Rajnish Yadav
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एक राजनेता लोगों की बुद्धि की कमी पर जीता है। यदि लोग अधिक बुद्धिमान हो जाते हैं तो राजनीतिज्ञ कहीं टिक नहीं सकतेi राजनेता की सारी शक्ति आपकी अज्ञानता पर टिकी हुई है।
आप जितने अधिक अज्ञानी होंगे, राजनेता उतने ही अधिक शक्तिशाली हो सकते हैं। जिस दिन इस पृथ्वी पर थोड़ी और बुद्धि आ जाएगी, जिस दिन लोग थोड़े और सचेत हो जाएंगे, उस दिन सबसे पहले राजनीति मिट जाएगी।
राजनीति का अर्थ ही यही है कि तुम बुद्धिमान नहीं हो, कि दूसरे तुमसे कहते हैं । हम आपको अपने जीवन को व्यवस्थित करने में मदद करने के लिए कानूनों की एक संहिता देंगे।
आप इतने बुद्धिमान नहीं हो कि अपने जीवन को व्यवस्थित कर सको; हमें सत्ता दो और हम तुम्हें व्यवस्था देंगे। आप अपने मालिक नहीं हो सकते; हमें अपना स्वामी बनाओ और हम तुम्हारी देखभाल करेंगे। आप अपने हितों की देखभाल नहीं कर सकते; हम आपके लिए उनकी देखभाल करेंगे।
इसलिए अपने आपको समझें राजनीतिज्ञ को नहीं ।
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सत्ता के लिए यह प्रयास उनकी व्यर्थता की भावना को दूर करता है? राजनीति वास्तव में इसे हटाती नहीं है, केवल इसे ढक लेती है। यह वही बीमार आदमी है, वही आदमी जो अपने को हीन अनुभव कर रहा था, जो राष्ट्रपति या प्रधानमन्त्री बनकर बैठता है। लेकिन सिर्फ अध्यक्ष के रूप में एक कुर्सी पर बैठने से, आपकी आंतरिक स्थिति पर क्या फर्क पड़ सकता है?
हां, वह ऊंचा और ऊंचा पहुंच गया है, और सीढ़ी के प्रत्येक चरण पर, आशा थी कि अगले चरण पर घाव ठीक हो जाएगा ...
लोग सीढ़ी के सबसे ऊंचे पायदान पर पहुंच जाते हैं, तब उन्हें पता चलता है कि उनका सारा जीवन व्यर्थ गया। आ गए हैं, लेकिन कहां? जिस जगह के लिए लड़ रहे थे, उस जगह पहुंच गए हैं। और छोटी लड़ाई नहीं थी। यह जी जान से हुई लड़ाई थी - और इतने सारे लोगों को नष्ट करना, इतने लोगों को साधन के रूप में इस्तेमाल करना, और उनके सिर पर पैर रखना...
आप सीढ़ी के आखिरी पायदान पर आ गए हैं लेकिन आपने क्या हासिल किया है?" आपने बस अपना पूरा जीवन बर्बाद कर दिया है। अब इसे स्वीकार करने के लिए भी जबरदस्त साहस चाहिए।बेहतर है कि मुस्कुराते रहें और भ्रम बनाए रखें: कम से कम दूसरे तो यह मानते हैं कि आप महान हैं। आपको पता है कि आप कौन हैं। आप ठीक वैसे ही हैं जैसे आप थे - शायद इससे भी बदतर, क्योंकि इस सारे संघर्ष, इस सारी हिंसा ने आपको और भी बदतर बना दिया है।
आपने अपनी सारी मानवता खो दी है। आप अब एक प्राणी नहीं हैं।"
सत्ता में रुचि रखने वाला प्रत्येक व्यक्ति हीनभावना से पीड़ित है; गहरे में है वह खुद को बेकार, दूसरों से हीन महसूस करता है। और निश्चित रूप से कई मायनों में हर कोई हीन है।
लेकिन हीन महसूस करने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि आपने कभी बनने की कोशिश नहीं की, और यह आपका व्यवसाय नहीं है।
तो फिर संघर्ष कहां है? लेकिन वे राजनीतिक दिमाग हीनता के घाव से ग्रस्त है, और राजनेता घाव को कुरेदता चला जाता है।
यदि आप मानवता के दिग्गजों के साथ अपनी तुलना करते हैं तो आप पूरी तरह से सिकुड़ा हुआ, बेकार महसूस करने के लिए बाध्य हैं।
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आत्मसाक्षी भवेन्नित्यमात्मनुस्तु शुभाशुभे।
अर्थात- मनुष्य को अपने हर काम का साक्षी यानी गवाह खुद ही बनना चाहिए, चाहे फिर वह अच्छा काम करे या बुरा। उसे कभी भी ये नहीं सोचना चाहिए कि उसके कर्मों को कोई नहीं देख रहा है।
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परिवारवाद पर ज़ुबान लड़खड़ा गई। जिसको आप बार बार निशाना बनाते हैं उन्हें जनता चुन कर सदन में भेजती है
भारतीय चेतना के अभिभावक पंडित नेहरू क्या भारतीयों को आलसी मानते थे?
कल लोकतंत्र के मंदिर संसद में प्रधानमंत्री मोदी जी ने ठीक यही आरोप पं नेहरू पर लगाया।
क्या इसमें जरा सी भी सच्चाई है?
कुछ भी सोचने से पहले पं नेहरू का वह भाषण पढ़ और सुन लीजिए। यहीं से मोदी जी कोट कर रहे हैं।
15 अगस्त, 1959 को उन्होंने कहा-
"जब तक हिंदुस्तान के लाखों गांव नहीं जागते, आगे नहीं बढ़ते तो सिर्फ बड़े शहर हिंदुस्तान को नहीं आगे ले जाएंगे। वे बढ़ेंगे अपनी कोशिश से, अपनी हिम्मत से, अपने ऊपर भरोसा करके। हमारे लोग अपने ऊपर भरोसा करना भूलकर समझते हैं कि और लोग मदद करें। मैं चाहता हूं कि लोग बागडोर अपने हाथों में लें।... तरक्की नापने का एक ही गज है कि कैसे हिंदुस्तान के 40 करोड़ आगे बढ़ते हैं... कौम अपनी मेहनत से बढ़ती है। जो मुल्क खुशहाल हैं वे अपनी मेहनत और अक्ल से आगे बढ़े हैं।... हमारे हिंदुस्तान में काफी मेहनत करने की आदत आमतौर से नहीं हुई है... हम भी मेहनत और अक्ल से बढ़ सकते हैं।... इंसान की मेहनत से सारी दुनिया की दौलत पैदा होती है। जमीन पर किसान काम करता है, या कारखाने में कारीगर, उनसे काम चलता है। कुछ बड़े अफसर दफ्तर में बैठकर दौलत पैदा नहीं करते। दौलत मेहनतकश लोगों की मेहनत से पैदा होती है। तो हमें अपनी मेहनत को बढ़ाना है।"
आजादी के बाद हमारे करोड़ों लोगों के सामने पेट भरने की चुनौती थी। अंग्रेजों की गुलामी, लूट और शोषण ने देश को खोखला कर दिया था। अकाल और भुखमरी से लाखों मौतें होती थीं। ऐसे मुल्क का प्रधानमंत्री अपनी जनता से कहे कि हमें अपने पैरों पर खड़ा होना है, जीतोड़ मेहनत करनी है, विकसित मुल्कों का मुकाबला करना है। क्या यह गुनाह है? नये-नये आजाद हुए मुल्क का प्रधानमंत्री अपनी जनता को आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रेरित करे तो क्या यह जनता का अपमान है?
देश के पहले प्रधानमंत्री के भाषण की कुछ पंक्तियां लेकर गलत तरीके से पेश करना शर्मनाक तो है ही, इससे ये भी पता चलता है कि हमारे स्वतंत्रता आंदोलन और राष्ट्र निर्माण के ऐतिहासिक संघर्षों के प्रति प्रधानमंत्री मोदी जी, भाजपा और आरएसएस के मन में कितनी कटुता भरी है।
बात सिर्फ इतनी नहीं है कि वो किसी एक लाइन/वक्तव्य/कार्यक्रम/निर्णय को विकृत करके पेश करेंगे और हम उसकी सफाई देंगे। बात ये है कि सत्ता और देश की मीडिया के शीर्ष पर बैठे मोदी जी जब ऐसी हरकत करते हैं - क्या यह उनको, उनके पद की गरिमा को शोभा देता है? या उनसे ये उम्मीद करना बेमानी है?
दसों दिशाओं में गूंज रहा हैं एक ही नाम, एक ही धाम, जय श्री अयोध्याधाम " जय श्री राम " ❣️
कब तक टुकड़ों में सोचते रहोगे,
कब तक समाज को बांटते रहोगे,
बहुत तोड़ा देश को...
अच्छा होता कि जाते-जाते तो कम से कम इस चर्चा के दरम्यान कुछ सकारात्मक बातें होती, कुछ सकारात्मक सुझाव आते। लेकिन हर बार की तरह आपने देश को काफी निराश किया।
जिन्होंने देश को लूटा है, उनको लौटाना ही पड़ेगा
भजनलाल सरकार की बड़ी कार्रवाई।
अपराधी मोहम्मद रसूल के घर पर चला बुलडोजर।
नागौर में हत्या के आरोपी के घर पर 3 दिन में चला दिया बुलडोजर।
लोकसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर हुई चर्चा के समय विपक्ष की और से उठाए गए 'सवालों का जवाब देते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने केवल उसके नकारात्मक, विरोध के लिए विरोध और विभाजनकारी रवैये को ही उजागर नहीं किया, बल्कि अपने इस आत्मविश्वास का भी खुलकर प्रदर्शन किया कि उनकी सरकार और बड़े बहुमत से तीसरी बार सत्ता में आने जा रही है।
उन्होंने अपना यह लक्ष्य भी स्पष्ट कर दिया कि आगामी लोकसभा चुनाव में अकेले भाजपा कम से कम 370 सीटें जीतने जा रही है। इस दावे के जरिये उन्होंने जम्मू-कश्मीर से विभाजनकारी अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के अपनी सरकार के साहसिक फैसले को ही रेखांकित किया। उन्होंने अपनी सरकार की दस वर्ष की उपलब्धियां गिनाते हुए यह भी बता दिया कि उनका तीसरा कार्यकाल बड़े फैसलों और देश को विकसित बनाने का होगा।
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि राजनीति में परिवारवाद से उनका क्या आशय है और वह क्यों उसके विरोधी हैं? इस पर आश्चर्य नहीं कि उन्होंने कांग्रेस को खास तौर पर निशाने पर लिया। उन्होंने यह जो कहा कि कांग्रेस विपक्ष का दायित्व निभाने में विफल रही और उसने अच्छा विपक्ष बनने का अवसर गंवा दिया, उससे असहमत होना कठिन है। विपक्षी दल के रूप में कांग्रेस की विफलता का कारण है सरकार के हर निर्णय एवं नीति को खारिज करने की आदत ।
निःसंदेह किसी विपक्षी दल से यह अपेक्षा नहीं की जाती और न ही की जानी चाहिए कि वह सरकार की प्रशंसा करे, लेकिन कम से कम उसे हर मामले में और यहां तक कि राष्ट्रहित से जुड़े मामलों में भी विरोध के लिए विरोध वाली राजनीति तो नहीं ही करनी चाहिए। दुर्भाग्य से कांग्रेस ऐसा ही करती रही है।
कांग्रेस किस तरह नकारात्मक राजनीति का परित्याग नहीं कर पा रही है, यह गत दिवस लोकसभा में ही तब देखने को मिला, जब सदन में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने बालाकोट में की गई एयर स्ट्राइक पर सवाल खड़े किए। ध्यान रहे ऐसे ही सवाल पाकिस्तान खड़े करता रहा है।
आखिर उन्हें पाकिस्तान को रास आने वाला बयान देने की जरूरत क्यों पड़ गई? हैरानी नहीं कि प्रधानमंत्री को यह कहना पड़ा कि वह देश की सेना के खिलाफ एक भी शब्द सहन नहीं करेंगे। अधीर रंजन चौधरी ने यह विभाजनकारी आरोप भी उछाला कि केंद्र सरकार गैर भाजपा शासित राज्यों के साथ सौतेला व्यवहार कर रही है।
उन्होंने कर्नाटक का उल्लेख करते हुए एक तरह से दक्षिण के राज्यों की अनदेखी करने वाले उन विभाजनकारी बयानों को ही हवा दी, जो कर्नाटक से कांग्रेस सांसद डीके सुरेश और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने अंतरिम बजट पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए दिए थे। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अधीर रंजन चौधरी को फटकार ही नहीं लगाई, बल्कि यह भी साफ किया कि कर्नाटक किन कारणों से वित्तीय रूप से कठिनाइयों से घिरा है।
आत्मविश्वास से भरी मोदी सरकार के पिछले 10 सालों के कार्यकाल में भले ही शीर्ष स्तर पर भ्रष्टाचार का कोई मामला देखने को नहीं मिला हो, लेकिन केंद्र सरकार नौकरशाही के मध्य और निम्न स्तर पर भ्रष्टाचार पर लगाम नहीं लगा सकी है। जबकि, भाजपा ने पूर्ववती सरकारों पर निशाना साधते हुए कहा कि 2014 के पहले 10 वर्षों तक केंद्र में जो सरकार थी, वह बजट में जितनी घोषणाएं करती थी, उससे कई गुना बड़े घोटाले करती थी।
अंतरिम बजट का जिक्र करते हुए कहा गया है कि दो दिन पहले ही देश का नया बजट आया है। पिछले 10 वर्षों में जिस नीति पर चलते हुए देश के 25 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले हैं, यह बजट उसी नीति को और मजबूत करता है। बजट से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार का विजन पता चलता है। यह सरकार अच्छा काम कर रही है।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है कि मेरा कोई गरीब भाई-बहन झुग्गी-झोपड़ी में.न रहे, इसके लिए मैं दिन-रात एक कर रहा हूं। उन्होंने कहा कि हम देश में एलईडी बल्ब की नई क्रांति लाए, ताकि गरीबों का बिजली बिल कम हो। अब हमारा प्रयास है कि देश के गरीब का बिजली बिल भी शून्य हो जाए, इसलिए इस बजट में एक करोड़ परिवारों के लिए रूफटाप सोलर पावर स्कीम की घोषणा की गई है। बीते 10 वर्षों में करीब एक करोड़ बहनें लखपति दीदी बन चुकी हैं।
आडवाणीजी ने छद्म सेक्युलरवाद और तुष्टीकरण की पोल खोल दी । राजनीतिक शुचिता का नया मापदंड स्थापित कर ।
आडवाणीजी ने सदैव राष्ट्र प्रथम को प्राथमिकता दी। जब वह रामजन्मभूमि मामले में अपनी, रथयात्रा को लेकर राजनीति के शिखर पर थे, तब उन्होंने वर्ष 1995 में मुंबई के भाजपा महाधिवेशन में बतौर पार्टी अध्यक्ष अटल बिहारी वाजपेयी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने की घोषणा की।
इस पर आडवाणी जी अपनी जीवनी में लिखते हैं, जो मैंने किया वह कोई बलिदान नहीं । वह उस तर्कसंगत मूल्यांकन का परिणाम है कि क्या सही है और क्या पार्टी तथा राष्ट्र के सर्वोत्तम हित में है । श्री आडवाणी जी की ये सभी विशेषताएं चाहे वह राष्ट्रवाद हो , सेक्युलरवाद या फिर धर्मवाद उसका सही से पालन ही उन्हें भारतरत्न बनाती है ।
देश के पूर्व उपप्रधानमंत्री और भाजपा के दीर्घानुभवी नेता श्री लालकृष्ण आडवाणी को भारतरत्न सम्मान उनके व्यक्तित्व, क्षमता और गुणों को मान्यता प्रदान करना तो है । यह उनके दो मुख्य योगदानों के कारण सर्वथा तर्कसंगत भी है।
पहला है राजनीतिक शुचिता का नया स्थापित करना और दूसरा, सार्वजनिक विमर्श में छद्म सेक्युलरवाद और इस्लामी कट्टरवाद के राजकीय तुष्टीकरण तथ्यों तकों के साथ चुनौती देना।
आज अनेक दल स्वयं को सेक्युलर और शत-प्रतिशत गांधीवाद से प्रेरित होने का झंडा तो बुलंद करते हैं, परंतु वे भूल जाते है कि सार्वजनिक जीवन में गांधीजी ने शुचिता (परिवारवाद का विरोध सहित) का सदैव पालन किया था। स्वतंत्र भारत में जिन कुछ राजनीतिज्ञों ने इस मर्यादा का अनुसरण किया, वे वैचारिक रूप से गांधी दर्शन के सबसे निकट रहे।
उन्हीं में से एक लालकृष्ण आडवाणी भी हैं। जब विपक्ष में रहते हुए जैन हवाला कांड में आडवाणीजी का नाम आया, तब उन्होंने अपनी राजनीतिक विश्वसनीयता को अक्षुण्ण रखने के लिए लोकसभा की सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया और निदर्दोष सिद्ध होने तक संसद न जाने का प्रण लिया।
जब दिल्ली उच्च न्यायालय और सर्वोच्च अदालत ने उन्हें बेदाग घोषित किया, तब उन्होंने वर्ष 1998 में चुनावी राजनीति में वापसी की। राजनीतिक शुचिता संबंधी इस परंपरा का निर्वहन नरेन्द्र मोदी ने भी किया। जब वर्ष 2002 के गुजरात दंगा मामले में मुख्यमंत्री रहते हुए नरेन्द्र मोदी को पूछताछ के लिए सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित विशेष जांच दल (एसआइटी) ने वर्ष 2010 में बुलाया, तब वह बिना कार्यकर्ताओं की भीड़ के गांधीनगर स्थित एसआइटी कार्यालय पहुंचे और दो सत्रों में नौ घंटे की पूछताछ में देर रात एक बजे तक हिस्सा लिया।
इसकी तुलना में वर्तमान स्थिति क्या है?
वर्ष 1980 में भाजपा की स्थापना के पश्चात आडवाणीजी ने उस सेक्युलरवाद को तकों और तथ्यों से सीधी चुनौती दी, जो अल्पसंख्यकों और विशेष रूप से मुस्लिम तुष्टीकरण का पद्माय बन चुका था। जब वर्ष 1985 में सर्वोच्च न्यायालय ने मध्य प्रदेश की शाहबानों को तलाक के बाद उसके पति से गुजारा भत्ता दिलाने का ऐतिहासिक निर्णय सुनाया, तब मुस्लिम समाज का कट्टरपंथी वर्ग बौखला उठा। 'इस्लाम खतरे में हैं' और 'शरीयत बचाओ नारों के साथ देश के कई हिस्सों में हजारों मुसलमानों ने प्रदर्शन किया।
अदालत का फैसला प्रगतिशील और मुस्लिम महिलाओं को मध्यकालीन दौरे से बाहर निकालने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम था, परंतु तत्कालीन राजीव गांधी सरकार ने इस्लामी कट्टरपंथियों के समक्ष आत्मसमर्पण करके प्रचंड बहुमत के बल पर का शाहबानो मामले में सर्वोच्च न्यायालय निर्णय ही पलट दिया।
उस प्रकरण ने अपनी जड़ों से कटे और वामपंथी इतिहासकारों द्वारा भ्रमित भारतीय मुस्लिम समाज के एक वर्ग में यह संकीर्ण मानस स्थापित कर दिया कि वे भारतीय व्यवस्था को घुटनों पर ला सकते हैं। कालांतर में ऐसा हुआ भी ।
वर्ष 1980 के बाद का श्रीरामजन्मभूमि आंदोलन और सितंबर-अक्टूबर 1990 में लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा भारत में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का विस्तार थी। वर्ष 1984 तक कांग्रेस के गांधीवादी नेता और देश के दो बोर अंतरिम प्रधानमंत्री रहे गुलजारीलाल नंदा के साथ उत्तर तर प्रदेश कांग्रेस के शीर्ष नेता और पूर्व मंत्री दाऊदयाल खन्ना रामजन्मभूमि की मुक्ति के लिए संघर्ष का समर्थन कर रहे थे।
चूंकि उनकी शक्ति सीमित थी, इसलिए उन्हें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से मोरोपंत पिंगले और अशोक सिंघल कमी साथ साथ मिला, जिन्होंने रामजन्मभूमि आंदोलन को अतुलनीय गति प्रदान को इस सांस्कृतिक संघर्ष में जनमानस को जोड़ने में आडवाणीजी की अध्यक्षता में नी-11 जून 1989 को पारित भाजपा के पालमपुर घोषणापत्र और उनके नेतृत्व में सितंबर अक्टूबर 1990 में निकाली गई रथयात्रा ने अग्रणी भूमिका निभाई।
वर्ष 1987 में एक साक्षात्कार में आडवाणीजी ने कहा था, "भारतीय मुसलमानों के किसी भी वर्ग के लिए स्वयं को बाबर के साथ जोड़ना वैसा ही है, जैसे ईसाई समाज दिल्ली में गांधीजी की मूर्ति के स्थान पर जार्ज पंचम की मूर्ति लगाने के लिए इसलिए जिद करे कि वह ईसाई थे। गांधीजी हिंद थे, परंतु वह इस देश के हैं, जार्ज पंचम नहीं।
इसी तरह श्रीराम इस देश के हैं। इतिहास और सांस्कृतिक मुद्दे पर मैं मुस्लिम नेतृत्व से विनती करूंगा कि यदि इंडोनेशिया के मुसलमान राम और रामायण पर गर्व कर सकते हैं तो भारतीय मुसलमान क्यों नहीं ?"
आडवाणीजी ने हिंदू मुस्लिम समस्या की नब्ज पर सोधा. हाथ रखा था। सच तो यह है कि भारतीय मुस्लिम समाज का एक वर्ग आज भी गौरी, गजनवी, बाबर, खिलजी, अब्दाली, औरंगजेब रूपी उन इस्लामी आक्रांताओं को अपना नायक मानता है, जिन्होंने इस भूखंड की सांस्कृतिक अस्मिता रौंदने का प्रयास किया।
जीवन में हमेशा किसी को
परखने की ही कोशिश मत करिए…
कभी समझने का भी प्रयास अवश्य कीजिएगा!
।। राधे राधे ।।
हर जाति का एक संगठन है फिर भी जातिवाद सिर्फ यादवों के नाम है । ऐसा जलन क्यों है यादवों से ।
संस्कृति और कलाओं का संगम है सेंचुरी ऑफ ट्रुथ, 1981 से चल रहा है पटाया के इस मंदिर का निर्माण संस्कृति और कलाओं का संगम है सेंचुरी ऑफ ट्रुथ, 1981 से चल रहा है पटाया के इस मंदिर का निर्माण । -X सेंचुरी ऑफ ट्रुथ था....
श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग आरती दर्शन @untilnow श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग आरती दर्शन -X यदि आप मध्यप्रदेश की तीर्थनगरी उज्जैन में पुण्य सलिला शिप्रा तट क.....
पुरी का श्री जगन्नाथ मंदिर हिंदू आस्था और शक्ति का पावन स्थल @sangharsh769 पुरी श्री जगन्नाथ मंदिर की विशेषताएं मंदिर का झंडा हमेशा हवा की दिशा के विपरीत लहराता है । हवा का रुख जिस दिशा में ह...
जिसको हम जीवन कहते हैं वह कहना भर है। जीवन तो किसी बुद्ध का होता है, किसी जगजीवन का होता है, किसी नानक का, किसी जीसस का। जीवन तो थोड़े-से लोग जीते हैं। अधिकतर लोग जो जन्मते हैं और मरते हैं। और जन्मते और मरने के बीच में जो विराट अवसर मिलता है उसको ऐसे गंवा देते हैं जैसे मिला ही न हो। खोज सकते थे खजाना। ऐसी संपदा पा सकते थे जो फिर कभी छीनी न जाए, लेकिन गंवा देते हैं ऐसी संपदा को इकट्ठी करने में जिसका छिन जाना सुनिश्चित है; जिसको कोई भी बचा नहीं पाया; जिसे कोई अभी अपने साथ नहीं ले जा पाया।
जीवन मिलता नहीं, निर्मित करना होता है। जन्म मिलता है, जीवन निर्मित करना होता है। इसीलिए मनुष्य को शिक्षा की जरूरत है। शिक्षा का एक ही अर्थ है कि हम जीवन की कला सीख सकें।
जीवन हम सबको मिल जाता है, लेकिन उस जीवन की वीणा को बजाना बहुत कम लोग सीख पाते हैं। इसीलिए इतनी उदासी है, इतना दुख है, इतनी पीड़ा है। इसीलिए जगत में इतना अंधेरा है, इतनी हिंसा है, इतनी घृणा है। इसलिए जगत में इतना युद्ध है, इतना वैमनस्य है, इतनी शत्रुता है।
जब आप अपने आपको बिना पहचाने सरकार चुनते हैं तब यही होता है । वो कहते है ना ।
लानत है सरकार पर,
अनपढ़ों के खेल में,
पढ़े लिखे लटक रहे हैं रेल में।
आजम खान की दोस्ती को इतिहास स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा!! मित्रता में.... जाति और मज़हब की सारी दीवारे तोड़ दी
महज़ तस्वीर नहीं बल्कि आपको शर्मिंदगी महसूस करने की वज़ह है। यह बेरोजगारी को भीड़ है ट्रेन के दोनो ओर और कुछ ही देर में 72 सीटों के कोच में 1720 यात्री यात्रा कर रहे हैं, जहाँ सामान रखने के लिए जगह होती है वहाँ ये बेरोज़गार अपनी आशाओं और इच्छाओं का बोझ लिए बैठे हैं।
ये कोच बेरोजगारों से नहीं बल्कि मजबूरी और लाचारी से लबालब भरा हुआ है। PET एग्जाम UP । यूपी PET-गुड़गोबर व्यवस्था। क्या बेटियां ऐसे में ट्रैवल कर सकती हैं?
किसी को घर से निकलते ही
मिल गई मंज़िल ....
कोई हमारी तरह
उम्र भर सफ़र में रहा......
हिंदू धर्म रक्षकों के भीड़ में कोई जिंदा है क्या ? जो इस आवाज पर अंकुश लगा सके । और अगर नहीं लगा सकते सुनते रहो ऐसी बेहियात बातें और कर श्री राम करते रहो ।
समाज बड़ा दोगला है..स्त्री!!
बुद्ध जंगल से लौटते हैं
तो तथागत हो जाते हैं
सीता लौटती है तो
कलंकित हो जाती है।
भारत में बेरोजगारी का ये आलम । ये फोटो बांदा railway station का है, यूपी के हर बड़े स्टेशन का आज यही हाल है, क्योंकि कल UPPET की परिक्षा है परिक्षार्थियों से स्टेशन भरे पड़े है पर अफसोस बेरोज़गारो की ये भीड़ सरकार को नहीं दिखती..
एक छोटी सी नौकरी का,
तलबगार हू मै ।
तुमसे कुछ और जो मांगू,
तो गुनेहगार हूं मै ।।
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