Revolutionary foundation
Mission
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The mission of R Foundation ( Revolutionary foundation) is to spread awareness a
श्रृद्धांजली
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गुरु मां, अभी तो बहोत काम बाकी था,
बस चंद कदम ही तो चले थे हम,
छूना तो अभी आसमान बाकी था।
अब डगर मुश्किल लगने लगी है,
रोशनी में भी नजर कुछ देखती क्यों नहीं हैं।
Sports spirit ...
My childhood basketball ground (INDIAN RAILAY).
(for us it is always DLW)
The best part is the discipline we can see ,how the coach is giving lessons to his students ..
Any comments!
Correction
It's 14 years not 6 years....
Sunday को तो यहां पे हवा भी बाहर ही इंतजार करती मिलती थी और आज देखो,इतनी कम भीड़ तो फर्स्ट लॉकडाउन में भी नहीं था।
#भारत
My cat after watching Kangaroo lifting World Cup.
दिल के अरमान कंगारू ले कर चल गए।
और मैं बिल्ली बनी बैठी रह गई।।
न तो कर्फ्यू लगा है और न ही corona का लॉकडॉन, ये तो कुछ और ही है।
😊🙏
#भारत
Security कारण से इस शृंखला "कैशलैस भारत भ्रमण" के आगे के सभी पड़ाव को नही दर्शाया गया है।
लेकिन एक बात को कहने में मुझे गर्व हो रहा है, कि आपसभी के हृदय में मेरे लिए इतना सारा स्नेह पाकर मन अभिभूत हो उठा।
समय की कमी के कारण आप बहोत से सम्मानित लोगों से मुलाकात न कर पाने पे मैं क्षमा चाहता हूं।
पर आप सभी के लिए कुछ तड़कता भड़कता लेकर आया हूं, जिसका शीर्षक है, "भारतीय रेल का सफर".
"कैशलैस भारत यात्रा अब अपने आखिरी पड़ाव पे है, इस बिना कैश की यात्रा में आए परेशानियों और चैलेंज को एक लेख के माध्यम से आपतक जरूर साझा करेंगे।
जल्द मुलाकात होगी।
नमस्कार।🙏
Gobardhan Pooja ki sabhi ko hardik badhayi.
Deepawali ki dhero subhkamnayen
अच्छी राय
और
अच्छी चाय,
सिर्फ कहीं कहीं मिलती है।
मनुष्य से ज्यादा दिमाग और सहयोगिता इक बंदर से सीखने को मिली।
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Sunday bonanza में आज एक मजेदार लेकिन सत्य घटना पे आधारित है।
हम अपने कैशलैस भारत दर्शन के पांचवें पड़ाव में गलिया छान रहे थे,तभी अचानक से मेरी नजर आसमान की ओर गई, पहली नजर में तो इक सामान्य सी घटना लगी, एक बंदर तार का सहारा लेकर खेल रहा था, परंतु बात कुछ अटपटी लगी क्योंकि बंदर सिर्फ एक पोल पे चढ़ कर तार नही हिला रहा था अपितु वह उस तार के सहारे आगे की ओर बढ़ रहा था, उसके तुरंत बाद इक ऐसा वाक्या दिखा जो शायद मनुष्य जाति के लिए एक सीख साबित हो।
यह बंदर पहले एक लीडर की तरह खुद आगे जाकर रास्ता बनाता है और फिर बीच में रुक कर पीछे से आ रहे दूसरे साथी को पलट कर देखता है की वह सही सलामत आ गया या नहीं, उसके पश्चात वह पुनः आगे को बढ़ कर रास्ता प्रशस्त करता है इस प्रकार वह खुद और अपने पीछे आ रहे मित्र को लेकर आगे बढ़ता है।
परंतु यहीं अगर मनुष्य को सोचें तो पहले वह तार पर करने के बाद पीछे आने वाले को आगे आने से रोकने के लिए तार को हिलाने लगता ताकि वह बीच में ही गिर जाए।
दूसरी सबसे सोचनीय बात यह है की मोटर गाड़ियों की तादात इतनी बढ़ गई है की आमतौर पे सड़को से पार करने वाले बंदरों को तार का सहारा लेना पड़ रहा है। क्योंकि तेज रफ्तार में मनुष्य आंखों से अंधा हो चुका होता है।
Moral of the story यह है की फोन साइड रख के दिवाली का त्योहार सेलिब्रेट करें।
सुभ 🪔 दीपावली।
Cashless भारत दर्शन का यह बहुमूल्य पड़ाव सालों से अशांत मन को शांति और नई ऊर्जा प्रदान करने वाला है।
एक तरफ सूर्य का प्रकाश धरती की कालिमा को समाप्त कर रहा है और दूसरी ओर एक ऊर्जा अपनी पुरानी शरीर को छोड़ नए शरीर में प्रवेश करने जा रही है।
Cashless journey से भारत दर्शन के अगले पड़ाव यानी पांचवा पड़ाव पे हम पहुंचे हैं मेरी जन्मस्थली पे।
इस यात्रा का पांचवां पड़ाव मेरी जिंदगी की यात्रा का पहला और आखिरी पड़ाव है।
भारत दर्शन(cashless journey)
तीसरा पड़ाव (एक अनोखी वीडियो)
ये वह बचपन है जो यथार्थ है, निश्छल और शाश्वत है।
कैप्शन आप खुद सोचेंगे तो बात मजेदार होगी।
भारत दर्शन (कैशलेस journey)
दूसरा पड़ाव।
नोट:- security reason की वजह से तीसरे पड़ाव को नही दिखाया जा सकता और न बताया जा सकता है।
परंतु तीसरे पड़ाव के कुछ अनोखे लम्हों को जरूर साझा किया जाएगा।
भारत दर्शन (cash less journey )
पहला पड़ाव
Cashless journey se भारत दर्शन ( पहला पड़ाव से दूसरे पड़ाव की ओर)
पहला झटका पहले ही पड़ाव में, जैसे ही हमारी यात्रा स्टेशन से हमारे पहले परिवार के घर की ओर बढ़ी टैक्सी ड्राइवर ने ऑनलाइन पेमेंट के लिए साफ इंकार कर दिया, मेरे लाख बोलने पे और पूछने पे की आईओए नंबर हो तो बता दो,दोस्त का या किसी संबंधी का,तो ड्राइवर साहब ने साफ इंकार कर दिया, चूंकि यह यात्रा कैशलैस करनी है तो कैश लेकर ही नही चलना, फिर बहोत इंतजार के बाद पीछे बैठे सहयात्री ने कहा की आप हमे ऑनलाइन पे करिए और मैं इन्हें दे दूंगा।
बहरहाल, पहला पड़ाव मन को शांत और कई सारी आंतरिक दुविधाओं को दूर करने वाला था।
थोड़ी बातें और खूब सारा अच्छा खाना,वो भी अत्यंत स्वादिष्ट।
पालक पनीर तो मानो पहले समा बांध गया हो।
अब cashless journey की यात्रा आगे बढ़ती है,
एक लोकल ट्रेन और एक टैक्सी की यात्रा में कुछ अलग ही मजा आया, कई महीनों से हुई थकान तो लोकल ट्रेन की ऑटोमैटिक मालिश में दूर हो गई।
उसके तुरंत बाद इक टैक्सी ड्राइवर मिले, उनकी उम्र लगभग 55 से 60 के बीच या उससे भी ज्यादा होगी। उनसे हुई वार्ता इस व्यक्तव्य में नही बयान किया जा सकता। पर काफी entertainment था.
अब हम चल दिए दूसरे पड़ाव की ओर। This halt is more interesting and adventurous and also filled with suspense .
भारत दर्शन का आरंभ ।
इस बार कुछ नया है, zero cash Journey।
बदले भारत की नई तस्वीर।
#भारत
बहोत ही कम ऐसा होता है की मैं खुद को फोटो फ्रेम में खोज पाता हूं। इस फोटो का क्रेडिट खींचने वाले को देना तो चाहता हूं पर दे नही सकता।
Guess my name....?
मुझे समझ नही आ रहा की इसको अपना दोस्त मानू या दुश्मन या दोनो, मेरे जूतों को तो इसने खिलौना और सोफा दोनो बना रखा है।
Money can't buy this natural beauty.
It is eternal , it is real.
क्या आप अपने बच्चे की आदतों से परेशान हैं? और आप उन आदतों को सही करना चाहते हैं? तो नीचे पढ़ना शुरू करें वरना आगे स्क्रॉल कर दें।
मेरे पास अक्सर अभिभावक (parents) आकर पूछते हैं कि उनका बच्चा पढ़ता नही है जब देखो तब फोन देखता है वगैरह वगैरह, उसे कैसे ठीक किया जाय की उसका मन पढ़ाई में लगने लगे।
तो जनाब उत्तर इसका बहोत कड़वा लेकिन सत्य है।
जवाब 1
बच्चा अपने अभिभावक का ही प्रतिबिंब यानी mirror image होता है, इसी लिए कहा जाता है की बच्चे से बात कर के उसके परिवार को जाना जा सकता है,
उपाय 1
अभिभावक खुद को बदलें ,बच्चा खुदबखुद बदल जाएगा....
आप चाहते हैं की आपका बच्चा पढ़े और अच्छा नंबर लाए तो आपभी उसके साथ उसी के पढ़ाई के समय टेबल पे बैठ कर कुछ read करिए,बच्चा बीच बीच में बोलेगा ताकि उसे अटेंशन मिले और ये डिसिप्लिन बिगड़े लेकिन यहीं पे तो एक अभिभावक यानी पैरेंट को अपने बड़े होने का कार्य पूरा करना है ,या तो बच्चे की बात(अगर फालतू की है और उस पढ़ाई से रिलेटेड नही है तो ) इग्नोर कर दें,और खुद पढ़ते रहें,3 या 4 महीने बाद बच्चा खुद आदत बना लेगा और सुधार जायेगा।
मुश्किल 1
असल में अभिभावक खुद नही बदलना चाहते और अपने बच्चे को आइंस्टीन बनता देखना चाहते हैं।
जवाब 2
जब कोई भी पैरेंट ऑफिस जाता है तो क्या उसे जाने का मन करता है? जब नही करता है तो क्यों जाता है, बिल्कुल उसी तरह जब बच्चा नहीं पढ़ना चाहता तो क्यों उसे छूट दे दी जाती है,क्यों नही उसे एक रूटीन में बैठ कर पढ़ना सिखाया जाता है।
इस प्रक्रिया को कहते हैं समाधी या साधना।
हम हमेशा उसी चीज को करते हैं जो हमे अच्छा लगता है और अगर उसी चीज को लगातार करते रहें तो या तो वो बोरिंग (उबाऊ) हो जायेगी या एडिक्शन ( नशा ) बन जायेगी।
उपाय 2
अगर बुरा या उबाऊ भी लगे तो भी बच्चे के नियम को न तोड़ें।
अगर शाम 7 बजे से 9 बजे तक अध्ययन का समय है तो उस समय कोई अन्य कार्य न करें और न करने दें।
Saturday and Sunday ka नियम बदलें आउटिंग पे जाएं, मार्ट जाएं ,टीवी में मूवीज दिखाएं( ऐसी मूवी जो कोई सीख देती हो)...
जीवन जीना सीखें काटना नहीं।
दुनिया जंगल में जाकर सुकून खोजती है, और हम जहां रहते हैं वहीं जंगल बना कर सुकून पा लेते हैं।
और उससे भी मजेदार बात की हमारे जंगल में पंछी पिजड़े में नही मेरे साथ बैठ कर नाश्ता करते हैं।
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Onida TV का add dekha hai aap logon ne?
Just imagine what this person is thinking ।
एक बहोत छोटी लेकिन अनोखी मुलाकात।
यह मेरा सौभाग्य मात्र है की मैं mathemtic (गणित) के जाने माने चेहरे और विश्वप्रख्यात (world known) शक्सियत से मुलाकात करने का मौका मिला।
इस छोटी मुलाकात में नई शिक्षा पद्धति और बच्चों में गणित के डर को कैसे कम किया जाए पे विस्तृत चर्चा हुई।
अब आपके मन में यह सवाल जरूर आ रहा होगा की आखिर कौन हैं ये?
तो महोदय ये वो मेहनत है जिसके कार्य को भारत के अधिकतर कोचिंग वाले अपना नाम चिपका के विद्यार्थी को प्रदान करते हैं....
124 देशों में इनका नाम प्रख्यात है और इनके कार्य न जाने कितने टॉपर्स और अनेक विद्यार्थियों के लिए राम बाण साबित हुए हैं।
तो सही मायने में इन्होंने गणित के छेत्र में लाया है।
इस समाज में लोग सिर्फ आपस में कंप्लेन करते हैं, समाज में लोगों को न तो उनके अधिकारों के बारे में पता है और न कर्तव्यों के, जिस ट्रेन में मैं यात्रा कर रहा हूं उस कोच में पहिए की जर्किंग की जोरदार आवाज मानो पागल कर देगी, इसी कोच में लोग सफर भी कर रहे हैं और पहले भी किया होगा लेकिन किसी ने जहमत नहीं उठाई की इस चीज को ठीक कैसे किया जाए, और जनाब वो छोड़िए,इसी कोच में अभी मेरे आस पास 50 लोग हैं लेकिन किसी ने नहीं सोचा की कैसे सॉल्यूशन निकाला जाए, कमी निकालने वाले इस समाज में कमियों को ठीक करने की हिम्मत नही करता कोई, और लोग मुंह उठा कर सरकार को जिम्मेदार ठहरा देते हैं और वो भी सरकार के किसी एक डिपार्टमेंट को नही बल्कि माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी की कमी बताने लगते हैं, हां भाई बात भी सही है की देश का प्रधान व्यक्ति को हर ट्रेनें की हर बोगी में सफर करना चाहिए और कमी को अपने डिपार्टमेंट में खुद ही भेजना चाहिए। जनाब 2014 से आज 2023 है, और इस रेल के सफर में मैने एक बार तो पूरा कोच ही बदलवा दिया था जिसका प्रूफ मैने RTI से भी पूछा, और आज का वाकया तो ऐसा है की मेरे कंप्लेन फाइल करते ही अगले स्टेशन पे गाड़ी के पूरे व्हील की जांच की गई और रिपोर्ट को अंतिम स्टेशन भेजा गया। इतनी तत्परता तो मैने 2014 से पहले नही देखी थी।
और आपको ये बताता चलूं की मैं अपने बचपन के समय से एक ट्रैवलर रहा हूं और कॉलेज टाइम यानी 2005 से भारत के कोने कोने तक भ्रमण किया हूं, और मैने बदलाव का अनुभव खुद अपनी आंखों से किया है।
Revolution आ चुका है और धीरे धीरे आया है,बस उसे पहचानिए।
वैसे आपके सपोर्ट के लिए एक डॉक्यूमेंट भी पोस्ट कर रहा हूं।
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