Kaviraj Vijayraj

Poets, Writer

01/09/2024

*विषय: गलत होना और गलत करना*

*जय जिनेन्द्र आप सभी को kaviraj का प्रणाम।*

*जब भी कोई सामाजिक कार्य हाथ में लेता है, तो न चाहते हुए भी कोई न कोई चूक होने के संयोग बन ही जाते है।*

*गलत होना और गलत करना दोनों में बहुत फर्क होता है, यदि किसी से कोई चूक हो गई है, तो उसको "गलती" समझना चाहिए, और उन्हें बड़े ही आदरपूर्वक और मीठे शब्दों के द्वारा हो रही चूक/गलती से अवगत करवाना चाहिए। इसके लिए सामने वाले को चूक/गलती को सुधारने का समय भी देना चाहिए। न की एक ही पल में और कड़े शब्दों से उस पर टूट पड़ना चाहिए, और न ही आरोप पर आरोप लगा कर ऐसे बर्ताव करना चाहिए, जैसे उसने कोई बहुत बड़ा गुनाह कर दिया हो। ऐसे में सामने वाले को ठेस पहुंचती है, और कार्य करने वाले का मनोबल गिर जाता है।*

*ऐसे में कुछ लोग ऐसे भी होते है, जो मौके के इंतजार में होते है, जिससे चूक होती है, उस पर इतना टूट पड़ते है, इतना टूट पड़ते है की सामने वाला बौखला कर कोई और गलती करे और फिर उसको कही का न छोड़े।*

*सामाजिक कार्य करने वाले व्यक्ति का स्वभाव धीमा होना चाहिए, हर किसी से बात मधुर आवाज में और आदरपूर्वक करनी चाहिए। यदि कोई चूक/गलती होती है, और कोई उस चूक/गलती से उसे अवगत करवाता है, तो उसको गंभीरता से लेना चाहिए और तुरंत उसको ठीक कर देना चाहिए। और उस व्यक्ति का धन्यवाद करना चाहिए और यह कहना चाहिए की अच्छा हुआ आपने मुझे अवगत करवाया।*

*कार्य करने वाले को यदि कोई चूक/गलती से अवगत करवाता है, तो उसको अहंकार कभी नहीं लाना चाहिए और न ही सामने वाले को बुरा भला शब्दों से अनाब सनाब बोलना चाहिए।*

*सामाजिक कार्य करते हुए हुई चूक/गलती के समय उसे ऐसे लोगों से बचने की कला भी आनी चाहिए, जो लोग उसे तोड़ने का पूर्ण साहस करेंगे। उकसाने की तरह तरह की कोशिशें करेंगे, तंज कसेंगे,आपके कार्य की ओर कार्यक्रम की हसीं उड़ाएंगे। खुद करेंगे नहीं और जो करेगा उसको करने नहीं देंगे, एक चूक/गलती को इतना बड़ा कर के बताएंगे जैसे दुनिया के सबसे बड़े आरोपी तुम ही हो। और ज्ञान इतना देंगे की जैसे सरकार ने उन्हें ज्ञानचंद की पदवी से सम्मानित किया हो।*

*मेरे इस लेखन में यदि कोई गलती हुई हो, या किसी को ठेस पहुंची हो तो क्षमा करे। मेरा यह लेखन किसी के भी ऊपर नहीं है, इस लेखन का तात्पर्य यही है की सिर्फ हमें किस जगह पर कैसी भूमिका निभानी चाहिए और कोनसी नहीं निभानी चाहिए जिससे किसी के भी मन को आहत पहुंचे। *मिच्छामी दुक्कड़म*

*कवि विजयराज जैन (kaviraj)*

31/08/2024

*कुआ खोदने वाला कुएं में गिर गया,*
*और फिर अंदर से कहता है की,*
*"मैं तो जीत गया"।*

*कवि विजयराज जैन (कविराज)*

30/08/2024

*विषय: शोक पर आमंत्रण कैसा?*

*जय जिनेन्द्र, आप सभी को kaviraj का प्रणाम*

*जब कभी हमारे समाज या हमारे परिचित के यहां पर किसी के स्वर्गवास का समाचार प्राप्त होता है, तो हम सभी उनके वहां पर जाकर अंतिम यात्रा में भाग जरूर लेते है, वो अलग बात है, की कोई किसी कारण नहीं पहुंच पाता है। फिर उनके यहां पर एक दिन प्रार्थना सभा को रखा जाता है, और जो स्वर्गीय हुए है, उनके लिए हम सभी शामिल होकर वहां पर अपने अरिहंत परमात्मा से प्रार्थना कर उनके मोक्ष प्राप्ति की कामना करते है।*

*प्रार्थना सभा जिस दिन रखी जाती है, उसके लिए, फोन द्वारा सभी रिश्तेदारों को एवं समाज के लोगों को आमंत्रण दिया जाता है। और ऐसे में एक भी परिचित को अगर गलती से भूल गए या फिर किसी कारण संपर्क नहीं हो पाया, तो सामने वाले को ऐसा लगता है, की उसको जानबूझकर अनदेखा किया गया है। और जाहिर सी बात है की इतने सारे लोगों को संपर्क करते–करते कोई न कोई भूल से छूट ही जाते है।*

*मुझे इसमें एक बात बहुत ही असमंजस लग रही है की, शोक के कार्यक्रम में आमंत्रण देना यह कहां से उचित है? कोई खुशी का आयोजन हो तो बिलकुल आमंत्रण देना चाहिए, और बिना आमंत्रण के खुशी के अवसर जाना भी उचित नहीं है। परंतु यदि हमारे किसी परिचित के यहां पर शोक होता है, तो मैं समझता हूं की वहां पर हम सभी को बिना आमंत्रण के जाना चाहिए, और उनके उस दुःख की घड़ी में उनको सांत्वना देकर उनको संभालना चाहिए।*

*पहले के जमाने में फोन तक नहीं होता था की रिश्तेदारों को यह समाचार उन तक पहुंचाया जाए, फिर फोन आया तो समाचार देने के उद्देश्य से फोन किया जाता था, और अब यह एक रीत बन चुकी है, की अब समाचार नहीं बल्कि एक–एक कर सभी को निमंत्रण दिया जाता है। ऐसे में शोकाकुल परिवार एक तरफ तो शोक में होता है, और दूसरी तरफ एक–एक को फोन कर के आमंत्रण देने में लग जाता है। और यह उनको हर हाल में करना पड़ता है, वरना समाज और रिश्तेदारों की शिकायतों का शोक और अलग से मनाना पड़ता है।*

*आज का समय बहुत ही आधुनिक और तकनीकी उपकरणों के साथ चल रहा है, हर कोई WhatsApp या फिर कई सारे Social Network से जुड़ा है, यदि हमको एक message के द्वारा अपने किसी रिश्तेदार या किसी परिचित के शोक का समाचार मिल जाता है, तो बिना किसी अन्य आमंत्रण के शोकाकुल परिवार के शोक में शामिल जरूर होना चाहिए। ऐसे करने से शोकाकुल परिवार को बहुत ही आसानी होगी। और यह सभी के लिए होगी।*

*मेरे इन विचारों से हो सकता है, की कई लोग सहमत नहीं होंगे, परंतु मुझे सिर्फ एक बात ही बड़ी अजीब लग रही है, की "शोक पर आमंत्रण कैसा"?*

*यदि मेरे लेखन और मेरे विचारों में कोई गलती हुई हो तो क्षमा करे, मेरे विचार किसी की भी भावनाओं को ठेस पहुंचाने के उद्देश्य से नहीं लिखे गए है।*

*कवि विजयराज जैन (kaviraj)*

29/08/2024

*विषय: चुप्पी*

*आप सभी को kaviraj का प्रणाम, और जय जिनेन्द्र*

*४ लोग षड्यंत्र करते है, और कामयाब भी हो जाते है, क्योंकि ९६ लोग सिर्फ तमाशा देखते है। यही हाल हमारे समाज का और देश का है। परंतु जब खुद पर बात आती है तो उस दिन वो बहुत ही पछतावा करते है। और फिर समाज और देश से न्याय की गुहार लगाते है। परंतु तब कोई भी नहीं आता है, क्योंकि उनकी उस एक दिन की चुप्पी उनको ही ले डुबोती है।*

*यही क्रम अगर आगे भी चलता रहा तो एक–एक कर सभी का हाल यही होना है, उसमें कोई भी दो राय नहीं है। अभी तो वक्त है, पर कल शायद वक्त भी नहीं मिलेगा। इसलिए समय रहते ही सभी को जागने की जरूरत है। और अन्याय के खिलाफ लड़ने के लिए खुद को त्यार करने की जरूरत है।*

*अन्याय बड़ा तब होता है, जब कोई उनके छोटे–छोटे अन्याय को कोई रोकता नहीं है, और वो छोटा अन्याय एक दिन बड़ा हो जाता है, और उतना बड़ा की एक दिन वो तुम्हारी ही गर्दन का नाप लेने लगता है। और तब फिर इतनी देर हो चुकी होती है की तुम खुद का बचाव भी नहीं कर पाते हो।*

*कुंभकरण की नींद सोने वालों नींद से जाग जाओ, अन्याय के खिलाफ अपनी मर्दानगी को साबित करो, अभी तो सिर्फ आवाज ही बुलंद करनी है, कल शायद तुमको बलिदानी भी देनी पड़ सकती है, और शायद वो आने वाले कल की बलिदानी भी तुम्हारे काम नहीं आयेगी।*

*समय रहते जाग जाओ, वरना कल शायद तुम नींद से जाग ही नहीं पाओगे। अपने देश और अपने समाज हित के लिए समय निकालो, और अपनी चुप्पी को तोड़कर उस पर अपनी आवाज की मोहर लगा लो। आज सिर्फ तुमको आवाज लगाने की जरूरत है, न्याय का साथ देने की जरूरत है, लड़ नहीं सकते हो तो लड़ने वालो का साथ देने की जरूरत है, यदि अब भी नहीं जागे तो कल शायद तुम्हारी सारी ताकत भी तुम्हारे काम नहीं आयेगी।*

*कवि विजयराज जैन (kaviraj)*

29/08/2024

*विषय: गुरु सप्तमी 6 जनवरी 2025*

*जय गुरुदेव पुण्यशालियों, आप सभी को kaviraj का जय जिनेन्द्र एवं प्रणाम।*

*गुरुदेव के भक्तों, जैसे की श्रीमद् विजय राजेंद्र सूरीश्वर जी महाराज की गुरु सप्तमी इस बार 6 जनवरी 2025 को है। इसलिए इस बार आप सभी गुरुदेव के भक्तों से अनुरोध है की, हम सभी इस बार इस अवसर पर, अपने बागोड़ा नगर में जाकर, गुरुदेव की सप्तमी के दिन, भव्य से भव्य आयोजन कर बड़े ही धूम धाम से गुरुदेव की सेवा पूजा करे और जो हम सभी पर गुरुदेव की कृपा बरस रही है, उस कृपा का उनको हम सब मिलकर वंदन करे।*

*हमारे संघ के ऊपर गुरुदेव की कृपा कई सालो से बरस रही है, हमने हमारे बागोड़ा नगर में गुरुदेव को विराजमान तो कर लिया, परंतु भव्य आयोजन कर के अपने हर्ष को बहुत ही कम बार पेश किया होगा। वैसे जागो तब सवेरा है, क्यू न हम सभी मिलकर, इस बार 6 जनवरी 2025 के दिन गुरु सप्तमी के अवसर पर, अपने बागोड़ा नगर में जाकर गुरुदेव के समक्ष और गुरुदेव की सेवा में हाजिर हो जाए। और पूरे वर्ष के इस एक पावन दिन को गुरुदेव के चरणों में अर्पण करे।*

*इस बार गुरुदेव की सप्तमी के दिन हम सभी को गुरुदेव के समक्ष हाजिर होकर, अपने पूरे तन मन और धन से उनकी इतनी सेवा करनी है, इतनी सेवा करनी है, की खुद गुरुदेव को हमें आशीर्वाद देने आना होगा। तो फिर देर किस बात की? नेकी और पूछ पूछ? गुरु की बात और गुरु की पुकार को हम कैसे भूल सकते है? इस बार गुरु सप्तमी के दिन हम सभी अपने बागोड़ा नगर में जरूर जायेंगे, और इस एक दिन में हम सब गुरु से पूरे वर्ष का, आशीर्वाद भी लेकर आएंगे*

*पूजा की लंबी लाइन होगी,*
*भक्तों की भीड़ भारी होगी।*
*गुरुदेव की आरती में इस बार,*
*बागोड़ा नगर की आवाज सबसे न्यारी होगी।*

*मेरी इस राय पर आप सभी विचार करे, और सभी जन मिलकर इस बार गुरु सप्तमी के दिन को यदि भव्य आयोजन कर सकते है, तो अपनी अपनी राय दे। यदि आपको यह आयोजन स्वीकृत नहीं हो तो कोई बात नहीं, कुछ भी लिखने की जरूरत नहीं है, क्योंकि यह आयोजन सभी के योगदान के बिना हो नहीं सकता है। और यदि स्वीकृत हो तो इस कार्यक्रम को कैसे करना है, इस पर आप सभी अपनी अपनी राय जरूर दे, और संघ के सभी जन मिलकर एक समूह बनाए जो इस कार्यक्रम में योगदान देकर गुरुदेव की सप्तमी के कार्यक्रम को साकार कर सके।*

*कार्यक्रम की रूप रेखा के कुछ सुझाव जैसे–*

*केसर पूजा का लाभ*
*पक्षाल पूजा का लाभ*
*वासक्षेप पूजा का लाभ*
*सुबह व्याख्यान के बाद प्रभावना में प्रसाद का लाभ*
*पूरे दिन (तीनों समय) की नवकारशी स्वामी वात्सल्य का लाभ*
*सभी परमात्मा की दोनों समय की आरती का लाभ*
*गुरुदेव की दोनों समय की आरती का लाभ*
*जीवदया में ओली का लाभ (जो सभी ले सकते है) यथा शक्ति अनुसार*

*इसके अलावा और भी आप अपने सुझाव दे सकते है।*

*मेरे इस सुझाव में यदि कोई गलती या कमी हुई हो तो मैं आप सभी से दोनों हाथ जोड़कर क्षमा चाहता हूं। मिच्छामी दुक्कड़म*

*कवि विजयराज जैन (kaviraj)*

26/08/2024

*विषय: अपने राष्ट्र की भाषा*

*नमस्कार एवं जय जिनेंद्र आप सभी को Kaviraj का प्रणाम*

*आज कल देखा गया है की कई परिवार अपने बच्चों से और आपस में सिर्फ इंग्लिश भाषा में ही बात करते है, और इंग्लिश पर इतना जोर देते है की जिसकी कोई सीमा नहीं, और तो और खुद भी अपने आसपास के दोस्त हो या परिवार में इंग्लिश में ही बात करते है। मैंने कई घरों में और सार्वजनिक जगह पर ऐसा देखा है।*

*मैं यह नहीं कहता की इस भाषा का उपयोग नहीं करना चाहिए, परंतु यह तब होना चाहिए जब इसकी जरूरत हो, मुझे तब बहुत ही दुःख होता है की जब कुछ लोग इसी भाषा को ही प्रारथमिकता देते है। और ऐसा भी देखा गया है की जब कई लोग एक ग्रुप में होते है, और कुछ लोग इंग्लिश में ही बात करते है, जबकि ग्रुप में सभी लोग इंग्लिश में न तो समझ पाते है, और नहीं बोल पाते है। फिर ऐसे लोग इंग्लिश में बात कर के बड़ा ही रोब भी जाड़ते है।*

*इंग्लिश भाषा सिर्फ एक भाषा है, इससे यह कतई सिद्ध नहीं होता की सिर्फ इंग्लिश भाषा बोलने वाले ही एजुकेटेड होते है। हम अपनी राष्ट्र भाषा को छोड़कर बहुत बड़ी गलती कर रहें है, हम सिर्फ भाषा से ही नहीं, बल्कि अपने राष्ट्र की संस्कृति और सभ्यता से भी दूर हो रहे है। और जो अलग और गैर भी है, जो उस गैर कल्चर की और हमें ले जा रही है।*

*हम पारिवारिक और सामाजिक वादी लोग है, हमारे समाज में रिश्तों की मर्यादा को बताया गया है, लाज और लिहाज को बताया गया है, रहन और सहन को बताया गया है, ढंग और ढाल को बताया गया है, शर्म और लिहाज को बताया गया है, जो यह सब एक तरह से सामाजिक नियम की तरह है, जिससे हम सभी आपस में एक दूसरे के साथ कैसे रहना है, और जीवन में खुद को कैसे पेश करना है, यह सब उसमें सिखाया गया है।*

*हम न सिर्फ गैर भाषा इंग्लिश का उपयोग कर रहे है, बल्कि उनकी तरह सोच को भी अपने अंदर ढाल रहे है, जो हमारी सोच से विपरित है। और यह सोच हमारी सभ्यता और संस्कृति का खात्मा कर रही है। जिसके कारण हम अपने परिवार से टूट रहे है, और स्वार्थी बन रहे है।*

*हम उसूलों पर जीने वालो में से है, हम अपनी जिम्मेदारियों को निभाने वाले में से है, हम अपने कर्तव्य और फर्ज के लिए त्याग करने वालो में से है। और यह सब ज्ञान हमें अपनी भाषा के द्वारा ही मिलता है, न की गैर भाषा से मिलता है।*

*और एक बात, हम सभी हिंदुस्तानी, अपने अपने प्रांत की भाषा को भी नहीं बोलते है। और हम सभी को अपनी उस भाषा को भी नहीं छोड़ना चाहिए। हर स्टेट के हम सभी को, अपनी अपनी भाषा को, अपने अपने घरों में बोलना चाहिए, और अपने आने वाली पीढ़ी को भी इससे नहीं दूर रखना चाहिए।*

*कवि विजयराज जैन (kaviraj)*

26/08/2024
23/08/2024

*लेख: अपने गांव में पूनम भरो*

*जय जिनेंद्र आप सभी को kaviraj का प्रणाम*

*आज की तारिक में हम सभी अपने परिवार के साथ अब शहर में बस चुके है, बहुत कम भाई है जो अब भी गांव में रहकर ही अपना जीवन चला रहे है। फिर चाहे कोई गुजरात से हो, या कोई राजस्थान से हो, या कोई और किसी अन्य प्रांत से हो, ज्यादर लोग अब शहर में ही बस गए है। हम अब गांव में सिर्फ किसी अवसर पर ही जाते है। और अब तो अवसर भी कम हो रहे है, क्योंकि हमने हमारे कई सारे कार्यक्रम को भी शहर में ही करना शुरू कर दिया है। और धीरे–धीरे गांव से दूर होते जा रहे है। ऐसे ही चलता रहा तो एक दिन ऐसा भी आयेगा की हम अपने ही गांव में जाना भूल जाएंगे। और हमारी आने वाली पेढ़िया तो गांव को देख भी नहीं पाएगी।*

*जैसे की हम सभी हर महीने जात्रा करने जाते है, कोई पूनम भरने जाता है तो कोई अन्य अलग–अलग तिथि के अनुसार अलग–अलग तीर्थ पर जाते है। यह बहुत ही अच्छी बात है। यदि हम हर महीने या हर दो या तीन महीने में अपने गांव में भी जाकर तीर्थ की तरह अपने मंदिर जी में यदि पूजा सेवा का लाभ लेंगे, तो इसी बहाने अपने घर में और अपने गांव में आते जाते रहेंगे। इससे हम वहां से जुड़े रहेंगे। घर की देखभाल भी अच्छे से कर सकेंगे। गांव के अपनो से जुड़े रहेंगे। अपने अस्तित्व से जुड़े रहेंगे। आज के समय में, अब गांव में भी बहुत सारी सुविधाएं भी उपलब्ध हो गई है। अब गांव भी किसी शहर से कम नहीं रहा है, खाने पीने की व रोजमर्रा की वो सारी वस्तुएं भी उपलब्ध है, और तो और पानी और बिजली भी लगभग पूर्ण रूप उपलब्ध हो है, और तो और यातायात की सुविधाएं भी अब बहुत बढ़ गई है।*

*हम सभी घूमने के लिए और किसी शांत जगह जाने के लिए आजकल रिजॉर्ट में भी जाते है, और हजारों रुपए एक या दो दिन के खर्च करते है, ऊपर से वहां का खाना भी हर जगह पूर्ण रूप से pure Veg. या Pure jain नहीं मिलता है, हमने यहां पर भी बहुत बड़ा समझोता कर लिया है। इससे अच्छा अपने ही गांव और घर में जाए वहां पर कुछ दिन रुके और अपने ही घर के शुद्ध खाने का आनंद ले, और कोई भी समझोता भी नहीं करना पड़ेगा।*

*गांव में यदि जाने की चाहत हो तो वहां जाने के ऐसे बहुत से कारण आपको मिल जाएंगे। और यदि जाना ही नहीं चाहते हो तो बहुत से बहाने है, जो आप और हम करते आए है। हर महीने नहीं जा सको तो तीन महीने में एक बार जाओ। भले कम ज्यादा पर जाना जरूर चाहिए। पूरे वर्ष में स्कूल और व्यापार से कई ऐसी छुट्टियां आती है, जो लगातार दो या तीन की होती है, और कई छुट्टियों के साथ तो शनिवार और रविवार भी आते है, जो लगातार दो, तीन या चार दिन की भी मिल जाती है। लेकिन ऐसे में हम हर बार की तरह और ही कही बाहर ही जाना पसंद करते है, परंतु गांव जाने का तो सोचते तक नहीं है।*

*यदि हम सभी अपने गांव में कोई किसी तिथि पर तो कोई और किसी अन्य तिथि पर इस तरह से सभी जन अलग–अलग तिथि पर दो चार जन का ग्रुप बनाकर भी जाएंगे तो बहुत आनंद भी आयेगा, और हमारी तरफ से हो रही कमियां भी पूर्ण हो जाएगी, और हमारा घर और गांव भी हरा भरा आबाद रहेगा।*

*कवि विजयराज जैन (Kaviraj)*

22/08/2024

*विषय: चर्चा*

*जय जिनेन्द्र, आप सभी को Kaviraj का प्रणाम।*

*जब किसी विषय पर चर्चा होगी, तो अपनी अपनी राय सलाह भी आयेगी, राय और सलाह आयेगी तो जरूरी नहीं की सभी को सभी की राय और सलाह पसंद भी आयेगी। फिर बहस होगी, और बहस में कई सवाल जवाब और तर्क भी होंगे, फिर उस पर सभी जन विचार करेंगे, और अंत में जो सही होगा, वो बात उभर कर सबके सामने आएगी। और फिर जिस विषय पर चर्चा होती है, उस कार्य को स्वीकृति के लिए सर्वसम्मति आ ही जाती है। इसी तरह एक एक कर के उन्नति के लिए हर कार्य को किया जा सकता है।*

*लेकिन बहुत लोग इससे डरते है, क्योंकि बहस होती है, बहस कोई झगड़ा नहीं होता है, बहस कोई मन मुटाव नहीं होता है, बहस एक जरिया जो बिना पार किए मंजिल तक नहीं पहुंचा जा सकता है। इसलिए बहस से भागिये मत, बहस कीजिए पर शब्दों की मर्यादा को ध्यान में रखकर कीजिए ताकि किसी नतीजे पर पहुंचा जा सकता है।*

*आप कही भी देख लीजिए, फिर चाहे राज्य सभा हो, लोकसभा हो, या कोई सामाजिक सभा हो, हर जगह बहस भी होती है और नतीजा भी आता है। मत अलग अलग हो सकते है और होते भी है, बस मन अलग मत होने दीजिए, मतभेद और मनभेद दोनों अलग अलग अपनी अपनी जगह है, इसलिए मतभेद कितने भी क्यों न हो जाए परंतु मनभेद कभी नहीं होना चाहिए।*

*सामाजिक कार्य में आपकी खामोशी बाधा करती है, आपकी खामोशी कही पर सही का साथ नहीं देती है, और कही पर गलत का साथ दे देती है, इसलिए आप सामाजिक कार्य पर चर्चा कीजिए और अपनी अपनी राय और सुझाव देकर समाज हित में अपना योगदान दीजिए।*

*मेरे विचारों में यदि कोई गलती हो तो मिच्छाम्मी दुक्कड़म, क्षमा करे।।*

*कवि विजयराज जैन (kaviraj)*

Photos from Kaviraj Vijayraj's post 20/08/2024

*विषय: अपने परमात्मा का घर*

*जय जिनेद्र, आप सभी को kaviraj का प्रणाम।*

*हम सभी जैन परिवार व्यवसाय के लिए अपने मूलनिवास गांव को छोड़कर कर अलग अलग शहर में आ तो गए, फिर हमने अपने बच्चों को भी यहीं पढ़ाना शुरू कर दिया। और अब ऐसा हो गया है की हम एक तरह से यही के वासी हो गए है। अब गांव में आना जाना नहीं के बराबर हो गया है, वो भी कोई अवसर या कोई काम आता है, तो ही जाते है, और जाने के साथ आने का वापसी टिकट पहले बुक करते है। एक दिन भी शांति से हम वहां रुकते नहीं है, मानो जैसे गांव में घुटन हो रहीं हो।*

*गांव का घर, घर ही नहीं, वो हमारा स्वर्ग से भी सुंदर घर है, जिसे छोड़कर शहर की चार दिवारी के कैदे खाने को हम फ्लैट नाम से संबोधित करते है। आज हम गांव में ऐसे जाते है, जैसे कोई महेमान आते है। और ऐसे में धीरे धीरे वहां के अपनो से अनजान हो रहे है, और शहर के अन्य लोगों को अपना बता रहें है।*

*अब मैं आता हूं अपने जिनशाशन की बात पर, तो यहां पर हमने मंदिर में लाखों और करोड़ों रुपए डालकर भव्य मंदिर तो बना दिए, भव्य से भव्य परमात्मा की मूर्ति को तो स्थापित कर दिया। परंतु मुझे बड़ी शर्म आती है की हमने हमारे प्रमात्मा को भी अकेला छोड़ दिया। अरे और कितना स्वार्थी बनोगे? तुमने अपने अस्तित्व को भी नहीं बख्शा, कुछ तो अपने अंदर झांको, और कितना भटकोगे? अब तो यह भी शुरुआत हो गई है की गांव से शहर तो क्या अब अपने देश को छोड़कर किसी विदेश में रहने का भी हम सोच रहे है, जो ये बहुत ही बड़ी विडंबना है।*

*हम गांव से व्यापार के लिए शहर आए, और हमने अच्छा खासा धन भी अर्ज कर लिया, और अब परिवार में भी सब सुखी और संपन्न है, तो और अब क्या चाहिए आपको? यहां तक तो परमात्मा ने भी कुछ नहीं बोला, उल्टा आपको आपका साथ दिया, आपको और आपके परिवार को वो सब कुछ दिया जो आपको चाहिए था। तो फिर अब क्यों उस परमात्मा को भूल गए हो? उनकी देख रेख़ करने वाला कोई नहीं है, उनके साथ बैठकर दो चार बातें करने वाला कोई नहीं है। पूजा, पाठ, आरती तो छोड़ो, अब तो परमात्मा तुम्हारा दर्शन मांग रहे है। क्या हम इतने बड़े हो गए है, की परमात्मा के दर्शन करने वाले परमात्मा को दर्शन देने जाते है?*

*थोड़ा इस पर विचार कीजिए, हम कहां से चल पड़े थे और अब कहां चल रहे है। अब भी वक्त है, जागो तब सवेरा है। अब अपने घर में मेहमान नहीं बल्कि अपने घर में अपना बन कर रहने का कुछ सोचो। अपने परमात्मा के बारे में कुछ सोचो, जैसे परमात्मा के बिना हम कुछ नहीं वैसे परमात्मा भी हमारे बिना खुश नहीं है।*

*नींद से जागो, और अपने परमात्मा से मिलने के लिए तुरंत भागों। उनसे माफी मांगो, और उनके अकेलेपन को दूर करो, पूजा के वस्त्र धारण करो और उनको स्पर्श कर उनसे गले मिलने का अहसास करो, आप महसुस करेंगे की परमात्मा का दिल कितना बड़ा है, जो कभी भी रूठते नहीं है, और जब भी तुम जाते हो तो बड़े ही प्रेम से हम सबको गले से लगाते है।*

*अब तो मौका भी है और दस्तूर भी है। आने वाले इस पावन पर्युषण पर अपने गांव में जाकर पहले अपने घर की उस पायदान को नमन कीजिए, जिसको हमारे पूर्वजों ने बड़ी मेहनत से बनाकर हमें भेट दी है। वो घर नहीं बल्कि हमारे पूर्वजों का कलेजा है। फिर अपने कुलदेवी को नमन कीजिए और फिर कुछ दिन वहां पर ठहराव कीजिए, वहां के शांत और शुद्ध वातावरण से खुद को मिला दीजिए और अपने मंदिर में जाकर अपने परमात्मा से मिलन कीजिए। और उनकी मूरत को देखकर गौर कीजिए, उनके चेहरे पर जितनी खुशी दिखेगी है, वो सारी की सारी खुशी आपको आशीर्वाद में मिलेगी।*

*परमात्मा के पास जाओ तो खाली हाथ मत जाना, यथा शक्ति अपने दिल और भाव से उनको भले ही एक श्रीफल चढ़ाना, पर चढ़ाना जरूर। वहां पर यदि किसी चीज की कमी दिखाई दे तो उसे तुरंत पूर्ण करना, जैसे घी, धूपबत्ती, या फिर चाहे केसर ही क्यूं न हो।*

*गांव की पेढ़ी पर वहां के व्यवस्थापक के पास जाकर भी लाभ लिया जा सकता है। सालाना चल रही परमात्मा की आंगी, परमात्मा की आरती, परमात्मा की पूजा–सेवा जैसी, और भी बहुत सी लाभ लेने योग्य ओली होती है, जो हम ले सकते है। और एक खास बात जो साल में हर एक को कम से कम एक बार तो जरूर उसका लाभ लेना चाहिए। और वो है साधारण खाते की ओली है, जो हर कोई पा सकता सकता है, और कोई भी उसका लाभ ले सकता है, जिसकी न तो कोई न्यूनतम राशि की सीमा है और न ही कोई अधिकतम राशि की सीमा होती है। बस आपके भाव ही सबसे बड़े होते है, इसलिए साधारण खाते की ओली से वंचित मत राहेना, अपनी यथा शक्ति अनुसार इसमें भाग जरूर लेकर, लाभ जरूर लेना। और जिनशासन की शोभा बढ़ाने में अपना अपना योगदान जरूर देना।*

*मैं अपनी बात को यहां पर पूर्ण करते हुए, आप सभी से मिच्छाम्मी दुक्कडम कहता हूं। और यदि मेरे लेखन में कोई कमी या गलती हुई हो, तो आप सभी से दोनों हाथ जोड़कर कर क्षमा मांगता हूं।*

*कवि विजयराज जैन (kaviraj)*
*बागोड़ा एवं मुंबई*
9920777766*

19/08/2024

आजादी हमें फिर से लानी होगी,
आहुति प्राणों की फिर देनी होगी।
Narendra Modi CM Yogi Adityanath Amit Shah Pushpendra Kulshrestha Rashtriya Swayamsevak Sangh (RSS) Navneet Ravi Rana We support hindutava unity

17/08/2024

रचना: पुरानी बसो में प्यारी यादें

एक दौर ऐसा भी देखा है हमने,
रिटायर हुई बसों में सफर किया है हमने।
भीड़ से लदी हुई आती थी,
दोनों पैर रखने की जगह नहीं होती थी।

एक तरफ बीड़ी का धुआं आता था,
और दूसरी तरफ धूल से चेहरा चमकता था।
न तो कोई इसमें पंखा होता था,
और न ही कोई खिड़की का कांच होता था।

हर मौसम में इस बस का महत्त्व,
बहुत ही निराला होता था।
क्योंकि सवारी को भी बहुत ही,
मजा आता था।

धोती और पगड़ी में बुजुर्ग मिलते थे,
उनके लहजों से जवानों के पसीने छूटते थे।
माताएं भी हद करती थी,
एक हाथ में बच्चा तो दूसरे हाथ में;
सामान लेकर लाती थी।

कंडक्टर साहब की तो क्या बात करे,
भीड़ में तैरने का हुनर क्या खूब आता था।
चलती बस में खिड़की से कैरियर पर जाने का,
कमाल भी कोई कम नहीं होता था।
आज के दौर में जो वो होता तो,
मेडल पर अधिकार भी उनका ही होता था।

ड्राइवर साहब की बात तो,
और भी निराली होती थी।
उनको जो जानता था तो मानो कोई,
सेलिब्रेटी से कम नहीं होता था।

बहुत ही मजा ऐसे सफर में,
उस दौर में आता था।
क्योंकि हर एक चेहरे पर,
सिर्फ मुस्कान को ही पाता था।

कवि विजयराज जैन (kaviraj)

17/08/2024

*आए दिन रेप की घटना सुनने में आ रही है, और तो और रेप इतनी बर्बरता से, इतनी क्रूरता से कर रहे है की सुनकर ही रोंगटे खड़े हो जाते है और दिल दहल जाता है। फिर चाहे आज की घटना कोलकत्ता की हो या इसके पहले जो हुई है उन सभी की हो। आखिर ऐसी घिनौनी मानसिकता कहां से आ रही है? क्यों इनको किसी का कोई डर नहीं है? क्यों इनको कानून व्यवस्था का डर नहीं है? क्यों इनको सजा का डर नहीं है?*

*आज बेटियों के घर से बाहर जाने पर परिवार
को एक डर सा रहता है। कहीं पर भी सुरक्षित नहीं है। छेड़ खानी जैसे मामले तो आम हो चुके है।*

*मैं अपने देश की सरकार और कानून व्यवस्था से मेरे अंदर के आक्रोश से और निंदा करते हुए सवाल करता हूं, की क्यों आप इसे रोक नहीं पा रहे है ? आप गुंहेगार को पकड़कर सजा तो दे देते है, पर बात यही खत्म नहीं होनी होती है, बल्कि दुबारा ऐसी हरकत कोई भी सपने में भी न सोचे, कुछ ऐसी व्यवस्था आपको करनी होगी। आप इस घटना पर तुरंत ध्यान देकर कानून में कड़े से कड़े बदलाव लाए, और ऐसे दरिंदो को सारे आम ऐसी कठोर से कठोर सजा दे, की देखकर ऐसे करने वाले दरिंदों की रूह तक काप जाए।*

*रेप करने वालो के अलावा उन पर भी कड़ी से कड़ी कारवाही की जाए जो रेप करने के लिए प्रेरित करने का कार्य कर रहे है। कई सारे टेलीविजन क्षेत्र में ऐसे ऐसे दृश्य दिखाए जाते है, ऐसी कहानियां दिखाई जाती है, जिससे आकर्षित हो कर दरिंदे अपनी हवस का शिकार महिलाओं और बच्चियों को कर रहे है।*

*एक बात मैं उन महिलाओं से भी कड़े शब्दों में कहना चाहूंगा की जो महिलाए ऐसे वस्त्र पहनती है, जिसमें अंग को छुपाना कम और दिखाना ज्यादा कर रही है। मुझे समझ में नहीं आता वो कैसे अपने मां बाप और भाई के सामने इस तरह के वस्त्र पहनकर जाती है? और यदि उनके घर वाले भी यदि उसका विरोध नहीं करते है तो क्यों नहीं करते है?*

*बेटियों को अब अपनी रक्षा खुद करनी होगी।*
*पढ़ने से पहले लड़ने की तालीम देनी होगी।*
*कही पर भी सुरक्षित नहीं है बेटियां,*
*बेटियों के हाथों में अब तलवार और बंदूके देनी होगी।*

*कवि विजयराज जैन (kaviraj)*

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BJP INDIA PMO India CM Yogi Kolkata Police Amit Shah Ram Nath Kovind Mangal Prabhat Lodha Rajnath Singh Delhi Police Rahul Gandhi Shivsena Dakshin Mumbai Vibhag 7

17/08/2024

*लेख: सामाजिक और पारिवारिक बदलाव*

*जय जिनेंद्र, आप सभी को कविराज का प्रणाम*

*जैसे·जैसे समय आगे बढ़ता गया वैसे–वैसे नई नई खोज होती गई, फिर चाहे किसी भी क्षेत्र की बात क्यों न हो वो आप इतिहास उठाकर देख सकते है।*

*नई खोज शिक्षा क्षेत्र में भी हुई, जीवन जीने के ढंग ढालों में भी हुई, हमारी सोच और विचार धाराओं में भी हुई। जैसे–जैसे नई खोज होती गई, वैसे–वैसे हम उसमे सुधार लाकर बदलाव करते गए, और आज भी कर रहें है, जो करना भी अनिवार्य है।*

*आज का दौर पिछले दो दशक से बहुत ही तेजी से आगे बढ़ा है, नई–नई तकनीक के आने से जीवन में बहुत बड़ा बदलाव भी आया है। कुछ बाते तो ऐसी है जो पहले कल्पना भी नहीं की जा सकती थी, वो आज हकीकत में मुमकिन हुई है।*

*आज हमारा रहन सहन, जीने का ढंग बहुत ही बदल गया है। यदि आप नहीं बदले है, तो दुनिया को देख लीजिए समयानुसार कितने बदलावों को अपने जीवन में ढाला है। और अगर बात करू परंपरा की तो उसमें भी कुछ बदलाव हुआ है। और जो बदलाव हमारी और हमारे समाज की सोहलियत के लिए हुआ है उसे हर एक को अपनाना चाहिए, और यदि कोई इससे वंचित है तो उसके साथ इस विषय पर चर्चा करनी चाहिए। हमारे समाज और हमारी सोसायटी के लिए भी समय समय पर बदलाव लाकर जीवन प्रणाली को आसान करना चाहिए। यदि हम आज भी बैलगाड़ी से यात्रा करेंगे तो देश और दुनिया तक नहीं पहुंच पाएंगे, इसके लिए आपको ज़रूरत, सुविधा और व्यवस्था अनुसार गाड़ी, ट्रेन, या हवाई यात्रा द्वारा ही जाना होगा।*

*आज हमारी सोच और हमारे बच्चों की सोच में बहुत ही ज्यादा फर्क देखने को मिल रहा है, यह फर्क पहले के पिता और पुत्रों में इतना नहीं था, जितना आज के दौर के पिता और पुत्रों में देखने को मिल रहा है। जिस कारण हमें पिता और पुत्रों के रिश्तों में दूरियों को देखा जा रहा है। और यह फर्क आने का कारण है तो वो सबसे बड़ा योगदान आज के दौर की नई शिक्षा व्यवस्था और आधुनिक तकनीकी और उपकरणों का है। जो हमारे समय में अलग थी और आज के दौर में अलग है, हमें इस दौर की शिक्षा और तकनीकी को समझना होगा, इसकी गहराई में जाकर सोचना होगा, जीने का ढंग बदलना होगा, रहन सहन का ढंग बदलना होगा, तौर तरीको में बदलाव लाना होगा। तब जाकर पिता आज के दौर की पेढ़ियो के साथ मिलझुलकर खुशी से रहे सकते है। फिर चाहे पारिवारिक बात हो या फिर कार्य और व्यापारिक क्षेत्र की ही बात क्यों न हो।*

*कुछ बदलाव ऐसे भी हुए है, जो हमारी संस्कृति, हमारी आस्थाओं का हनन कर रही है, सामाजिक व्यवस्था को तार–तार कर रही है। और लाज लिहाज, मान मर्यादा से किनारा कर रही है, मैं ऐसे बदलाव को लाने के पक्ष में न तो हूं और न ही कभी भी कहूंगा। यदि नई पेढ़ियों में इसकी जानकारी नहीं है तो हमें ही उसका ज्ञान देना है। हमारे शास्त्र, हमारे धार्मिक अनुष्ठान, हमारे गुरुओं की वाणी से भी उनको जोड़ना होगा। छोटी उम्र से ही उनको इस मार्ग की और चलाने की आदत भी डालनी होगी।*

*थोड़ा तुम बदलो, थोड़ा उनको बदलो।*
*थोड़ा तुम समझो, थोड़ा उनको समझाओ।*
*जीवन की यात्रा में ज्ञान और गंगा को अपनाओ।*

*कवि विजयराज जैन (kaviraj)*
*मुंबई*

14/08/2024

*विषय: मनुहार*

*जय जिनेन्द्र, आप सभी को kaviraj का प्रणाम।🙏*
*हमारे भारत देश में मनुहार के रीत–रिवाज की प्रथा कई ही सालो से चली आ रही है। जब भी कोई मेहमान या सगे संबधी हमारे घर पर या फिर हमारे किसी भी आयोजन पर आते है, तो हम उन्हें बड़े ही मान सम्मान के साथ उनकी खातीदारी करते है। और खाने पीने की जब बात आती है तो हम बहुत ही मनुहार से उनकी सेवा करते है। आज भी यह प्रथा चल रही है औ एक दूसरे के रिश्तों में मिठास लाती है।*

*परंतु आज के दौर में बहुत कुछ बदल गया है, और हमें भी उसके अनुसार बदलाव लाने की आवश्यकता है। पहले का समय अलग था और अभी का समय अलग है। आज कल कई सारी बीमारियों ने हर किसी को जकड़ रखा है। किसी को blood pressure हैं तो किसी को cholesterol है, तो किसी को daibities है, तो किसी की thyrode है, या और भी तरह तरह की बीमारियां है जो किसी न किसी को कुछ न कुछ तो है ही। बहुत कम लोग है जो पूर्ण रूप से स्वस्थ है।*

*अब ऐसे में आज के दौर में भी जब भी कोई आयोजन में खाने पीने की बात आती है तो वहां पर भी मनुहार तो होती है। परंतु कई बार ऐसा भी देखा गया है की मनुहार इतनी ज्यादा हो जाती है की सामने वाले को न चाहते हुए भी खाना पड़ता है या फिर झूठा छोड़ना पड़ता है। क्योंकि उसकी खाने की क्षमता सीमित होती है और स्वस्थ के विरोध की चीजें वो ग्रहण कर नहीं पाता है। और ऐसे वो शर्मिंदगी भी महसूस करता है, और झूठा छूट जाने के पाप के बोझ से दुःखी भी होता है।*

*जिसके घर पर आयोजन होता है, वह कभी नहीं चाहेगा की उसके यहां की खातीदार में कोई कमी आए, इसलिए ऐसे में वो मनुहार करने में कोई कमी नहीं आने देता है, और इतनी मनुहार करता है की सामने वाले की स्वस्थ की स्थति, खाने की क्षमता, और उसके परहेज की बात को देख नहीं पाता है।*

*हमें बदलाव लाने की शख्त जरूरत है, मनुहार को करने के तरीकों में बदलाव लाने की शख्त जरूरत है। सामने वाले की इच्छा, स्वस्थ को ध्यान में रखकर मनुहार करनी चाहिए, और सबसे बड़ी बात यदि हमारी मनुहार के कारण यदि किसी को मजबूरी में झूठा छोड़ना पड़ा तो उसका पाप भी हमें ही लगना है।*

*एक कण भी झूठा छूट जाता है तो, पाप एक मण के जीतना लगता है। इसलिए अन्नदेव का अपमान न हो। और झूठा तो छोड़ना ही नहीं है, और ना ही कोई हमारे कारण छोड़े, यह भी हमें ध्यान रखना है।*

कवि विजयराज जैन (kaviraj)

13/08/2024

*लेख: सर्वसम्मति*

*जय जिनेन्द्र आप सभी को कविराज का प्रणाम*
*सर्वसम्मति से किया हुआ कार्य हमेशा सफल होता है। और समाज की एकता को और भी मजबूत करता है। वही एक तरफा और मनमानी से किया हुआ कार्य समाज का विभाजन करता है। ऐसे में समाज में एक दूसरे के प्रति नफरत को पैदा करता है। और यह तब तक चलता ही रहता है जब तक कुनीती से कार्य को किया जाता है।*

*नेक इरादों से और बिना किसी भेदभाव से सभी को साथ में लेकर किया हुआ कार्य कभी असफल नहीं होता है, और एक दूसरे के प्रति प्रेम और खुशहाली का माहोल बनाता है। और ऐसे में हमारा समाज प्रगति की और बढ़ता है। और दुनिया में एक मिशाल कायम करता है।*

*दबाव में लिया हुआ फैसला कभी भी सही नहीं होता है, उल्टा जो सही करता है उसे दबाने के लिए मजबूर किया जाता है। इसलिए मजबूर नहीं मजबूत बनिए, औरों के कहने पर तोते की तरह बोलना बंध कीजिए। और अपने अस्तित्व को बचाकर अपने आत्मसम्मान को कभी गिरने मत दीजिए। ऐसे लोगों का साथ दीजिए जिसकी नीति सही हो, जिसकी सोच सही हो, जिसकी रणनीति नेक, धार्मिक एवं समाज हीत की हो, जिसकी चाल एक साथ लेकर चलने की हो। फिर चाहे वो अपना हो या अपना न हो, पर साथ तो सच्चाई का ही देना चाहिए। और वही उसका विरोध करना चाहिए जो समाज में गलत ढंग से कार्य करता हो, नियमों का उल्लंघन करता हो, फिर चाहे वो अपना ही क्यों न हो।*

*मेरे विचारों में या शब्दों में कोई अशुद्धि हो तो क्षमा चाहूंगा। ||मिच्छामी दुक्कड़म||*

*कवि विजयराज जैन (kaviraj)*

11/08/2024

अपने संघ का उद्धार करे।

10/08/2024

*जय जिनेन्द्र आप सभी को कविराज का प्रणाम।*

*लेख : विदेश या स्वदेश हिंदुस्तान*

*पढ़ाई लिखाई कर के बहुत बड़े आयाम तक कामयाबी हाशिल की, बड़ी से बड़ी डीग्रियाओं के बादशाह बने। और फिर देश विदेशों से नौकरियों के एक से बढ़कर एक आफर आने लगे। और इस आयाम पर पहुंच कर अब हिंदुस्तान से बाहर जाकर किसी कंपनी में जॉब करने के लिए जाने का विचार किया। और जाहिर सी बात है की ऐसे में यह विचार आना स्वाभाविक है। और विदेश में जाकर बस जाने का मौका कौन नहीं चाहेगा।*

*लेकिन यहां पर मैं kaviraj उन नौजवानों से कहना चाहूंगा कि क्या हम जीवन में पढ़ाई कर के, और डिग्रियां हासिल करने के बाद क्या सिर्फ पैसा कमाना ही मकसद होता है क्या? तो माफ कीजिएगा मैं कभी भी इस बात का समर्थन नहीं दे सकता हूं। मैं यह नहीं कहता की पढ़ाई मत करो या डिग्रियां मत लो, बल्कि मैं तो कहूंगा कि जितना हो सके उतनी ज्यादा से ज्यादा पढ़ाई करो। परंतु यदि इसके लिए हमें परिवार से दूर रहना पढ़े तो किस काम को वो कामयाबी ? पैसे अपने देश में भी कमाए जा सकते है। बड़े से बड़े जॉब यहां भी कर सकते है, बड़े से बड़े व्यापार यहां भी कर सकते है , हम एक बहुत बड़े कंपनी के मालिक बनकर यहां भी रहे सकते है। एक अच्छी जिंदगी यहां पर भी गुजार सकते है , अच्छे घर, अच्छी जगह पर हम यहां भी रह सकते है। और फिर भी यदि आपको लगता है की सिर्फ विदेश ही खूबसूरत है तो आपको एक बार हिंदुस्तान का भ्रमण करना चाहिए। आपकी सारी गलतफहमी दूर हो जाएगी।*

*हमारा सबसे बड़ा धर्म, फर्ज और कर्ज यदि कोई है तो वो है हमारे परिवार का और हमारे देश का। हमें यह बात मरते दम तक नहीं भूलनी चाहिए। भले इसके लिए क्यों न कोई बलिदान देना पड़े या अपनी इच्छाओं को बदलना ही क्यों ना पड़े।*

*हमारे हिंदुस्तान के शास्त्रों और धर्मो के बारे में कभी अध्यन करना,हमारे इतिहास के बारे में कभी अध्यन करना। हमारे पूर्वजों के रीत रिवाजों के बारे में भी कभी अध्यन करना की, हमारे देश में भिन्न भिन्न भाषाओं और भिन्न भिन्न त्याहरो के होते हुए भी हिंदुस्तान की एकता कैसे बनी रही थी। हमारे शास्त्रों में आज भी वो बाते लिखी है जो आज के बड़े से बड़े वैज्ञानिक भी मानते है। हजारों साल पहले लिखी हुई भविष्यवाणी को भी सच होते हुए हमने देखा है। हजारों साल पहले बने हुए मंदिर, तीर्थ पर भी कभी गौर करना की उस समय के जमाने में न तो कोई इंजीनियर होता था, न कोई तकनीकी उपकरण होते थे, न तो कोई मशीनें होती थी, और न ही कोई बिजली थी, फिर भी इतने विशाल और प्राचीन तीर्थ वो भी पहाड़ों पर कैसे बनाएं गए होंगे। कभी इस पर भी अध्यन जरूर करना। और यह सब सिर्फ और सिर्फ हिंदुस्तान में ही हुआ है और कही भी नहीं।*

*जो अपने परिवार के साथ साथ रहकर, अपने देश के रीत रिवाज में रहकर, हर त्योहार मानने का जो आनंद है, वो और कही भी नहीं है। बाहर जाकर हम अपनो से और अपने अस्तित्व से परे हो जाएंगे और एक दो पेढ़ी के बाद हम खुद हमारे घर में, हमारे देश में, एक मेहमान बनकर रह जाएंगे।*

*मैं सिर्फ आपसे यही कहूंगा कि हिंदुस्तान के इतिहास को जरुर पढ़े। फिर मैं दावे के साथ आपसे कहता हूं कि फिर आपको कभी भी अपने देश के बाहर जाकर न तो नौकरी की इच्छा होगी और न तो व्यापार की और न ही वहां पर जाकर बसने की।*

*कवि विजयराज जैन (kaviraj)*
*मुंबई*

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