Radiosakhi Mamta Singh
विविध भारती की उदघोषिका और कहानीकार र?
शुक्रिया 🙏
ममता सिंह को राजपाल एण्ड सन्ज की ओर से जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ💐
राग मारवा में दस लंबी कहानियाँ शामिल हैं। सभी में समाज में तेजी से आ रहे बदलाव, चाहे अच्छे हों या बुरे, को कुछ सीधे और कुछ साफ़ स्वर में कहा है। उनकी कहानी विशेषकर 'आखिरी कांट्रैक्ट' हमारे देश में असहिष्णुता और फैलती दहशत को मार्मिक ढंग से बयां करती है। साहित्य जगत में ममता सिंह पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से बेहद परिचित नाम है। वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय से संस्कृत में एम.ए., प्रयाग संगीत समिति से "शास्त्रीय संगीत में प्रभाकर" और रूसी भाषा में डिप्लोमा प्राप्त हैं। वर्तमान में विविध भारती, मुम्बई में उद्घोषिका हैं। श्रोताओं के बीच 'रेडियो सखी' के नाम से लोकप्रिय हैं तथा 'छायागीत' और 'सखी सहेली' कार्यक्रम का संचालन करती हैं।
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#कहानी #राग_मारवा Radiosakhi Mamta Singh
उन दिनों खूब व्यस्तता थी, यात्राएं बहुत सारी थीं, जब इस महाविशेषांक में कहानी लिखने के लिए अवसर मिला था वॉट्स ऐप के संदेश के ज़रिए। कई बार लैप टॉप के सामने बैठी, चंद लाइनें ही लिख कर रह गई। उम्मीद छोड़ दी थी कि इस व्यस्तता में कहानी पूरी नहीं हो सकती।
एक रोज़ यात्रा से लौटी थी और Mamta Kalia दीदी का संदेश मिला_"एक ताज़ा कहानी लिख कर लौटती डाक या लौटती मेल से भेजो । "
दिल बल्लियों उछल पड़ा... कि ममता दीदी ने कहा है कहानी लिखने को। शाम खुशगवार हो गई थी।
ममता दीदी का समावेशी भाव, उनकी ग़ज़ब की ऊर्जा, उनका विराट हृदय, उनका लेखन सब कुछ इतना प्रभावित करता है कि मैंने ख़ुद को कहानी के हवाले कर दिया। और फिर....आनन फानन में लिख भी ली कहानी।
ममता कालिया दीदी के संपादन में वर्तमान साहित्य के इस महा विशेषांक में कहानी न लिख पाती तो पछतावा होता। शुक्रिया ममता दीदी।
Shashi Kumar Singh जी का विशेष आभार।
किताबें हमारी सबसे अच्छी दोस्त हैं। दिनकर पुस्तकालय घर तक किताबें पहुंचाने का अनूठा प्रयास कर रहा है।
Rajkamal Prakashan Samuh से प्रकाशित मेरा कहानी संग्रह "किरकिरी" अब दिनकर पुस्तकालय Dinkar Pustakalay में भी उपलब्ध है। आप चाहें तो मेरी तीन किताबें एक साथ ख़रीद सकते हैं। विस्तृत जानकारी के लिए दिए गए नम्बर पर फ़ोन कर सकते हैं।
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मित्रों पाठकों ने इनबॉक्स, वॉट्स ऐप फ़ोन के जरिए पूछा _कहानी संग्रह "किरकिरी" कहां मिलेगी...उनकी जानकारी के लिए बता दें, राजकमल प्रकाशन के स्टॉल के अलावा फ्लिपकार्ट और एमेजॉन पर भी उपलब्ध है।
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Kirkiri | किरकिरी किरकिरी ‘राग मारवा’ के बाद ममता सिंह का दूसरा कथा-संग्रह है, जिसमें संकलित कहानियाँ प्रपंच में लिथड़े इस हिंसक समय .....
ममता सिंह का उपन्यास 'अलाव पर कोख' हमारे समय के उस भयावह दौर की दास्तान है जहाँ सर्वाइवल की कठिनतम चुनौतियों और ज़िन्दगी की जद्दोजहद ने जीवन से सारा रस सोख लिया है। यह उपन्यास उन लोगों की कहानी कहता है जिनकी महत्त्वाकांक्षाओं की फ़ेहरिस्त ने न परिवार के लिए वक़्त छोड़ा है, न रिश्तों के लिए। हालाँकि यह सिर्फ़ आज के समय की ही बात नहीं है। गैरज़िम्मेदार लोग हर कालखण्ड में होते रहे हैं, ठीक उसी तरह जैसे घर परिवार की चक्की में पिसकर अपने अस्तित्व को स्वाहा कर देने वाले हमेशा इस समाज में रहे हैं।
इस उपन्यास की कहानी के केन्द्रबिन्दु हैं सागर और तन्वी, जिनके बीच से मोहब्बत बूँद-बूँद रिसती जा रही है। अंतरजातीय प्रेम विवाह के कारण
परिवार के सदस्यों में पहले ही अवमानना का शिकार हुई तन्वी सागर के गैरजिम्मेदाराना रुख से तंग आकर आईवीएफ तकनीक के जरिए अपनी कोख बेचने का निर्णय लेती है क्योंकि उसके सामने घर के नियमित खर्चों का दैत्य तो मुँह बाए खड़ा ही है, दो जुड़वा बच्चों की परवरिश भी उसे ही करनी है। क्या तन्वी की परेशानियों और उलझनों से सागर में कोई परिवर्तन होता है, क्या वह नाटकों की उस दुनिया से परे कुछ ऐसा कर पाता है जिससे कुछ धनार्जन हो और उनका जीवन सुगम हो सके, उनकी ज़िन्दगी से रेत की मानिन्द फिसलते चले जा रहे प्यार का हश्र आख़िर क्या होता है, जीवन के इस महायुद्ध में सागर उसके साथ खड़ा होता है या उसे अकेले छोड़कर भाग लेता है, इन सारे सवालों के जवाब उपन्यास पढ़ने पर ही मिल सकेंगे। जिन पाठकों के लिए महिला विमर्श के बड़े मायने हैं, उन्हें इस उपन्यास में काफी सामग्री मिल जाएगी।
ममता सिंह ने एक अनछुए किन्तु रूखे कथानक को अपनी भाषा और मानवीय संवेदना के कोमल तंतुओं के सहारे सरस बनाने का शानदार प्रयास किया है। कृत्रिम गर्भाधान जैसे विषय पर पर लिखे गए इस उपन्यास में कॉलेज रैगिंग, सामाजिक असमानता, जातपात के दंश और महानगरीय जीवन की कठिनाइयों से जूझते, अकेले पड़ते व्यक्ति का मार्मिक चित्रण हुआ है।
प्रतिबिम्ब [नोशन प्रेस का उपक्रम) ] से छपा 'अलाव पर कोख' ममता सिंह का पहला उपन्यास है। उन्हें सादर शुभकामनाएँ।
यह किताब Dinkar Pustakalay में उपलब्ध है।
◆अलाव पर कोख
◆ममता सिंह
◆प्रतिबिम्ब
◆प्रथम संस्करण: 2022
◆पृष्ठ: 109
◆मूल्य: ₹ 145
#किताबें_2023
#किताबें_इन_दिनों
#पुस्तक_परिचय
नारी मन की अंतर्वेदना को व्यक्त करती कहानी - अलाव पर कोख - सुधीर ओखदे -
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ममता सिंह का नवीनतम उपन्यास “ अलाव पर कोख “ नारी मन की अंतर्वेदना को व्यक्त करती मार्मिक कहानी है ।
IVF तकनीक से किसी महिला को ममत्व का सुख देने वाली विधि किसी के परिवार पालने का साधन भी हो सकती है ! बाज़ार कहाँ नही है ! जब कोई स्त्री अपने अंडों का व्यवसाय करती है तो उसकी मानसिक अवस्था का दारुण वर्णन पूरे उपन्यास में जगह - जगह चित्रित होता है ।
ममता को मैं व्यक्तिगत रूप से जानता हूँ । विविधभारती मुंबई में हम दोनों ने साथ में कार्य किया है ।ये छुईमुई सी लड़की इतने बोल्ड विषय पर इतनी बेबाक़ी से व्यक्त होगी मैं सोच भी नहीं सकता था ।
इस उपन्यास के मुख्य चार पात्र हम कह सकते हैं । तन्वी / सागर / गिन्नी / और डॉ पिंटो …
उपन्यास का आरंभ तन्वी द्वारा अंडे बेचने की प्रक्रिया से शुरू होता है , जहाँ वह अस्पताल में अपने रूटीन चैकअप के दौरान अपने अतीत में पहुँच जाती है ।जहाँ उसका बचपन , यौवन , महाविद्यालयीन जीवन , सागर से प्यार और फिर शादी । फिर बाँझ का लेबल और मानसिक अवसाद के दौर में सागर और तन्वी द्वारा आईवीएफ़ तकनीक द्वारा अपने स्वयं के जुड़वा बच्चों का जन्म और फिर परिवार पालने की प्रक्रिया में पुरुषीय सत्ता का आडंबर और असहयोग ।
सागर का जिम्मदारियों से लगातार बचना और तन्वी का अपनी नौकरी छोड़ने का निर्णय ।बच्चों को पालने का संघर्ष और इन सब प्रक्रिया में तन्वी का घर में सिमट जाना इत्यादि का वर्णन ममता ने इतनी सहजता से किया है कि बार बार उसके लेखन पर मर मिटने को जी चाहता है ।
ममता की भाषा में एक भोला प्रवाह है जो मासूमियत से आपको उसके प्रवाह में बहने को बाध्य करता है । संपूर्ण उपन्यास में हमें ममता की ये भाषाई जादूगरी देखने को मिलती है ।
गिन्नी उसके घर की पुरानी नौकरानी है जो स्वयं भी माँ न बन सकने की पीड़ा को भोग रही है । उसका शराबी पति जब बात बात में उसे प्रताड़ित करता है तो वह अनपढ़ औरत प्रतिशोध का यह अनोखा तरीक़ा अपनाती है और अपने अंडे बेचने के अभिनव व्यवसाय द्वारा ममत्व के सुख को प्राप्त करने लगती है । उन पैसों से वह अपना पेट भी पालती है ।
तन्वी पढ़ी लिखी है ।पहले वह एक संस्थान में पत्रकार जैसे महत्वपूर्ण पद पर दिखाई गई है लेकिन बच्चों को पालने के संघर्ष में उसे नौकरी छोड़नी पड़ती है ।वह सागर के ग़ैरज़िम्मेदार व्यवहार से व्यथित होती है ।बच्चों को पालने में हो रहे खर्च से भी जब सागर मुँह चुराता है तब तन्वी को भी गिन्नी का रास्ता अपनाना पड़ता है और वह भी प्रतिशोध के इस अभिनव व्यवसाय को अपना लेती है ।
संपूर्ण उपन्यास में ममता ने नारी मन की उबरती पीड़ा को इस सहजता से व्यक्त किया है कि उनकी सशक्त लेखनी का लोहा मानना ही पड़ता है ।
उपन्यास के कथानक को विस्तार से भी व्यक्त किया जा सकता है लेकिन मैं चाहता हूँ की आप इस उपन्यास को ज़रूर ज़रूर पढ़ें और एक नये लोक में विचरण करें ।ममता को उसके आगामी लेखन के लिये हार्दिक शुभेच्छा ।
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सुधीर ओखदे
आजकल के युवा जहां एक ओर जागरूकता के मुहाने पर सबसे आगे की कतार में खड़े हैं, वहीं दूसरी ओर महत्वकांक्षा के जाल में इस कदर उलझे हैं कि अपने आसपास की जमीन को भूल बैठे हैं।
कैरियर की चाह के चलते वे दूसरे देश में पैर रखने को मजबूर भी है और भ्रमित भी। कुछ युवाओं के लिए विदेश जाकर पढ़ना एक अच्छे कैरियर की चाह है तो कुछ के लिए पैसा बड़ी मजबूरी है। यहां अपने देश से विदेश पढ़ाई के मामले में सस्ता जरूर है मगर किस कीमत पर? सपनों के पंख कब झुलस जाए नहीं पता। कभी कोई प्राकृतिक आपदा इन छात्रों के भविष्य को अधर में छोड़ देती है तो कभी युद्ध की विभीषिका।
यह है ममता सिंह की लिखी नई कहानी "बंकर" जिसकी नायिका हैं प्राची।
कहानी उन छात्र-छात्राओं की है जो यूक्रेन में पढ़ाई करने गए हैं पर अचानक रूस के हमले की वजह से अब यूक्रेन के एक शहर में फंस गए हैं।
इस कहानी को शायद कहानी कहना ग़लत होगा क्योंकि कहानी में घटी घटना का धरातल वास्तविक है, और लेखिका ने रूसी हमले और यूक्रेन में फंसे छात्रों का इतना सजीव चित्रण किया है कि लगता ही नहीं आप कोई कहानी पढ़ रहे हैं। लगता है कि आप का ही अपना कोई युद्ध की विभीषिका के बीच फंस गया है ।
नायिका प्राची कितने जतन कर एम.बी.बी.एस. की पढ़ाई करने खारकीव आई है। देश तो अंजाना हैं ही, लोग भी अंजाने हैं। यहां तक कि भाषा भी अंजानी है। पर प्राची डटी है। वह सपनों के साथ-साथ मां-पिताजी की आस भी अपने साथ लेकर आई है, मगर आते ही उसे बुखार हो गया और बड़े प्यारे से नाम वाली एक रूममेट भी मिली - रूमी। मगर कुछ पूछो, कुछ जानना चाहो, तो एक ब्लैंक लुक और सपाट चेहरे के अलावा प्राची को कुछ विशेष न दे सकी।
और अब सारी हकीकत बस एक बात पर आकर ठहर गई है, कि इस जलते बंकर में जहां वो घिरी है, जीवन कितना सुरक्षित है - नहीं पता, और भविष्य, उसका तो कोई निशान दूर-दूर तक नहीं दिखाई दे रहा है।
प्राची का क्या हुआ? क्या वो अपने वतन बापिस लौट पाई?
कहानी का अंत हम सभी के लिए एक प्रश्नचिन्ह छोड़ जाता है। जब जब युद्ध होता है लोग उसके वर्णन में गहरी रुचि लेते हैं पर युद्ध के निवारण के बारे में बात नही के बराबर होती है।
यूक्रेन रिटर्न छात्र-छात्राओं को एडमीशन या नौकरी कौन देगा यह सवाल मुंह बाए सामने खड़ा है।
पढ़िए ममता सिंह की रोचक कहानी "बंकर"। लेखिका ने युद्ध के अनुभव को किसी चित्रपट के दृष्य़ की तरह सिलसिलेवार इस तरीके से गूंथा कि पाठक की रोचकता कहानी के अंतिम पृष्ठ तक बनी रहती है ..।
आज के दैनिक भास्कर में मेरे उपन्यास _"अलाव पर कोख" की समीक्षा।
क्या आप भी पढ़ना चाहते हैं ये पुस्तक? तो ये रहे लिंक।
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पूरा हुआ एक ख्वाब...हाथ में आया पहला उपन्यास..."अलाव पर कोख"।
इसी सोमवार यानी 31 तारीख को जब उपन्यास छप जाने की सूचना मिली तब से बेक़रार थी इसे हाथ में ले कर देखने की। ये ख़ुशी वैसी ही है जब आपका नवजात शिशु आपकी गोद में पहली बार आता है।
आप भी शामिल होइए हमारी इस ख़ुशी में। एक ख़ास मुद्दे पर लिखे उपन्यास को पढ़ कर अवगत कराते रहिए।
बहुत सुन्दर तरीके से प्रकाशित किया है उपन्यास।
बेहद ख़ूबसूरत आवरण के लिए आदर्श भूषण जी को बधाई।
दिये गए लिंक पर हाज़िर है उपन्यास।
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कहानियों से उपन्यास के बीच का जो पुल है वो पार कर पाऊंगी या नहीं, इसका पक्का भरोसा नहीं था। दरअसल ये कहानी वहां से शुरू हुई थी जब कुछ वरिष्ठ लेखकों और लेखिकाओं ने कहा—‘तुम्हारी लेखन शैली उपन्यास की है, तुम जल्द ही उपन्यास लिखो’। धीरेंद्र अस्थाना, मनीषा कुलश्रेष्ठ और गीताश्री।
‘राग मारवा’ की भूमिका लिखने वाले वरिष्ठ लेखक Dhirendra Asthana धीरेंद्र अस्थाना जी ने कहा, ‘तुम अब जल्दी ही एक उपन्यास लिखो’। Manisha Kulshreshtha जी ने बहुत पहले, जब मेरा कहानी संग्रह (राग मारवा) नहीं आया था तभी ये बात कही थी। ‘राग मारवा’ के बाद Geeta Shree गीताश्री जी ने कहा-“तुम सब छोड़ कर एक धांसू उपन्यास लिखो, बाकी अभी कुछ मत लिखो....”। शायद प्रेरणा का बीज तभी पड़ गया था।
फिर इस बीज को खाद और पानी से सींचा अनुराग जी के निर्देश ने- कि बिंज के लिए आप कहानी नहीं, बल्कि उपन्यास लिखिए....मैंने फोन रखा, सोचा शायद यूँ ही कह दिया होगा और अपने काम में मसरूफ हो गई। काफी दिनों बाद जब अनुराग जी का सन्देश आया कि उपन्यास लिखा जा रहा या नहीं? तो मैं जैसे नींद से जागी। गुलमोहर से जैसे ढेर सारे फूल झरझरा कर ज़मीन पर बिखर गए हों और मैं उन फूलों पर चल रही हूँ। आँखें मूँद कर बैठी जैसे उपन्यास पूरा होने का कोई ख्वाब देखा हो...और ख्वाब की ताबीर हो जाए।
बस....उस ख्वाब को पूरा करने के लिए जुट पड़ी...। इस ख्वाब में रंग भरने का काम किया जीवन-सखा युनुस खान ने। “तुम उपन्यास लिख सकती हो, फास्ट लिखो... बाकी जिम्मेदारियां मैं और जादू संभाल लेंगे।”। फास्ट तो नहीं, बहुत हौले हौले, धीमी गति से लिख पाई क्योंकि एक साथ बहुत सारी जिम्मेदारियां हम सबको निभानी ही पड़ती हैं। इस उपन्यास ने कई रातों की नींद मांगी, बहुत सारी रिसर्च लगी, अख़बारों की बहुत सारी कतरन इकट्ठी की। कथानक को बार-बार बुनना और उधेड़ना पड़ा। इस उपन्यास के पूरा होने में बहुत सारा सहयोग जादू का भी है। मैं दफ्तर के बाद जब घरेलू कामकाज में उलझती तो गले में हाथ डाल कर याद दिलाता- “मम्मा!!!.....आपको नावेल पूरा करना है, आप लिखो मैं आपको ज़रा भी तंग नहीं करूंगा...”।
अब इतनी मेहनत समाई है उपन्यास में, तो मित्रों से कहना तो बनता है कि पढ़ें और बेबाक राय भी दें। इस पोस्ट में लिखे नामों के साथ सभी मित्रों का शुक्रिया जिन्होंने मुझे ये उपन्यास लिखने के लिए प्रोत्साहित किय।
किताब इंटरनेट पर तीन ठिकानों पर उपलब्ध है। इसके अलावा आपके नजदीकी पुस्तक विक्रेता तक जल्दी ही पहुंचेंगी। 145 रूपए ज्यादा नहीं हैं आज के जमाने में। आप तक पुस्तक पहुंचने की विकल प्रतीक्षा है।
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ममता सिंह का पहला उपन्यास
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रिश्तों में प्रेम-बैर, आत्म-सम्मान और आपसी नोक-झोंक से पगे इस उपन्यास में सामाजिक विसंगतियां तो हैं ही, स्त्री की स्वच्छंदता और आत्म-निर्भरता के लिए उठाया गया साहसी निर्णय भी है। एक स्त्री मेडिकल साइंस की अत्याधुनिक तकनीक से ख़ुद को समृद्ध करती है लेकिन इस व्यवस्था पर कुछ ज़रूरी सवाल भी छोड़ती है।
कृत्रिम गर्भधारण को अपनी आय का ज़रिया बनाकर समाज को आईना दिखाने वाली स्त्री जब ख़ुद को कष्ट से भेदती है, तो वह यह भी मानती है कि इससे उसके जैसी तमाम स्त्रियों के जीवन में फूल खिलेगा। यह पितृसत्तात्मक समाज की व्यवस्था में स्त्री-पुरुष के बीच वैचारिक मतभेद और संवेदना की गझिन बुनावट की कहानी भी हैI
एक संवेदनशील प्रेमी, पति बनकर कब हौले से प्रेम की सघन-वाटिका को काँटों से लबरेज़ कर देता है, इसकी ख़बर न उसे होती है, न उसकी पत्नी को। आधुनिक चिकित्सा तकनीक के इर्द-गिर्द बुने इस कथानक में, छोटी-छोटी खुशियाँ, बड़ी-बड़ी चुनौतियाँ और किरदारों के बीच सामंजस्य का बेहतरीन तालमेल है। Mamta Singh के उपन्यास का आकर्षक शिल्प और नर्म-ओ-नाज़ुक भाषा पाठकों के लिए इसे एक ज़रूरी किताब बनाती है।
Notion Press Hindi के प्रिंट उपक्रम “प्रतिबिम्ब” से प्रकाशित होने वाली यह तीसरी किताब है। संयोग से यह ममता सिंह—जो रेडियो सखी के नाम से प्रसिद्ध हैं— का पहला उपन्यास भी है।
पाठक इसे इस लिंक के ज़रिए पा सकते हैं : https://notionpress.com/read/alaav-par-kokh
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Tanvi Mathur is a Writer, An Artist(voice & camera), an entrepreneur lives in Mumbai