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ग़रीब हूँ,
गँवार हूँ
अनपढ़ हूँ,
अंजान हूँ
मजबूर हूँ,
लाचार हूँ
बेचारा हूँ
बेसहारा हूँ
मेरा सिर्फ़ इतना पाप है
मैं भी एक किसान हूँ
मेरी कोई आन नहीं
मेरा कोई मान नहीं
मेरी कोई पहचान नहीं
मेरा कोई सम्मान नहीं
मेरा बस इतना पाप है
मैं स्वाभिमानी हूँ
मैं भीख नहीं माँगता
मैं हाथ नहीं फैलाता
किसी के आगे नहीं गिड़गिड़ाता
मैं ज़हर खा लूँ
कुएँ में कूद जाऊँ
आग लगा लूँ
फाँसी चढ़ जाऊँ
न मेरे जीने से फर्क पड़ता है
न मेरे मरने से फर्क पड़ता है
न मेरे जीने से विकास दर बढ़ती है
न मेरे मरने से जीडीपी घटती है
मैं तो एक वस्तु हूँ
कही नहीं बिकता हूँ
मेरी ज़िंदगी का कोई मोल नहीं
मैं अमीरों की तरह अनमोल नहीं
ख़ुद भूखा रह जाता हूँ
दुनिया की भूख मिटाने को
सबको रोटी खिलाने को
सबको सुख-चैन दिलाने को
रहता हूँ दबा दबा मैं
बेटी के पिता होने से
बीमार माँ के बेटा होने से
बूढ़े बाप का सहारा होने से
मेरा बस इतना पाप हैं
मैं बैंको के पैसे नहीं लूटता
लोगों की जेबे नहीं काटता
अनाज की दलाली नहीं करता
फिर भी दबा दबा रहता हूँ
अपने क़र्ज़ के भारी बोझ से
कभी क़र्ज़ बैंक का
कभी बाज़ार का
कभी सरकार का
कभी साहूकार का
कहूँ किसे अपना
कहूँ किसे पराया
कहने को सब अपना
देखे तो सब पराया
कहने को सारी दुनिया है हमारी
चर्चा है चारों ओर भलाई की हमारी
चिंता है हमारी सबको हमें दुःख न होए
सुख चैन से हम जिये दुखी कभी न होए
लम्बी चौड़ी होती बहस
वतानुकूलित हवाओं में
विद्वानो के, बुद्धिजीवियों के
लम्बे लेखों और किताबों में
चर्चा तो होती हमारी लुटियन के भी अहाते में
नेताओं की रैलियों में, राजनीति के गलियारो में
नौकरशाहों की फ़ाइलो में और सरकारी वादों में
फिर भी मर रहे हैं हम अपने बंजर अहातो में
दुनिया यही कहती है
दुनिया यही समझती है
तुम्हें किसकी फ़िक्र
तुम्हें किसकी चिंता
न टैक्स का झंझट
न सुविधावों का अभाव
कभी सरकार मेहरबान
कभी बाज़ार का एहसान
समय समय पर मिल जाता है
सम्पूर्ण क़र्ज़ माफ़ी का ईनाम
दुनिया को मालूम नहीं
असल में हमारी हक़ीक़त
जीवन कैसे खेलती हमसे
हम कैसे जीते जीवन
दिन रात महीने साल
गरमी ठंडी बसंत बरसात
हर पल हर क्षण
घुट घुट के जीते
कब बाढ़ आ जाए
कब सुखा पड़ जाए
कब भला हो
कब बुरा हो जाए
यही सोच सहमे रहते है
यही सोच घुलते रहते
यही सोच जलते रहते
इसी घुलने जलने में
वह दिन भी आ जाता है
जब मैं और मैं की लड़ाई में
मैं, मैं से हार जाता हैं
और वह
स्वाभिमानी
अभिमानी
निरभिमानी
‘मैं’
फाँसी पर झूल जाता!
दुनिया चलती रहती है
अपनी गति में
क्या फर्क पड़ता है
मेरा कोई मोल नहीं
मैं तो अनमोल नहीं
मैं तो एक पापी किसान हूँ!
मैं, तुम और हम
जिसके लिए हम लड़े
कटे
मरे
आज वो बंद है
काश हम लड़े होते
रोटी
कपड़ा
मकान के लिए
काश हम लड़े होते
स्वास्थ्य
शिक्षा
रोज़गार के लिए
काश हम लड़े होते
स्कूल
कॉलेज
अस्पताल के लिए
फिर हम ज्यादा खुश होते
ज्यादा सम्पन्न होते
ज्यादा एकत्रित होते
ज़्यादा संगठित होते
कब समझेंगे हम
कब मानेंगे हम
कब जानेंगे हम
क्या जरूरी है
क्या ऐसे ही हम मंद बने रहेंगे
क्या ऐसे ही हम मूक बने रहेंगे
क्या हम ऐसे ही मूर्ख बने रहेंगे
कब उठाएंगे आवाज मानवता के लिए
कब बंद करेंगे लड़ना मैं और तुम के लिए
कब लड़ेंगे हम, हम के लिए
कब लड़ेंगे हम सब के लिए
कब लड़ेंगे
रोटी कपड़ा मकान के लिए
शिक्षा, स्वास्थ और विज्ञान के लिए
स्कूल, कॉलेज, अस्पताल के लिए
विकसित, शिक्षित, स्वस्थ संसार के लिए
या बस लड़ते रहेंगे
मंदिर, मस्जिद और देवस्थान के लिए
लड़ते रहेंगे सिर्फ और सिर्फ भगवान के लिए
सिंहासन
भीड़ चीख़ रही है
चिल्ला रही है
शोर मचा रही है
सिंहासन बेसुध है
मदहोश है
मगन है
मस्त है
आश्वस्त है
शायद सिंहासन भूल गया है
इसी चीख़ ने उसे सिंहासन दिया है
सौ रुपये
मैंने सौ रुपये का काम किया था ।मुझे सौ रुपये मिलने चाहिए इसलिए मैंने सेठ से बात की।
सेठ ने कहा:सोला तारीख़ को आना।
मैं सोला तारीख़ को गया।
सेठ वहां नहीं था।इस का बूढ्ढा मैनेजर जिसकी चंद या साफ़ थी और जिसका एक दाँत बाहर निकला हुआ था और जो अपने असीसटनट को किसी ग़लती पर डाँट रहा था,मुझसे बड़ी शफ़क़त से कहने लगा:तुमने सौ रुपये का काम किया है,तुमको बराबर सौ रुपये मिलेंगे ।मगर सेठ यहां पर नहीं है कल आना।
मैंने पूछा:अगर सेठ कल भी यहां नहीं हुआ तो ?
मैनेजर बोला:तो मैं इंतिज़ाम कर रखूँगा,तुम फ़िक्र ना करो तुम्हारा पैसा तुमको मिल जाएगा।
मैंने दफ़्तर से बाहर निकल कर दो पिए का पूना पता , सकीली मसाला और हरी पत्ती वाला पान खाया । दो पैसे में देसी काला काँडी और ठंडी वाला पान भी खा सकता था और मलट्ठी ,लाल मसाला वाला पान भी और बनारसी छोटा पत्ता , गीली डली और इलायची वाला पान या मोहिनी तंबाकू वाला ,मगर मैं ने सिर्फ पूना पता सकीली मसाला और हरी पत्ती वाला ही खाया क्यों कि मुझे भूक बहुत लग रही थी और मेरी जेब में सिर्फ डेढ़ दो आने थे और ये पान जो मैंने खाया काफ़ी मोटा है और देर तक मुँह में रहता है।फिर मैं एक आने का ट्राम का टिकट लिया और ट्राम में बैठ कर मैंने ज़ोर से सेठ की बिल्डिंग की तरफ़ थूक दिया।दूसरे दिन फिर सेठ वहां नहीं था । उस के मैनेजर ने कहा:सेठ आज भी यहां नहीं हैं और फिर तुम्हारे हिसाब में कुछ ग़लती भी है।
मुझे ग़ुस्सा आया। मैं हिसाब कर चुका था। मैनेजर उसे दस बार चैक कर चुका था फिर भी कहीं ग़लती निकल आती है मगर मैं कुछ ना कह सका क्योंकि मैनेजर का लहजा बहुत नरम था और इस का हर फ़िक़रा रेशम में लिपटा हुआ था ।इसलिए मैंने भी नरमी से कहा:मेरा हिसाब तो बहुत साफ़ है।
इतना कह कर मैंने अपनी ख़ाकी पतलून की जेब से एक मेला पुर्ज़ा निकाला और मैनेजर के साथ ग्यारवें दफ़ा तफ़सीलात चैक करने बैठ गया:इतने पैसे रेग माल फेरने के,इतने पैसे रोग़न के , इतने पैसे मज़दूरी के , रेग माल और रोग़न की रसीदें मेरे पास थीं।मज़दूरी पहले से तै हो चुकी थी ।सेठ का फ़र्नीचर मेरी मेहनत से जग-मग ,जग-मग कर रहा था ।
मैनेजर ने कहा:हाँ हिसाब ठीक है,अच्छा कल आना।
हाँ कल ज़रूर। मैनेजर ने चंद या को सहलाते हुए कहा।
बाहर आकर मैंने दो पैसे का पान भी नहीं खाया , एक आने का ट्राम का टिकट भी नहीं लिया और फ़िरोज़ शाह महित रोड से साईन तक पैदल गया।
मगर दूसरे दिन मैं फिर सेठ के दफ़्तर गया।
आज दफ़्तर में सेठ मौजूद नहीं था ,मैनेजर भी ग़ायब था।
मैनेजर का अस्सिटैंट चिन्धयाई हुई आँखों से एक सिंगल चाय अपने सामने रखे कुछ सोच रहा था।इस का चेहरा बहुत ज़र्द था।माथे के क़रीब ,सफ़ैद रुख़्सारों के क़रीब पीला और थोड़ी के क़रीब मटीला सा था।ऐसा मालूम होता था जैसे किसी ने उनके चेहरे की हड्डीयों पर खाल के बजाय मैले मैले, पीले पीले काग़ज़ तराश के मुंढ दीए हूँ।मैं इस के चेहरे को ग़ौर से देखने लगा ।
अस्सिटैंट ने प्याली से निगाह उठा कर मेरी तरफ़ देखा और हाथ के इशारे से मुझे कुर्सी पर बैठने को कहा ।मैंने पूछा :सेठ कहाँ हैं? वो बोला:सेठ अपने दूसरे दफ़्तर गया हुआ है।
और मैनेजर कहाँ है? मैनेजर सेठ के तीसरे दफ़्तर गया है।
तो मुझे यहां चौथी मंज़िल पर किस लिए बुलाया है?मैंने ज़रा ग़ुस्से में तेज़ होते हुए कहा।
अस्सिटैंट ने चाय का आख़िरी घूँट भी निगल लिया।आहिस्ता से बोला:तुम यहां बैठ जाओ मैनेजर अभी आता होगा।इस से बात कर लेना।
मैं एक कुर्सी पर साढे़ दस बजे से लेकर पौने दो बजे तक बैठा रहा।पहले मैंने सोचा कि किसी शीशे का टुकड़ा लेकर सारे रोग़न को उतारिदों जो मैंने इतनी मेहनत से इस फ़र्नीचर पर चढ़ाया था।फिर मैंने सोचा कि अपने दोनों हाथों से अस्सिटैंट के नक़ली चेहरे से पीले पीले काग़ज़ के टुकड़ों को उतारता जाऊं हत्ता कि अंदर की हड्डी नंगी हो जाये।भर मैंने सोचा :मैनेजर को जान से मार देना बेहतर होगा। बहुत देर तक सेठ के लिए सज़ा सोचता रहा।आख़िर ख़्याल आया कि इस के सारे जिस्म पर बी नंबर की मोटी रेग माल फीरदों गा तो इस की सारी खाल उधड़ कर नंगी हो जाएगी।भर मैनेजर आगया।
मुस्कुराते हुए बोला:तुम्हारा काम हो गया है, मगर चैक मिला है सो रुपये का और अब पौने दो बज चुके हैं और दो बजे बंक बंद होता है और बंक यहां से दो मील दूर है और कल छुट्टी है और परसों इतवार है।
मैंने मायूसी से कहा:हाँ । मैनेजर मुसर्रत से हाथ मिलते हुए बोला।मैंने बेहद रखाई से कहा:चैक मुझे दे दो।
पाँच मिनट और चैक लेने में गुज़र गए क्योंकि चैक पर मेरा नाम ग़लत लिखा हुआ था मुहम्मद शफ़ी के बजाय मुहम्मद रफ़ी लिखा हुआ था।चच चचमैनेजर ने कहा ।बड़ी ग़लती हो गई , मुहम्मद शफ़ीक़ लिखते लिखते मुहम्मद रफ़ी लिखा गया मगर कोई हर्ज नहीं ,अब तुम सोमवार को आ के नया चैक ले लेना।मैंने कहा:मगर ये बियरर चैक है।नाम की ग़लती से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता ।तुम मेरे नाम की रसीद ले लू और चैक मुझे दे दो,सोमवार को मैं कहाँ आऊँगा कहीं और धंदा करूँगा।
अच्छा ले जाओ । मैनेजर ने रुकते रुकते कहा।चैक लेकर बाहर आया तो दो बजने में पौने दो मिनट थे किसी सूरत पैदल चल के बंक नहीं पहुंच सकता ।सो रुपये का चैक मेरे हाथ में था मगर अभी काग़ज़ का पुरज़ा था ।उसे स्वरूपों में तबदील करने के लिए बंक तक पहुंचना ज़रूरी था।दो बजे से पहले सिर्फ एक ही सूरत हो सकती थी।मैंने फ़ैसला कर लिया और चला कर कहा :टैक्सी।
पीली छत और स्याह जिस्म वाली ज़ूम से मेरे क़रीब आकर रुक गई।मैंने अंदर बैठते हुए कहा। कालबादेवी रोड के ना के पर चलो और ज़रा तेज़ चलो।जब कालबादेवी नाके पर पहुंचा तो दो बजने में दो मिनट थे।मगर बंक का लबादीवी रोड पर नहीं था, गो चैक पर ये लिखा था मगर बंक का लबा देवी रोड़ के नाके पर नज़र ना आया।दो एक दुकानदारों से पूछा,किसी को इतनी फ़ुर्सत नहीं थीं ,कोरिया में जंग तेज़ थी,भाव भी तेज़ जा रहे थे,किस को वार्निश करने वाले के स्वरूपों की फ़िक्र थी?
हार कर मैंने एक पंजाबी सुख हारमोनियम बनाने वाले की दुकान में घुस गया।आईए आईए क्या चाहिए आपको ?सरदार ने अपनी इस आरी को छोड़कर जिससे वो लक्कड़ी काट रहा था मुझसे मुस्कुरा कर कहा।
मैंने कहा:सरदार मुझे बाजा नहीं चाहिए ,मरकनटाइल बंक का पता चाहिए चैक पर तो लिखा है कालबादेवी रोड और यहां कहीं नहीं मिलता। सरदार जी ने मुस्कुरा कर कहा:बादशाहो! वो बंक साथ वाली गली में है, इधर से घूम क्रिस्टा बाज़ार से इस तरफ़ पुराने चांदी वाले मंदिर के पास ।
मैंने सरदारजी का शुक्रिया भी अदा नहीं किया भागा वापिस टैक्सी के पास ,जब बंक में पहुंचा तो दो बज कर चार मिनट थे ।उसूलन मेरा चैक क्लर्क को नहीं लेना चाहिए था मगर मालूम होता है कि क्लर्क चैक पढ़ने के इलावा चेहरा पढ़ना भी जानता था। उसने ख़ामोशी से चैक मुझसे ले लिया।फिर उल्टा कर के देखा ,मुझसे कहने लगा:इस पर दस्तख़त करो।
मेरा नाम शफ़ी था लेकिन मैंने मुहम्मद रफ़ी लिखा।ये मुहम्मद रफ़ी कौन था?यहां कहाँ से आया था? कब पैदा हुआ?उसकी सूरत कैसी थी?इसके माँ बाप कौन थे?कौन जानता है? कुछ ज़िंदगीयां ऐसी होती हैं जो चैक पर लिखी जाती हैं और चैक पर ही काट दी जाती हैं।मैं टैक्सी वाले का चुकता करने लगा। दूर रुपये दो आने टैक्सी छोटी थी इसलिए मीटर बढ़ा नहीं ।टैक्सी बड़ी होती तो पाँच सात रुपये खुल जाते ।मैंने ख़ुशी से इतमीनान का सांस लिया ।इतने में किसी ने आके मेरे शाने पर-ज़ोर से हाथ मारा और कहा:कहो मेरे यार,बड़े टैक्सी में घूम रहे हो आज। मैंने घूम कर देखा:मेरा दोस्त इसहाक़ था।इसहाक़ बड़े खुले दिल का आदमी था। वो ख़ुद तो अबदुर्ररहिमान स्ट्रीट के अंदर एक खोजे के मकान के एक तंग से कमरे में रहता है और वही धंदा करता है जो मैं करता हूँ यानी वार्निश का और पुराने फ़र्नीचर को फिर से नया कर देने का लेकिन इस की महबूबा मुहम्मद अली रोड और कराफ़ोर्ड मार्कीट के नाके पर एक अच्छे होटल में रहती है ।मैंने देखा है बड़ी ख़ूबसूरत औरत है,बड़े बड़े सेठों के पास जाती है। ये इसहाक़ इस से पहले उस के पास ड्राईवर था।इसहाक़ कोय काम पसंद नहीं आया और वो इस से अलग हो गया।
वो औरत उस को बहुत पसंद करती है,ये भी इस को चाहता है मगर वो इस को अपने धरे पर लाना चाहती है और ये उस को अपने तरीक़े पर रखना चाहता है।दोनों में हमेशा लड़ाई होती है।भर ये इस से दस बारह रोज़ नहीं मिलता, फिर वो इस से मिलने आती है।ऐसे ही ये चक्कर चलता रहता है कभी कभी इसहाक़ जब कोई मोटी रक़म कमा लेता है तो उसे जा कर दे आता है और उसे एक लैक्चर भी झाड़ आता है। मगर जिस औरत के पास अच्छा होटल होगा, अच्छी जवानी,सेहत और ख़ूबसूरती होगी और सोने चांदी वाले सेठ होंगे ।वो वार्निश करने वाले इसहाक़ की बात क्यों सुनने लगी, सोचने की बात है यारो!
मैंने इसहाक़ से पूछा :मुझे भूक लगी है, कुछ खाओगे?
वो बोला:हाँ भूका तो मैं भी हूँ ,चलो फ़ीरोज़े कबाबीए की दुकान पर।फ़ीरोज़े कबाबीए की दुकान से फ़ारिग़ हो कर इसहाक़ ने मुझसे दस रुपये उधार लिए और अपने रस्ते पर चला गया ।मुझे इसहाक़ बहुत पसंद है। इस के पास हूँ तो ना नहीं करेगा ,सबको खिलाए पिलाए गा और जब पैसे नहीं होंगे। तो मेरे सिवा किसी से क़र्ज़ नहीं माँगेगा ।
भूका मर जाएगा मगर किसी से उधार नहीं लेगा ।ऐसा दोस्त जो दुनिया में मेरे सिवा किसी से उधार ना ले कहाँ मिलता है?मुझे इसहाक़ की दोस्ती पर फ़ख़र है। मैं जब भी इसहाक़ से मिलता हूँ ,एक अजीब सी ख़ुशी ला पुरवाई, बच्चों की सी मुसर्रत महसूस करता हूँ ।मुझे ऐसा मालूम होता है जैसे दिल में कोई ग़म नहीं है,कोई तकलीफ़ नहीं ।जैसे सारी दुनिया खिलौनों से भरी पड़ी है और इस के सारे बाज़ार मेरे लिए सजे पड़े हैं।बाअज़ आदमीयों में कुछ ऐसी ही ताक़त होती है।बाअज़ आदमीयों में कुछ ऐसी ही बात होती है।इस वक़्त इसहाक़ से मिलकर मीराजी हल्काफुल्का हो गया। मैंने कराफ़ोर्ड मार्कीट से दोसीब ख़रीद कर खाए , एक भिकारी को दो आने दीए वहां से चलता बोरी बंदर आगया।लेकिन जेब में रुपये थे और अभी घर जाने को जी ना चाहता था ।इसलिए बोरी बंदर से हॉर्न बी रोड़ पर हो गया।
हॉर्न बी की दुकानें मुझे बहुत पसंद हैं, खासतौर पर उनके नुमाइशी दरीचे में आईने लगे हुए हैं और नी आन की रोशनीयां और क़द-ए-आदम कांच की बड़ी बड़ी शफ़्फ़ाफ़ सिलों के पीछे कैसी कैसी ख़ूबसूरत चीज़ें पड़ी हुई हैं ।ख़ूबसूरत टाईयां ,मौज़े,जराब,पतलून के कपड़े मफ़लर ,जूते ,हर हफ़्ते इन दरीचों के अंदर ख़ूबसूरत चीज़ें बदल जाती हैं और पुराने डिज़ाइनों की बजाय नए डिज़ाइन आ जाते हैं।शाम को घर जाने से पहले मैं अक्सर हॉर्न बी रोड के नुमाइशी दरीचे देखा करता हूँ।जेब में पैसे हूँ या ना हूँ इस से कोई ग़रज़ नहीं मैं अक्सर अपना काम ख़त्म कर के बोरी बंदर जाने के लिए हारून बी रोड से गुज़रता हूँ और एक दरीचे से नाक रगड़ कर अंदर की ख़ूबसूरत चीज़ें देखा करता हूँ।इस में मुझे इतना लुतफ़ हासिल होता है जितना बचपन में नए खिलौने देखकर हासिल होता था।मैंने जेब में हाथ डाल कर नए नए कर करे नोटों को थपथपाया और बड़ी शान से ऐवान ऐंड फ़्रीज़र के नमाइची दरीचों के सामने आ खड़ा हुआ।आह!किस क़दर ख़ूबसूरत क़मीज़ थी।बादामी रंग की साफ़-शफ़्फ़ाफ़ क़मीज़ पर नीलयावर सुरख़ धारियाँ मेरा तो जी मचल गया,मैंने अपनी क़मीज़ के फटे हुए कालर को सहलाया।इस नीली और सुरख़ रंग की धारीदार क़मीज़ को पहन कर मैं कैसा दिखाई दूँगा।मैंने तख़य्युल में अपने आपको क़मीज़ पहन कर क़द-ए-आदम आईने के सामने देखा ,वाह!क्या ठाट थे और क़मीज़ के दाम थे सिर्फ तीस रुपये इस से तिगुने रुपये उस वक़्त मेरी जेब में थे,मैं क़मीज़ ख़रीद सकता था मगर कुछ और बेहतर देखने की ख़ातिर आगे चला गया।
अगले दरीचे में ख़ूबसूरत साबुन थे, झाग वाले, स्पंज और तोलीए जिन्हें देखकर ख़ुद बख़ुद नहाने की ख़ाहिश पैदा होती थी।ये सब मैं ख़रीद सकता था। इस से अगले दरीचे में मर्दों के लिए शब ख़वानी के गाऊँ थे :भड़कीले ,रेशमी ,मुनक़्क़श गाऊँ जिन्हें पहन कर वार्निश वाला भी मिस्र का पाशा मालूम हो।सत्तर रुपये का गाऊँ और इस से ज़्यादा रक़म मेरे पास थी।मैंने इस गाऊँ को अपने तख़य्युल में पहना और एक ईरानी ग़ालीचे पर उड़ता हुआ दूर जला गया।हुआ साफ़ थी ,मेरे नीचे ख़ूबसूरत बाग़ों वाली ज़मीन घूम रही थी और हरी हरी दो आब मैं एक छरीरी नाज़ुक इंदाम नदी एक पहाड़ी हसीना की तरह धूप सैनिक रही थी।मैंने इस ग़ालीचे को इस नदी के किनारे उतरने का हुक्म किया ।ग़ालीचा नदी के किनारे उतर आया और ख़ुद बख़ुद कहीं से एक सुराही आगई और एक मर्मरीं हाथ और दो आँखें और एक हुसैन चेहरा।फिर मुझे किसी ने टहो का क्या कर ख़त लहजे में बोला:आगे बढ़ो,अब किसी और को भी देखने दो,आधे घंटे से यहीं खड़ा है ना लेना ना देना।मैंने मुस्कराकर ऐवान ऐंड फ़्रीज़र के वर्दी पोश ग़ुलाम की तरफ़ देखा जो मुझे डाँट रहा था और आगे चल दिया।बेचारे को मालूम था कि मेरे पास एक उड़ने वाला ईरानी ग़ालीचा है और जेब में सत्तर रुपये से भी ज़्यादा की रक़म है।मैं इस वक़्त अंदर जा के इस गाऊँ को ख़रीद सकता था,मगर मेरा जी नहीं माना।हारून बी रोड पर इस से बेहतर भी कोई चीज़ होगी। आगे चल कर देखा जाये ,इस वर्दी पोश ग़ुलाम को तो किसी वक़्त भी शिकस्त दी जा सकती है।आगे चलता चलता बहुत सी दुकानें देखता भालता मैं जगदम्बा लाल पायल की दुकान पर पहुंच गया।यहां नुमाइशी दरीशे में कैमरे पड़े थे जिन्हें मैं ख़रीद सकता था।कैमरे ख़रीद के मैं इन फ़र्नीचरों की तस्वीर ले सकता था जो पुराने थे ।मैंने सोचा ये कैमरा लेकर मैं इसहाक़ के पास जाऊँगा और इस से कहूँगा:
चल,आज तेरी और तेरी महबूबा की इकट्ठी तस्वीर लें गे।मैंने अपना ईरानी ग़ालीचा मंगवाया और कैमरा हाथ में लेकर सारे जहान के ख़ूबसूरत मुनाज़िर की तस्वीरें उतारने लगा।कैमरे के साथ जादू बैन पड़ी थी जिसमें देखने से तस्वीरें बिलकुल अपनी गहराई के साथ नज़र आती हैं यानी जैसे आदमी बिलकुल आपके सामने चल फिर रहे हूँ और मकान आपके सामने हू-ब-हू जैसे आपका।तस्वीर अपनी लंबाई चौड़ाई और मोटाई के साथ इतनी अच्छी दिखाई देती कि सिनेमा में भी इतनी अच्छी मालूम नहीं होती।बचपन में एक बढ़िया एक बड़ी सी जादू बैन हमारे मुहल्ले में लाया करती थी और हम लोग एक पैसा देकर तमाशा देखते थे।इस जादू बेन को देखकर मेरा दिल-ख़ुशी से काँपने लगा और दुकान के अंदर दाख़िल हो गया।कोनटर पर मैंने एक नौजवान से पूछा:ये जादू बैन कितने की है?साढे़ पैंतीस रुपये
नौजवान बड़ी ख़ूबसूरत क़मीज़ पहने था। इस के बाल घुँघर या ले और पीछे को घूमे हुए टी आयरन को रोशनी में नए फ़र्नीचर के वार्निश की तरह चमकते थे।इस के होंटों पर भी जवानी की वार्निश थी।इस के लबों पर एक मग़रूर मुस्कुराहट थी जो सिर्फ चैक लिखते वक़्त पैदा होती थी।उसने मेरी तरफ़ निगाह उठा कर एक ख़ूबसूरत लड़की की तरफ़ देखा जो अभी अभी दुकान में दाख़िल हुई थी। वो उस की तरफ़ मुतवज्जा हो गया और एक मेले मैले चेहरे वाला ना आसूदा गुजराती जो ग़ालिबन इसका अस्सिटैंट था ,मेरी तरफ़ आगया ।मैंने देखा कि इस के चेहरे का वार्निश जगह जगह से उखड़ा हुआ है और उसने मुस्कुराने की कोशिश भी नहीं की।
मैंने कहा:जादू बैन मुझे दिखाओ। उसने जादू बीन में एक मुदव्वर फ़ीता रखकर मेरे हाथ थमा दिया और मुझसे कहा:इसे घुमाते जाओ,यूं स्विच दबाकर ,नई नई तस्वीरें तुम्हारे सामने आती जाएँगी।मैंने बटन आन किया:टारज़न हाथी पर सवार सामने से चला आरहा था।मैंने बटन दबा दिया। टारज़न आबशार में छलांग लगा रहा था।नीचे मगरमच्छ कितने ख़ौफ़नाक मालूम हो रहे थे, मैंने बटन दबा दिया।फूलों के गजरे ,फूलों के हार और फूलों के लहंगे पहने हुए हवाई जज़ीरे की लड़कीयां नाच रही थीं।मैंने बटन दबा दिया ।
साहिल की रेत पर शराब और फल और बिस्कुट और खाने की चीज़ें एक शफ़्फ़ाफ़ तश्तरी में पड़ी थीं और एक औरत रेत पर आँखें बंद किए बैठी थी।इस का मुँह मेरे इस क़दर क़रीब थ कि मैंने जल्दी से बटन दबा दिया।ईरानी ग़ालीचा ज़मीन पर आगया।
मैंने गुजराती ख़ारिश-ज़दा क्लर्क से कहा:ये जादू बैन तो बहुत अच्छी है ,मेरे बचपन की जादू बेन से हज़ार दर्जे बेहतर है,कितने में दोगे? वो मुस्कुराए बग़ैर बोला:साढ़े पैंतीस रुपये की जादू बैन आती है,मुद्दो रंगीन तस्वीरों वाले फ़तीले एक दर्जन उस के साथ लेना पड़ेंगे।दस रुपये के ये होंगे,सेल्ज़ टैक्स उस के इलावा पच्चास के ऊपर रक़म जाएगी।मैं जब हाथ डाल कर दस दस के नए कर करे नोटों को थपथपाया।आपको यक़ीन नहीं आएगा।
लेकिन ये बिलकुल सच्च है कि इस से पहले मेरे दिल में जादू बैन के सिवा और कोई तस्वीर ना थी।लेकिन नोटों को हाथ लगाने से एक दम मुझे धचका सा लगा और बहुत सी तस्वीरें बटन दबाए बग़ैर मेरे सामने घूम गईं ।एक बच्चा फटी हुई क़मीज़ पहने गली के फ़र्श पर बैठा है और रो रहा है।मैंने पहचाना मेरा बचा था।एक औरत की शलवार का पायँचा दूसरे पायंचे से ऊंचा है।इस की ओढ़नी से इस के सर के उलझे हुए बाल बाहर निकलते हुए नज़र आरहे थे।मैं समझ गया कि एक आदमी दरवाज़े पर खड़ा है।
इस की सूरत हर लम्हा बदलती जाती है।इस का ग़ुस्सा हर लम्हा बढ़ता जाता है।कभी ये मालिक मकान का मैनेजर बन जाता है।कभी दूध वाले सेठ का नौकर। कभी बिजली वाली कंपनी का ओहदेदार। कभी पानी वाले दफ़्तर का।मैंने बटन दबा दिया:अब मेरे सामने घर के फ़र्श पर एक ख़ाली तश्तरी पड़ी थी जिस पर एक गिलास औंधा पड़ा हुआ है।नोट मेरी जेब से बाहर निकले,फिर वहीं हाथ रह गए।ख़ूबसूरत क्लर्क ,ख़ूबसूरत लड़की को कैमरा बेच कर कोनटर पर वापिस आगया।मैं जल्दी से घूम कर दुकान से वापिस जाने लगा ।बाहर जाते-जाते मैं जानता था कि वो क्लर्क अपनी बेहतरीन वार्निश शूदा मुस्कुराहट से मेरे फटे हुए कालर देख रहा है,मेरी ख़ाकी ज़ैन की पतलून देख रहा है,जिसकी पीठ में दो जगह टुकड़े सिले हुए हैं।मुझे मालूम था कि वो मुझ पर हंस रहा है।मैंने अच्छी तरह दाँत पीस लिए,अच्छी तरह जेबों में हाथ डाल कर नोटों को अपनी गिरिफ़त में ले लिया और नुमाइशी दरीचों से निगाह उठा कर सीधा बोरी बंदर की तरफ़ चलने लगा।चलते चलते महसूस हुआ कि जैसे किसी ने मुझसे शदीद धोका किया है,किसी ने मुझे सौ रुपये देकर दो सौ छीन लिए हैं ।इस के साथ ही मेरा ईरानी ग़ालीचा और जादू बैन भी छीन ली है।किसी ने ज़ोर से मेरे मुँह पर चपत मारी है।किसी ने मेरे हर नोट पर लिख दिया है।तुम्हारे लिए नहीं मेरे क़दम भारी होते गए और मैंने महसूस किया कि मेरी मेहनत का हर नोट उदासी की एक लंबी ज़ंजीर है,जिसे मैं ख़ुद अपने हाथों से खींच रहा हूँ ।बोरी बंदर पहुंच कर यका-य़क मैंने फ़ैसला किया कि मैं आज गाड़ी से अपने घर वापिस नहीं जा सकता ।आज पैदल ही बोरी बंदर से साईन जाऊँगा। बहुत रात गए मैं थका मांदा अपने घर लौटा। मेरी बीवी मुतफ़क्किर थी और मेरा इंतिज़ार कर रही थी लेकिन जब उसने नोट देखे तो ख़ुश हो गई ।इसलिए वो मेरी उदासी का मतलब ना समझ सकी।बोली:लेकिन ये क्या बात है, तुम आज ख़ुश होने की बजाय उदास हो? मैंने चारपाई पर बैठते हुए कहा :जान-ए-मन !आज मुझे पता चला है कि ये दुनिया बूढ़ी हो चुकी है और मुझे ऐसी दुनिया चाहिए जो बच्चों की तरह मुस्कुरा सके।वो बोली:मैं नहीं समझी तुम
क्या कह रहे हो।
मैंने कहा :जान-ए-मन !मैं कह रहा हूँ कि अब पुराने फ़र्नीचर पर वार्निश करने से काम नहीं चलेगा।अब नया फ़र्नीचर लाना होगा।
पहला दिन
आज नई हीरोइन की शूटिंग का पहला दिन था
मेक-अप रुम में नई हीरोइन सुर्ख़ मख़मल के गद्दे वाले ख़ूबसूरत स्टूल पर बैठी थी और हेड मेक-अप मैन उसके चेहरे का मेक-अप कर रहा था। एक असिस्टेंट उसके दाएँ बाज़ू का मेक-अप कर रहा था, दूसरा असिस्टेंट उसके बाएँ बाज़ू का। तीसरा असिस्टेंट नई हीरोइन के पाँव की आराइश में मसरूफ़ था, एक हेयर ड्रेसर औरत नई हीरोइन के बालों को हौले-हौले खोलने में मसरूफ़ थी। सामने सिंगार मेज़ पर पैरिस, लंदन और हॉलीवुड का सामान-ए-आराइश बिखरा हुआ था।
एक वक़्त वो था जब इस हीरोइन को एक मामूली जापानी लिपस्टिक के लिए हफ़्तों अपने शौहर से लड़ना पड़ता था उस वक़्त उस का शौहर मदन इसी मेक-अप रुम के एक कोने में बैठा हुआ ख़ामोशी से यही सोच-सोच कर मुस्कुरा रहा था कैसी मुश्किल ज़िंदगी थी उन दिनों की...
आज से तीन साल पहले मदन दिल्ली में क्लर्क था। थर्ड डिवीज़न क्लर्क और एक सौ साठ रुपय तनख़्वाह पाता था। नादारी और ग़ुर्बत की ज़िंदगी थी। कोट का कालर फटा है, तो कभी क़मीज़ की आसतीन, तो कभी ब्लाउज़ की पुश्त। आगे-पीछे जिधर से वो दिल्ली की ज़िंदगी को देखता था, उसे वो ज़िंदगी कटी-फटी बोसीदा और तार-तार नज़र आती है। ऐसी ज़िंदगी जिसमें कोई आसमान नहीं होता, कोई फूल नहीं होता, कोई मुस्कुराहट नहीं होती, एक नीम फ़ाक़ा-ज़दा झल्लाई, खिसियाई हुई ज़िंदगी जो एक पुरानी, बदबूदार तिरपाल की तरह दिनों, महीनों और सालों के खूँटों से बंधी हुई हर वक़्त एहसास पर छाई रहती है। मदन इस ज़िंदगी के हर खूंटे को तोड़ देना चाहता था और किसी मौके़ की तलाश में था।
ये मौक़ा उसे मलिक गिरधारी लाल ने दे दिया। मलिक गिरधारी लाल उसके दफ़्तर का सुपरिंटेंडेन्ट था उन्हीं दिनों में दफ़्तर में एक असिस्टेंट की नई आसामी मंज़ूर हुई थी, जिसके लिए मदन ने भी दरख़ास्त दी थी। और मदन सीनियर था और लायक़ भी था और मलिक गिरधारी लाल का चहेता भी था। मलिक गिरधारी लाल ने जब उस की अर्ज़ी पढ़ी तो उसे अपने पास बुलाया और कहा। “मदन तुम्हारी अर्ज़ी में कई नुक़्स हैं।”
“तो आप ही कोई गुर बताईए।”
मलिक गिरधारी लाल ने क़दरे तवक़्क़ुफ़ के बाद मदन की अर्ज़ी उसे वापिस करते हुए कहा, “आज रात को मैं तुम्हारे घर आऊँगा और तुम्हें बताऊँगा।”
मदन बेहद ख़ुश हुआ। घर जा कर उसने अपनी बीवी प्रेम लता से खासतौर पर अच्छा खाना तैयार करने की फ़र्माइश की। प्रेम लता ने बड़ी मेहनत से रोग़न जोश, पनीर मटर, आलू घोभी और गुच्छियों वाला पुलाओ तैयार किया।
सर-ए-शाम ही मलिक गिरधारी लाल मदन के घर आ गया और साथ ही व्हिस्की की एक बोतल भी लेता आया। प्रेम लता ने जल्दी से पापड़ तले, बेसन और प्याज़ के पकौड़े तैयार किए और प्लेटों में सजा कर बीच-बीच में ख़ुद आकर उन्हें पेश करती रही।
चौथे पैग पर वो पालक के साग वाली फुलकियाँ प्लेट में सजा कर लाई तो मलिक गिरधारी लाल ने बे-इख़्तियार हो कर उस का हाथ पकड़ लिया और बोला, “प्रेम लता तू भी बैठ जा और आज हमारे साथ व्हिस्की की चुस्की लगा ले। तेरा पति मेरा असिस्टेंट होने जा रहा है।”
प्रेम लता सर से पाँव तक काँपने लगी उस की आँखों में आँसू उमड़ आए, क्योंकि आज तक उसके ख़ाविंद के सिवा किसी ने उसे इस तरह हाथ ना लगाया था। फुल्कियों की प्लेट उसके हाथ से गिर कर टूट गई, और मदन ने गरज कर कहा, “मलिक गिरधारी लाल... मेरी बीवी को हाथ लगाने की हिम्मत तुझे कैसे हुई?”
मदन का चाँस मारा गया। उसके बजाय सरदार अवतार सिंह असिस्टेंट बन गया। फिर चंद दिनों के बाद किसी मामूली ग़लती की बिना पर वो अपनी नौकरी से अलग कर दिया गया। और मदन ने कई माह दिल्ली के दफ़्तरों में टक्करें मारने के बाद बम्बई आने की ठानी। क्योंकि उसकी बीवी बड़ी ख़ूबसूरत थी। मदन के दोस्तों का ख़्याल था कि प्रेम लता उतनी ही हसीन है जितनी नसीम पुकार में थी, वहीदा रहमान प्यासा में थी, मधु बाला मुग़ल-ए-आज़म में थी। इसलिए मदन को चाहीए कि प्रेम लता को बम्बई ले जाये। दिल्ली में ख़ूबसूरत बीवी वाले मर्द की तरक़्क़ी के लिए कितनी गुंजाइश है। मदन अगर असिस्टेंट बन भी जाता तो ज़्यादा से ज़्यादा ढाई सौ रुपय पाने लगता। एक सौ साठ के बजाय ढाई सौ रुपय... यानी नव्वे रुपय के लिए अपनी इज़्ज़त गंवा देता, ये तो सरासर हिमाक़त है इसलिए मदन को सीधे बम्बई जाना चाहीए।
मगर जब मदन ने प्रेम लता से इसका ज़िक्र किया तो वो किसी तरह राज़ी ना हुई। वो एक घरेलू लड़की थी, उसे खाना पकाना, सीना पिरोना, कपड़े धोना, झाड़ू देना और अपने शौहर के लिए स्वेटर बुनना बहुत पसंद था। वो चौदह रुपय की साड़ी और दो रुपय के ब्लाउज़ में बेहद हसीन, ख़ुश और मगन थी। नहीं, वो कभी बम्बई नहीं जाएगी, वो किसी स्कूल में काम करेगी मगर बम्बई नहीं जाएगी।
पहले दो तीन दिन तो मदन उसे समझाता रहा जब वो किसी तरह ना मानी तो वो उसे पीटने लगा। दो दिन चार चोट की मार खा कर प्रेम लता सीधी हो गई और बम्बई जाने के लिए तैयार हो गई।
जब प्रेम लता और मदन बोरी बंदर के स्टेशन पर उतरे तो उनके पास सिर्फ एक बिस्तर था, दो सूटकेस थे, चंद सौ रुपय थे और प्रेम लता के जहेज़ का ज़ेवर था। चंद दिन वो लोग कालबा देवी के एक धरम-शाले में रहे और मकान ढूंडते रहे जब उन्हें मालूम हुआ कि जितने का ज़ेवर प्रेम लता के पास है और जितने रुपय मदन के पास हैं वो कल मिला कर भी इतने नहीं हो सकते कि बम्बई में पगड़ी देकर एक मकान लिया जाये। तो वो लोग धरम शाले से गोरे गाँव की एक झोंपड़ी में मुंतक़िल हो गए जहाँ सबसे पहले मदन की लड़ाई झोंपड़ी में रहने वाले एक गुंडे से हुई जो शराब पी कर प्रेम लता की इज़्ज़त पर हमला करना चाहता था। इस लड़ाई के एक ज़ख़्म का निशान आज भी मदन की कलाई पर मौजूद था। मगर मदन बड़ी बहादुरी और जीदारी से लड़ कर झोंपड़ियों में बा-इज़्ज़त तरीक़े से रहने का हक़ मनवा लिया था क्योंकि झोंपड़ियों में रहने वाले बुनियादी तौर पर ग़रीब आदमी थे और एक दूसरे का हक़ समझते थे।
झोंपड़ी में रह कर मदन ने प्रेम लता को साथ लेकर एक स्टूडीयो से दूसरे स्टूडीयो के चक्कर लगाते-लगाते फ़ाक़े शुरू हुए। पहले नक़दी ख़त्म हुई, फिर प्रेम लता के ज़ेवर बिके, फिर क़ीमती साड़ियाँ, फिर कम क़ीमती साड़ियाँ, आख़िर में मदन के पास सिर्फ एक क़मीज़ रह गई, जो उसके बदन पर थी। और प्रेम लता के पास सिर्फ एक साड़ी और एक ब्लाउज़, और वो भी पुश्त से फट गया था।
“आपका ड्रेस आया है।” एक असिस्टेंट डायरेक्टर अंदर आ गया और बा-आवाज़े-ए-बुलंद बोला। और मदन ख़्वाब-ए-ख़रगोश से जागा और उसने देखा कि असिस्टेंट डायरेक्टर के हमराह एक दर्ज़ी हीरोइन का नया ड्रेस लेकर चला आ रहा है। जामनी रंग का अतलसी ग़रारा, ज़रदोज़ी के काम का बनारसी कुरता और ब्लू शिफॉन का दुपट्टा, सुनहरे गोटे के लहरियों से झिलमिल झिलमिल करता हुआ, ड्रेस के अंदर आते ही महसूस हुआ गोया मेक-अप रुम में एक फ़ानूस रौशन हो गया है। हीरोइन मेक-अप ख़त्म करके ड्रेसिंग रुम में लिबास बदलने के लिए चली गई। लेडी हेयर ड्रेसर और ख़ादिमाएँ उसके जिलौ में थीं।
उसे यूं जाते देखकर मदन के होंटों पर फ़त्हयाबी की एक कामरान मुस्कुराहट नमूदार हुई उस दिन के लिए उसने जद्द-ओ-जहद की थी, उस दिन के लिए वो जिया था, उस दिन के लिए उसने फ़ाक़े किए थे, चने खा कर मैली पतलून और मैली क़मीज़ पहन कर तपती दो-पहरियों, या मूसलाधार बरसात से भीगी हुई शामों में वो प्रोडयूसरों के दफ़्तरों के चक्कर लगाता रहा था आज उस की कामयाबी का पहला दिन था, कामयाबी की पहली सीढ़ी उसे चमन भाई ने समझाई थी। चमन भाई फ़िल्म प्रोड्यूसरों को किराए पर ड्रैस सपलाई करता था और अक्सर औक़ात मुख़्तलिफ़ प्रोड्यूसरों के दफ़्तरों या मुख़्तलिफ़ स्टूडीयो में उसे मिल जाता था एक दिन जब मदन फटेहालों में इस तरह घूम रहा था, चमन भाई ने उसे अपने पास बुला लिया और पूछा।
“कहीं काम बना?”
“नहीं।”
“तुम निरे गधे हो।”
अब मदन ने गाली सुनकर भी ख़ामोश रह जाना सीख लिया था। इसी लिए वो ख़ामोश रहा।
देर तक चमन भाई बड़े गुस्से में उसकी तरफ़ देखकर घूरता रहा। फिर बोला, “आज शाम को मैं तुम्हारे घर आऊँगा और तुम्हें कुछ गुर की बातें बताऊँगा।
प्रेम लता ने अपनी साड़ी के फटे हुए आँचल से अपनी जवानी को ढांपने की नाकाम कोशिश की फिर उसने बेज़ार हो कर मुँह फेर लिया। जहाँ जाओ कोई ना कोई मलिक गिरधारी लाल मिल जाता है।
मगर इस शाम चमन भाई ने उनके झोंपड़े में काजू पीते हुए कोई ग़लत बात नहीं की। अलबत्ता पांचवें पैग के बाद चिल्ला कर बोला।
“जब तक प्रेम लता तुम्हारी बीवी रहेगी ये कभी हीरोइन नहीं बन सकती।”
“क्या बकते हो?” मदन गुस्से से चिल्ला कर बोला।
“ठीक बकता हूँ।” चमन भाई हाथ चला कर ज़ोरदार लहजे में बोला। “साला हलकट किस को तुम्हारी बीवी देखने की चाहत है सब लोग मिल मजूर से लेकर मिल मालिक तक फ़िल्म की हीरोइन को कुँवारी देखना चाहते हैं।”
“कुँवारी?”
“एक दम वर्जिन”
“मगर मेरी बीवी कैसे हो सकती है? वो तो शादीशुदा है।”
“तो इसको शादी वाली मत बोलो, कुँवारी बोलो, अपनी बीवी मत बोलो, बोलो, ये लड़की मेरी बहन है।”
“मेरी बहन?” मदन ने हैरत से पूछा।
“हाँ। हाँ। तुम्हारी बहन। अरे बाबा कौन तुम्हारी इस झोंपड़ी में देखने को आता है कि तुम्हारी बहन है कि बीवी है।”
चमन भाई तो ये गुर बता के चला गया, मगर प्रेम लता नहीं मानी, मदन के बार-बार समझाने पर भी नहीं मानी।
“मैं अपने शौहर को अपना सगा भाई बताऊंगी...? हरगिज़ नहीं, हरगिज़ नहीं हो सकता, इससे पहले मैं मर जाऊँगी, तुम ज़बान गुद्दी से बाहर खींचोगे, जब भी में अपने पति को अपना भाई नहीं कहूँगी।”
आख़िर मदन को फिर उसे पीटना पड़ा, दो दिन प्रेम लता ने चार चोट की मार खाई तो सीधी हो गई और फ़िल्म प्रोड्यूसरों के दफ़्तरों में जा कर अपने शौहर को अपना भाई बताने लगी।
चमन भाई ने मदन को अपने एक दोस्त प्रोडयूसर छगन भाई से मिलवा दिया। छगन भाई ने प्रेम लता के फ़ोटो एक कॉमर्शियल स्टूडियो से निकलवाये। अपने डायरैक्टर मिर्ज़ा इज़्ज़त बैग को बुलवा कर प्रेम लता से उसका तआर्रुफ़ कराया। मिर्ज़ा इज़्ज़त बेग ने बड़ी गहरी नज़रों से प्रेम लता को देखा, उससे बातचीत की, फिर स्क्रीन टेस्ट के लिए हाँ कर दी।
स्क्रीन टेस्ट के लिए फ़िल्म का एक सीन प्रेम लता को याद करने के लिए दिया गया और तीन दिन के बाद स्क्रीन टेस्ट रखा गया। तीनों दिन हर-रोज़ शाम के वक़्त चमन भाई झोंपड़े में मदन और प्रेम लता से मिलने के लिए आता रहा और काजू पीता रहा और इन दोनों का हौसला बढ़ाता रहा।
“आज स्क्रीन टेस्ट है मेरी मानो तो तुम आज प्रेम लता के साथ ना जाओ।”
“क्यों न जाऊँ?”
“इसलिए कि अगर तुम साथ गए तो प्रेम लता फ़्री ऐक्टिंग ना कर सकेगी, तुम्हें देखकर शर्मा जाएगी, और अगर प्रेम लता घबरा गई तो ये स्क्रीन टेस्ट में फ़ेल हो जाएगी।
“कैसे फ़ेल हो जाएगी?” मदन शराब के नशे में झल्ला कर बोला
“मेरी बीवी नसीम, सुचित्रा सेन, मधूबाला से भी ख़ूबसूरत है। मेरी बीवी एलिज़ा बेथ टेलर से भी ज़्यादा ख़ूबसूरत है, मेरी बीवी नर्गिस से बेहतर अदाकारा है, मेरी बीवी किसी स्क्रीन टेस्ट में फ़ेल नहीं हो सकती, मेरी बीवी...”
“अबे साले बीवी नहीं बहन बोल बहन।” चमन भाई हाथ चलाते हुए ज़ोर से बोला।
“अच्छा बहन ही सही।” मदन शराब का जाम ख़ाली करते हुए बोला। “जैसा तुम बोलोगे चमन भाई ऐसा ही में करूँगा। आज तक कोई बात टाली है जो अब टालूँगा, ले जाओ, मेरे भाई अपनी बहन को तुम ही आज स्क्रीन टेस्ट के लिए ले जाओ, मगर हिफ़ाज़त से ले आना।”
“ख़ातिर रखो। अपनी गाड़ी में लेकर जा रहा हूँ अपनी गाड़ी में लेकर आऊँगा।”
बहुत रात गए प्रेम लता स्क्रीन टेस्ट से प्रोड्यूसर की गाड़ी में लौटी। उसने वही साड़ी पहन रखी थी जो स्क्रीन टैस्ट के लिए इस्तेमाल की गई थी। और उसके मुँह से शराब की बू आ रही थी। मदन गुस्से से पागल हो गया।
“तुमने शराब पी?”
“हाँ सीन में ऐसा ही करना था।”
“मगर पहले सीन में जो तुम्हें दिया गया था उसमें तो ऐसा नहीं था।”
“मिर्ज़ा इज़्ज़त बेग ने सीन बदल दिया था।”
“तो तुमने शराब पी, सिर्फ शराब पी?” मदन ने उससे गहरी नज़रों से देखते हुए पूछा।
“हाँ सिर्फ़ शराब पी।”
“और तो कुछ नहीं हुआ?”
“नहीं।” प्रेम लता बोली। “ अलबत्ता सीन की रिहर्सल अलग से कराते हुए मिर्ज़ा बेग ने मेरी कमर में हाथ डाल दिया।”
“कमर में हाथ डाल दिया... क्यों?” मदन ने एक दम भड़क कर कहा।
“सीन का ऐक्शन समझाने की ख़ातिर।” प्रेम लता बोली।
“मदन का गुस्सा ठंडा हो गया।” आहिस्ता से बोला, “सिर्फ़ कमर में हाथ डाला इज़्ज़त पर हाथ तो नहीं डाला?”
“नहीं” प्रेम लता ने नज़रें चुराकर कहा।
“साफ़ साफ़ बताओ। कुछ और तो नहीं हुआ?”
“हाँ हुआ था” प्रेम लता झिजकते-झिजकते बोली।
“क्या हुआ था?” मदन फिर भड़कने लगा।
“स्क्रीन टेस्ट के दौरान में जो मेरे सामने हीरो का काम कर रहा था उसने मुझे ज़ोर से अपनी बाँहों में भींच लिया।”
“ऐसा उस बदमाश ने क्यों किया?” मदन गरज कर बोला।
“ऐसा ही सीन था।” प्रेम लता बोली।
“अच्छा, सीन ही ऐसा था।” मदन अपने आपको समझाते हुए बोला।
“सीन ही ऐसा था तो कोई मज़ाइक़ा ना था।” मगर ठीक-ठीक बताओ सिर्फ़ बाँहों में लेकर भींचा था?”
“हाँ, सिर्फ़ बाँहों में लेकर भींचा था।” प्रेम लता गुलू-गीर लहजे में बोली। फिर यका-यक बिस्तर पर गिर कर तकिए में सर छुपा कर फूट फूटकर रोने लगी।
“शॉर्ट तैयार है।”
ये प्रोडयूसर छगन भाई की आवाज़ है, मदन इस आवाज़ को सुनकर चौंक गया और बे-इख़्तियार कुर्सी से उठ गया, छगन भाई मदन को देखकर मुस्कुराया, हाथ बढ़ा कर उसने मदन से मुसाफ़ा किया, बड़े प्यार से उसके काँधे पर हाथ रखा, और उससे पूछा।
“सरोज बाला कहाँ है?”
छगन भाई ने अपनी नई हीरोइन का नाम प्रेम लता से बदल कर सरोज बाला रख दिया था। पेशतर उसके कि मदन कोई जवाब दे, नई हीरोइन ख़ुद ड्रेसिंग रूम से निकल कर ख़िरामाँ-ख़िरामाँ मेक-अप रूम में चली आई, और नए लिबास, नए हेयर स्टाइल और मुकम्मल मेक-अप के साथ हर क़दम पर एक नया फ़ित्ना बेदार करते हुए आई। चंद लम्हों तक तो मदन बिल्कुल मबहूत खड़ा उसे देखता रहा गोया उसे यक़ीन ना हो कि ये औरत उस की बीवी प्रेम लता है। छगन भाई भी एक लम्हे के लिए भौंचक्का रह गया और उस एक लम्हे में उसे मुकम्मल इत्मीनान हो गया कि उसने जो फ़ैसला किया था वो बिलकुल ठीक था। दूसरे लम्हे में छगन भाई ने थियेट्रीकल अंदाज़ में अपने सीने पर हाथ रखा और बुलंद आवाज़ में कहने लगे।
“शॉर्ट तैयार है सरकार-ए-वाली, सीट पर तशरीफ़ ले चलिए।”
नई हीरोइन खिलखिला कर हंस पड़ी और मदन को ऐसा लगा जैसे किसी शाही हाल में लटके हुए इस्तंबोली फ़ानूस की बहुत सी बिल्लौरीं क़लमें एक साथ बज उठीं।
नई हीरोइन गोया मुस्कुराहट के मोती बिखेरती हुई छगन भाई के साथ सीट पर चली, मदन भी पीछे पीछे चला, और छगन भाई को अपनी बीवी के साथ हंस हंसकर बातें करते हुए देखकर मदन को वो दिन याद आया जब छगन भाई ने स्क्रीन टैस्ट के चंद दिन बाद मदन को अपने दफ़्तर बुला भेजा था।
छगन भाई मदन की कमर में हाथ डाल कर ख़ुद उसे अंदर कमरे में ले गया था जो एयरकंडीशन्ड था। और छगन भाई का अपना ज़ाती प्राईवेट कमरा था जिसमें बिज़नस के तमाम अहम उमूर तय होते थे। जब मदन उस कमरे के अंदर पहुंचा तो उसने देखा कि उससे पहले उस कमरे में मिर्ज़ा इज़्ज़त बैग और चमन भाई बैठे हुए हैं।
“आज बोर्ड आफ़ डायरेक्टर्ज़ की मीटिंग है।” चमन भाई ने हंसकर कहा।
“आज हम लोग एक सोने की कान ख़रीदने जा रहे हैं।”
“सोने की कान?” मदन ने ताज्जुब से पूछा।
“हाँ और तुम्हारा भी इस में हिस्सा है, एक चौथाई का और बाक़ी तीन तुम्हारे पार्टनर तुम्हारे सामने इस कमरे में बैठे हैं, मैं, छगन भाई, ये मेरा दोस्त चमन भाई, ये मेरा डायरेक्टर मिर्ज़ा इज़्ज़त बैग, हम चारों आज से इस सोने की कान के पार्टनर होंगे
“और ये सोने की कान है कहाँ?”
जवाब में छगन भाई ने मेज़ से एक तस्वीर उठाई, और मदन को दिखाते हुए बोले।
“ये रही।”
मदन ने हैरत से कहा, “मगर ये तो मेरी, बी... मेरा मतलब है मेरी बहन की तस्वीर है।”
“यही सोने की नई कान है, तुम्हारी बहन को अपनी नई पिक्चर में हीरोइन ले रहा हूँ, और फ़िल्म इंडस्ट्री के टॉप हीरो के संग, देवराज के संग, जिसकी कोई तस्वीर सिल्वर जुबली से इधर उतरती ही नहीं, बोलो? फिर एक पिक्चर के बाद उस हीरोइन की क़ीमत ढाई लाख होगी कि नहीं? इसको मैं सोने की कान बोलता हूँ तो क्या ग़लत बोलता हूँ? जवाब दो।”
“मगर मैं पूछता हूँ कि मेरी सोने की कान आपकी कैसे हो गई?” मदन ने हैरान हो कर पूछा।
“क्यों कि मैं उसे हीरोइन ले रहा हूँ” छगन बुलंद आवाज़ में बोला। नहीं तो ये लड़की क्या है, गोरे गाँव के एक झोंपड़े में रहने वाली पंद्रह रुपय की छोकरी, फिर मैं इसकी पब्लिसिटी पर पछत्तर हज़ार रुपया ख़र्च करूँगा कि नहीं? फिर मैं इसको टॉप के हीरो देवराज के संग डाल रहा हूँ उसके बाद अगर में इस कान में फिफ्टी प्रसेंट का शेयर मांगता हूँ तो क्या ज़्यादा मांगता हूँ? और सिर्फ पाँच साल के लिए।”
“और तुम?” मदन ने चमन भाई से पूछा।
“अगर मैं तुम्हें छगन भाई से ना मिलाता तो तुम्हें ये कॉन्ट्रैक्ट आज कहाँ से मिलता। इसलिए हिसाब से साढे़ बारह फ़ीसदी का कमीशन मेरा है।”
“और तुम?” मदन ने इज़्ज़त बैग की तरफ़ मुड़कर बोला।
“अपुन तो डायरेक्टर है।” मिर्ज़ा इज़्ज़त बैग बोला। “अपुन चाहे तो इस पिक्चर में नई हीरोइन को फ़रस्ट क्लास बना दे, चाहे तो थर्ड क्लास बना दे। इसलिए अपुन को भी साढे़ बारह फ़ीसदी चाहीए।”
“मगर ये तो ब्लैक मेल है।” यकायक मदन भड़क कर बोला।
“इज़्ज़त की बात करो, इज़्ज़त की।” इज़्ज़त बैग ख़फ़ा हो कर बोला। “अपुन अपनी इज़्ज़त हमेशा बैग में रखया है इसलिए अपुन का नाम इज़्ज़त बैग है, अपुन इज़्ज़त चाहता है, और अपना शेयर, सिर्फ साढे़ बारह फ़ीसदी।”
यकायक मदन को ऐसा महसूस हुआ जैसे प्रेम लता कोई औरत नहीं है वो एक कारोबारी तिजारती इदारा है जिसके शेयर बम्बई के स्टाक ऐक्सचेंज पर ख़रीद-ओ-फ़रोख़्त के लिए आ गए, जैसे ग्लोब कम्बाइन अलकायन और टाटा डीफ़र्ड, ऐसे ही प्रेम लता प्राईवेट लिमिटेड।
“मुझे कहाँ दस्तख़त करने होंगे” मदन ने तक़रीबन रुहाँसे हो कर पूछा।
फ़ाक़ों के माह साल माज़ी का हिस्सा बन चुके थे, जिस दिन मदन ने कॉन्ट्रैक्ट पर दस्तख़त किए, छगन ने उसे दो हज़ार का चैक दिया, मलबार हिल पर उनके रहने के लिए एक उम्दा फ़्लैट ठीक कर दिया, एक नई फ़ियेट ग्लोब मोटर्ज़ की दूकान से निकलवा के उसे दी, उसी रात मदन और प्रेम लता अपने नए फ़्लैट में चले गए, और मदन ने प्रेम लता को गले से लगा कर उस की कामयाबी के लिए दुआ की और मदन के पैरों को छूकर प्रेम लता ने प्रतिज्ञा के कि वो हमेशा-हमेशा के लिए सिर्फ़ उसकी बीवी हो कर रहेगी आख़िर-ए-कार मदन की मेहनत और जद्दोजहद रंग लाई, आख़िर-ए-कार कामयाबी ने मदन के पाँव चूमे, आज उस की बीवी हीरोइन थी, प्रेम लता, सरोज बालाथी, आज उस की शूटिंग का पहला दिन था।
और अब वो दिन भी ख़त्म हो रहा था, स्टेज नंबरों के बाहर मदन अपनी फ़ियेट में बैठा हुआ बार-बार घड़ी देख रहा था, कब पाँच बजेंगे, कब पैक-अप होगा, और कब वो अपने दिल की रानी को अपनी फ़ियेट में बिठा कर दूर कहीं समुंद्र के किनारे ड्राईव के लिए ले जाएगा।
पैक-अप की घंटी बजी, और मदन का दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा।
थोड़ी देर के बाद नई हीरोइन बाहर निकली, उसका हाथ देवराज के हाथ में था, और वो दोनों बड़ी बे-तकल्लुफ़ी से बातें करते, हंसते बोलते, हाथ झुलाते साथ-साथ चले आ रहे थे, साथ-साथ फ़ियेट से आगे चले गए, जहाँ हीरो की शानदार इमपाला गाड़ी खड़ी थी।
मदन ने फ़ियेट का पुट खोल कर आवाज़ दी।
“सरोज।”
“हाँ भइया।” हीरोइन पलट कर चिल्लाई, और फिर दौड़ती हुई मदन के पास आई और आहिस्ता से बोली। “तुम घर जाओ, मैं देवराज की गाड़ी में आती हूँ।”
“मगर तुम मेरी गाड़ी में क्यों नहीं जा सकतीं?” मदन ने गुस्से से पूछा।
“बावले हुए हो।” प्रेम लता ने तैश खा कर जवाब दिया। “मैं अब एक हीरोइन हूँ, और अब मैं कैसे तुम्हारे साथ इस छोटी सी फ़ियेट में बैठ कर स्टूडीयो से बाहर निकल सकती हूँ, लोग क्या कहेंगे।
“सरोज” उधर से हीरो ज़ोर से चलाया।
“आई” सरोज ज़ोर से चिल्लाई और पलट कर हीरो की गाड़ी की तरफ़ दौड़ती हुई चली गई। देवराज सामने की सीट पर ड्राईव करने के लिए बैठ गया और सरोज उसके साथ लग कर बैठ गई। फिर इमपाला के पट बंद हो गए और वो ख़ूबसूरत फ़ीरोज़ी गाड़ी एक ख़ुश आइंद हॉर्न की मौसीक़ी पैदा करती हुई गेट से बाहर चली गई और मदन की फ़ियेट का पुट खुले का खुला रह गया
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