Aanchal Kanwar
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Ahmedabad
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One of the huge mistakes people make is that they try to force an interest on themselves. You don’t choose your passions; your passions choose you.
Eye Test - आपको इसमे कितने नम्बर दिख रहे है?
Bob Christo, a cult figure of Indian cinema was an Australian-Indian civil engineer and actor in Hindi films known for his roles as villains’s foreign henchmen in films like Qurbani (1980), Kaalia (1981), Nastik (1983), Mard (1985), Mr India (1987), Roop Ki Rani Choron Ka Raja (1993) and Gumraah (1993).
Born in 1938, Christo's journey to Bollywood was as unconventional as his on-screen roles. Initially serving in the Royal Australian Air Force, he later ventured into civil construction and worked on constructing the jungle palace for Francis Ford Coppola in Apocalypse Now(1979).
He came to India while awaiting a work permit in the Gulf. He was a fan of Parveen Babi and decided to meet her. He reached the sets of "The Burning Train" to meet her. He was very impressed by the down-to-earth nature of Parveen, and Parveen was happy to see a man who was not lusted for her. They become friends for life. Parveen helped him to get his debut role in Sanjay Khan's Abdullah(1980), which eventually started his career in India — a country that captivated his heart and became his home.
It was his role as a henchman in the iconic movie 'Qurbani' that made him a familiar face. Sanjay Khan who gave him his first role also became his friend and always cast him in his projects "Kala Dhanda Goray Log", "The Sword of Tipu Sultan" where he played General Matthews and "The Great Maratha" where he played Ahmad Shah Abdali.
Over the years, he became synonymous with the quintessential 'foreign villain' in Indian cinema, contributing to over 200 films. His towering frame and intense gaze lent authenticity to his characters, whether he played a smuggler, a British officer, or a mercenary.
Despite being typecast, Christo never failed to bring depth to his roles. He worked with some of the biggest names in the industry and was known for his professionalism and dedication. Off-screen, he was a gentle giant—kind-hearted and full of life.
After retiring from acting, Christo focused on yoga and spirituality, which had always been an integral part of his life. His autobiography, 'Flashback: My Life and Times in Bollywood and Beyond,' published in 2011, offers an insightful look into his remarkable journey.
During the later stages of his life, he relocated to Bangalore in early 2000, where he started working as a Yoga instructor and remained inactive in the Hindi movie industry from 2003.
The 72-year-old actor passed away in Bangalore on March 20, 2011, due to a "rupture of left ventricle valve." He was survived by his wife Nargis and two sons, Darius and Sunil. Additionally, he has two daughters, Monique and Nicole, from a previous marriage.
Credit- Tasweer Mahal - All About Cinema
18 साल की उम्र में लाहौर जितने वाले महाराजा रणजीत सिंह जी की कहानी...
जब भी देश के इतिहास में महान राजाओं के बारे में बात होगी तो शेर-ए-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह का नाम इसमें जरूर आएगा।
महाराजा रणजीत सिंह ने 10 साल की उम्र में पहला युद्ध लड़ा था वहीं 18 साल की उम्र में लाहौर को जीत लिया था।
40 वर्षों तक के अपने शासन में उन्होंने अंग्रेजों को अपने साम्राज्य के आसपास भी नहीं फटकने दिया, इसके बाद 1802 में उन्होंने अमृतसर को अपने साम्राज्य में मिला लिया और 1807 में उन्होंने अफगानी शासक कुतुबुद्दीन को हराकर कसूर पर कब्जा किया।
रणजीत सिंह ने अपनी सेना के साथ आक्रमण कर 1818 में मुल्तान और 1819 में कश्मीर पर कब्जा कर उसे भी सिख साम्राज्य का हिस्सा बन गया। महाराजा रणजीत ने अफगानों के खिलाफ कई लड़ाइयां लड़ीं और उन्हें पश्चिमी पंजाब की ओर खदेड़ दिया। अब पेशावर समेत पश्तून क्षेत्र पर उन्हीं का अधिकार हो गया। यह पहला मौका था जब पश्तूनों पर किसी गैर-मुस्लिम ने राज किया। अफगानों और सिखों के बीच 1813 और 1837 के बीच कई युद्ध हुए। 1837 में जमरुद का युद्ध उनके बीच आखिरी भिड़ंत थी। इस भिड़ंत में रणजीत सिंह के एक बेहतरीन सिपाहसालार हरि सिंह नलवा मारे गए थे।
दशकों तक शासन के बाद रणजीत सिंह का 1839 को निधन हो गया, लेकिन उनकी वीर गाथाएं आज भी लोगों को प्रेरित करती हैं।
जय मेवाड़
जय राजपूताना 🚩
A Wedding Procession- Ahmedabad, India, circa 1885-86. Painting by Edwin Lord Weeks (1849-1903).
Edwin Lord Weeks was an American artist who traveled to India in the late 19th century. He painted vibrant scenes of Indian life, capturing the beauty of landscapes and daily activities. His artwork, filled with rich colors and attention to detail, reflects his deep appreciation for India's culture and architecture.
हरिहर दुर्ग (महाराष्ट्र) : छत्रपति शिवाजी महाराज ने ये दुर्ग 1670 ई. में जीता था। यह दुर्ग अपनी खड़ी चढ़ाई के लिए प्रसिद्ध है।
जयपुर रियासत के महाराज सवाई माधो सिंह बहादुर की एक रौबदार तस्वीर।
इस विशाल वृक्ष को देखें! इस छवि में, अमेरिकी घुड़सवार सेना के सैनिक 1900 में "ग्रिजली जाइंट" के नाम से जाने जाने वाले एक पेड़ के सामने खड़े हैं। पेड़ आज भी खड़ा है और लगभग 3,000 वर्ष पुराना होने का अनुमान है।
राजपूती योद्धा, सन 1940 में ली गई यह फोटो उदयपुर की है।
The similar 😎
It refuses to die after being cut down and bears fruit as a sign of victory... 🌱
It's "Vijaya Stambha" at Chittor Fort in Chittorgarh, Rajasthan (India)
Ronda is a beautiful city in the Spanish province of Malaga in Andalusia (Spain).
जिसकी तलवार की छनक से,
अकबर का दिल घबराता था,
वो अजर अमर वो शूरवीर,
वो महाराणा कहलाता था।।
फीका पड़ता था तेज सूरज का,
जब माथा ऊँचा करता था,
थी तुझमे कोई बात राणा,
अकबर भी तुझसे डरता था।।
वीर शिरोमणि, क्षत्रिय कुलभूषण, हिन्दू ह्रदय सम्राट श्री महाराणा प्रताप सिंह जी की 426वी पुण्यतिथि पर शत शत नमन 💐💐💐
जगन्नाथ धाम पूरी में नया कॉरिडोर बनकर तैयार हो चुका है उसकी कुछ विहंगम झलकियाँ।
जय जगन्नाथ
भाटी राजपूतों द्वारा निर्मित देरावर का किला जो वर्तमान में पाकिस्तान में है। पाकिस्तान के बहावलपुर के डेरा नवाब साहिब से 48 किलोमीटर दूरी पर स्थित देरावर का किला या डेरावर फोर्ट को जैसलमेर के राजपूत राय जज्जा भाटी ने बनवाया था। इस एतिहासिक महल की दीवारें 30 मीटर ऊंची और इसका घेरा 1500 मीटर है। यह किला इतना आलीशान है कि चोलिस्तान रेगिस्तान में कई मील दूर से भी यह दिखता है।
आमेर के किले को बनाने में लगे थे 100 साल, इसके बनने की कहानी भी है बेहद रोचकपूर्ण
आमेर का किला दुनियाभर में मशहूर है. इसे 16वीं सदी में बनाया गया था. ये किला राजस्थानी स्थापत्यकला और संस्कृति का नमूना है. ऊंची पहाड़ी पर बना आमेर का किला दूर से ही बेहद विशाल और खूबसूरत दिखाई देता है. अगर आप इतिहास प्रेमी हैं, तो आपको इस किले से जुड़ी कई बातों के बारे में जानना चाहिए. हम यहां आपको आमेर के किले के बारे में कुछ खास बातें बताने जा रहे हैं।
किले को पूरा करने में लगे थे 100 साल - आमेर किले के निर्माण की शुरुआत 16वीं शताब्दी के अंत में राजा मान सिंह ने की थी. हालांकि, जो निर्माण अभी है उसे पूरा सवाई जय सिंह द्वितीय और राजा जय सिंह प्रथम द्वारा पूरा किया गया था. राजा मान सिंह से लेकर सवाई जय सिंह द्वितीय और राजा जय सिंह प्रथम तक के शासन काल में इसे पूरा होने में 100 साल का समय लग गया था।
आमेर किले में शिला देवी मंदिर - मंदिर के पीछे की कहानी दिलचस्प है. ऐसा कहा जाता है कि देवी काली ने राजा मान सिंह के सपने में दर्शन दिए और उन्हें जेसोर (बांग्लादेश के पास) के तट पर अपनी मूर्ति तलाशने के लिए कहा था. राजा ने वैसा ही किया, जैसा उन्हें सपने में कहा गया था, लेकिन वहां मां की मूर्ति मिलने के बजाय, वह एक बड़े पत्थर के साथ आमेर लौट आए. शिला देवी की प्रतिमा को खोजने के लिए राजा के सेवकों ने पत्थर को साफ कर दिया. जिससे शिला देवी के मंदिर का निर्माण हुआ।
आमेर किले में शीश महल - किले के अंदर के आकर्षक दृश्यों में से एक शीश महल या मिरर पैलेस की दीवारों को कॉनकेव शीशों से उकेरा गया है. इन्हें इस तरह लगाया है कि अगर यहां एक लाइट भी जलती है, तो पूरा महल जगमगा उठता है. शीश महल बॉलीवुड निर्देशकों की पसंदीदा जगह रही है।
आमेर किले के पास जयगढ़ किला - जयगढ़ किला आमेर किले में रहने वाले राजा की सेना के लिए बनाया गया एक किला था. आमेर के किले से 2 किलोमीटर लंबी सुरंग बनाई गई थी, ये सुरंग जयगढ़ किले से जुड़ती है. इस सुरंग को युद्ध जैसी स्थिति के लिए बनाया गया था, जिससे राजा को यहां से सुरक्षित तरीके से निकाला जा सके. इस तरह की योजना को देखकर यही पता चलता है कि युद्ध को लेकर राजा सजग रहा करते थे।
🚩
Sermonet, Italy
A town from the 13th century.
The hut of a Toda Tribe in Nilgiris, India.
Note the decoration of the front wall and the very small door.
Source : Wikipedia
Nasian Jain temple
Location --- Ajmer,
It was built in 1835
A girls' school in Jaipur, Rajasthan, 1870s
94 साल के एक बूढ़े व्यक्ति को मकान मालिक ने किराया न दे पाने पर किराए के मकान से निकाल दिया। बूढ़े के पास एक पुराना बिस्तर, कुछ एल्युमीनियम के बर्तन, एक प्लास्टिक की बाल्टी और एक मग आदि के अलावा शायद ही कोई सामान था। बूढ़े ने मालिक से किराया देने के लिए कुछ समय देने का अनुरोध किया। पड़ोसियों को भी बूढ़े आदमी पर दया आयी, और उन्होंने मकान मालिक को किराए का भुगतान करने के लिए कुछ समय देने के लिए मना लिया। मकान मालिक ने अनिच्छा से ही उसे किराया देने के लिए कुछ समय दिया।
बूढ़ा अपना सामान अंदर ले गया।
रास्ते से गुजर रहे एक पत्रकार ने रुक कर यह सारा नजारा देखा। उसने सोचा कि यह मामला उसके समाचार पत्र में प्रकाशित करने के लिए उपयोगी होगा। उसने एक शीर्षक भी सोच लिया, ”क्रूर मकान मालिक, बूढ़े को पैसे के लिए किराए के घर से बाहर निकाल देता है।”
फिर उसने किराएदार बूढ़े की और किराए के घर की कुछ तस्वीरें भी ले लीं।
पत्रकार ने जाकर अपने प्रेस मालिक को इस घटना के बारे में बताया। प्रेस के मालिक ने तस्वीरों को देखा और हैरान रह गए। उन्होंने पत्रकार से पूछा, कि क्या वह उस बूढ़े आदमी को जानता है?
पत्रकार ने कहा, नहीं।
अगले दिन अखबार के पहले पन्ने पर बड़ी खबर छपी। शीर्षक था, *”भारत के पूर्व प्रधानमंत्री गुलजारीलाल नंदा एक दयनीय जीवन जी रहे हैं”।* खबर में आगे लिखा था कि कैसे पूर्व प्रधान मंत्री किराया नहीं दे पा रहे थे और कैसे उन्हें घर से बाहर निकाल दिया गया था।
टिप्पणी की थी कि आजकल फ्रेशर भी खूब पैसा कमा लेते हैं। जबकि एक व्यक्ति जो दो बार पूर्व प्रधान मंत्री रह चुका है और लंबे समय तक केंद्रीय मंत्री भी रहा है, उसके पास अपना ख़ुद का घर भी नहीं??
दरअसल गुलजारीलाल नंदा को वह स्वतंत्रता सेनानी होने के कारण रु. 500/- प्रति माह भत्ता मिलता था। लेकिन उन्होंने यह कहते हुए इस पैसे को अस्वीकार किया था, कि उन्होंने स्वतंत्रता सेनानियों के भत्ते के लिए स्वतंत्रता की लड़ाई नहीं लड़ी। बाद में दोस्तों ने उसे यह स्वीकार करने के लिए विवश कर दिया यह कहते हुए कि उनके पास जीवन यापन का अन्य कोई स्रोत नहीं है। इसी पैसों से वह अपना किराया देकर गुजारा करते थे।
अगले दिन तत्कालीन प्रधान मंत्री ने मंत्रियों और अधिकारियों को वाहनों के बेड़े के साथ उनके घर भेजा। इतने वीआइपी वाहनों के बेड़े को देखकर मकान मालिक दंग रह गया। तब जाकर उसे पता चला कि उसका किराएदार, श्री गुलजारीलाल नंदा, भारत के पूर्व प्रधान मंत्री थे।
मकान मालिक अपने दुर्व्यवहार के लिए तुरंत गुलजारीलाल नंदा के चरणों में झुक गया।
अधिकारियों और वीआईपीयों ने गुलजारीलाल नंदा से सरकारी आवास और अन्य सुविधाएं को स्वीकार करने का अनुरोध किया। श्री गुलजारीलाल नंदा ने इस बुढ़ापे में ऐसी सुविधाओं का क्या काम, यह कह कर उनके प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया।
अंतिम श्वास तक वे एक सामान्य नागरिक की तरह, एक सच्चे स्वतंत्रता सेनानी बन कर ही रहे। 1997 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी व एच डी देवगौड़ा के मिलेजुले प्रयासो से उन्हें "भारत रत्न" से सम्मानित किया गया।
जरा उनके जीवन की तुलना वर्तमानकाल के किसी मंत्री तो क्या, किसी पार्षद परिवार से ही कर लें !!
सादर नमन्।। "कॉपी"
The famous Dancing House in Prague
The Stone Slab On Which Chandrashekhar Azad Slept For 1.5 Years During His Incognito Exile In Orchha (MP)
जय श्री राम 🚩
मल्ल कूर्मि खत्तिय घराने के मौर्यवंशी मौर्य शासकों की सूची
1. चंद्रगुप्त मौर्य – 322-298 ईसा पूर्व (24 वर्ष)
2. बिन्दुसार – 298-271 ईसा पूर्व (28 वर्ष)
3. अशोक – 269-232 ईसा पूर्व (37 वर्ष)
4. कुणाल – 232-228 ईसा पूर्व (4 वर्ष)
5. दशरथ –228-224 ईसा पूर्व (4 वर्ष)
6. सम्प्रति – 224-215 ईसा पूर्व (9 वर्ष)
7. शालिसुक –215-202 ईसा पूर्व (13 वर्ष)
8. देववर्मन– 202-195 ईसा पूर्व (7 वर्ष)
9. शतधन्वन् – 195-187 ईसा पूर्व (8 वर्ष)
10. बृहद्रथ 187-185 ईसा पूर्व (2 वर्ष)
जय शिवराय, जय सम्राट अशोक, जय भीम ,उत्तर प्रदेश और बिहार के कूर्मि, कुशवाहा, पटेलों के प्राचीन काल में 9 मल्ल घराने और 9 लिच्छवि घराने थे उन्ही 9 मल्लों में एक था मौर्य घराना मल्लों के प्रसिद्ध राजा या आदि पूर्वज राजा इक्ष्वाकु थे जिन्हें पालि भाषा में ओक्काक कहा जाता था और संस्कृत में इक्ष्वाकु, इन्ही 18 राजघरानों से अंतिम राजा थे सम्राट हर्षवर्धन थे!
जब 19 वीं सदी के आख़री में अंग्रेज़ों ने अनाज इंग्लैंड और यूरोप भेज दिया था तब भारत मे ज़बरदस्त अकाल पड़ा था, जिसका सबसे ज़्यादा असर बंगाल और साउथ में हुआ था, तब भूक के मारे लोगों ने इंसानी लाशों को ही खाना शुरू कर दिया था। यह तस्वीर सन 1877 में मद्रास की है, कंकाल से दिखने वाला व्यक्ति आदमखोरों से अपने परिवार की रखवाली कर रहा है।
महाराणा प्रताप जी के सबसे प्रिय और प्रसिद्ध नीलवर्ण ईरानी मूल के घोड़े का नाम चेतक था। चेतक अश्व गुजरात के काठियावाड़ी व्यापारी ईरानी नस्ल के तीन घोडे चेतक, त्राटक और अटक लेकर मारवाड आया। अटक परीक्षण में काम आ गया। त्राटक महाराणा प्रताप जी ने उनके छोटे भाई शक्ती सिंह जी को दे दिया और चेतक को स्वयं रख लिया। हल्दी घाटी - (1576) के युद्ध में चेतक ने अपनी अद्वितीय स्वामिभक्ति, बुद्धिमत्ता एवं वीरता का परिचय दिया था। युद्ध में बुरी तरह घायल हो जाने पर भी महाराणा प्रताप को सुरक्षित रणभूमि से निकाल लाने में सफल वह एक बरसाती नाला उलांघ कर अन्ततः वीरगति को प्राप्त हुआ। हिंदी कवि श्याम नारायण पाण्डेय द्वारा रचित प्रसिद्ध महाकाव्य हल्दी घाटी में चेतक के पराक्रम एवं उसकी स्वामिभक्ति की मार्मिक कथा वर्णित हुई है। आज भी राजसमंद के हल्दी घाटी गांव में चेतक की समाधि बनी हुई है, जहाँ स्वयं प्रताप और उनके भाई शक्तिसिंह ने अपने हाथों से इस अश्व का दाह-संस्कार किया था। चेतक की स्वामिभक्ति पर बने कुछ लोकगीत मेवाड़ में आज भी गाये जाते हैं।
#महाराणा_प्रताप
अकबर के नौरत्नों से इतिहास भर दिया पर महाराजा विक्रमादित्य के नवरत्नों की कोई चर्चा पाठ्यपुस्तकों में नहीं है। जबकि सत्य यह है कि अकबर को महान सिद्ध करने के लिए महाराजा विक्रमादित्य की नकल करके कुछ धूर्तों ने इतिहास में लिख दिया कि अकबर के भी नौ रत्न थे ।
राजा विक्रमादित्य के नवरत्नों को जानने का प्रयास करते हैं।
राजा विक्रमादित्य के दरबार में मौजूद नवरत्नों में उच्च कोटि के कवि, विद्वान, गायक और गणित के प्रकांड पंडित शामिल थे, जिनकी योग्यता का डंका देश-विदेश में बजता था। चलिए जानते हैं कौन थे।
ये हैं नवरत्न –
1– #धन्वन्तरि-
नवरत्नों में इनका स्थान गिनाया गया है। इनके रचित नौ ग्रंथ पाये जाते हैं। वे सभी आयुर्वेद चिकित्सा शास्त्र से सम्बन्धित हैं। चिकित्सा में ये बड़े सिद्धहस्त थे। आज भी किसी वैद्य की प्रशंसा करनी हो तो उसकी ‘धन्वन्तरि’ से उपमा दी जाती है।
2– #क्षपणक-
जैसा कि इनके नाम से प्रतीत होता है, ये बौद्ध संन्यासी थे।
इससे एक बात यह भी सिद्ध होती है कि प्राचीन काल में मन्त्रित्व आजीविका का साधन नहीं था अपितु जनकल्याण की भावना से मन्त्रिपरिषद का गठन किया जाता था। यही कारण है कि संन्यासी भी मन्त्रिमण्डल के सदस्य होते थे।
इन्होंने कुछ ग्रंथ लिखे जिनमें ‘भिक्षाटन’ और ‘नानार्थकोश’ ही उपलब्ध बताये जाते हैं।
3– #अमरसिंह-
ये प्रकाण्ड विद्वान थे। बोध-गया के वर्तमान बुद्ध-मन्दिर से प्राप्य एक शिलालेख के आधार पर इनको उस मन्दिर का निर्माता कहा जाता है। उनके अनेक ग्रन्थों में एक मात्र ‘अमरकोश’ ग्रन्थ ऐसा है कि उसके आधार पर उनका यश अखण्ड है। संस्कृतज्ञों में एक उक्ति चरितार्थ है जिसका अर्थ है ‘अष्टाध्यायी’ पण्डितों की माता है और ‘अमरकोश’ पण्डितों का पिता। अर्थात् यदि कोई इन दोनों ग्रंथों को पढ़ ले तो वह महान् पण्डित बन जाता है।
4– #शंकु –
इनका पूरा नाम ‘शङ्कुक’ है। इनका एक ही काव्य-ग्रन्थ ‘भुवनाभ्युदयम्’ बहुत प्रसिद्ध रहा है। किन्तु आज वह भी पुरातत्व का विषय बना हुआ है। इनको संस्कृत का प्रकाण्ड विद्वान् माना गया है।
5– #वेतालभट्ट –
विक्रम और वेताल की कहानी जगतप्रसिद्ध है। ‘वेताल पंचविंशति’ के रचयिता यही थे, किन्तु कहीं भी इनका नाम देखने सुनने को अब नहीं मिलता। ‘वेताल-पच्चीसी’ से ही यह सिद्ध होता है कि सम्राट विक्रम के वर्चस्व से वेतालभट्ट कितने प्रभावित थे। यही इनकी एक मात्र रचना उपलब्ध है।
6– #घटखर्पर –
जो संस्कृत जानते हैं वे समझ सकते हैं कि ‘घटखर्पर’ किसी व्यक्ति का नाम नहीं हो सकता। इनका भी वास्तविक नाम यह नहीं है। मान्यता है कि इनकी प्रतिज्ञा थी कि जो कवि अनुप्रास और यमक में इनको पराजित कर देगा उनके यहां वे फूटे घड़े से पानी भरेंगे। बस तब से ही इनका नाम ‘घटखर्पर’ प्रसिद्ध हो गया और वास्तविक नाम लुप्त हो गया।
इनकी रचना का नाम भी ‘घटखर्पर काव्यम्’ ही है। यमक और अनुप्रास का वह अनुपमेय ग्रन्थ है।
इनका एक अन्य ग्रन्थ ‘नीतिसार’ के नाम से भी प्राप्त होता है।
7– #कालिदास –
ऐसा माना जाता है कि कालिदास सम्राट विक्रमादित्य के प्राणप्रिय कवि थे। उन्होंने भी अपने ग्रन्थों में विक्रम के व्यक्तित्व का उज्जवल स्वरूप निरूपित किया है। कालिदास की कथा विचित्र है। कहा जाता है कि उनको देवी ‘काली’ की कृपा से विद्या प्राप्त हुई थी। इसीलिए इनका नाम ‘कालिदास’ पड़ गया। संस्कृत व्याकरण की दृष्टि से यह कालीदास होना चाहिए था किन्तु अपवाद रूप में कालिदास की प्रतिभा को देखकर इसमें उसी प्रकार परिवर्तन नहीं किया गया जिस प्रकार कि ‘विश्वामित्र’ को उसी रूप में रखा गया।
जो हो, कालिदास की विद्वता और काव्य प्रतिभा के विषय में अब दो मत नहीं है। वे न केवल अपने समय के अप्रितम साहित्यकार थे अपितु आज तक भी कोई उन जैसा अप्रितम साहित्यकार उत्पन्न नहीं हुआ है। उनके चार काव्य और तीन नाटक प्रसिद्ध हैं। शकुन्तला उनकी अन्यतम कृति मानी जाती है।
8– #वराहमिहिर –
भारतीय ज्योतिष-शास्त्र इनसे गौरवास्पद हो गया है। इन्होंने अनेक ग्रन्थों का प्रणयन किया है। इनमें-‘बृहज्जातक‘, सुर्यसिद्धांत, ‘बृहस्पति संहिता’, ‘पंचसिद्धान्ती’ मुख्य हैं। गणक तरंगिणी’, ‘लघु-जातक’, ‘समास संहिता’, ‘विवाह पटल’, ‘योग यात्रा’, आदि-आदि का भी इनके नाम से उल्लेख पाया जाता है।
9– #वररुचि-
कालिदास की भांति ही वररुचि भी अन्यतम काव्यकर्ताओं में गिने जाते हैं। ‘सदुक्तिकर्णामृत’, ‘सुभाषितावलि’ तथा ‘शार्ङ्धर संहिता’, इनकी रचनाओं में गिनी जाती हैं।
इनके नाम पर मतभेद है। क्योंकि इस नाम के तीन व्यक्ति हुए हैं उनमें से-
1.पाणिनीय व्याकरण के वार्तिककार-वररुचि कात्यायन,
2.‘प्राकृत प्रकाश के प्रणेता-वररुचि
3.सूक्ति ग्रन्थों में प्राप्त कवि-वररुचि
नोट आपको पता है ऐसे नवरत्न अब क्यों नहीं पैदा होते क्योंकि वेदों के ऊपर रिसर्च नहीं होता धर्म ग्रंथों को पढ़ाया नहीं जाता और धर्म ग्रंथों के ज्ञान को सिर्फ एक समाज के फायदे से जोड़ दिया और धर्म ग्रंथ के ज्ञान को पूजा-पाठ तक ही सीमित रख दिया मगर आप सच्चाई जानते हैं हमारे धर्म ग्रंथों का ज्ञान किसी भी विज्ञान गणित साइंस से भी आगे है ऋषि परंपरा गुरुकुल की बहुत आवश्यकता है।
- आकाश शर्मा
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