आयुर्वेद के महारथी वैद्य

Contact information, map and directions, contact form, opening hours, services, ratings, photos, videos and announcements from आयुर्वेद के महारथी वैद्य, Medical and health, NAVI MUMBAI.

01/07/2023

Dr. hemant Kumar, Saffal swadeshi arogya kendra, Koparkhairne, sector 12D, bonkade gaon, Krishna mandir, Navi Mumbai, मो०- 099871 62451 साइटिका, स्लिप डिस्क, सुन्नपन, पैर में जलन, कूल्हे से पैर तक चुभन वाला दर्द, सर्वाइकल, L4-L5 में गैप, दबी हुई नस से परेशान है ? दवाएं खाते खाते जी ऊब गया है डाक्टर ने #आपरेशन के लिए सलाह दी है तो #सर्जरी करवाने से पहले एक बार संपर्क कीजिये Dr hemant Kumar मो०- 099871 62451

*आयुर्वेदिक चिकित्सा उपचार के माध्यम से पाइये सभी प्रकार की स्लिप डिस्क व Sciatica की समस्याओं का असरदार और पक्का इलाज

*क्या आपको लंगड़ी का दर्द, Sciatica, चलने में परेशानी दर्द सुन्नपन रहता है। हमारे पास जड़ से इलाज होता है।

*एक महीने के उपचार में ही भयंकर कमर दर्द और साइटिका, स्लिप डिस्क, दबी हुई नस, पैरों का दर्द तुरंत खत्म होता है, अब आपको सर्जरी की जरूरत ही नही है। साइटिका स्लिप डिस्क, दबी हुई के दर्द के कारण इंजेक्शन लगवाने पड़ते हैं..... तो बार-बार के सुई चुभाने इंजेक्शन लगवाने से मुक्ति मिलेगी।
रीढ़ की हड्डी में इंजेक्शन न लगवाये आखिर क्यों...? जब आयुर्वेद में पूरा इलाज है।

*Sciatica की सभी समस्याओं को जड़ से और जल्दी से जल्दी ठीक करें।

L4-L5-S1 और गर्दन की दबी हुई नस को खोलने की अचूक आयुर्वेदिक औषधि है। जान लें यह औषधि दबी हुई नस का आयुर्वेदिक इलाज और रीढ़ की हड्डी की दबी हुई नसों का सटीक इलाज है। साइटिका, स्लिप डिस्क, सुन्नपन, पैर में जलन, कूल्हे से पैर तक चुभन वाला दर्द, सर्वाइकल, L4-L5 में गैप, दबी हुई नस की आयुर्वेदिक औषधि

01/07/2023

आपसे कोई पूछे भारत के सबसे पढ़े लिखे व्यक्ति का नाम बताइए ?

क्या आप इन्हें जानते हैं?

देश कन्हय्या जैसे कुपात्र को जानता है पर इन्हें नहीं, यही विडंबना है।

अद्भुत अकल्पीय व्यक्तित्व....

आपसे कोई पूछे भारत के सबसे पढ़े लिखे व्यक्ति का नाम बताइए जो,

डॉक्टर भी रहा हो,

बैरिस्टर भी रहा हो,

IPS अधिकारी भी रहा हो,

IAS अधिकारी भी रहा हो,

विधायक,मंत्री, सांसद भी रहा हो,

चित्रकार, फोटोग्राफर भी रहा हो,

मोटिवेशनल स्पीकर भी रहा हो,

पत्रकार भी रहा हो,

कुलपति भी रहा हो,

संस्कृत,गणित का विद्वान भी रहा हो,

इतिहासकार भी रहा हो,

समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र का भी ज्ञान रखता हो,

जिसने काव्य रचना भी की हो !

अधिकांश लोग यही कहेंगे,"क्या ऐसा संभव है,आप एक व्यक्ति की बात कर रहे हैं या किसी संस्थान की?"

पर भारतवर्ष में ऐसा एक व्यक्ति मात्र 49 वर्ष की अल्पायु में भयंकर सड़क हादसे का शिकार हो,इस संसार से विदा भी ले चुका है !

उस व्यक्ति का नाम है श्रीकांत जिचकर ! श्रीकांत जिचकर का जन्म 1954 में संपन्न मराठा कृषक परिवार में हुआ था ! वह भारत के सर्वाधिक पढ़े-लिखे व्यक्ति थे,जो गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज है !

श्रीकांत जी ने 20 से अधिक डिग्री हासिल की थीं !

कुछ रेगुलर व कुछ पत्राचार के माध्यम से ! वह भी फर्स्ट क्लास, गोल्डमेडलिस्ट,कुछ डिग्रियां तो उच्च शिक्षा में नियम ना होने के कारण उन्हें नहीं मिल पाई जबकि इम्तिहान उन्होंने दे दिया था !

उनकी डिग्रियां/ शैक्षणिक योग्यता इस प्रकार थीं...

MBBS,MD gold medalist,

LLB, LLM,

MBA,

Bachelor in journalism ,

संस्कृत में डी.लिट. की उपाधि यूनिवर्सिटी टॉपर ,

M. A इंग्लिश,

M.A हिंदी,

M.A हिस्ट्री,

M.A साइकोलॉजी,

M.A सोशियोलॉजी,

M.A पॉलिटिकल साइंस,

M.A आर्कियोलॉजी,

M.A एंथ्रोपोलॉजी,

श्रीकान्तजी 1978 बैच के आईपीएस व 1980 बैच आईएएस अधिकारी भी रहे !
1981 में महाराष्ट्र में विधायक बने,

1992 से लेकर 1998 तक राज्यसभा सांसद रहे !

श्रीकांत जिचकर ने वर्ष 1973 से लेकर 1990 तक तमाम यूनिवर्सिटी के इम्तिहान देने में समय गुजारा !

1980 में आईएएस की केवल 4 महीने की नौकरी कर इस्तीफा दे दिया !

26 वर्ष की उम्र में देश के सबसे कम उम्र के विधायक बने, महाराष्ट्र सरकार में मंत्री भी बने,

14 पोर्टफोलियो हासिल कर सबसे प्रभावशाली मंत्री रहे !

महाराष्ट्र में पुलिस सुधार किये !

1992 से लेकर 1998 तक बतौर राज्यसभा सांसद संसद की बहुत सी समितियों के सदस्य रहे,वहाँ भी महत्वपूर्ण कार्य किये !

1999 में भयंकर कैंसर लास्ट स्टेज का डायग्नोज हुआ,डॉक्टर ने कहा आपके पास केवल एक महीना है !

अस्पताल पर मृत्यु शैया पर पड़े हुए थे...लेकिन आध्यात्मिक विचारों के धनी श्रीकांत जिचकर ने आस नहीं छोड़ी उसी दौरान कोई सन्यासी अस्पताल में आया उसने उन्हें ढांढस बंधाया संस्कृतभाषा,शास्त्रों का अध्ययन करने के लिए प्रेरित किया कहा तुम अभी नहीं मर सकते, अभी तुम्हें बहुत काम करना है।

चमत्कारिक तौर से श्रीकांत जिचकर पूर्ण स्वस्थ हो गए।

स्वस्थ होते ही राजनीति से सन्यास लेकर संस्कृत में डी.लिट. की उपाधि अर्जित की!

वे कहा करते थे संस्कृत भाषा के अध्ययन के बाद मेरा जीवन ही परिवर्तित हो गया है ! मेरी ज्ञान पिपासा अब पूर्ण हुई है।

पुणे में संदीपनी स्कूल की स्थापना की,

नागपुर में कालिदास संस्कृत विश्वविद्यालय की स्थापना की जिसके पहले कुलपति भी बने !

उनका पुस्तकालय किसी व्यक्ति का निजी सबसे बड़ा पुस्तकालय था जिसमें 52000 के लगभग पुस्तकें थीं!

उनका एक ही सपना बन गया था, भारत के प्रत्येक घर में कम से कम एक संस्कृत भाषा का विद्वान हो तथा कोई भी परिवार मधुमेह जैसी जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों का शिकार ना हो!

यूट्यूब पर उनके केवल 3 ही मोटिवेशनल हेल्थ फिटनेस संबंधित वीडियो उपलब्ध हैं!

ऐसे असाधारण प्रतिभा के लोग, आयु के मामले में निर्धन ही देखे गए हैं,अति मेधावी, अति प्रतिभाशाली व्यक्तियों का जीवन ज्यादा लंबा नहीं होता,शंकराचार्य महर्षि दयानंद सरस्वती, विवेकानंद भी अधिक उम्र नहीं जी पाए थे!

2 जून 2004 को नागपुर से 60 किलोमीटर दूर महाराष्ट्र में ही भयंकर सड़क हादसे में श्रीकांत जिचकर का निधन हो गया।

संस्कृत भाषा के प्रचार प्रसार व Holistic health को लेकर उनका कार्य अधूरा ही रह गया।

ऐसे शिक्षक, चिकित्सक,विधि विशेषज्ञ,प्रशासक व राजनेता के मिश्रित व्यक्तित्व को शत शत नमन।

02/04/2023

(1) बटुकेश्वर दत्त ने 1929 में अपने साथी भगत सिंह के साथ मिलकर अंग्रेजी सेंट्रल लेजिस्लेटिव एसेम्बली में बम फेंक, इंकलाब ज़िंदाबाद के नारों के साथ आजन्म काला-पानी स्वीकार किया था।

(2) आजादी के बाद भी वे सरकारी उपेक्षा के चलते गुमनामी और उपेक्षित जीवन जीते रहे।

(3) जीवन निर्वाह के लिए कभी एक सिगरेट कंपनी का एजेंट बनकर पटना की गुटखा-तंबाकू की दुकानों के इर्द-गिर्द भटकना पड़ा तो कभी बिस्कुट और डबलरोटी बनाने का काम किया।

(4) जिस व्यक्ति के ऐतिहासिक किस्से भारत के बच्चे-बच्चे की ज़ुबान पर होने चाहिए थे उसे एक मामूली टूरिस्ट गाइड बनकर गुजर-बसर करनी पड़ती है।

(5) देश की आजादी और जेल से रिहाई के बाद दत्त पटना में रहने लगे. पटना में अपनी बस शुरू करने के विचार से जब वे बस का परमिट लेने पटना के कमिश्नर से मिलते हैं तो कमिश्नर द्वारा उनसे उनके #बटुकेश्वर_दत्त होने का प्रमाण मांगा गया ।

(6) उन्होंने बिस्कुट और डबलरोटी बनाने का काम भी किया।
पटना की सड़कों पर खाक छानने को विवश बटुकेश्वर दत्त की पत्नी मिडिल स्कूल में नौकरी करती थीं जिससे उनका गुज़ारा हो पाया।

(7) अंतिम समय उनके 1964 में अचानक बीमार होने के बाद उन्हें गंभीर हालत में पटना के सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया गया, पर उनका ढंग से उपचार नहीं हो रहा था।
इस पर उनके मित्र चमनलाल आजाद ने एक लेख में लिखा, क्या दत्त जैसे क्रांतिकारी को भारत में जन्म लेना चाहिए, परमात्मा ने इतने महान शूरवीर को हमारे देश में जन्म देकर भारी भूल की है. चमनलाल आजाद के मार्मिक लेकिन कडवे सच को बयां करने वाले लेख को पढ़ पंजाब सरकार ने अपने खर्चे पर दत्त का इलाज़ करवाने का प्रस्ताव दिया। तब जाकर बिहार सरकार ने ध्यान देकर मेडिकल कॉलेज में उनका इलाज़ करवाना शुरू किया. पर दत्त की हालात गंभीर हो चली थी।

(8) 22 नवंबर 1964 को उन्हें दिल्ली लाया गया. दिल्ली पहुंचने पर उन्होंने पत्रकारों से कहा था, “मुझे स्वप्न में भी ख्याल न था कि मैं उस दिल्ली में जहां मैने बम डाला था, एक अपाहिज की तरह स्ट्रेचर पर लाया जाउंगा.” दत्त को दिल्ली के एम्स अस्पताल में भर्ती किये जाने पर पता चला की उन्हें कैंसर है और उनके जीवन के कुछ दिन ही शेष बचे हैं। यह सुन भगत सिंह की मां विद्यावती देवी अपने पुत्र समान दत्त से मिलने दिल्ली आईं।

(9) वहीं पंजाब के मुख्यमंत्री रामकिशन जब दत्त से मिलने पहुंचे और उन्होंने पूछ लिया, हम आपको कुछ देना चाहते हैं, जो भी आपकी इच्छा हो मांग लीजिए। छलछलाई आंखों और फीकी मुस्कान के साथ उन्होंने कहा, हमें कुछ नहीं चाहिए। बस मेरी यही अंतिम इच्छा है कि मेरा दाह संस्कार मेरे मित्र भगत सिंह की समाधि के बगल में किया जाए।

(10) 20 जुलाई 1965 की रात एक बजकर 50 मिनट पर दत्त इस दुनिया से विदा हो गये. उनका अंतिम संस्कार उनकी इच्छा के अनुसार, भारत-पाक सीमा के समीप हुसैनीवाला में भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव की समाधि के निकट किया गया।

(11) उक्त प्रसंग प्रत्येक भारतीय को ज्ञात होना चाहिए और चिंतन करना चाहिए कि ऐसे कई युवा अपना यौवन, सुख सुविधाएँ , परिवार के कष्ट निवारण की आशाओं पर तुषारापात कर देश की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करते हुए बलिदान हुए, उनमें से ऐसे कुछ ही लोग भाग्य से स्वतंत्रता का दिन देख पाए । लेकिन उन्हें कष्ट भोगने पड़े, उसका दोषी कौन?
(12) उन लोगों को आज हम अज्ञात कह देते हैं लेकिन तब के अखबारों की सुर्खियां गवाह है कि वे अज्ञात तो नहीं ही थे। तब के रेडियो में प्रमुख खबरों में होते थे उनके नाम।
शहरों में उनके पोस्टर लगते थे, मोटी इनामी धनराशि का लालच देकर उनके लिए मुखबिरी करवाई जाती थी।
(13) तो फिर बाद में वे अनाम कैसे बना दिए गए? भगत सिंह के साथ बम फेंकने वाले बटुकेश्वर दत्त को काला पानी की सजा हुई, जो कि मृत्यु दण्ड से भी अधिक दुख दायी थी,अतः फांसी से कमतर सजा नहीं थी।
फिर भी आज न कोई नामलेवा है,न साधारणतः कोई जानता है, न कहीं फोटो सहज उपलब्ध हैं।
#वन्देमातरम् 🚩💐🙏

31/03/2023

वीर सावरकर जी के पोते का सरनेम आज भी सावरकर है। सरनेम उनके ही बदलते हैं जिनके DNA में गड़बड़ी होती है।

04/03/2023

बिना पानी के होली
बिना पटाखों के दिवाली
ऐसी अपील करने वालों को बिना सीट की साइकिल पर बैठा देना चाहिए

04/03/2023

#प्राकृतिक_रंगों_से_होली_खेले बिना जो लोग ग्रीष्म ऋतु बिताते हैं, उन्हें गर्मीजन्य उत्तेजना, चिड़चिड़ापन, खिन्नता, मानसिक अवसाद (डिप्रेशन), तनाव, अनिद्रा इत्यादि तकलीफों का सामना करना पड़ता है ।

आइये आपको बताते है #प्राकृतिक_रंग_कैसे_बनायें ?

1- केसरिया रंग : #पलाश के फूलों को रात को पानी में भिगो दें । सुबह इस #केसरिया रंग को ऐसे ही प्रयोग में लायें या उबालकर, उसे ठंडा करके #होली का आनंद उठायें ।

लाल रंग : #पान पर लगाया जानेवाला एक चुटकी चूना और दो चम्मच हल्दी को आधा प्याला पानी में मिला लें । कम-से-कम 10 लीटर पानी में घोलने के बाद ही उपयोग करें ।

सूखा पीला रंग : 4 चम्मच बेसन में 2 चम्मच हल्दी चूर्ण मिलायें । सुगंधयुक्त कस्तूरी #हल्दी का भी उपयोग किया जा सकता है और बेसन की जगह गेहूँ का आटा, चावल का आटा, आरारोट का चूर्ण, मुलतानी मिट्टी आदि उपयोग में ले सकते हैं ।

गीला पीला रंग :-
(1) एक चम्मच हल्दी दो लीटर पानी में उबालें या मिठाइयों में पड़नेवाले रंग जो खाने के काम में आते हैं, उसका भी उपयोग कर सकते हैं।
(2) अमलतास या गेंदे के फूलों को रात को पानी में भिगोकर रखें, सुबह उबालें।

पलाश के फूलों का रंग बनायें । पलाश के फूलों से बने रंगों से होली खेलने से शरीर में गर्मी सहन करने की क्षमता बढ़ती है, मानसिक संतुलन बना रहता है ।

रासायनिक रंगों से होने वाली हानि...

1 - काले #रंग
में लेड ऑक्साइड
पड़ता है जो
गुर्दे की बीमारी, दिमाग की कमजोरी
करता है ।

2 - हरे रंग में कॉपर सल्फेट होता है जो आँखों में जलन, सूजन, अस्थायी अंधत्व
लाता है ।

3 - सिल्वर रंग में #एल्यूमीनियम ब्रोमाइड होता है जो कैंसर करता है ।

4- नीले रंग में प्रूशियन ब्ल (कॉन्टैक्ट डर्मेटाइटिस) से भयंकर #त्वचारोग
होता है ।

5 - लाल रंग जिसमें मरक्युरी सल्फाइड
होता है जिससे त्वचा का #कैंसर होता है ।

6- बैंगनी रंग में क्रोमियम आयोडाइड
होता है जिससे दमा, #एलर्जी
होती है । *(यह लेख #संत_आसारामजी_आश्रम_से_प्रकाशित_पत्रिका_ऋषि_प्रसाद से लिया गया है)*

03/03/2023

आवश्यक नहीं कि पथरी(किडनी स्टोन) का ऑपरेशन ही एकमात्र इलाज है, आयुर्वेदिक औषधियों से भी पूरी तरह से ठीक हो जाती है
👉वैद्य जी कहिन👈

21/02/2023

गर्मी में कोल्ड ड्रिंक की जगह गन्ने का रस, नींबू पानी शिकंजी और आम का पना पिये...

इससे आपका पैसा देश में ही रहेगा और उससे किसी गरीब को रोजगार मिलेगा

01/02/2023

मनुष्य को पंक्षियों से बहुत कुछ सीखने की आवश्यकता है

09/01/2023

#आयुर्वेदिक_उपचार_के_लाभ_एक_जीवनशैली

आयुर्वेद हमें हजारों वर्षों से स्वस्थ जीवन का मार्ग दिखा रहा है। प्राचीन भारत में आयुर्वेद को रोगों के उपचार और स्वस्थ जीवन शैली व्यतीत करने का सर्वोत्तम तरीकों में से एक माना जाता था। अच्छे स्वास्थ्य को बनाए रखने के महत्व के कारण, हमने आधुनिक विश्व में भी आयुर्वेद के सिद्धांतों और अवधारणाओं का उपयोग करना नहीं छोड़ा - यह है आयुर्वेद का महत्व।

विभिन्न पद्धतियों को अनुसरण करने वाले अपनी अपनी चिकत्सा पद्धति को ही सही ठहराते है। अभी हाल ही में भारत में एक बार फिर आयुर्वेद और एलोपैथी के बीच बहस छिड़ गई है की कौन बेहतर है। शायद ये बहुत काम लोग ही जानते होंगे की भारत में आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति का अनुसरण पिछले ५००० वर्षों से हो रहा है। भारत में एलोपैथी का आगमन हाल की ही सदी में हुआ है। जहाँ आयुर्वेद बीमारी के कारणों का पता लगाके उसके जड़ का नाश करता है वहीं एलोपैथ में सिर्फ बीमारी का इलाज होता है जिससे बीमारी तो ठीक हो जाती है परन्तु उसके कारक शरीर में मौजूद रह जाते है, जो आगे चलके बीमारी को फिर उभार सकते है। ऐसे अनेको अनेक कारण है जिससे दोनों पद्धतियों में अंतर कर सकते है। परन्तु आज हम इस बहस में न पड़कर की कौन सी चिकत्सा पद्धति बेहतर है आईये हम अपनी प्राचीन आयुर्वेदिक चिकत्सा पद्धति की कुछ विशेषताओं पर बात करते है।

१. #स्थायी_इलाज (Permanent Solution ) आयुर्वेदिक चिकत्सा में व्यक्ति की बीमारी का स्थाई इलाज किया जाता है और उसके शरीर से बीमारी से सम्बंदित सभी विषाणुओं का अंत कर दिया जाता है। इसमें बीमारी के साथ साथ उसके मुख्य श्रोत का पता करके उसका भी इलाज किया जाता है। जिससे व्यक्ति का शरीर विषाणु रहित होकर स्वस्थ हो जाता और वो एक स्वस्थ जीवन जीता है।

२. #पार्श्व_प्रभाव (No Side Effect) आयुर्वेदिक दवाईओं को पूरी तरह से प्राकृतिक जड़ी बूटियों से बनाई जाती है जो प्राकृतिक तरीके से बीमारी का निवारण करती है बिना कोई पार्श्व प्रभाव छोड़े। आयुर्वेद की सभी दवायें प्रकृति में मिलने वाले फलों, जड़ी बूटी, पेटों के छाल आदि के उद्धरण से तैयार की जाती है जो कोई भी पार्श्व प्रभाव नहीं छोड़ती है। आयर्वेदिक दवाओं का सेवन आयुर्वेदिक चिकित्सक के देखरेख में बिना किसी साइड इफ़ेक्ट के डर के इस्तेमाल कर सकता है।

३. #पुरानी_बिमारियोंका_सफल_इलाज (Chronic Disease) आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में पुरानी से पुरानी बीमारी का सफल इलाज संभव है। आयुर्वेदिक दवाओं से खासकर पेट, जिगर और गुर्दे से जुड़ी पुरानी बिमारियों में रामबाण की तरह असर करती है। आयुर्वेदिक औषधि जिगर और गुर्दे का जीर्णोद्धार का देती है जिससे आदमी फिर से एक स्वस्थ जीवन जी सकता है। किसी और पद्धति से इलाज करने पर वो सिर्फ बीमारी का इलाज करते है पर उनके कारण हमेशा बने रहते है। आयुर्वेद ऐसी बिमारियों का पूर्ण इलाज सिर्फ आयुर्वेद में ही संभव है।

४. #रासायनिक_सामग्री_से_मुक्त (No Chemical) - आयुर्वेदिक दवाओं के निर्माण में किसी भी तरह का रस्याण इस्तेमाल नहीं होता है। आयुर्वेदिक दवाई शुद्ध रूप से प्राकृतिक पदार्थों से बनाई जाती है। दवाई बनाने की किसी भी प्रक्रिया में रसायनो का प्रयोग नहीं होता है। पूरी तरह प्राकृतिक तरीके से बनी होने के कारन ये दवाएं किसी भी प्रकार का पार्श्व प्रभाव नहीं छोड़ती।

५. #बीमारी_का_जड़_से_नाश (Works on Root) आयुर्वेदिक पद्धति में बीमारी का जड़ से इलाज किया जाता है। इस चिक्तिसा पद्धति में बीमारी के कारणों का पता लगाके उसका इलाज किया जाता है जिससे न सिर्फ वो बीमारी बल्कि उसके प्रभावित होने वाले अंगो को भी पूर्णता स्वस्थ कर देते है। आयुर्वेदिक चिकत्सा से पीलिया, बवासीर और कब्ज जैसी बिमारियों का जड़ ने खात्मा हो जाता है।

६. ्चीला_इलाज ( Less Expensive) आयुर्वेदिक दवाई प्राकतिक पदार्थों से बनी होने की वजह से कम कीमत पर मिलती है। इस पद्धति में इलाज थोड़ा लम्बा चलता है पर इस चिकत्सा पद्धति से न केवल बीमारी अपितु उसके लक्षणों से पूर्णता निदान मिलता है।

10. #पेशा_या_सेवा (Social work) आयुर्वेदिक चिकिस्ता पद्धति अभ्यास करने वाले लोगों का उपचार सेवा भाव के साथ करते है। इस पेशे से जुड़े लोग बीमार का इलाज पैसे से ज्यादा सेवाभाव से करते है। आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति का अभ्यास करने वाले न सिर्फ बीमारी बल्कि व्यक्ति को एक स्वस्थ जीवन देने की भी प्रेणना देते है।

८. #दर्शन- आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति एक दर्शन का पालन करता है और जो कहता है कि एक अच्छा और स्वस्थ जीवन सबका अधिकार है। एक अच्छे और स्वस्थ स्वास्थ्य के लिए मनुष्य के तीन दोषों यानि वात, पित्त, और कफ के बीच संतुलन होना जरूरी है। आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति लक्षणों को ध्यान में रख कर बीमारी का इलाज करती है।

९. #पर्यावरण_के_अनुकूल (Environment Friendly) आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में किसी भी चरण पे रसायनों का प्रयोग नहीं होता है। इसकी

सभी दवाइयों का निर्माण पूर्ण रूप से प्राकृतिक पदार्थों से बनाया जाता है। प्राकृतिक पदार्थों से बने होने की वजह से ये पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं पहुंचते है।

१०. ाने_और_रखरखाव आयुर्वेदिक चिकित्सा में ज्यादा वजह को एक बीमारी के रूप में नहीं देखा जाता है अपितु इसे आपके खानपान के तरीके से जोड़ा जाता है। आयुर्वेद में मोटापे को काम करने के लिए अनावश्यक दवाओं के बजाये व्यक्ति के खानपान को नियंत्रित करने पर ध्यान देती है। आयुर्वेद व्यक्ति को संतुलित आहार लेने और आहार योजना का दृढ़ता से पालन करने को कहती है। अगर व्यक्ति आयुर्वेद के द्वारा निर्धारित आहार योजना का नियमित पालन करता है तो वो बिना दवाओं के ही अपना वजन काम कर सकता है।

#आयुर्वेद_के_लाभ:-
आयुर्वेदिक चिकित्सा लाभों के महत्व को समझना अच्छा है।

#बेहतर_इंद्रियाँ_के_लिए:- आपकी पाँचों इंद्रियाँ उच्चारण होती हैं और आप मुक्त महसूस करते हैं।
बेहतर एकाग्रता के लिए: आप जो भी काम करते हैं उसमें आपकी एकाग्रता बेहतर होती है।
#भरपूर_ऊर्जा_के_लिए:- आप दिन भर ऊर्जावान महसूस करते हैं।
#आकर्षित_व्यक्तित्व_के_लिए:- आपका समग्र व्यक्तित्व आकर्षक होगा और आप बहुत अधिक आत्म-विश्वास रखेंगे।
खूबसूरत और ग्लोइंग स्किन के लिए: आपकी खूबसूरत और ग्लोइंग स्किन होगी और आपको स्किन इन्फेक्शन, मुंहासे, एक्जिमा आदि किसी भी तरह की स्किन प्रॉब्लम का सामना नहीं करना पड़ेगा।
#शांत_मन_और_शरीर_के_लिए:- आयुर्वेदिक मालिश के साथ विशेष तेल का उपयोग करते हैं जो हमारे दिमाग को आराम देगा और आपको पूरी तरह से तनाव मुक्त अनुभव देगा। इस आयुर्वेदिक तेल को अपने शरीर पर लगाने के आयुर्वेदिक मालिश लाभ हैं और रक्त परिसंचरण में भी मदद करता है और आपके शरीर में मौजूद गाँठें, ऊतक और मांसपेशियाँ असंगत होती हैं। इस तेल में एंटी-एजिंग और आवश्यक तेल के भी गुण हैं।आयुर्वेद चिकित्सा में भी बहुत लाभकारी सिद्ध होता है क्योंकि आयुर्वेद की चिकित्सा विधि भी बहुत सर्वगुण सम्पन्न है। आयुर्वेद की चिकित्सा से मनुष्य का शारीरिक तथा मानसिक दोनों में सुधार होता है। आयुर्वेद औषधियों के अधिकतर घटक जड़ी-बूटी, पौधों, फूलों या फलों से प्राप्त होती है। आयुर्वेद चिकित्सा को प्रकृति के निकट भी माना जाता है।

आयुर्वेद रोगी व्यक्तियों के विकारों को दूर कर उन्हें स्वस्थ बनाता है, जो रोगी मनुष्य होते है उनके रोगों को 100% दूर करता है अगर मनुष्य आयुर्वेद का सहारा ले ले तो उसके अंदर जितने भी विकार है सब नष्ट हो जायेगें।

#हमारा_का_उद्देश्य :- हमारा उद्देश्य ही यही रहता है या फिर ये कह लीजिए की आयुर्वेद का प्रयोग हम स्वस्थ रहने के लिए करते है। ये आयुर्वेद ऐसा है की ये हमे रोगों से दूर रखता है और स्वस्थ व्यक्तियों के स्वास्थ्य की रक्षा करता है

संक्रमण से दूर रखता हैं: आप बीमार नहीं पड़ेंगे; आपको सर्दी या खांसी या ऐसा कोई संक्रमण नहीं होगा।
पुरानी बीमारियों से दूर रखता हैं: आप लगातार हो रहे सिरदर्द, साइनस की समस्याओं और कई पुरानी बीमारियों जैसे मधुमेह, रक्तचाप आदि से दूर रहेंगे।

#स्वस्थ रहना है तो भारतीय चिकित्सा पद्धति को अपनाना ही होगा अन्यथा एक बार एलोपैथी चिकित्सा के चक्कर में फंसे तो बिमारियों के जाल से निकलना मुश्किल होगा

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वैद्य पंडित पुष्पराज त्रिपाठी
मो०-8004419488

07/01/2023

#भारत का गौरवशाली #इतिहास __106
भोजन कराने की अद्भुत #वैज्ञानिक व्यवस्था।

हमने कभी #वेदों का अध्ययन नही किया, हमने कभी #गीता पढ़कर उसे अमल में लाने का प्रयास नही किया,हमने योग विद्या को कभी नही अपनाया,हमने #आयुर्वेद में कोई अनुसंधान नही किया,हमने #संस्कृत भाषा को कोई महत्व नही दिया ऐसी बहुत सी अच्छी और महत्वपूर्ण चीजें है जो हमारे पूर्वज हमारे #बुजुर्ग हमे विरासत में दे गए पर हम पाश्चात्य संस्कृति अपनाने में अंधे हो गए हमने धीरे धीरे हमारी संस्कृति को ही छोड़ने का काम किया।
अब एक बहुत छोटी सी बात है पर हमने उसे विस्मृत कर दिया हमारी #भोजन संस्कृति इस भोजन संस्कृति में बैठकर खाना और उस भोजन को "दोने पत्तल" पर परोसने का बड़ा महत्व था कोई भी मांगलिक कार्य हो उस समय भोजन एक पंक्ति में बैठकर खाया जाता था और वो भोजन पत्तल पर परोसा जाता था जो विभिन्न प्रकार की वनस्पति के पत्तो से निर्मित होती थी।
क्या हमने कभी जानने की कोशिश की कि ये भोजन पत्तल पर परोसकर ही क्यो खाया जाता था?नही क्योकि हम उस महत्व को जानते तो देश मे कभी ये "बुफे"जैसी खड़े रहकर भोजन करने की संस्कृति आ ही नही पाती।
जैसा कि हम जानते है पत्तले अनेक प्रकार के पेड़ो के पत्तों से बनाई जा सकती है इसलिए अलग-अलग पत्तों से बनी पत्तलों में गुण भी अलग-अलग होते है| तो आइए जानते है कि कौन से पत्तों से बनी पत्तल में भोजन करने से क्या फायदा होता है?

_ लकवा से पीड़ित व्यक्ति को अमलतास के पत्तों से बनी पत्तल पर भोजन करना फायदेमंद होता है।
_ जिन लोगों को जोड़ो के दर्द की समस्या है ,उन्हें करंज के पत्तों से बनी पत्तल पर भोजन करना चाहिए।
_ जिनकी मानसिक स्थिति सही नहीं होती है ,उन्हें पीपल के पत्तों से बनी पत्तल पर भोजन करना चाहिए।
_पलाश के पत्तों से बनी पत्तल में भोजन करने से खून साफ होता है और बवासीर के रोग में भी फायदा मिलता है।
_ केले के पत्ते पर भोजन करना तो सबसे शुभ माना जाता है ,इसमें बहुत से ऐसे तत्व होते है जो हमें अनेक बीमारियों से भी सुरक्षित रखते है।
_पत्तल में भोजन करने से पर्यावरण भी प्रदूषित नहीं होता है क्योंकि पत्तले आसानी से नष्ट हो जाती है।
_पत्तलों के नष्ट होने के बाद जो खाद बनती है वो खेती के लिए बहुत लाभदायक होती है।
_पत्तले प्राकतिक रूप से #स्वच्छ होती है इसलिए इस पर भोजन करने से हमारे शरीर को किसी भी प्रकार की हानि नहीं होती है।
_अगर हम पत्तलों का अधिक से अधिक उपयोग करेंगे तो #गांव के लोगों को रोजगार भी अधिक मिलेगा क्योंकि पेड़ सबसे ज्यादा ग्रामीण क्षेत्रो में ही पाये जाते है।
_ अगर पत्तलों की मांग बढ़ेगी तो लोग पेड़ भी ज्यादा लगायेंगे जिससे प्रदूषण कम होगा।
_ #डिस्पोजल के कारण जो हमारी #मिट्टी ,नदियों ,तालाबों में प्रदूषण फैल रहा है ,पत्तल के अधिक उपयोग से वह कम हो जायेगा।
_ जो मासूम जानवर इन प्लास्टिक को खाने से बीमार हो जाते है या फिर मर जाते है वे भी सुरक्षित हो जायेंगे ,क्योंकि अगर कोई जानवर पत्तलों को खा भी लेता है तो इससे उन्हें कोई नुकसान नहीं होगा। सबसे बड़ी बात पत्तले ,डिस्पोजल से बहुत सस्ती भी होती है।
_ ये बदलाव आप और हम ही ला सकते है अपनी #सनातन_संस्कृति को अपनाने से हम छोटे नही हो जाएंगे बल्कि हमे इस बात का गर्व होना चाहिए कि हम हमारी संस्कृति का #विश्व मे कोई सानी नही है।🙏🌸😊

24/12/2022

क्या बात है न्यू ईयर की एडवांस में बधाई वाले मैसेज बिल्कुल नहीं दिख रहे हैं🤣🤣

20/12/2022
05/12/2022

#आयुर्वेद_के_प्रति_लोगों_की_मनोदशा

03/12/2022

भारत क्यों गुलाम हुआ क्या आगे भी गुलाम हो सकता है - श्री राजीव दीक्षित जी

02/12/2022

क्या आपको पता है,कि दुनिया के सबसे पहले हवाई जहाज़ का आविष्कार, अमरीका के राइट बंधुओं ने नहीं, बल्कि भारत के शिवकर बापूजी तलपडे ने किया था।

इस हवाई-जहाज़ का नाम तलपडे जी ने ‘मरुत्सखा’ रखा था। ‘मरुत्सखा’ एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है ‘हवाओं का मित्र’।
मरुत्सखा की पहली उड़ान का ठीक से दस्तावेजीकरण नहीं किया गया है, लेकिन ऐसा कहा जाता है कि पहली उड़ान सन 1895 में भरी गई थी, राइट बधुओं द्वारा बनाए विमान से 8 साल पहले।

हम पूरी तरह से स्कूलों में सिखाई गई चीज़ों पर निर्भर नहीं हो सकते। इस संसार में ऐसी बहुत चीज़ें हैं जिनका आविष्कार पिछली सदी में हुआ है लेकिन पुराणों और वेदों में उन आविष्कारों का पहले से ही उल्लेख है।

हमारी भारतीय सभ्यता दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक है।
शास्त्रों और वेदों में दिए ज्ञान को हासिल करना हमारा कर्तव्य है। ठीक उसी तरह जैसे शिवकर बापूजी तलपडे ने किया था।

30/11/2022

17 साल स्कूल में जाकर उतना नही सीखा जीतना आदरणीय " श्री राजीव दीक्षित " जी से सीखा, आज उनकी पुण्यतिथि व जयंती हैँ 🙏😔

25/11/2022

* #जमीन_पर_बैठकर_भोजन_करने_के_होते_है_कई_बेमिसाल_फायदे*

इन दिनों हर कोई वेस्टर्न कल्चर को अपनाने के लिए परेशान है। यही कारण है कि आज कल कोई जमीन पर बैठकर खाना नहीं खाना चाहता है। घर में तो फिर भी लोग बेड या कुर्सी पर बैठकर खाना खाते हैं, लेकिन शादी-विवाह में बुफे सिस्टम के चलते लोग खड़े होकर ही खाना खाते हैं।

जमीन पर बैठकर भोजन करने की परंपरा सदियों से चली आ रही है लेकिन आज के युग में तो “नीचे बैठकर खाना!! ना बाबा ना, कितना आउटडेटेड और असभ्य सा तरीका है…” जब कभी कोई आपको नीचे बैठकर खाने के लिए कहता है तो आपके दिमाग में यही शब्द घूमते होंगे कि कहीं किसी ने आपको नीचे बैठकर खाना खाते हुए देख लिया तो ये आपके लिए कितना शर्मिंदगी भरा होगा।

लेकिन क्या आपने सोचा है कि प्राचीन काल में बड़े-बड़े ऋषि-महर्षि जमीन पर बैठकर ही भोजन क्यों किया करते थे? वे ना तो असभ्य थे और ना ही निचले तबके के, फिर क्यों भोजन करने के लिए वे भूमि को ही चुनते थे ?

जमीन पर बैठकर भोजन खाना हमारी भारतीय संस्कृति का एक अहम हिस्सा है। मगर आज की पीढ़ी नई सोच की मालिक होने से बेड या कुर्सी पर बैठकर खाना पसंद करते हैं। कई लोग तो नीचे बैठकर खाने से शर्मिंदगी महसूस करते हैं। मगर शायद आप जानते नहीं है कि जमीन पर बैठकर भोजन करने से सेहत को कई लाभ मिलते हैं।
जी हां, जमीन पर बैठने के लिए हम चौकड़ी मार कर बैठते हैं। आयुर्वेद में चौकड़ी लगाकर बैठकर भोजन करने को सुखासन कहा जाता है। इस मुद्रा में बैठकर भोजन करने से पाचन क्रिया एकदम सही रहती है। खाया हुआ भोजन सही से पचने के साथ सभी बेहतर तरीके से शारीरिक विकास करने में मदद करते हैं। ऐसे में बीमारियों की चपेट में आने का खतरा कम रहता है।

शायद आपको जमीन पर बैठकर खाना खाना पुराना स्टाइल लगता हो, पर ये परंपरा ऐसी है जो शरीर के लिए काफी फायदेमंद है।

मॉर्डन लाइफस्टाइल के चलते आज कल कुर्सी टेबल पर बैठकर खाना खाने का ट्रेंड सा बन गया है. लेकिन पहले के समय में लोग जमीन पर बैठकर ही खाना खाते थे. आजकल के लोग जमीन पर बैठकर खाने को आउटडेटेड समझते हैं. इतना ही नहीं, लोगों को जमीन पर बैठकर खाना खाने में शर्मिंदगी महसूस होती है.

हमारा लाइफस्टाइल ऐसा हो गया है कि हमारा ज्यादा से ज्यादा वक्त कुर्सियों और सोफे पर बैठकर गुजरता है। हम पढ़ाई-लिखाई से लेकर खाने-पीने के लिए भी कुर्सियों पर बैठना पसंद करते हैं। कुर्सियों और सोफे पर बैठकर हम अपनी बॉडी को आलसी बना रहे हैं। हम इतने ज्यादा मॉर्डन हो गए हैं, कि जमीन पर बैठकर खाने में हमें शर्मिंदगी महसूस होती है। क्या आप जानते हैं कि जमीन पर बैठ कर खाने से सेहत को कई तरह के फायदे पहुंचते हैं। जमीन पर हम जिस तरह से एक पैर को दूसरे पर रखकर बैठते हैं, वो एक आसन की मुद्रा होती है। इस मुद्रा में बैठकर खाना खाने से भोजन पूरी तरह पचता है और पाचन क्रिया भी बेहतर रहती है।

*जमीन पर बैठकर खाने के बेहतरीन फायदे*

(1).जमीन पर बैठकर खाना खाने से शरीर मजबूत होता है. इस मुद्रा में बैठने से पीठ के निचले हिस्से की मांसपेशियों, पेल्विस और पेट के आस-पास की मांसपेशियों में खिंचाव होता है. जिससे असहजता और दर्द की शिकायत में आराम मिलता है.

(2). जमीन पर बैठकर खाने के दौरान आप पाचन की नेचुरल अवस्था में होते हैं. इससे पाचक रस बेहतर तरीके से अपना काम कर पाते हैं.

(3). परिवार के सभी सदस्य जब एक साथ जमीन पर बैठकर खाते हैं, तो उनके बीच का संबंध भी मजबूत बनता है. इस मुद्रा में बैठने से शरीर की कई तकलीफें दूर हो जाती हैं. आराम मिलने से खाने का स्वाद भी दोगुना हो जाता है.

(4). जमीन पर बैठकर खाना खाने से वजन संतुलित रखने में भी मदद मिलती है.

(5). जमीन पर बैठकर खाना खाते समय आप सिर्फ खाना ही नहीं खाते हैं बल्कि यह एक आसन की मुद्रा भी है. ये मुद्रा आपको शांत रहने में मदद करती है. इससे रीढ़ की हड्डी को भी आराम मिलता है.

(6). जमीन पर बैठकर खाने से हमारा बॉडी-पोश्चर भी बेहतर होता है. इससे व्यक्त‍ित्व में भी निखार आता है.

(7). जमीन पर बैठकर खाने से ब्लड सर्कुलेशन बेहतर होता है जो दिल को सेहतमंद रखने के लिए जरूरी है.

जमीन पर बैठने व उठने से पूरे शरीर में हलचल होती है। ऐसे में इसे एक अच्छा व्यायाम माना गया है। वहीं जमीन पर बैठने के बाद उठने पर शरीर अर्ध पद्मासन की मुद्रा में आता है। साथ ही जमीन पर बैठकर भोजन करते समय आपका सारा ध्यान खाने पर होता है। ऐसे में शांति से खाया हुआ भोजन आसानी पचने पर वजन कंट्रोल करने में मदद करता है। वहीं इसके विपरीत कुर्सी पर बैठकर बोजन करने से हम जरूरत से ज्यादा खाना खा लेते हैं। इसके कारण वजन बढ़ने का खतरा रहता है।

हाई ब्लड प्रेशर के मरीजों को जमीन पर बैठकर ही भोजन करना चाहिए। असल में, इस पोज में बैठने से रीढ़ की हड्डी के निचले भाग पर दबाव पड़ता है। इससे शरीर को आराम का अहसास होता है। सांस थोड़ी धीमी होने से मांसपेशियों का खिंचाव कम होने लगता है। ऐसे में हाई ब्लड प्रेशर कम होने में मदद मिलती है।

जिन लोगों को शरीर में दर्द की परेशानी रहती है उन्हें जमीन पर बैठकर भोजन करना चाहिए। इससे शरीर का तनाव कम होने में मदद मिलती है। साथ ही खाना खाते समय एकदम कंफर्टेबल फील होता है। ऐसे में खाया हुआ भोजन सेहत दुरुस्त रखने के साथ खुशी का अहसास देता हैं।

जमीन पर बैठने से शरीर का पोस्चर एकदम सही होता है। वहीं सही तरीके से बैठने से शरीर में खून का प्रवाह बेहतर तरीके से होता है। वहीं नाड़ियों में दबाव कम पड़ने से पाचन शक्ति दुरुस्त रहती है। इसके अलावा पाचन क्रिया सही तरीके से चलाने में दिल अहम भूमिका निभाता है। असल में, भोजन सही व जल्दी पचने से दिल को कम मेहनत करने की जरूरत पड़ती है। ऐसे में दिल स्वस्थ रहता है।

जमीन पर भोजन करने के लिए पद्मासन में बैठना पड़ता है। इससे पेट, पीठ व शरीर के निचले भाग, कूल्हों की मांसपेशियों में लगातार खिंचाव होता है। इसके कारण दर्द व किसी अन्य परेशानी से राहत मिलती है। इससे शरीर को अंदर से मजबूती मिलने से स्वस्थ रहने में मदद मिलती है।
घुटनों को होगी कसरत
जमीन पर बैठकर भोजन करने से पाचन शक्ति तेज होती है। वहीं नीचे बैठने के लिए घुटने मोड़ने पड़ते हैं। इससे घुटनों की अच्छे से कसरत होती है। उनकी लचक बकरार रहने के साथ जोडो़ं के दर्द से आराम मिलता है। ऐसे में जोड़ों मे होने वाली समस्याओं से बचाव रहता है।

बॉडी को स्ट्रॉग रखना है तो ज़मीन पर बैठ कर खाना खाएं। इस मुद्रा में बैठने से पीठ के निचले हिस्से की मांसपेशियों, पेल्विस और पेट के आस-पास की मांसपेशियों में खिंचाव होता है। जमीन पर बैठकर खाने से असहजता और दर्द की स्थिति में बॉडी को आराम मिलता है। जमीन पर बैठकर खाने के दौरान आप पाचन की नेचुरल अवस्था में होते हैं। इससे पाचक रस बेहतर तरीके से अपना काम कर पाते हैं। परिवार के सभी सदस्य जब एक साथ जमीन पर बैठकर खाते हैं, तो उनके बीच का संबंध भी मजबूत बनता है। इस मुद्रा में बैठने की कई परेशानियां दूर होती है। आराम मिलने से खाने का स्वाद भी दोगुना हो जाता है। लोग जमीन पर बैठकर खाना खाते हैं तो उनकी बॉडी एक्टिव और फलेक्सिबल बनी रहती है। जमीन पर बैठने उठने से मांसपेशियां मजबूत रहती हैं। आप जब कुर्सी को छोड़कर जमीन पर बैठकर खाते हैं तो आपकी बॉडी में नेचुरल स्ट्रेंथ पैदा होती है। आपके मसल्स मजबूत होते है। लंबे समय तक कुर्सी पर बैठने से आपके हिप्स टाइट और स्ट्रॉग हो सकते हैं, लेकिन जब आप फर्श पर बैठकर खाते हैं, तो आप अपने हिप्स के फ्लेक्सर्स को आसानी से स्ट्रैच सकते हैं। जमीन पर बैठकर खाना खाने से वजन कंट्रोल रखने में मदद मिलती है। जमीन पर बैठकर खाना खाने से रीढ़ की हड्डी को भी आराम मिलता है। नीचे बैठकर खाना खाने से बॉडी पॉश्चर ठीक रहता है जिससे आपकी पर्सनैलिटी में निखार आता है। जमीन पर बैठकर खाने से ब्लड सर्कुलेशन बेहतर होता है जो दिल को सेहतमंद रखने के लिए जरूरी है। जमीन पर बैठकर खाने से ब्लड सर्कुलेशन बेहतर होता है जो दिल की सेहत के लिए जरूरी है.

* ाइनिंग_टेबल_पर_बैठकर_खाते_हैं_खाना_या_देते_हैं_रोगों_को_बुलावा*

आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में कई लोग खड़े होकर, तो कई चलते-फिरते खाना खाते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि इस तरह खाना खाने की वजह से सेहत पर बुरे प्रभाव पड़ते हैं? हम आपको बता रहे हैं कि आखिर किस पोजिशन में खाना खाने से शरीर पर पड़ता है कैसा असर...

डाइजेशन में होती है परेशानी
घर या ऑफिस में हम कई बार जल्दबाजी में खड़े होकर खाना खाने लगते हैं। जब हम खड़े होकर खाना खाते हैं, तो फूड डाइजेस्ट होने में ज्यादा समय लेता है। साथ ही जल्दबाजी में व्यक्ति ज्यादा खाना खा लेता है। ज्यादा खाना और उसका धीमा पाचन पेट से संबंधित परेशानी खड़ी कर सकता है।

खड़े होकर खाने से पॉश्चर बिगड़ता है
खड़े होकर खाने के दौरान हम बहुत ज्यादा झुकते हैं, साथ ही में खुद को रिलैक्स करने के लिए शरीर के किसी एक हिस्से पर जोर देते हैं। रोज ऐसा करने से इसका असर रीढ़ की हड्डी पर होने लगता है। वहीं बैठकर खाना खाने से बॉडी पॉश्चर में सुधार होता है। इसके अलावा नीचे बैठकर खाना खाने से शरीर में खून का बहाव भी अच्छा होता है। क्रॉस-लेग्स बैठने पर नसों का खिंचाव दूर होता है और वह ज्यादा रिलैक्स होती हैं।

*आयुर्वेद का प्रयोजन स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा करना है और रोगी व्यक्ति के रोग दूर करना है।*

#स्वस्थ रहना है तो भारतीय चिकित्सा पद्धति को अपनाना ही होगा अन्यथा एक बार एलोपैथी चिकित्सा के चक्कर में फंसे तो बिमारियों के जाल से निकलना मुश्किल होगा

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