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*बढ़ते पत्रकार और गिरती पत्रकारिता*। जब से सोशल मीडिया के माध्यम से पत्रकारिता शुरू हुई है मानो पत्रकारों की बाढ़ सी आ गई है। लगभग हरेक गांव/पंचायत में पत्रकार हो ही गए हैं। बचपन में देखते थे की गिने चुने पत्रकार होते थे माइक वाले तो दिखते भी नहीं थे लेकिन हां प्रिंट मीडिया वाले प्रखंड स्तर पे जरूर होते थे। माइक तो सिर्फ मंत्री या आला अधिकारी के ही आगे लगते थे। विधायक लेवल के नेता को तो माइक वाला पत्रकार पूछता तक नहीं था। चुकीं अब सोशल मीडिया का जमाना आया मोबाइल जर्नलिज्म का बोलबाला है और तो इससे भी आगे सिटीजन जर्नलिस्ट का भी स्कोप खूब है। यहां हर स्मार्ट फोन लिए आदमी आज अपने आप में पत्रकार है। लेकिन सवाल तो तब है की आखिर पत्रकारिता में इतने आधुनिक क्रांति आने के बाद भी समस्या खत्म क्यों नहीं हो पा रही है? इतने पत्रकार होने के बाद भी जन समस्याओं के मुद्दो को छोड़कर सब तरह के वीडियो और आर्टिकल तैरते नजर आ जाती है। आखिर ऐसा क्यों? तथाकथित तौर पर लोकतंत्र का चौथा स्तंभ मीडिया 500 रुपया में खबर को दिखाने का वादा और 1000 रुपया में खबर को दबाने का वादा करेगा तो ये स्थिति बनी ही रहेगी। देश में आज से 5 साल पहले जो स्थिति इंजीनियर की हो रखी थी आज वही स्थिति पत्रकारों की हो गई है,जिसको देखो वही आज गाड़ी पे प्रेस लिखाए व माइक लिए घूम रहा है। और तो और इंजियारिंग के लिए तो लोग कम से कम बीटेक भी करते थे लेकिन यहां पत्रकारिता के लिए कोई पढ़ाई करे इसकी जरूरत तो कोई समझता तक नहीं है। अब भला सोचिए की कोई बिना डॉक्टरी की पढ़ाई किए यदि मरीज की इलाज करे तो क्या स्थिति होगी? वही हाल हुआ पत्रकारिता के साथ। बिना कोई डिग्री, बिना कोई शिक्षा के पत्रकार बने फिर रहे हैं। वैश्विक स्तर पर जब भारत के मीडिया का स्थान 142 वें स्थान से लुढ़कर 150वें स्थान पर जा गिरा है तो ये सोचनीय है कि आखिर बढ़ते पत्रकारों के बावजूद भी हम अपनी पत्रकारिता क्यों नहीं बचा पा रहे हैं?क्यों लोग पत्रकारों को दलाल/पतलकर/चाटुकार जैसे शब्दों से नवाज रहे हैं?तो इसका सीधा मतलब यही है की हमारी पत्रकारिता जन सरोकार के विषय को उठाने में नाकामयाब रही है। आजादी के अमृत महोत्सव मना रहे देश में जब सरकारी स्कूलों से शिक्षक गायब या न पढ़ाने जैसी खबर आती है, स्वास्थ केंद्र में मरीजों को दवाई के बिना घर लौटाई जाती है,स्टेडियम में खेले कूद के आलावा सबकुछ होते दिखते रहता है, यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के नाम पर गंदी मजाक चलाया जा रहा है और हम पत्रकारिता के नाम पर क्या करते हैं?जदयू,राजद,भाजपा,कांग्रेस,लोजपा, जाप, हम पर आरोप प्रत्यारोप की खबर को प्राथमिकता देते रहते हैं। अब बिहार में पत्रकारों की पिटाई या हत्या आम सी लगती है फिर भी लोगो(जनता) के मन में पत्रकारों के लिए सहानुभूति क्यों नहीं प्रगट होती है। क्यों आम जनमानस के बीच हम अपनी विश्वसनीयता खोते जा रहे हैं? क्योंकि जनता जान चुकी है की आप भी उन नेताओं के इर्द-गिर्द चक्कर लगाने वाले हो गए हैं। आपकी पत्रकारिता जनसरोकार से हटकर किस एक को नीचा दिखाना और किसी एक को हीरो बनाना हो गया है। यही कारण है पत्रकारिता के पतन के रास्ते पर जाने का?हालांकि अभी भी कई ऐसे पत्रकार हैं जो जनसरोकार के मुद्दो को सर्वोपरि मानते हैं उन पत्रकारों के वजह से ही आज पत्रकारिता जिंदा है। हम उम्मीद करते हैं की आने वाले सालों में पत्रकारिता के क्षेत्र में सकारात्मक बदलाव देखने को मिलेंगे और पत्रकारों के इस बढ़ती फौज की सकारात्मक ताकत समाज और देश के विकास में सहायक साबित होगी।
✍️ज्योत प्रकाश
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