Shrijee Kripalu Satsang

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27/11/2022

हे अनन्त गुणगणमयी स्वामिनी राधे ! यद्यपि तुम्हारे दिव्य नाम , रूप , गुण , धामादि का रसना द्वारा बार बार गायन करता हूँ परन्तु अभी तक मेरे हृदय में तुम्हारे दिव्य दर्शन की पिपासा जाग्रत नहीं हुई ।

#जगद्गुरुत्तम_श्री_कृपालु_जी_महाराज ।

23/11/2022

भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं
यं यं वापि स्मरन्भावं त्यजत्यन्ते कलेवरम् ।
तं तमेवैति कौन्तेय सदा तद्भावभावितः ॥ (भगवदगीता)

हे कुन्ती पुत्र! मृत्यु के समय शरीर छोड़ते हुए मनुष्य जिसका स्मरण करता है वह उसी गति को प्राप्त होता है ।

Meaning In English:-
Whatever one remembers upon giving up the body at the time of death, O son of Kunti, one attains that state, being always absorbed in such contemplation.
#श्रीजीमहाराज

23/11/2022
22/11/2022

वामे भागे जनकतनया राजते यस्य नित्यं
भ्रातृप्रेमप्रवणहृदयो लक्ष्मणो दक्षिणे च ।
पादाम्भोजे पवनतनयः श्रीमुखे बद्धनेत्रः
साक्षाद् ब्रह्म प्रणतवरदं रामचन्द्रं भजे तम् ।।

जिनके वाम भागमें श्रीजानकीजी नित्य विराजित हैं, दायें भागमें भ्रातृप्रेमसे सने हुए हृदयवाले श्रीलक्ष्मणजी सुशोभित हैं और जिनके चरणकमलोंके पास पवनपुत्र श्रीहनुमानजी श्रीमुखकी ओर एकटक दृष्टि लगाये बैठे हैं, उन मूर्तिमान ब्रह्म भक्तवरदायक रघुनायक श्रीरामचन्द्रकी मैं शरण ग्रहण करता हूँ ।
#श्रीजीमहाराज

19/11/2022

“श्रीरामायणामृत”
भगवान् को अपना निश्छल भक्त ही प्रिय लगता है । भगवान् तपस्वी, ज्ञानी, दानी और धर्मपरायणसे भी अधिक अपने भक्तसे प्रेम करते हैं । इस विषयमें भगवान् श्रीराम कहते हैं कि जैसे एक पिताके पुत्र भिन्न-भिन्न गुण, स्वभाववाले होते हैं । कोई पण्डित, कोई तपस्वी, कोई ज्ञानी, कोई शूरवीर और कोई दानी होता है । एक ऐसा भी पुत्र है जो सब प्रकारसे अज्ञानी है, परन्तु मन, वचन और कर्मसे पिताका भक्त है तो पिताके लिये वह प्राणप्रिय होता है । उसी प्रकार यह सम्पूर्ण विश्व मेरा ही उत्पन्न किया हुआ है । इसमें जो मन, वचन और कर्मसे मेरा भजन करता है, वह मुझे सर्वप्रिय होता है । इसलिये सब प्रकारकी आशाओं और आश्रयोंका त्याग करके मनुष्यको मेरे ही भजनमें तत्पर होना चाहिये –

एक पिता के बिपुल कुमारा । होहिं पृथक गुन सील अचारा ।।
कोउ पंडित कोउ तापस ग्याता । कोउ धनवंत सूर कोउ दाता ।।
कोउ सर्बग्य धर्मरत कोई । सब पर पितहि प्रीति सम होई ।।
कोउ पितु भगत बचन मन कर्मा । सपनेहुँ जान न दूसर धर्मा ।।
सो सुत प्रिय पितु प्रान समाना । जद्यपि सो सब भाँति अयाना ।
एहि बिधि जीव चराचर जेते । त्रिजग देव नर असुर समेते ।।
अखिल बिस्व यह मोर उपाया । सब पर मोहिं बराबरि दाया ।।
तिन्ह महँ जो परिहरि मद माया । भजै मोहि मन बच अरु काया ।।
पुरुष नपुसंक नारि वा जीव चराचर कोइ ।
सर्ब भाव भज कपट तजि मोहि परम प्रिय सोइ ।।
सत्य कहउँ खग तोहि सुचि सेवक मम प्रानप्रिय ।
अस बिचारि भजु मोहि परिहरि आस भरोस सब ।।
(मानस )
#श्रीजीमहाराज

17/11/2022

येऽन्यं देवं परत्वेन वदन्त्यज्ञानमोहिताः।
नारायणाज्जगनाथात्ते वै पाषण्डिनः स्मृताः।। स्कंदपुराण ।।

हे देवी !! अज्ञान से मोहित हो कर जो कर्मकाँडी भगवान श्रीकृष्ण से अन्य देवों को श्रेष्ठ कहता है वह निःसंदेह पाखण्डी हैं और उसे पाखंडी कहना विल्कुल शास्त्रसम्मत है ।
#श्रीजीमहाराज

12/11/2022

ब्रज गोपियों का ठाकुरजी के प्रति निष्काम प्रेम था । वह ठाकुरजी से इतना प्रेम करती थीं कि ठाकुरजी के विरह में ब्रज गोपियों को एक क्षण भी कल्प के समान प्रतीत होता था । वह सोते, उठते, खाते, पीते भगवान के विरह में अश्रु प्रवाहित करती रहती थीं । उन्हें घर की दीवारों में, गायों में, बछड़ों में, यमुना में, वृक्ष में, फूलों में, हारों में सर्वत्र श्याम सुंदर के ही दर्शन हुआ करते थे । वह पागलों सी भांति बस ठाकुरजी की ही याद में डूबी रहती थीं ।
#श्रीजीमहाराज

03/11/2022

सृष्टिकर्ता ब्रह्मा जी भगवान श्रीकृष्ण से कहते हैं कि मुझे वृंदावन में एक पत्ता बना दो, कोई गुल्म बना दो, यहां की रज ही बना दीजिए ताकि ब्रज गोपियों की चरण धूलि मुझे प्राप्त हो सके और मैं पवित्र हो जाऊं ।

#श्रीजीमहाराज

26/10/2022

रसिक जन-धन गोवर्धन धाम।
त्रिगुणातीत दिव्य अति चिन्मय, ब्रज परिकर विश्राम।
मरकत-मणि-मंडित खंडित मद, गिरि सुमेरु अभिराम।
राधाकुंड कुसुम सर आदिक, लीलाधाम ललाम।
मर्दन-मघवा-मद मनमोहन, पूजित पूरनकाम ।
सखन सनातन संग श्याम जहँ, विहरत आठों याम ।
कब ‘कृपालु’ हौंहूँ बड़भागी, ह्वैहौं बसी अस ठाम ।।

भावार्थ: रसिक जनों का सर्वस्व श्री गोवर्धन धाम है जो गुणों से अतीत है एवं दिव्यातिदिव्य चिन्मय तथा ब्रज के निवासियों का विश्राम स्थल है। वह गोवर्धन धाम मरकत मणियों से सुशोभित तथा सुमेरु गिरि ( पर्वत ) के भी मद को मर्दन करने वाला है । वहाँ राधाकुंड, कुसुम सरोवर आदि अनेक मनोहर लीला स्थलियाँ हैं, जो इन्द्र के अभिमान को चूर्ण करने वाला ब्रह्म श्रीकृष्ण से भी पूज्य और कामनाओं से परे हैं। इस गोवर्धन धाम में सनातन गोलोक के श्रीदामा आदि सखाओं के साथ, श्रीकृष्ण सदा ही विविध प्रकार के खेल खेला करते हैं। ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं कि ऐसे दिव्य गोवर्धन धाम में बस कर हम कब परम भाग्यशाली बनेंगे ?

जगद्गुरु_श्री_कृपालु_जी_महाराज

25/10/2022

दीपावली का पर्व भगवान श्रीराम का पर्व है । आज के ही दिवस पर भगवान श्री राम 14 वर्ष का वनवास पूरा करके अयोध्या वापस आए थे । हमें दीपावली पर भगवान श्री राम की आराधना करनी चाहिए थी , भक्ति करनी चाहिए, भगवान राम का नाम संकीर्तन करना चाहिए, यही दीपावली मनाने का वास्तविक उद्देश्य है । लेकिन हमारे संसार में 99% लोग लक्ष्मी जी गणेशजी की पूजा करते है । लक्ष्मीजी की पूजा करेंगे तो हमारे घर में भी लक्ष्मी आएगी, अर्थात धन की बढ़ोतरी होगी और साथ में गणेश जी की पूजा प्रारंभ हो गई । भगवान श्री राम के स्थान पर लक्ष्मी जी की पूजा हम अपने स्वार्थ के दृष्टिकोण से करते हैं । हमें पर्व से कोई अर्थ नहीं, हम पटाखे जला रहे हैं ,नए वस्त्र पहन रहे हैं ,मिठाई खा रहे हैं ,लेकिन भगवान राम का नाम नहीं लेते ,तो दीपावली मनाने का हमें कोई लाभ प्राप्त नहीं होता । दीपावली का अर्थ हम भगवान की याद में आंसू बहाए ,उनके दर्शन उनके प्रेम की याचना करें, गुरु सेवा करे ,गुरु भक्ति करें, तब भगवान प्रसन्न होंगे और हमें अपना प्रेम प्रदान करेगें ।

#श्रीजीमहाराज

19/10/2022

राम अतर्क्य बुद्धि मन वानी । मत हमार अस सुनहु सयानी ।।
जग पेखन सब देखन हारे । विधि हरि शंभु नचावन हारे ।।
तेउ न जानहि मरम तुम्हारा । और तुम्हिं को जाननहारा ।।

भगवान को हम अपनी बुद्धि द्वारा नहीं जान सकते क्योंकि भगवान हमारी बुद्धि, हमारे मन ,हमारी इंद्रियों से परे हैं । भगवान इंद्रिय, मन ,बुद्धि द्वारा ग्राह्य नहीं हो सकते । भगवान को ब्रह्मा, विष्णु ,शंकर भी नहीं जान सकते, तो हम अल्पज्ञ जीव कैसे भगवान को जान सकते हैं ।

#श्रीजीमहाराज

14/10/2022

मनगढ़ ऐसा जामें गोविंद राधे।
नित्य विहार करें निकरन ना दे।।

मनगढ़ ऐसा जामें गोविंद राधे।
माया यदि आवे मायापति को दिखा दे।।

मनगढ़ ऐसा जामें गोविंद राधे।
इन्द्रिन होड़ गुरु मोहिं सेवा दे।।

मनगढ़ ऐसा जामें गोविंद राधे।
एक कामना हो मोहिं प्रेम सुधा दे।।

मनगढ़ ऐसा जामें गोविंद राधे।
काम क्रोध आवे तो हरि का बना दे।।

मनगढ़ ऐसा जामें गोविंद राधे।
मैं गुरु हरि तीनों तीनों में मिला दे।।

मनगढ़ ऐसा जामें गोविंद राधे।
माया भगा दे योगमाया बुला दे।।

मनगढ़ ऐसा जामें गोविंद राधे।
गुरु ते कहु मोहिं पद सेवा दे।।

मनगढ़ ऐसा जामें गोविंद राधे।
मन यार में हो तन कार में लगा दे।

मनगढ़ ऐसा जामें गोविंद राधे।
गुरु उर बैठे हरि झलक दिखा दे।।

मनगढ़ ऐसा जामें गोविंद राधे।
हरि गुरु दोनों रहें दोनों ते मिला दे।।

मनगढ़ ऐसा जामें गोविंद राधे।
हरि गुरु में गुरु हरि में समा दे।।

मनगढ़ ऐसा जामें गोविंद राधे।
हरि कहे गुरु याको प्रेम सुधा दे।।

मनगढ़ ऐसा जामें गोविंद राधे।
जित देखूं हरि गुरु ही दिखा दे।।

मनगढ़ ऐसा जामें गोविंद राधे।
माया काल आवें नहिं आवें तो भगा दे।।

मनगढ़ ऐसा नित गोविंद राधे।
राधे राधे गोविंद कीर्तन सुना दे।।

मनगढ़ ऐसा जामें गोविंद राधे।
सोते जागते हो राधे प्रेम अगाधे।।

मनगढ़ ऐसा धाम गोविंद राधे।
जहाँ हरि गुरु बिनु माँगे कृपा दें।।

मनगढ़ ऐसा जामें गोविंद राधे।
हरि गुरु होड़ करि उर ते लगा दें।।

मनगढ़ ऐसा जामें गोविंद राधे।
हरि गुरु दोनों होड़ करके कृपा दें।।

मनगढ़ ऐसा जामें गोविंद राधे।
नित ही 'कृपालु' रहें और कृपा दें।।

(राधा गोविंद गीत)
*-जगद्गुरूत्तम श्री कृपालु जी महाराज*

11/10/2022

...शरद-पूर्णिमा की मध्यरात्रि..
जिनका पावन अवतरण-दिवस है

'शरद पूर्णिमा | | जगदगुरुत्तम जयंती'
..1922 की शरद-पूर्णिमा की मध्यरात्रि में उत्तर-प्रदेश में इलाहाबाद के निकट 'मनगढ़' नामक छोटे से ग्राम में माँ भगवती की गोद में प्राकट्य, वही रात्रि, जब श्रीराधारानी की अनुकंपा से श्रीकृष्ण ने अनंतानंत गोपियों को महारास का रस प्रदान किया था.. यही 'मनगढ़' आज 'भक्तिधाम' के नाम से सुविख्यात है!
..बाल्यावस्था से अलौकिक गुणों से सम्पन्न, चित्रकूट के सती अनुसुइया आश्रम तथा शरभंग आश्रमों के बीहड़ जंगलों में परमहंस अवस्था में वास. निरंतर 'हा राधे!' 'हा कृष्ण' का क्रंदन एवं प्रेमोन्मत्त विचित्र अवस्था. चित्रकूट; जो आपके • विद्यार्थी • साधक • सिद्ध अवस्था तीनों की साक्षी और 'जगदगुरुत्तम' बनने की भी आधार बनी.
..परमहंस अवस्था से सामान्यावस्था में आकर जीव-कल्याण के लिये 'श्रीराधाकृष्ण भक्ति' का प्रचार प्रारंभ किया और अपने भीतर छिपे ज्ञान के अगाध भंडार को प्रगट किया...
..1957 में 34 वर्ष की आयु में भारतवर्ष की 500 मूर्धन्य विद्वानों की सर्वमान्य सभा 'काशी विद्वत परिषत' द्वारा 'पंचम मौलिक जगदगुरुत्तम' की उपाधि से विभूषित हुये. आदि जगद्गुरु श्री शंकराचार्य, रामानुजाचार्य, निम्बार्काचार्य एवं माध्वाचार्य जी के बाद पंचम मौलिक जगद्गुरु हुये...
..श्रीराधाकृष्ण प्रेम के जो स्वयं ही मूर्तिमान स्वरुप हैं, दिव्य महाभावधारी; आपके विलक्षण प्रेमोन्मत्त स्वरुप जिन्हें स्वयं ही 'भक्तियोगरसावतार' सिद्ध करता है. श्री गौरांग महाप्रभु द्वारा प्रचारित संकीर्तन पद्धति का अपूर्व विस्तार करते हुये जिन्होंने समस्त प्रेमपिपासुओं को 'राधाकृष्ण' के मधुर नाम, धाम, गुण एवं लीला के संकीर्तनों एवं पदों के रस में सराबोर कर दिया..
..ज्ञान का ऐसा अगाध समुद्र जिसमें कोई जितना अवगाहन करे, पर थाह नहीं पा सकता. बिना खंडन के जिन्होंने समस्त शास्त्रों एवं अन्यान्य धर्मग्रंथों के सिद्धांतों का समन्वय कर दिया और अंधविश्वासों एवं कुरुतियों का उन्मूलन/सुधार किया. आप समस्त विद्वानों द्वारा 'निखिलदर्शनसमन्वयाचार्य' के रुप में सुशोभित हुये. और आपके लिये संत-समाज ने कहा है 'न भूतो न भविष्यति!!'
..समस्त विश्व को जिसने श्रीराधाकृष्ण की सर्वोच्च माधुर्यमयी ब्रजरस अर्थात गोपीप्रेम का रस प्रदान किया, जिन्होंने उस रस की प्राप्ति का सरल, सुगम एवं अत्यंत व्यवहारिक सिद्धान्त दिया. समस्त साधनाओं के प्राण 'ध्यान' को जिन्होंने 'रुपध्यान' नाम देकर अधिक सुस्पष्ट किया. और अपने आचरणों से स्वयं भक्ति साधना का मार्गदर्शन किया. इस महादान में क्या जाति-पाति, क्या देश-धर्म, क्या छोटे-बड़े - सब ही भागी बने हैं...
..जिनके कोई गुरु नहीं, फिर भी स्वयं जगदगुरुत्तम हैं. जिन्होंने कभी कोई शिष्य नहीं बनाया परन्तु जिनके लाखों करोड़ों अनुयायी हैं. सुमधुर 'राधा' नाम को विश्वव्यापी बनाया और पहले ऐसे जगद्गुरु जो विदेशों में भक्ति के प्रचारार्थ गये.
..अपने शरणागत जीवों के सँग जो प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रुप से सदैव सँग हैं और अबोध जानकर जो हमेशा सुधार की 'महान आशा' लिये अपराधों पर निरंतर क्षमादान देते रहे हैं. पल भर को जिनका विछोह कभी अनुभूत नहीं हुआ. आज भी उनकी शरण आने वालों को उनके नित्य सँग की अनुभूति सहज है.
..समस्त विश्व पर जिनका अनंत उपकार है. वृन्दावन का 'प्रेम मंदिर', बरसाना का 'कीर्ति मैया मंदिर' और भक्तिधाम मनगढ़ का 'भक्ति मंदिर'; इसके अलावा इन्हीं तीनों धामों में 'प्रेम भवन', 'भक्ति भवन' एवं 'रँगीली महल' के साधना हॉल जिनकी कीर्ति और उपकार का चिरयुगीन यशोगान करेंगे और अनंतानंत प्रेमपिपासु जीवों को भक्तिरस का पान कराते रहेंगे. उनके द्वारा रचित एवं प्रगटित ब्रजरस साहित्य एवं प्रवचन हृदयों में भगवत्प्रेम की सृष्टि करते रहेंगे...
.......और अधिक क्या कहें? संत के उपकार कहने का सामर्थ्य किस वाणी में है? स्वयं भगवान तक तो असमर्थ हैं, फिर कोई जीव क्या गिनावे? सत्य तो यही है कि 'जगदगुरुत्तम श्री कृपालु महाप्रभु' न केवल नाम से अपितु अपने रोम-रोम से 'कृपालु' रहे, हैं और रहेंगे!

वही श्री गौरांग महाप्रभु, वही श्री कृपालु महाप्रभु!! यह भी कहना अतिश्योक्ति न होगी. कह सकते हैं;
..अद्यापिह सेइ लीला करे गौर राय,....कोन कोन भाग्यवान देखिवारे पाय..

'शरद-पूर्णिमा' (8 अक्टूबर) उनका अवतरण दिवस है. जिन्होंने भी उनकी शरण ग्रहण की है, वे अपने ऊपर उड़ेले गये उनके प्रेम, कृपा, अपनेपन, सान्निध्य और मार्गदर्शन के साक्षी हैं. फिर वे तो समस्त विश्व के गुरु हैं. समस्त विश्व इतना ही तो कर सकता है कि 'उनके द्वारा दिये गये सिद्धान्त को आत्मसात कर ले और उनकी बताई साधना द्वारा भगवत्प्रेम बढ़ाते हुये अंतःकरण शुद्ध करके अपने प्राणाराध्य राधाकृष्ण के प्रेम और सेवा को पाकर धन्य हो जाय'....
...यही देने और दिलाने तो वे आये, हम वह प्राप्त कर लें, अथवा प्राप्त करने के लिये तैयार हो जायँ, व्याकुल हो जायँ तो उनको कितनी ही प्रसन्नता होगी!! आओ, शरद-पूर्णिमा पर क्रंदन करें, उनकी कृपाओं के लिये, उनके परिश्रम के लिये, उनके क्षमादान के लिये.. उनकी सेवा, सँग और मार्गदर्शन पाने के लिये.

हे जगदगुरुत्तम!! अनंतानंत हृदयों में आप सदैव विराजमान हो. आपकी सन्निधि प्राप्त कर यह धरा अत्यन्त पावनी बन गई है ।

श्रीमद्पदवाक्यप्रमाणपारावारीण वेदमार्गप्रतिष्ठापनाचार्य निखिलदर्शन समन्वयाचार्य सनातनवैदिकधर्म प्रतिष्ठापन् सत्सम्प्रदायपरमाचार्य भक्तियोगरसावतार जगदगुरुत्तम 1008 स्वामी श्री कृपालु जी महाराज की जन्मदिन पर आपलोगों को हमारा हार्दिक शुभकामनाएं, बधाई एवम् अभिनन्दन

श्रीजी महाराज

10/10/2022

जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज को शत शत नमन

09/10/2022

स्वामी श्री श्रीजी महाराज की ओर से सभी भक्तों को गुरूदेव के 100 वें जन्मदिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

08/10/2022

मनगढ़ धाम की ओर से सभी भक्तों को जगदगुरु श्री कृपालुजी
महाराज के 100 वें जन्मोत्सव की बधाई

06/10/2022

समर्पण क्या है, इसका सीधा सा उत्तर यह है कि गुरु वचनों का पालन ही समर्पण है । आप कहेंगे गुरु वचनों का पालन, हां एकमात्र गुरु आज्ञा पालन से ही मीरा को भगवान की प्राप्ति हुई, वाल्मीकि जी को भगवान की प्राप्ति हुई ,प्रहलाद जी को ठाकुर जी मिले , तुलसीदासजी को प्रभु राम के दर्शन हुए । केवल गुरु आज्ञा पालन से ही भगवान की समस्त कृपाए जीव पर हो जाती है । उसको कुछ नहीं करना पड़ता, कोई साधन कोई भजन नहीं, लाखों नाम जप कोई करें और केवल गुरु की आज्ञा मान ले तो वह नाम जप से करोड़ों गुना श्रेष्ठ है। उसका लाभ भी उतना ही अधिक है, इसलिए केवल और केवल अपने गुरु की शरणागति में ही भक्तों को ध्यान देना चाहिए और तत्परता पूर्वक बिना बुद्धि लगाए गुरु की आज्ञा माननी चाहिए, यही समर्पण है ।

श्रीजी महाराज

05/10/2022

ब्रज के सेवैया

04/10/2022

तज्यो पिता प्रह्लाद, विभीषण बंधु, भरत महतारी ।
बलि गुरु तज्यो, कन्त ब्रज बनितन्हि, भए मुद मंगलकारी ।

भगवान के विरोधी, गुरु के विरोधी का तुरंत त्याग कर देना चाहिए । महाराज प्रह्लाद ने अपने पिता का त्याग कर दिया था क्योंकि वह भगवान विष्णु के विरोधी थे । विभीषण जी ने अपने भाई रावण का त्याग किया क्योंकि उसने वैदेही का हरण किया और भगवान राम से विरोध ठान लिया । राजा बलि ने अपने गुरु शुक्राचार्य का त्याग किया ,उनकी बात नहीं मानी क्योंकि उन्होंने राजा बलि को वामन भगवान को तीन पग भूमि देने से मना किया और ब्रज गोपियों ने अपने पति को त्याग दिया क्योंकि उन्होंने ठाकुर जी से प्रेम करने के लिए विरोध किया, महारास में जाने से गोपियों को रोका ।
प्राय लोग कहते हैं कि संसार को छोड़कर भगवान की ओर जाओगे, गुरु की ओर जाओगे तो तुम्हारा अहित ही होगा । लेकिन यहां जितने भी उदाहरण दिए गए इनको गोस्वामी जी कहते हैं कि यह सब मंगल हारी ही नहीं मंगलकारी हो गए। अर्थात दूसरों का मंगल करने वाले हो गए दूसरों का भी कल्याण किया इन्होंने, तो जो भगवान का विरोध करे, सत्संग में जाने से रोके उसको तुरंत छोड़ देना चाहिए । भक्तों को किसी का भय नहीं मानना चाहिए उसको एकमात्र भगवान के भरोसे रहना चाहिए ।

श्रीजी महाराज

Photos from Shrijee Kripalu Satsang's post 03/10/2022

जगदगुरू श्री कृपालु जी महाराज को 100 वर्ष पूरे होनेवाले है ।उनका जन्म 1922 में शरद पूर्णिमा की मध्यरात्रि में हुआ था । श्री गुरुदेव की जन्म शताब्दी के उपलक्ष्य में जगदगुरू श्री कृपालुजी महाराज की जन्म भूमि भक्तिधाम, मनगढ़ में विभिन्न प्रकार के उत्सव का आयोजन इस वर्ष किया गया है । आज प्रथम दिवस आश्रम में श्री गुरुदेव की पालकी यात्रा निकाली गई, जिसमें हजारों भक्तों ने भाग लिया एवं गुरुदेव का शताब्दी दिवस बहुत ही धूमधाम से मनाया गया ।
भक्ति धाम आश्रम प्रयागराज के नजदीक कुंडा ,तहसील में स्थित है ।

श्रीजी महाराज

29/09/2022

स्वामी श्री श्रीजी महाराज भक्ति धाम, मनगढ़ में दर्शन करते हुए । मनगढ़ जगदगुरू श्री कृपालुजी महाराज की जन्म स्थली है । यहां श्री गुरुदेव ने एक भक्ति धाम आश्रम का निर्माण किया है, जिसमें अहर्निश भगवान का नाम संकीर्तन होता है । यह आश्रम प्रयाग से लगभग 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है एवं इस आश्रम में जाने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्रयाग से मनगढ़ की बस सुविधाएं उपलब्ध है ।
श्री भक्ति धाम मनगढ़ आश्रम में श्री गुरुदेव ने भक्ति मंदिर का निर्माण करवाया है एवं यहां वर्ष में दो बार साधना शिविर का कार्यक्रम भी करवाया जाता है । साधना कार्यक्रम में भगवान के नाम, रूप ,लीला, गुण,धाम इत्यादि का कीर्तन ,श्री गुरुदेव के प्रवचन इत्यादि से भक्तों को लाभ प्राप्त होता है ।

श्रीजी महाराज

27/09/2022

कलियुग केवल नाम अधारा
कलियुग में भगवान के नामों का संकीर्तन ही एकमात्र कल्याण का मार्ग है ,उन्नति का मार्ग है । कलियुग में जप, तप, योग, यज्ञ ज्ञान यह सब नहीं है ।
कलयुग योग यज्ञ नहीं ज्ञाना
सबके साथ बैठकर के भगवान के नामों का कीर्तन, उसको संकीर्तन कहते हैं । साथ में भगवान का ध्यान भी हो जो कीर्तन का प्राण बताया गया । एकांत में तो हमारा मन लगता नहीं क्योंकि हमने कभी साधना किया नहीं, इतना हमारा अभ्यास नहीं है और थोड़ा सा भी मन नहीं लगा तो हम आलस करके साधना करना बंद कर देते हैं । इसलिए हमें समूह में कीर्तन करने का अभ्यास करना चाहिए, इससे आसानी से मन लग जाता है और आलस भी नहीं आता ।

श्रीजी महाराज

25/09/2022

कलियुग में भगवान को पाने का एकमात्र साधन भक्ति है। भक्ति का अर्थ है समर्पण और समर्पण का अर्थ है जो कुछ भी हमारे पास है वह सब कुछ हम भगवान को समर्पित कर दें । हमारे पास 3 वस्तुएं हैं तन ,मन एवं धन ,एक तो हमारा शरीर है, एक मन है और जो भी धन का सामान है ,वह सब कुछ समर्पित कर दे भगवान और संत को, यह समर्पण है और यदि कोई सोचे कि हम केवल शरीर से सेवा करें या केवल धन से सेवा करें और भगवान का नाम ना ले, भगवान का स्मरण ना करें मन से तो इससे काम नहीं बनेगा। या कोई सोचे केवल मन से करें और ना हम अपना शरीर भगवान को समर्पित करें और ना ही धन समर्पित करें,तो इससे भी काम नहीं बनेगा। वशिष्ठ मुनि ने भगवान राम से कहा था
मनसैव कृतम राम न शरीर कृतम कृतम ।। ( योगवाशिष्ठ उपनिषद् )
मन से किया हुआ ही नोट होता है शरीर का करना नोट नहीं होता भगवत क्षेत्र में ।

समर्पण करना होगा लेकिन प्रमुख है मन । आप शरीर से तो बहुत सेवा कर रहे हैं ,धन भी बहुत दान कर रहे हैं लेकिन यदि मन युक्त नहीं है मन से गंदा गंदा चिंतन कर लिया गंदा सोचा भी तो हो गया नाम अपराध, सारा किया कराया वहीं पर समाप्त हो गया । इसलिए मन से दुर्भावना ना होने पाए संत के प्रति, भगवान के प्रति ,भगवान के धाम के प्रति, भगवान के नाम के प्रति ,भगवान के लीला के प्रति, इन सब में भगवत भावना रहे यह समर्पण इस समर्पण का हमको अभ्यास करना है । जहां-जहां कमी है, वहां वहां सुधार करना। निरंतर हम प्रयत्न करें रोज सोचे कि हमसे क्या गलती हो रही है हम कहां गलत कर रहे हैं ।हमको लाभ क्यों नहीं मिल रहा क्या हमारा समर्पण सही सही नहीं है, अपने गुरु से पूछे और उनके बताए हुए मार्ग पर आगे बढ़े उनकी आज्ञा पालन करें बस । ऐसा करने से मन हमारा भगवान में लगने लग जाएगा और एक दिन अंतःकरण शुद्धि होने के पश्चात हमको भगवान का आनंद, भगवान का प्रेम प्राप्त हो जाएगा ।

श्रीजी महाराज

19/09/2022

हमें केवल और केवल भगवान की ही भक्ति करनी चाहिए, किसी देवी देवता की नहीं । स्वर्ग के देवी देवता भी मायिक होते हैं अर्थात माया के आधीन होते हैं । हमारे देश में एक देवी जी का नाम बहुत चलता है, संतोषी माता ।
संतोषी माता का नाम वेद, शास्त्र, पुराण में कही नहीं है , लेकिन किसी ने उनके नाम पर एक पिक्चर बनाई जिसके कारण उनका प्रचार हुआ और लोगों ने उनके नाम पर व्रत इत्यादि रखना प्रारंभ कर दिया । यहां तक कि उनके नाम पर मन्दिर भी बन गए । बनाने वाला इतना मूर्ख था कि उसको यह भी पता नहीं था कि संतोषी पुरुष का नाम होता है, स्त्रियों को संतोषीनी कहा जाता है ।

श्रीजी महाराज

14/09/2022

श्री राधा रानी भगवान श्री कृष्ण की अंतरंग शक्ति है । श्री राधा एवं श्रीकृष्ण एक ही हैं , लीला के लिए इन्होंने दो रूप बना लिए हैं ।

श्रीजी महाराज

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वृंदावन धाम वास कब मिलेगा
संसार में सब अपने अपने स्वार्थ को सिद्ध करने के लिए ही एक दूसरे से प्रेम की एक्टिंग करते हैं । स्वार्थ सिद्ध होने के पश्...
दास्य, सख्य, वात्सल्य एवं माधुर्य इन चार भावों से भगवान से प्रेम करना है
भजो गिरिधर गोविंद गोपाला( Ongoing  Satsang at Krishna Residency, Madhya Pradesh).

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हनुमान चालीसा 16 वीं शताब्दी में महान संत तुलसीदास द्वारा रचित एक भक्तिपूर्ण भजन है, जो भगवान हनुमान

Vasudev kutumbakam Vasudev kutumbakam
BARSANA
Mathura, 281405

हरे कृष्ण..हरे कृष्ण..कृष्ण..कृष्ण...हरे हरे !! हरे राम ..हरे राम.. राम..राम.. हरे हरे !!

Radhe ke Shyam Radhe ke Shyam
Varindhavan
Mathura

Ladli Joo Online Shoppe Ladli Joo Online Shoppe
Mathura, 281121

Anandi Devi vriddha ashram Vrindavan Anandi Devi vriddha ashram Vrindavan
Lalita Bagh
Mathura, 281121

welcome to vridha Ashram

Brave Indian Forces Brave Indian Forces
Mathura

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Radha Girdhari daily vlog Radha Girdhari daily vlog
Goverdhan
Mathura, 281502

Radhe Radhe .. Jai shree ladli lal ..

Radhakrishnasachetan Radhakrishnasachetan
Mathura

Hopefully our humble effort to showcase you the never ending eternal glories of our beloved Radha-Krishna's nij dham Shri Braj Dham(Mathura-Vrindavan-Nandgaon-Barsana)

Vrindavan Dham Vrindavan Dham
Mathura, 281001

कृष्णा भक्ति