Medicinal Astrology
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A guru did ritual everyday had a goat and tied it in a corner so that it would not jump
around and eat worship material. When guru passed away his goat also lost his life. His shishya wanted to continue the tradition of daily
ritual based on what he observed and learnt, but he had no goat now. So he bought a new goat and
tied it in the corner.
Today's rituals are replete with many such figurative "goats" that
various people ended up introducing at various times.
Have a minimal focus on the technicalities and focus more on cultivating respect, love and
understanding and a sense of surrender and wonder towards the Divine therein. Use
ritual and its objects as tools to reach the Divine, rather than getting bogged down with their
details.
शुक्र और बृहस्पति आजकल एक साथ हैं
इस खूबसूरत घटना को देखने के लिए, अंधेरा होते ही बाहर जाएं और सूर्यास्त की ओर पश्चिम की ओर देखें, "आप आकाश में इन दो चमकदार रोशनी को याद करेंगे।" "शुक्र निश्चित रूप से उज्जवल है और सबसे दाहिनी ओर है। बृहस्पति सबसे बाईं ओर है।"
*षडरिपु या ईश्वर प्रदत्त मूल दैवीय गुण*
आत्मा जब अज्ञानता वश स्वयं को परमात्मा से अलग मानकर माया रूपी शक्ति के साथ संयोग से सृष्टि में शरीर धारण करती है तब परमात्मा के निर्विकार व समभाव का त्रिगुणी माया के विभिन्न गुणों एवं काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर से संबंध होता है और आत्मा इन्हीं गुणों के अधीन शरीर द्वारा किए गए कर्मों का फल भोगती है. किसी कामना विशेष से किए गए यही कर्म ही भाग्य का आधार बनते हैं.
इन्हीं मूल दैवीय गुणों का उपयोग या दुरुपयोग जीव को बंधन या मुक्ति प्रदान करता है.
*उदाहरणार्थ*
काम का उपयोग सृजन व दुरुपयोग वासना है,
क्रोध का उपयोग आंतरिक शत्रुओं का नाश व दुरुपयोग क्रूरता है,
लोभ का उपयोग मुक्ति हेतु व्याकुलता व दुरुपयोग लोलुपता है,
मोह का उपयोग पालन-पोषण व दुरुपयोग लगाव है,
मद का उपयोग स्वाभिमान व दुरुपयोग अहंकार है,
मत्सर का उपयोग प्रतिस्पर्धात्मक उन्नति व दुरुपयोग ईर्ष्या है.
अपने अनेकोंनेक पूर्व जन्मों में हम स्वयं ही इन गुणों का अपने स्वार्थ व संतुष्टि के लिए दुरुपयोग करके इनके प्रतिनिधि ग्रहों को क्रिया-प्रतिक्रिया के सिद्धांत के अनुसार कर्म-फल भोगने के लिए, अपने प्रतिकूल कर लेते हैं और फिर उन्हें षडरिपु की उपाधि दे देते हैं.
इन गुणों के प्रतिनिधि ग्रहों के स्वामी देवताओं का निरंतर ध्यान, प्रार्थना और उनके गुणों का लक्ष्य आधारित, निष्काम, संयमित शारीरिक व मानसिक उपयोग, उन्हें हमारे अनुकूल बनाकर सभी संभावित कर्मफल बंधन से मुक्ति के साथ-साथ इसी जन्म में धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष चारों पुरुषार्थ की प्राप्ति करा सकता है.
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नश्वर, अविनाशी, निर्गुण, निराकार आत्मा प्रकृति के पंचमहाभूतों से निर्मित शरीर धारण करते ही स्थूल जगत के ज्ञात-अज्ञात भौतिक विज्ञान के नियमों यथा गुरुत्वाकर्षण बल, क्रिया प्रतिक्रिया बल आदि,
तथा सूक्ष्म जगत के रासायनिक सिद्धांतों यथा सतोगुण, रजोगुण तथा तमोगुण के अनुपातिक योग के आधार पर व्यक्ति विशेष के मस्तिष्क में विचारों का एक विशिष्ट दिशा में प्रवाह आदि का पालन करने के प्रति बाध्य हो जाती है.
क्या प्रकृति से निर्मित यह शरीर प्रकृति के गुणों से अछूता रह सकता है .. नहीं.. हां किंतु अप्रभावित अवश्य रह सकता है और निर्लिप्ततापूर्वक प्रकृति के उन गुणों का आत्मिक, सामाजिक व वैश्विक उत्थान के लिए संतुलित प्रयोग कर सकता है.
इसी का अभ्यास ही साधना है.
इसी को अभ्यास द्वारा साधना है.🙏🌺🙏
🚩 चैत्र शुक्ल द्वितीया 🚩
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पराशक्ति की कृपा से कल हमने यह रहस्य समझने का प्रयास किया कि -
*प्रकृति की सभी मूर्त (दृश्य) एवं अमूर्त (अदृश्य) वस्तुओं के गुण माया के सात्विक, राजसिक या तामसिक गुणों के भिन्न-भिन्न अनुपातिक योग का प्रतिफल होते हैं.*
सजीव मूर्त वस्तुओं में जलचर, नभचर, वनचर, कीट-पतंगे, पेड़-पौधे आदि भोग योनिया होती हैं जबकि मनुष्य योनि भोग के साथ ही कर्म के लिए भी स्वतंत्र होती है. मनुष्य योनि में जीव का माया के इन तीनों गुणों से परस्पर क्रिया के फलस्वरूप कर्म उत्पन्न होता जाता है जो परिणाम को जन्म देता है और परिणाम फिर से कर्म बनकर अपने परिणाम को जन्म देता है. कर्म फल की यह अनंत श्रंखला मनुष्य को कर्म बंधन से बांधती जाती है. इसी श्रंखला में बंधा यह जीवन *सांसारिक जीवन है* जिसे मनुष्य यथार्थ मान लेता है.
कर्म बंधन की इस श्रंखला को तोड़कर जन्म मरण के चक्र से मुक्त होने के लिए ईश्वर व जीव के बीच सेतु रूप में स्थित *शक्ति* जिसे हम प्रकृति (माया) कहते हैं, की कृपा ही सर्वोच्च सहारा है.
अतः आदिकालीन ब्रह्मांडीय शक्ति की त्रिगुणी माया के पर्दों को हटाकर *अहम् ब्रह्मास्मि* के आत्मबोध हेतु, अपनी आंतरिक शक्तियों के जागरण के लिए, उसी *आदिशक्ति* का अंतर्मन में आवाहन, स्थापन एवं पूजन ही शक्ति पूजन का वास्तविक अर्थ है.
*आगे राम अनुज पुनि पाछे,*
*मुनिवर वेश बने अति काछे |*
*उभय बीच सिय सोहइ कैसी,*
*ब्रह्म जीव बिच माया जैसी ||*
अरण्यकांड रामचरितमानस
6/1-2
🚩चैत्र शुक्ल प्रतिपदा🚩
🌺विक्रम संवत 2079🌺
मां सरस्वती, आंतरिक व बाह्य सभी गुरुजनों के चरणों में प्रणाम 🙏
नवरात्रि में हम मां दुर्गा का आवाहन, स्थापन, एवं पूजन करते हैं.
मां दुर्गा निर्गुण, निराकार, सर्वशक्तिमान ब्रह्म की वह शक्ति हैं जो सृष्टि के आरंभ (सृजन) में उन्हें साकार रूप प्रदान करती हैं और सृष्टि के संहार (विनाश) में पुनः उन्हीं में लीन होकर शांत हो जाती हैं.
हमारा शरीर इसका सूक्ष्म उदाहरण है, जिसमें आत्मा निर्गुण, निराकार, नित्य, अजन्मा *ब्रह्म* का, और सगुण भौतिक शरीर, *शक्ति* (माया) का प्रतिनिधित्व करता है.
सृष्टिस्थितिविनाशानाम शक्तिभूते सनातनि |
गुणाश्रये गुणमये नारायणी नमोस्तुते ||
श्री दुर्गासप्तशती 11/11
इस साक्ष्य से यह सिद्ध है कि सब में एक ही ईश्वरीय अंश का वास है किंतु माया के गुणों का विभिन्न मात्रा में संयोग, मूलतः एक होने पर भी हमें अलग-अलग व्यक्तित्व प्रदान करता है. 🙏
क्रमशः__
ज्योतिषी के कर्तव्य
ज्योतिषीय कर्म द्वारा समाज की सेवा करने का निर्धारण करने वाले साधक पर निम्नलिखित आचार संहिता लागू होती है ~
1. सदैव सत्य का पालन करें. यदि सत्य कटु हो तो, रोकथाम के उपायों के साथ ही, केवल सांकेतिक भाषा में बताएं.
2. कभी किसी को मृत्यु के समय का आकलन करके न बताएं.
3. कभी किसी को भी लॉटरी, जुआ, सट्टा आदि के लिए प्रोत्साहित न करें.
4. कभी किसी को संतान के लिंग का निर्धारण करके ना बताएं.
5. कभी अधार्मिक संबंधों के लिए सहायक ना बने.
6. कभी धार्मिक संबंधों के विच्छेद में सहायक न बने, हो सके तो प्रयासों द्वारा उस संबंध को पुनर्जीवन प्रदान करें.
7. कभी ज्योतिष का व्यापार न करें किंतु यदि ज्योतिषी के पास जीविकोपार्जन हेतु कोई अन्य साधन उपलब्ध ना हो तो, जातक द्वारा स्वयं की आर्थिक स्थिति के अनुरूप स्वेच्छा से, प्रसन्नता पूर्वक दी गई दक्षिणा ग्रहण करने में कोई दोष नहीं है.
8. कभी भी इस विद्या का दान नास्तिक झूठे वह धोखेबाज को न करें, आवश्यकता पड़ने पर अत्यंत सावधानी पूर्वक चयन कर सच्चे, धार्मिक, ईमानदार व गुरु-सेवी साधक को इस विद्या का दान दें.
How astrology can help an individual to progress in life
Our soul is an eternal part of the Universal soul which separates to take birth due to its weaknesses. After separation during the journey of the soul, we have performed several Karmas in our past lives. Our present life is an outcome of those past life deeds as per the action-reaction theory of the universe.
On the grounds of the above astrology help -
1. Identify your Dharma as spreading your specific internal qualities for the upliftment of society is your Dharma in this life.
2. Identify your Karma by selecting the right profession based on your inherent qualities so that you can grow up to the top and always be in the process of exploring new heights of your personality.
3. It helps to tone up your personality in such a way so that you always feel overall satisfaction internally.
4. It helps you overcome your weaknesses to become free from all your desires and reunite with the universal soul.
That is MOKSHA the final destination of the continuous journey of the soul.
We’re back to answer all your questions once again.
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With this post we are trying to explain what are the uses of medicinal astrology and in what ways can this be used as a tool for improving the health of people as well as lighting their life’s path.
With this post we are trying to explain the different levels of a persons personality which determine a lot about the behaviour of a person.
Do dm us for any quarries.
This is our perspective of the reasons to believe in astrology.
Link for Wikipedia page-
https://en.wikipedia.org/wiki/Vedanga_Jyotisha
We have always believed in the concept of “lighting life path” hence we bring you the strong behind the sentence that inspires and motivates us everyday
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What is Medicinal Astrology
Base of Astrology
Astrology the eye of Vedas
Medicinal astrology- a very new and dynamically evolving concept✴️
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Ayurved is an ancient Indian medical therapy and It is an Indian Medical Science.