि जवाब दे दे कि अभी दस दिन पहले भी ठंड थी। तब वो सीधा चाय लेकर ही आई थी तो यही ननद थी जो उस दिन भी उसे सुहुर सिखा रही थी। और यहां अम्मा जी कितनी बड़ी गलतफहमी में है कि कड़ाके की ठंड में बहु तो गर्माहट में काम कर रही है। अरे, यहाँ पानी में हाथ देने में सब की हालत खराब हो जाती है। यहां रसोई में काम करते-करते कितने ढेरों बर्तन निकलते हैं। कितनी बार सब्जियां धोनी पड़ती है। क्या उन सब के लिए गीजर लगा रखा है?
खैर, अपनी बात को अपने मन में ही रखकर विद्या वापस रसोई में आई। फटाफट चाय बनाकर सबको चाय पकड़ा आई। और रसोई में आकर फटाफट बड़े चुल्हे पर बड़ी कढ़ाई तेल भरकर चढ़ा दी। फटाफट पूरी और पकौड़ी तलने लगी। पहले पुरुषों और बच्चों को बिठाया गया। अम्मा जी, मौसी जी और ननद मनुहार कर करके उन्हें खिलाने लगी। मनुहार के नाम पर जबरदस्ती थाली में एक्स्ट्रा खाना डाले जा रही थी। जब पुरुष और बच्चे खाना खाकर उठे तो थाली में काफी कुछ झूठन पड़ा हुआ था।
उसके बाद बैठी महिलाएं, लेकिन उन महिलाओं में घर की बहू का नाम नहीं था। अम्मा जी बड़ी मनुहार कर करके अपनी बेटी, बहन और भांजी को खाना परोस रही थी। और फिर वही हुआ। इनकी थाली में भी झूठन पड़ा हुआ था। मौसा जी अपने परिवार के साथ खाना खाकर रवाना हो गई। पर ननद और ननदोई अभी भी वहीं थे।
अभी विद्या का खाना खाना बाकी था। इतने में अम्मा जी ने विद्या को आवाज लगाई,
" अरे बहू, थोड़ा खाना अपनी ननद के लिए भी बांध देना। कहां सास-ससुर और देवर के लिए जाकर खाना बनाएगी?"
विद्या ने खाने के बर्तन खोल कर देखें तो खाना इतना बचा ही नहीं था। पर अब अम्मा जी बोल चुकी थीं तो थोड़ा बहुत तो खाना पैक करना ही था। इसलिए थोड़ा थोड़ा अपने लिए निकाल कर बाकी का सामान उसने पैक कर दिया। इतने में अम्मा जी रसोई में आई और पैक किए खाने को देख कर बोलीं,
" अरे इतना सा खाना ही पैक किया है? इससे तो सिर्फ दो लोगों का पेट भरेगा। तुझे अंदाजा नहीं है क्या या फिर पकवान अपने मां-बाप के लिए रख लिये?"
अम्मा जी की बात सुनकर विद्या बोली," नहीं अम्मा जी, खाना इतना बचा ही नहीं। खत्म हो गया है"
" अरे इतने सारे लोगों का खाना बनाया था। खत्म कैसे हो गया? मेरे हाथों से तो कभी खत्म नहीं होता था"
इतने में अम्मा की नजर उस थाली पर पड़ी जिसमें विद्या ने अपने लिए थोड़ा थोड़ा खाना निकाल कर रखा था। उसे देखते ही अम्मा के माथे पर सिलवटें आ गई और विद्या को डांटते हुए बोली,
" अलग से खाना क्यों निकाल रखा है?"
" अम्मा जी मैंने अभी तक खाना नहीं खाया है। तो मैंने अपने लिए खाना निकाल दिया और बाकी का पैक कर दिया"
" तेरे बाप के घर से लाई थी जो खाना निकाल कर अलग रख दिया। अरे घर की बहू वो होती है जो अपने ससुराल वालों की इज्जत के लिए कुछ भी कर जाए। एक दिन दूध पीकर नहीं सो सकती थी। चुपचाप से खाना पैक कर दे। मैं बाहर बोल चुकी हूं अब तो ये खाना बिटिया के घर ही जाएगा"
अम्मा जी की बात सुनकर विद्या हैरानी से अम्मा जी को देख रही थी। कोई औरत इतनी निष्ठुर कैसे हो सकती है? बेटी ससुराल जाकर खाना ना बनाएं।उसे परेशानी ना हो। पर बहू की भूख से इन लोगों को कोई लेना-देना नहीं था। विद्या देखती ही रह गई और अम्मा जी ने वो थाली भी साफ कर पैक करके दे दी।जब तक विद्या पूरी तरह से होश में आती तब तक ननद रानी खाना लेकर जा चुकी थी। पर विद्या उन लोगों में से नहीं थी जो चुपचाप रह जाए। बस उसने इस तरह के व्यवहार की उम्मीद नहीं की थी। घर के बाकी सदस्यों को तो पता भी नहीं था कि खाना खत्म हो चुका है। अम्मा जी तो थकावट का बहाना कर अपने कमरे में जाकर आराम करने लग गई।
अभी सब सोने की तैयारी कर ही रहे थे कि इतने में डोर बेल बजी। सब हैरान रह गए कि इस समय कौन आया होगा। खुद बाऊजी ने जाकर दरवाजा खोला तो सामने एक लड़का खड़ा था। उसने बाऊजी से कहा,
" मैं डिलीवरी बॉय हूं। आपके घर से खाने का ऑर्डर था"
उसकी बात सुनकर बाबू जी बोले," अरे तुम्हें कोई गलतफहमी हुई होगी बेटा। हमारे घर से तो कोई आर्डर नहीं किया गया है"
इतने में पीछे से विद्या आ गई और बोली," नहीं नहीं बाऊजी, मैंने आर्डर किया था"
और डिलीवरी ब्वॉय को पैसे देकर अपना पार्सल लेकर कमरे की तरफ जाने लगी। तब तक घर के बाकी सदस्य भी बाहर निकल आए। बाऊजी ने विद्या को रोककर पूछा," बेटा आज तो घर में इतने पकवान बने है। फिर भी तुम बाहर से खाना मंगा कर खा रही हो?"
उनकी बात सुनकर विद्या ने अम्मा जी की तरफ देखते हुए कहा," हां बाऊजी, पकवान तो बने थे पर घर की बहू के लिए नहीं थे। चाहे खाना मनुहार के नाम पर कूड़े में फेंक दिया गया हो पर बहू के लिए थोड़ा सा खाना छोड़ना भी किसी ने ठीक नहीं समझा। अपनी इज्जत के नाम पर बहू को दूध पीकर सोने के लिए कहा जा रहा है। पर मैं समझौता करने वालों में से तो हूं नहीं। मुझे भूखे पेट नींद नहीं आती और दूध से मेरी भूख नहीं मिटती। रात के 10:00 बज रहे हैं और दोपहर से इतनी मेहनत करते-करते मैं थक चुकी हूं। इसलिए अपने लिए खाना ऑर्डर कर लिया"
कहकर विद्या अपने कमरे में जाकर खाना खाने लगी। पीछे से बाऊजी अम्मा जी को लताड़ रहे थे,"आज के बाद मेहमान बुलाने से पहले सोच लेना। मनुहार और बर्बादी का फर्क नहीं पता तुम्हें। खाना पेट भरने के लिए है, फेंकने के लिए नहीं है। कितना खाना तुमने मनुहार के नाम पर बर्बाद कर दिया। ऊपर से बेटी को ससुराल जाकर खाना ना बनाना पड़े इसलिए बहू के हिस्से का खाना भी उसके लिए पैक कर दिया। अपनी बेटी के लिए खाना पैक करना जरूरी था क्या? जो खाना बना रही थी उसके लिए ही खाना नहीं बचा। खबरदार! आज के बाद मैंने सुना कि बहू के लिए घर में खाना ही नहीं बचा"
बाऊजी के गुस्से के आगे अम्मा जी कुछ बोल ही नहीं पाई। वो दिन था और आज का दिन है जब भी घर में मेहमान आते तो खुद बाऊजी रसोई में आकर जरूर चेक करते कि बहू के लिए खाना बचा है या नहीं। साथ ही साथ मनुहार के नाम पर खाना कूड़े में ना फेंकने देते।
हाथरस: सत्संग में मची भगदड़, 116 की मौत... बाबा के पैर छूने के लिए श्रद्धालु आगे बड़े, बाबा को रास्ता दिलाने के लिए सेवादारों ने भक्तों को हटाया, इसी से मची भगदड़
आगे एसी के ऊपर रखे दोनों पंखों को देखकर मैंने पूछा कि - ये आपने अलग से लगवाएं हैं? ऐसा नहीं था किसी किसी गाड़ी में पहली बार मैंने ये देखा हो लेकिन महसूस किया है कि इसे बताने में ड्राइवर बहुत गर्व महसूस करते हैं। इन्होंने भी बहुत चहक कर बताया कि - गर्मी के मौसम में पीछे सवारी शिकायत करती है कि हवा नहीं आ रहा तो इनसे पूरी गाड़ी ठंडी हो जाती है।
उनके लहजे से ये तो स्पष्ट था कि वे एक मिलनसार व्यक्ति हैं। मैंने पूछा कि कब से गाड़ी चला रहे हैं, वे बोले कि पिछले चार साल से। कोविड के समय नौकरी चली गई थी लेकिन उसी नौकरी में रहते हुए शौकिया गाड़ी चलानी सीख ली, अब वही शौक रोज़गार की तरह काम आ रहा है। वे किसी कंपनी में कुछ फ़ाइनेन्स से संबंधित काम में थे। बच्चे सब अच्छी नौकरी में हैं, लड़की की शादी हो गई लेकिन वो भी नौकरी करती है और दो लड़के हैं।
मैं भी उनकी बातों में व्यस्त थी कि रस्ते में चलती किसी लड़की को देखकर वे बोले कि आप किसी लड़की से अक्लमंदी की उम्मीद नहीं रखा सकते। मैंने प्रतिकार किया। तब वे हकबका गए और सारी लड़कियों से बात मुड़कर उनकी पत्नी तक आ गई कि उसे कोई जानकारी नहीं हैं। तब मैंने कहा कि इतना काफ़ी नहीं कि वे आपके परिवार का ध्यान रखती हैं, आपके लिए खाना तैयार करते देती हैं, सब संभालती हैं। फिर वे बोले कि लेकिन थोड़ा को जानना चाहिए कि नोएडा में फ़लाने जाति के लोगों की कितनी लड़ाई हुई। फिर वे अंकल जो लगभग पचास के आस-पास होंगे - उन लड़ाई को याद करके नाराज़ होने लगे, व्याख्याएं देने लगे। तब मैंने कहा कि - आपकी पत्नी को इस लड़ाई के बारे में नहीं मालूम, वो निस्संदेह आपसे ज़्यादा सुकून में हैं इस वक़्त। ख़बरें जानना या जानना और कौन सी ख़बरें जानना. ये सब व्यक्तिगत निर्णय हैं, हां सामाजिक चेतना होनी चाहिए।
इसी बीच सब बातें पटाक्षेप करते हुए वे बोले कि अब गाड़ी चलाना बंद करेंगे और शेयर का काम सीखेंगे। उसमें कहीं आना-जाना नहीं होता, घर पर बैठकर ही हो जाएगा, आजकल बहुत लोग करते हैं। मैंने कहा कि- पत्नी को सिखा दें, तो वे बोले कि घर कौन देखेगा फिर?
मदद
मैं खाना खा कर रैसटोरेंट से बाहर निकली ही थी कि एक छ: सात साल का बच्चा मेरे सामने आकर कुछ पैसे मांगने लगा । मैने पूछा क्या करोगे पैसे का, तो कहने लगा कुछ खाने को खरीदूंगा । मैने उसे चार पूडी़ सब्जी खरीद कर दे दी और कहा लो बैठ कर खा लो तो वो मेरी तरफ देखने लगा । मेरे मन में शक हुआ कि ये खा क्यों नही रहा है। मैनें बहुत कहा पर उसने नही खाया तब मैंने उससे वो खाना छीन लिया और फेंक कर जोर से चिल्ला कर बोली तुम सब लोग ऐसे ही होते हो । उसने मेरी तरफ घृणा से देखा और भाग गया । मैं बाजार में खरीददारी करती रही, दो घंटे बाद जब मैं एक साड़ी की दुकान पर पहुंची तो देखा वही बच्चा किसी और महिला से कुछ मांग रहा था । उस महिला ने उसे दूध का एक पैकिट, एक बिस्किट का पैकिट, एक ब्रेड खरीद कर दी और बिना किसी शंका के वो अपनी खरीददारी करती रही । वो बच्चा वो सब सामान लेकर बडी़ तेजी से दौड़ पडा़ । मेरे मन में चोर था मैं चुपचाप उसके पीछे पीछे हो ली । कई गलियां मुड़ने के बाद वो तेजी से एक झोपड़ी में घुसा दो छोटे छोटे बच्चे लगभग दो, तीन साल के होगें झोपड़ी में बैठे थे । उसने बिस्किट का पैकिट खोलकर उन्हें बिस्किट दिये, चारपाई पर एक बूढ़ी अम्मा जो शायद उसकी दादी या नानी रही होंगी उन्हे भी बिस्किट दिये और दूध का पैकिट खोलकर चाय बनाने के लिये चूल्हा जलाने की तैयारी करने लगा, फिर ब्रेड खोलकर प्लेट में रखने लगा । तीनों ही ऐसे खा रहे थे जैसे कई दिनों से भूखे हो, वो छोटा सा बच्चा सबको खिला कर शायद कुछ खाना चाहता था, तभी मेरे पूड़ी सब्जी देने पर वो उन्हें नही खा रहा था। मैं चुपचाप ये सब देख रही थी, मुझे बहुत आत्मग्लानि महसूस हुयी । माना कि कुछ लोग हमारी सहानुभूति का गलत फायदा उठाते है पर कुछ वाकई जरूरतमंद भी होते है । मदद करते समय बस सच्चे मन से मदद कर देनी चाहिए । अब मेरी आंखो में पश्चाताप के आंसू थे । मैनें उस बच्चे को सामने आकर बुलाया पहले तो वो थोड़ा सा डरा फिर मेरे पास आ गया । मैं उसे पास की दुकान पर ले गयी दुकान से उसे आटा, चावल व दाल दिला कर उसके घर पर रखवा कर मैनें उसके सर पर हाथ फेरा और अपने घर की तरफ चल दी । मैं अब खुद को बहुत हल्का महसूस कर रही थी।
कुछ मदद करते समय कोई शंका या उसका उपयोग दुरुपयोग न सोच कर शांत मन से मदद कर देनी चाहिए बाकी सब ईश्वर पर छोड़ देना चाहिए । हमें ईश्वर ने किसी की मदद के लिये चुना है हमारे लिये ये ही बहुत बड़ी बात है।
🙏🏻🙏🏻शेयर करे
बरसात की दिन आने वाली हैं अमीर एवं गाड़ी वाले लोगों से अनुरोध है कि अगर किसी को गाड़ी पर बैठा नहीं सकते तो गाड़ी धीरे कर के निकाल ही सकते हैं पैदल चलने वाले का ध्यान रखें खासकर स्कूल जाते छोटे भाई बहनों का।
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#नालायक_बेटा ❤️
"बेटा , हमारा एक्सीडेंट हो गया है ।मुझे ज्यादा चोट नहीं आई पर तेरी माँ की हालत
गंभीर है।
कुछ पैसों की जरुरत है और तेरी माँ को खून चढ़ाना है।"बासठ साल के माधव जी ने अपने बड़े बेटे से फोन पर कहा।
"पापा, मैं बहुत व्यस्त हूँ आजकल।मेरा आना नहीं हो सकेगा।मुझे विदेश मे नौकरी का पैकेज मिला है तो उसी की तैयारी कर रहा हूँ।आपका भी तो यही सपना था ना? इसलिये हाथ भी तंग चल रहा है।पैसे की व्यवस्था कर लीजिए मैं बाद मे दे दूँगा।"उनके बडे़ इंजिनियर बेटे ने जबाब दिया।
उन्होनें अपने दूसरे डाॅक्टर बेटे को फोन किया तो उसने भी आने से मना कर दिया । उसे अपनी ससुराल में शादी मे जाना था। हाँ इतना जरुर कहा कि पैसों की चिंता मत कीजिए मैं भिजवा दूँगा।
यह अलग बात है कि उसने कभी पैसे नहीं भिजवाए।
उन्होंने बहुत मायूसी से फोन रख दिया।अब उस नालालक को फोन करके क्या फायदा।जब ये दो लायक बेटे कुछ नहीं कर रहे तो वो नालायक क्या कर लेगा?
उन्होंने सोचा और बोझिल कदमों से अस्पताल में पत्नी के पास पहुंचे और कुर्सी पर ढेर हो गये।पुरानी बातें याद आने लगे,
माधव राय जी स्कूल मे शिक्षक थे।उनके तीन बेटे और एक बेटी थी।बड़ा इंजिनियर और मझला डाक्टर था।दोनों की शादी बड़े घराने में हुई थी।दोनो अपनी पत्नियों के साथ अलग अलग शहरों में
रहते थे।
बेटी की शादी भी उन्होंने खूब धूमधाम से की थी।
सबसे छोटा बेटा पढ़ाई में ध्यान नहीं लगा पाया था।ग्यारहवीं के बाद उसने पढ़ाई छोड़ दी और घर में ही रहने लगा।
कहता था मुझे नौकरी नहीं करनी अपने माता पिता की सेवा करनी है पर मास्टर साहब उससे बहुत नाराज रहते थे।
उन्होंने उसका नाम नालायक रख दिया था ।दोनों बड़े भाई पिता के आज्ञाकारी थे पर वह गलत बात पर उनसे भी बहस कर बैठता था। इसलिये माधव जी उसे पसंद नही करते थे।
जब माधव जी रिटायर हुए तो जमा पुँजी कुछ भी नही थी।सारी बचत दोनों बच्चों की उच्च शिक्षा और बेटी की शादी मे खर्च हो गई थी।
शहर में एक घर , थोड़ी जमीन और गाँव में थोडी सी जमीन थी।घर का खर्च उनके पेंशन से चल रहा था।माधव जी को जब लगा कि छोटा सुधरने वाला नही तो उन्होंने बँटवारा कर दिया और उसके हिस्से की जमीन उसे देकर उसे गाँव में ही रहने भेज दिया। हालाँकि वह जाना नहीं चाहता था पर पिता की जिद के आगे झुक गया और गाँव में ही झोपड़ी बनाकर रहने लगा।
माधव जी सबसे अपने दोनो होनहार और लायक बेटों की बड़ाई किया करते।उनका सीना गर्व से चौड़ा हो जाता था।
पर उस नालायक का नाम भी नहीं लेते थे।
दो दिन पहले दोनों पति पत्नी का एक्सीडेन्ट हो गया था । वह अपनी पत्नी के साथ सरकारी अस्पताल मे भर्ती थे।डाॅक्टर ने उनकी पत्नी को आपरेशन करने को कहा था।
"पापा, पापा!" सुन कर तंद्रा टुटी तो देखा सामने वही नालायक खड़ा था।उन्होंने गुस्से से मुँह फेर लिया।पर उसने पापा के पैर छुए और रोते हुए बोला "पापा आपने इस नालायक को क्यों नहीं बताया? पर मैने भी आप लोगों पर जासूस छोड़ रखे हैं।खबर मिलते ही भागा आया हूँ।"पापा के विरोध के वावजूद उसने उनको एक बड़े अस्पताल मे भरती कराया।माँ का आपरेशन कराया ।अपना खून दिया । दिन रात उनकी सेवा में लगा रहता कि एक दिन वह गायब हो गया।वह उसके बारे मे फिर बुरा सोचने लगे थे कि तीसरे दिन वह वापस आ गया।महीने भर में ही माँ एकदम भली चंगी हो गई।
वह अस्पताल से छुट्टी लेकर उन लोगों को घर ले आया। माधव जी के पूछने पर बता दिया कि खैराती अस्पताल था पैसे नहीं लगे हैं।घर मे नौकरानी थी ही।वह उन लोगों को छोड़ कर वापस गाँव चला गया।
धीरे धीरे सब कुछ सामान्य हो गया।एक दिन यूँ ही उनके मन मे आया कि उस नालायक की खबर ली जाए।दोनों जब गाँव के खेत पर पहुँचे तो झोपड़ी में ताला देख कर चौंके।उनके खेत मे काम कर रहे आदमी से पूछा तो उसने कहा "यह खेत अब मेरे हैं।""क्या?पर यह खेत तो...." उन्हे बहुत आश्चर्य हुआ।
"हाँ।उसकी माँ की तबीयत बहुत खराब थी। उसके पास पैसे नहीं थे तो उसने अपने सारे खेत बेच दिये। वह रोजी रोटी की तलाश में दूसरे शहर चला गया है।बस यह झोपडी उसके पास रह गई है।यह रही उसकी चाबी।"उस आदमी ने कहा।
वह झोपड़ी मे दाखिल हुये तो बरबस उस नालायक की याद आ गई।
टेबल पर पड़ा लिफाफा खोल कर देखा तो उसमे रखा अस्पताल का नौ लाख का बिल उनको मुँह चिढ़ाने लगा।
उन्होंने अपनी पत्नी से कहा - "जानकी तुम्हारा बेटा नालायक तो था ही झूठा भी है।"अचानक उनकी आँखों से आँसू गिरने लगे और वह जोर से चिल्लाये -"तूँ कहाँ चला गया नालायक,
अपने पापा को छोड़ कर।एक बार वापस आ जा फिर मैं तुझे कहीं नही जाने दूँगा।"उनकी पत्नी के आँसू भी बहे जा रहे थे।और माधव जी को इंतजार था अपने नालायक बेटे को अपने गले से लगाने का।
सचमुच बहुत नालायक था वो,,,,ये पोस्ट पढ़ते वक्त अगर आँखें नम हुई तो समझो हमारे अंदर भी एक ऩालायक है,,,
बेटा हो तो ऐसा।❤️❤️❤️
एसी की तस्वीर लगी एक पोस्ट थी - अमीर अपने हिस्से की गर्मी भी गरीबों को दे देते हैं।
इस पोस्ट को देखकर मिले जुले विचार आए।
यह बात एकदम सच है, लेकिन एकदम बेकार भी। सच इसलिए कि एसी लगाने हेतु आपके पास पैसे होने ही चाहिए। बेकार इसलिए कि इसका कोई उपाय नहीं है। आज के जो गरीब हैं, कल उनके पास पैसे हुए तो वे भी लगाएंगे। कोई भी व्यक्ति हमेशा से अमीर थोड़े होता है। कोई कुछ पीढ़ी पहले हुआ, कोई कुछ साल पहले, कोई कुछ साल बाद होगा तो शायद कोई कुछ पीढ़ी बाद।
समय का पहिया घूमता रहता है। कभी जिनके यहां हाथी बंधे रहते थे अब उनके यहां सीकड़ भी नहीं मिलती तो जो हाथी के नौकर हुआ करते थे उनके पोते महंगी गाड़ियों से चलते हैं।
अभी मुंबई में पानी की समस्या चल रही है। अक्सर कई इलाकों में पानी की आपूर्ति बाधित रहती है। आज सुबह से देख रहा था कि सोसाइटी में लगातार टैंकर आ रहा है। यूं समझिए कि टैंकरों की लाइन लगी है। जिस अपार्टमेंट में रहता हूं वहां पर चौबीस घंटे पानी की गारंटी है।
यहां तीन हजार से ज्यादा फ्लैट हैं। हर फ्लैट में हमेशा पानी बना रहे इसके लिए मुझे लगता है कि पम्प हमेशा चलता रहे तो ही संभव है। ऐसे में टैंकर तो आएंगे ही।
इसका समाधान क्या है?
सभ्य समाज में तो कोई समाधान नहीं दिखता। वहां रहने वाले सोसाइटी को मेंटेनेंस चार्ज ही कम से कम दो हजार रुपए महीने देते होंगे। लाखों का फ्लैट खरीदा सो अलग। इसी सुविधा के तो पैसे दिए जाते हैं।
अब यहां तर्क दिया जा सकता है कि अमीर अपने हिस्से की प्यास भी गरीबों को दे देता है।
लेकिन क्या सच में?
यदि ये लोग पानी का टैंकर न मंगवाएं तो क्या वह टैंकर गरीबों के पास पहुंच जाएगा। यदि हां तो ये लोग सच में दोषी हैं।
मेरी काबिलियत हर मुश्किल पर भारी है,
क्योंकि जी तोड़ मेहनत मेरी वफादारी है ... ❤️🌻
में प्रेग्नेंट हूँ 😱🤔
कहानी में पहली ही रात राहुल कीं पत्नी जिसे वो 10 सालो से जानता है
मेरा नाम राहुल है. आज में आपको अपनी कहानी बताने वाला हूं. में करीब 10 साल से एक लड़की को प्यार करता हूं. निधि को.
निधि मेरे घर के पड़ोस में ही रहती है. मुझे उससे पहली नजर में ही प्यार हो गया था. वो मेरे उस समय का प्यार है जब में यह भी नहीं जानता था कीं प्यार होता क्या है.
मेरा कपडे का बिज़नेस है काफ़ी अच्छा है. मेरी और कोई भी इच्छा नहीं है सिवाय निधि को अपनी ज़िन्दगी में लाने के.
हम दोनों अभी तो बहुत अच्छे दोस्त है. निधि मुझसे सारी बाते शेयर करती है. अभी तक मैंने उसे प्यार का इज़हार नहीं किया है.
निधि का एक सपना है कीं उसे मुंबई जाकर एक एक्ट्रेस बनना है फिल्मो या टीवी में इसलिये मैंने उसका सपना पूरा करने के लिये उसकी मदद कीं.
उसके घरवालों को मनाया और उसे मुंबई भी में ही छोड़ कर आया था. निधि के पापा उसके बचपन में ही चल बसें थे. उसकी मम्मी के साथ वो अपने मामा के यहाँ रहती है.
निधि को उस समय बहुत शॉक लगा था कुछ दिनों तक वो बोल भी नहीं रही थी. मामा को पापा कह रही थी. उस समय से उनका परिवार निकल गया.
अब में चाहता हूं कीं निधि अपना यह सपना पूरा करें. इसलिये में भी उसकी मदद कर रहा हूं. लेकिन शायद उतना आसान भी नहीं था.
निधि 3 सालो से मुंबई में है. में उससे बात करता रहता हूं. कभी कभी मिल भी आता हूं. मेरे दोस्त मुझे कहते है कीं में निधि को प्रपोज़ कर दू.
ऐसा बहुत बार उनके कहने पर एक रात मैंने निधि को फोन किया निधि को फोन किया तो उसने वहाँ से कहां राहुल कहां हो तुम मैंने कहां निधि में राहुल अभी घर पर हूं.
वो बोली घर मुझे यहाँ एयरपोर्ट पर छोड़ दिया. मुझे कुछ समझ नहीं आया. मैंने बोला निधि में राहुल वो फिर बोली हां बोलो.
मैंने बोला कीं मुझे तुम्हे कुछ कहना है. ऐसा कहकर मैंने i love you बोल दिया और मेरी ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा जब निधि नें भी i love you too राहुल बोला.
और बोली कीं में आ रही हूं सुबह तुम्हारे पास.सुबह वो भी आई और साथ में उसके माँ और मामा भी शादी कीं बात करने.
मेरे मम्मी पापा मानेंगे या नहीं इसका मुझे पता नहीं था. लेकिन उनके जानें के बाद मम्मी बोली कीं 3 दिन में शादी है.
मैंने बोला इतनी जल्दी मम्मी का मुँह थोड़ा उतरा हुआ था वो बोली यह सब तुम्हे पहले सोचना था. अब तो जल्दी करना पड़ेगा ना.
मुझे घरवालों का रिएक्शन समझ नहीं आ रहा था लेकिन में इस बात से ज्यादा खुश था कीं मेरी शादी निधि से हो रही है जल्दी में क्यों हो रही है
इसका मुझे पता नहीं था लेकिन मैंने मना नहीं किया. शादी को अभी 3 दिन थे. मुझे निधि कीं आँखों में अलग सा प्यार दिखाई दे रहा था.
ऐसा मैंने पहले नहीं देखा था. हमारी शादी हो गई. शादी कीं पहली रात सुहागरात. मुझे यकीन ही नहीं हो रहा था कीं यह सब सच है. निधि बिस्तर पर थी.
मेरे कमरे का दरवाजा लगाते ही वो, उठ कर मेरे पास आयी. निधि नें आकर मुझसे कहां तुम्हे किसी नें कुछ बताया तो नहीं,
मैंने कहां क्या. निधि बोली मैंने ही मना किया था कीं, तुम्हे नहीं बताये. में खुद तुम्हे आज बताना चाहती थी. और फिर उसने जो बताया वो सुनकर मेरे सर पर आसमान गिर गया
वो बोली कीं वो प्रेग्नेंट है और बच्चा मेरा है. और यह बोलते वक्त उसकी आँखों में आँसू थे यह बोलकर वो मेरे गले लग गई. लेकिन यह कैसे हो सकता है
यह पहली बार था जब हम लोग गले लग रहें थे तो यह बच्चा मेरा कैसा हो सकता था. और निधि मुझसे झूठ क्यों बोल रही है.
उस रात को निधि मेरे कंधे पर सोई और ना जानें क्या क्या बातें कर रही थी. पर मेरा तो बुरा हाल था. अब मुझे समझ आया कीं यह शादी इतनी जल्दी में क्यों कीं गई.
क्यों कीं निधि नें सभी को यह बताया कीं यह बच्चा मेरा है. इसलिये घरवालों नें शादी के लिये इतने जल्दी में हां कहा. मेरा प्यार निधि के लिये बहुत था.
अब मुझे ऐसा लग रहा था कीं में बेवकूफ़ बन गया. पर निधि जब भी यह बोलती उसकी आँखों में सच्चाई ही रहती बार बार यह भी कहती कीं वो मुझसे बहुत प्यार करती है.
और वो खुश भी बहुत थी. मैंने यह सब 2 महीने तक देखा. इस दौरान मेरे मन में ना जानें क्या क्या चल रहा था.
फिर एक रात मैंने निधि को कहां कीं निधि यह सब क्या है. यह बच्चा किसका है. वो बोली राहुल क्या मज़ाक कर रहें हो. मैंने बोला निधि तुम मुझे सच बतादो में तुमसे प्यार करता हूं.
यह बच्चा किसका है. में इस बच्चे को अपना लूंगा.वो रोने लगी बोली क्या बोल रहें हो तुम मुझे ऐसा समझते हो. क्या कहना चाहते हो.
यह तुम्हारा नहीं है.उस रात मेरे सब्र का बाँध टूट गया और मैंने निधि को घर से जानें को कह दिया. निधि उसी समय अपने घर रोते हुऐ चली गई.
हमारे घरों में यह बात पता चल गई थी. निधि मेरे प्यार का फायदा उठा रही थी. फिर एक दिन जब निधि अपने घरवालों के साथ डॉक्टर के पास गई थी.
तब एक औरत 55 साल कीं, निधि का पता पूछने मेरी दुकान पर आयी. मैंने बोला वो उसका घर है पर अभी वो है नहीं. मैंने उससे पूछा आपको क्या काम है.
वो बोली कीं में निधि उस रात एयरपोर्ट से उस दुर्घटना के बाद अचानक चली गई में पूछना चाहती थी कीं वो ठीक तो है ना. मैंने पूछा कैसी दुर्घटना.
वो बोली एक्सीडेंट मेरे बेटे राहुल का. मैंने पूछा राहुल. वो बोली हां मेरा बेटा राहुल और निधि एक दूसरे से प्यार करते थे दोनों शादी करने वाले थे.
निधि के साथ में और राहुल निधि के घर आ ही रहें थे कीं रोड क्रॉस करते वक्त मुझे बचाने के लिये मेरा बेटा एक बड़ी बस के निचे आकर चल बसा.
एक्सीडेंट इतना भयानक था कीं वो उसी समय चल बसा. निधि वहाँ से चली गई.में यह देखने आयी कीं वो ठीक है ना. अब मुझे सब समझ आ गया था.
निधि जिससे प्यार करती थी उसका नाम भी राहुल था. और उसकी आँखों के आगे वो चला गया. इस बात से उसको इतना सदमा लगा है
कीं वो इसे मनाने को तैयार नहीं है. वो इस समय सदमे में है और मुझे ही राहुल मान रही है. जैसे बचपन में अपने मामा को पापा मान रही थी.
इसलिये उसकी आँखों में सच्चाई दिखाई दे रही थी. मैंने भी ठीक उसी समय उसे फोन किया था और प्रपोज़ किया था. इसलिये वो इस तरह से बात कर रही थी.
उसकी आँखों में जो प्यार है वो इस राहुल के लिये बल्कि उस राहुल के लिये है. मैंने उन्हें निधि से मिलने नहीं दिया और उन्हें कहां कीं आप जाये में उसका पति हूं
में उसका ख्याल रख लूंगा. में नहीं चाहता था कीं निधि को सब याद आ जाये. निधि जब घर आयी तो में उसके पास वापस गया मैंने बोला निधि सॉरी.
वो रोने लगी बोली तुम्हे इस हालत में मुझे खुश रखना चाहिये और तुम मुझे रुला रहें हो. उसको रोता देख मुझे भी रोना आ गया.
निधि कीं इस हालत पर मुझे समझ नहीं आ रहा था में क्या करू. निधि को में झूठा कह रहा था लेकिन मुझे यह नहीं पता था को वो सच को मान नहीं रही है.
मैंनें निधि को मनाया और अपने साथ वापस लें आया. अब में उसे अकेला नहीं छोड़ सकता था. में जानता हूं वो मुझसे नहीं उस राहुल से प्यार करती थी.
लेकिन में तो उससे प्यार करता हूं. और अभी उसे इस हालत में अकेला नहीं छोड़ सकता. निधि भी मेरी है और उसका बच्चा भी.अब बस में चाहता हूं निधि खुश रहें.
आगे क्या करना है कैसे उसे इससे बाहर निकालना होगा यह सोचने का विषय है. पर मुझे विश्वास है. मेरा प्यार निधि को कुछ नहीं होने देगा.
आपको यह love story कैसी लगी. अपनी राय हमें comment कर जरूर बताये. और ऐसी ही अच्छी कहानियां आपको यहाँ मिलेगी तो बने रहिये हमारे साथ.
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